Thursday 31 May 2012

'' BHRASHTAACHAARI PAR DANDAAROPAN''

'' भ्रष्टाचार के अपराध में दंडारोपण किस प्रकार होना चाहिए..??""


" चूँकि आर्थिक भ्रष्टाचार के अपराध का सम्बन्ध सीधे आर्थिक दुराचरण से है अत: प्रथमत:
   भ्रष्टाचार के आरोपी पर दोषपूर्ण अर्जन की परिष्टि उपरांत विधिविरुद्ध एवं अवैधानिक
   संपत्ति का अधिग्रहण अथवा 'जब्तीकरण' की कार्यवाही का अनुकरण होना चाहिए, किन्तु
   जहां दोषपूर्ण अर्जन किसी पद्विशेष के समुन्नयन हेतु या  अन्य सदोष समुन्नयन के हेतुक
   है वहां ऐसे पद्विशेष का समुचित परिक्षणोपरांत पदच्युत अथवा तत्संबंधित कार्यवाही हेतु
   अग्रसर होना चाहिए.."
                                  यदि अपराधी ने सदोष समुन्नयन का प्रयोजन स्वयं अथवा अन्य के
   हेतु किया है तब इसकी क्षतिपूर्ति सह समायोजन अपराधी के वैध अर्जन से होना चाहिए.."
       
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 " जहां प्रकट स्वरूप दोषयुक्त अभिलाभ सुनिश्चित हो,
   वहां निश्चय ही दोषयुक्त हानि होगी.."

" जहां न्यूनतम सदोष अभिलाभ हो..,
  वहां उच्चतम सदोष हानि हो सकती है.."

" जहां उच्चतम सदोष अभिलाभ हो..,
  वहां न्यूनतम सदोष हानि होगी.."

" जहां न्यूनतम अथवा उच्चतम सदोष अभिलाभ हो..,
  वहां न्यूनतम अथवा उच्चतम सदोष हानि होगी.."

  अत: दंडारोपण भी अनुपातिक होना चाहिए.."
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" यदि अपराधी ने सदोष अर्जन का प्रयोजन दोहरे सदोष अर्जन हेतु किया है
  तब ऐसे दोहरे सदोष अभिलाभ का अधिग्रहण अथवा 'जब्तीकरण' होना
  चाहिए किन्तु यदि ऐसे सदोष अर्जन का प्रयोजन के कार्यत: अपराधी को
  कोई हानि हो तब ऐसी हानि की क्षतिपूर्ति उसके वैध अर्जन से समायोजित
 होगी कारण की यह सदोष अर्जन हानिवाहक की संपत्ति थी व प्रयोजन हानि-
 वाहक की अनुज्ञा के रहित था.."
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Wednesday 30 May 2012

'' Sanvidhaan Sudhaatra Anusandhaan Akaansh ''

'' लोकतंत्र का अर्थ व उद्देश्य;--
  -- वंशवाद का बहिष्करण
  -- जन सामान्य का सर्वोच्च प्रतिनिधित्व 
  -- न्यायिक समानता
  -- सामाजिक समरूपता 
  -- अविच्छिन्न स्वराष्ट्र


'' जाति, धर्म, वर्ण के समुच्चय के उत्थापन से युक्त सम्यक  
  व सुव्यवस्थित न्याय के फलीभूत जनसामान्य का निम्नोच्च 
  प्रतिनिधित्व का सर्वोत्क्रित उद्देश्य एवं समग्रविषयिक स्वराष्ट्र 
  एक निश्चित सीमा में संन्नियन्त्र संविधानिक संस्था का अंगीकरण 
  के कर्मत: अविच्छीन्य राष्ट्र की परिकल्पना ही लोकतंत्ह....."  



'' लोकतंत्र की परिकल्पना की व्युत्पत्ति संभवतया वंशवाद के 
  विरोध के कर्मतस हुई होगी..''
  

'' स्वतन्त्र  न्यायपालिका, कार्यपालिका से दृढ़संधि न करते हुवे
   दाप, दाब, दाय,द्रव्य व दिव्यव्यक्तित्व से प्रभावशुन्य हो सर्वतस-
   सम,निर्विशेष दण्डपाश व न्यायप्रस्तुता के परिरक्ष्य हो संविधान
   को परिदृढ एवं चुस्त व पुष्ट कर सकती है..''


'' पृथ्वी-प्रथम;--
  जनता यदि कतिपय 'लेकिन, किन्तु, परन्तु' के अन्यतम दलरहित
  प्रत्याशी का चुनाव सर्वप्रथम करे तत्पश्चात चयनित प्रत्याशी दल का
  चुनाव करें यथाक्रम दल के सदस्यों की निर्धारित संख्या में चुने गए
  प्रत्याशियों की सहभागिता अर्द्धाधिक हो तदनंतर अर्द्धाधिक चयनित
  प्रत्याशी दल का चुनाव करे जिसके सादृश्य जहां द्वीगुण्य दृष्टांत की
  आकृति समरूप चुनाव प्रणाली अधिक पारदर्शी होगी वहीं 'धन' 'बल'
  का प्रभाव संभवतया न्यूनतम होगा कारण कि 'धन' 'बल' का अधिकाधिक
  दुरुपयोग प्रत्याशी के अन्यतस दल के प्रचार हेतु होता है
                            तथानुक्रम एकात्म दल के प्रभुत्व/वर्चस्व की समाप्ति के
 साथ ही वंशवाद से भी जनता निर्मुक्त होगी; इसका प्रयोग-परिक्षण विधायिका
 चुनाव में किया जा सकता है..''
                     

'' पारदर्शी चुनाव प्रणाली, पारदर्शी व सुदृढ़ संविधान की द्योतक है;
  पारदर्शी संविधान,पारदर्शी व सुदृढ़ लोकतंत्र का सूचक है..''


'' राजतांत्रिक प्रणाली में बलात्सत्तापहरण के निमित्त 'राजा' परस्पर
  'लड़ाई' अथवा 'युद्ध' करते थे,
                        लोकतंत्र में जहां प्रत्याशी सेवाभृत/सेवाधारी स्वरूप
  चयन हेतु स्वयं को जनता के समक्ष प्रस्तुत करता है वहां चुनाव के
  सह 'लड़ाई' अथवा 'लड़ना' जैसे शब्दों का प्रयोग समझ से परे है, स्व-
  तंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय लोकतंत्र में 'दलानुवंश' के अन्तया
  'दलपुत्र' के रुपान्वित विचित्र प्रकार के वंशवाद का प्रादुर्भाव हुवा....."





 









Sunday 27 May 2012

''Gadhabadhajhaalaa'' Athavaa ''gaddamgol''

भ्रष्टाचार विधि के हननातिक्रमण से उत्पन्न ऐसा अपकर्म 
जो दोषपूर्ण अर्जन का अभ्यक्ष-भक्षण के कृत्य को दूषित 
आचरण के द्वारा आपराधिक दुष्कर्म में प्रवृत कर दे..'


अन्य आर्थिक अनियमितताओं  के अंतर्गत 
'गढ़बढ़झाला' अथवा 'गड्डमगोल' क्या है..


लोक सेवक अथवा लोक सेवक से  भिन्न कोई 'व्यक्ति' जो सेवा नियोगी/गिन हो 
अथवा नियोग विहीन हो, कार्य विशेष के सम्पादन हेतु जहां विनिर्दिष्ट 
चल/अचल सम्पत्ति के योजन प्रबंधन हेतुक नियोजित, नियुक्तिक, निर्वाचित, 
निष्पत्तित हो, वहां ऐसे कार्य विशेष के सम्पादन में स्वयं अथवा अन्य व्यक्ति 
हेतु..


'' सदोषाधिरोप या सदोषाधिरोपण का कृत्य..''



दुर्विनियोजन/दुर्विनियुक्त जो स्वयं के अन्यथा किसी अन्य व्यक्ति को कार्य निष्पादन 
हेतु दोषपूर्ण विनियोजन/विनियुक्ति अथवा सदोषाधिक्रमण का कृत्य..,



दुर्विनियोज्य जहां सम्पत्ति का स्वयं अथवा अन्य 'व्यक्ति' के उपयोग हेतु दोषपूर्ण 
परिवर्तन अथवा ऐसी सम्पत्ति को विनिर्दिष्ट उद्देश्यों के अन्यथा उपयोग का
दोषपूर्ण कृत्य..,


'' दुर्विन्यसन व दुर्विचालन जहां विनिर्दिष्ट सम्पत्ति के कार्य सम्पादन में स्वयं 
  अथवा अन्य 'व्यक्ति' हेतु दोषपूर्ण अर्जन के कर्मत; अन्य की चल/अचल 
  सम्पत्ति पर सदोषाधिचरण व सदोषाध्यासन अथवा सदोष विचालन का कृत्य..,


जहां कार्य विशेष के सम्पादन के उद्देश्य हेतु सम्पत्ति की विक्रय प्रक्रिया में 
निर्धारित दर से अधिगणन/अधिमूल्य/अधिशुल्क का कृत्य अथवा ऐसे दोष-
पूर्ण अर्जन का अधिहरण/अधियाना अथवा विनिर्दिष्ट सम्पत्ति के निर्माण कार्य के 
प्रयोजन वैधरूप से अधियुक्त व्यक्ति के वैध अर्जन का अधिहरण/अधियाने का कृत्य..,


जहां विनिर्दिष्ट सम्पत्ति में स्वयं अथवा अन्य हेतु उद्देश्यविपरीत अधिष्ढान, 
adhishdhaapan, अध्यासन अथवा विधिविरुद्ध अधियोजन में adhishdhit
करने का कृत्य..''



















Sunday 20 May 2012

प्रश्न है भ्रष्टाचार के क्रियाकार कौन कौन से है..??


 "  भ्रष्टाचार के क्रियाकार 
--'उत्कोच'अथवा 'प्राभृत' 
--'घपला' व 'घोटाला'
--'कर्त्तव्य विमुखता'
--'अन्य आर्थिक अनियमितता'
--'कर अपवंचन' व 'अघोषित आय'.."


"  उत्कोच:--
   लोक सेवक अथवा लोकसेवक से भिन्न कोई व्यक्ति जो सेवा नियोगी (गिन)
   या नियोग विहीन हो स्वयं अथवा अन्य व्यक्ति हेतु अपवंचन के आशय से जहां 
   दोषपूर्ण अर्जन के कार्यत: वैध-अवैध किन्तु दोषपूर्ण कार्याकार्य के विनिमय
   का क्रियाभ्युपगम एवं ऐसा दोषपूर्ण क्रियान्वय का प्रयोग किसी व्यक्ति के पक्ष-
   विपक्ष में व उसके अनुरत-विरत में करता है वहां ऐसे दोषपूर्ण अर्जन के समुन्नयन
   का प्रयोजन व सन्निधान एवं सदोष सन्निवेश का कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता,
   उत्कोच अथवा प्राभृत का अपराधी है.."


"  दृष्टांत 1 :--
  'अ' एक लिपिक है 'ब' को इस हेतुक मद्य परोसता है कि वह रु. दस करोड़ 
  मूल्य के पंक्तिपत्र  को कार्य-करण में त्रुटियों को अनदेखा कर उसपर हस्ताक्षर
  कर दे 'अ' एवं 'ब' कार्य-कारण विपर्यन दोष के सह,  उत्कोच के अपराधी है..,\


"  दृष्टांत 2:--
  'अ' एक विशिष्ट व्यक्तित्व का स्वामी व समाज का सम्मानित व धनिक व्यक्ति है 
  'ब' एक लोकसेवक है जो 'अ' के पक्ष में इस हेतुक दोषपूर्ण कार्याकार्य करता है
   कि 'ब' 'अ' के सह सदोष सन्निवेश करता है, 'अ' व 'ब' उत्कोच का अपराधी है.."


" घोटाला:--
  लोक सेवक अथवा भिन्न कोई व्यक्ति, शासकीय अर्धशासकीय अशासकीय,
  निकाय, इकाई, संस्था, संगढन, समिति निगम, केंद्र, न्यास, अर्धन्यास जो
  किसी संपत्ति(चल-अचल) के योजन अथवा प्रबंधन का  स्वामि-सेवक स्वरूप
  निर्वाचित, योजित- नियोजित, नियुक्तिक, निष्पत्तित नियोगी (गिन) अथवा
  नियोग विहीन हो जो स्वयं अथवा अन्य हेतुक 'हड़पकर' 'अपवंचन' के आशय
  से उक्त संपत्ति का कोई अंश अथवा सम्पूर्ण संपत्ति के दोषपूर्ण अर्जन के कार्यत:
  वैध-अवैध किन्तु दोषपूर्ण कार्याकार्य को संविदा सहित-रहित एवं ऐसे दोषपूर्ण
  क्रियान्वयन का प्रयोग किसी व्यक्ति के पक्ष-विपक्ष में व उसके अनुरत-विरत
  में करता है वहां ऐसे दोषपूर्ण अर्जन के समुन्नयन का प्रयोजन व सन्निधान
  एवं सदोष सन्निवेश का कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता; घोटाला का अपराधी है.."

" दृष्टांत  :--
 'अ' एकशासन है
 'ब' व्यापारिक संस्था है
 'स' 100 व्यक्तियों का समूह है
  दृश्य 1:-- 'अ' के  पास 100 आम है जिन्हें 'स' में वितरित करना है,
                 'अ' बोली के द्वारा 'ब' को रु. 500.00 लेकर वितरण संविदा करता है कि 'ब'
                  आमों को 'स' में स्वयं के साधन से वितरण करे. अब 'ब' रु.6.00 प्रति आम
                  की दर से 'स' को विक्रय करता है, इधर 'अ' जो की एकशासन है उक्त रु.500.00
                  'स' को दुप्रशासन में रु.100.00 व्यय कर रु. 4.00 प्रति व्यक्ति की दर से उप-
                   लब्ध करवा कर विद्यमान आय में रु. 4.00 की वृद्धि करता है, 'स' का प्रत्येक 
                   व्यक्ति, 4.00 + रू 2.00(स्वयं की विद्यमान आय से) = कुल रु. 6.00 में आम 
                   को सरलता से क्रय कर लेता है..,

 दृश्य 2 :--  'अ' उन्हीं 100 आमों को बोली के द्वारा मात्र रु. 100.00 लेकर 'स' के लिए 'ब'
                   को बोली के द्वारा आमों को स्वयं की साधन से वितरित करने की संविदा 
                   करता है किन्तु आम की वास्तविक मूल्य रु. 500.00 है शेष रु. 400.00 में 
                   से रु. 200.00 का दोषपूर्ण अर्जन  करते हुवे 'ब' से सदोष संविदा का कार्य 
                   करता है. अब 'ब' रु. 5.00 प्रति आम की दर से 'स' को विक्रय करता है, 
                   इधर 'अ' जो की एकशासन है उक्त रु.100.00 'स' को दुप्रशासन में अन्य स्त्रोत से 
                   रु.10 व्यय कर रु.1.00 प्रति व्यक्ति की दर से उपलब्ध करा कर विद्यमान 
                   आय में मात्र रु.1.00 की वृद्धि करता है, 'स' का प्रत्येक व्यक्ति 1.00 + 4.00
                   ( स्वयं की विद्यमान आय से) = कुल रु.5.00 में आम को कढीनता से क्रय 
                   करता है, 'अ' व 'ब' घोटाले के अपराधि हैं.."

निष्कर्ष1 :-- दृश्य 1 में यद्यपि 'स' को आम महँगा मिलेगा किन्तु आय में वृद्धि के फलत:
                  उसे अपनी विद्यमान आय से रु. 2.00 व्यय करना पढ़ेगा.
                  दृश्य 2 में आम रु.1.00 सस्ता है किन्तु 'स' को अपनी विद्यमान आय से रु. 
                  4.00 देने होंगें 
निष्कर्ष2:-- दृश्य 1 में 'ब' को रु.100.00 का वैध लाभार्जन होता है.
                  दृश्य 2 में 'अ' व 'ब' रु.200.00-200.00 का दोषपूर्ण अर्जन करते हैं 
                  'स' को रु. 4.00 प्रति आम की दर से कुल रु.400 की सदोष हानि 
                  होती है साथ में रु.100  अन्य स्त्रोत से सदोष हानि होती है 
                   ( यदि दुप्रशासन से घोटाला न हो तो )..,


" घपला व घोटाला में अंतर करना कढीन है सामान्यत: घपला, घोटाला का लघुरूप है
  चल-अचल संपत्ति का ऐसा दोषपूर्ण अर्जन जो घोटाला की अपेक्षा निर्धारित मूल्य में
  लघुत्तम हो घपला का अपराध होगा.."


 " लोकसेवक अथवा लोकसेवक से भिन्न कोई व्यक्ति या शासकीय अशासकीय अर्धशासकीय
   अधिकारानिक निकाय, इकाई, संस्था, समिति, संगढन, निगम, केंद्र, न्यास, अर्धन्यास  के
   स्वामी अथवा संचालक द्वारा अथवा उसके अधीन नियोजित, निष्पत्तित, नियुक्तिक वैधानिक
   सेवा नियोगी(गिन) हो अथवा नियोग की अवस्था में यदि वह कर्त्तव्य निर्वहन में विधेयाविमर्ष,
   विनीग्रह, निर्मर्याद, निर्मर्यादावधि व दोषपूर्ण कार्याकार्य इस हेतुक की जिसके कार्यत: स्वयं को
   अथवा अन्य व्यक्ति को कपटपूर्ण आशय से ओश्पूर्ण अर्जन का समुन्नयन व सन्निधान का
   कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता हो;  कर्तव्य विमुखता का अपराधी होगा.."



" विधेयाविमर्ष:--
  'लोकसेवक' अथवा 'लोकसेवक' से भिन्न कोई 'व्यक्ति' जो कोई भी धर्म, संस्कृति, समाज, राष्ट्र
  उपराष्ट्र एवं तत्संबंधित निर्मित-निर्माणाधीन विधि-विधान का रचनात्मक निरूपण-विरूपण,
  मौखिक-लिखित व दृष्टव्य संकेत स्वरूप प्रधान उद्देश्य को छिपाते हूवे घृणा, द्वेष या उपेक्षा व 
  उत्तेजना-अनुत्तेजना सहित अपमानापकार के कृत्य का कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता हो;
  विधेयाविमर्ष का अपराधी होगा..,

 व्याख्या:--
 घृणा, द्वेष या उपेक्षा को उत्तेजित-अनुत्तेजित करने का कृत्य-कर्तृत्व रहित अस्वीकृति, असहमति
 की प्रकट आलोचनाऍ एवं अधीनस्थ 'व्यक्ति' द्वारा विधिपूर्वक तत्संबंधित निर्मित-निर्माणाधीन
 विधि-विधान में परिवर्तन का आशय अपराध नहीं है..,

 दृष्टांत:--
 हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ 'रामायण' व 'महाभारत' से धर्म विचार संकलन में श्री राम की एकल विवाह
 पद्धति को स्वीकृत व श्री कृष्ण की बहुविवाह पद्धति को अस्वीकृत किया गया व श्री राम द्वारा
 स्त्री त्यागाचरण को अस्वीकृत व श्री कृष्ण के स्त्री के प्रति प्रेमाचरण को स्वीकृत किया गया
 वही श्री राम-रावण युद्ध में दुष्ट को दंड व महाभारत युद्ध में परस्पर सौह्रदय्यता को सम्मिलित
 किया गया....."
                                                                                                                                   क्रमश:

 
   
         
                   
             



   
   
   




Friday 18 May 2012

" Jivaatma Gyaan "

Happy .....:)


" जीवों का विघटन ही सत्य है..,
  जीवों का संघटन ही ब्रम्ह है..,
  जीवों का संवर्द्धन ही विष्णु है..,
  जीवों का घटक(घटन) शिव है.."
  -----सत्यम शिवम् सुन्दरम-----
 " अर्थात जीवनांत सत्य है किन्तु शिव जीवंत है, यही सुन्दर है.."


 " घटक ---> संघटन  ---> संवर्द्धन ---> विघटन ---> घटन.."


" जीव, निर्जीव का संघटक है..,
  निर्जीव, जीव  का विघटक है.."


" जीव यन्त्र  मात्र है,
  आत्मा, जीव  में सत्तत्त्व स्वरूप स्थित है.."


" आत्मा, देह में संघटन स्वरूप है..,
  मृत्यु के पश्चात यह विघटित हो द्रव्य की आकृति ग्रहण करती है..,
        देह = पृथ्वी + अग्नि + जल..,
  आत्मा = वायु + आकाश.."


" धर्मकर्म के गुण आत्मतत्त्व की प्रकृति को निर्धारित करते है..,
  धनकर्म के गण आत्मतत्त्व की दुष्कृति को निर्धारित करते है.."


" पृथ्वी + अग्नि + जल + वायु + आकाश (अर्थात शुन्य ) = देह..,
  पृथ्वी * अग्नि * जल * वायु * आकाश (अर्थात शुन्य ) = शुन्य अर्थात आकाश अर्थात मोक्ष....."











Monday 14 May 2012

" Bhrashtaachaar Ke Krityakaar"

भ्रष्टाचार के कृत्यकार कौन कौन हो सकते है..??


" भारतीय दंड संहिता 1860 की
  धारा 11 के अंतर्गत 'व्यक्ति'
  धारा 12 के अंतर्गत 'लोक'
  धारा 17 के अंतर्गत 'सरकार'
  धारा 19 के अंतर्गत 'न्यायाधीश'
  धारा 21 के अंतर्गत 'लोकसेवक'


  लोक सेवक से तात्पर्य:--
" प्रथमतम प्रत्येक प्रस्तरों पर जनता द्वारा प्रत्यक्ष,अप्रत्यक्ष रूप से 
  निर्वाचित व्यक्ति जो वैधानिक सेवा नियोगी(गिन) हो अथवा नियोग 
  विहीन हो; द्वितियक शासन-प्रशासन द्वारा प्रत्येक स्तरों पर नियोजित,
  नियुक्तिक, निष्पत्तिक, आधिकरणिक व्यक्ति जो सेवा कर्मण्या के 
  प्रयोजन हो अथवा निष्प्रयोजन हो लोकसेवक संदर्भित है.."


" शासकीय, अर्धशासकीय, अशासकीय, आधिकरणिक निकाय, इकाई,
  संस्था, संगढन, समिति, न्यास, अर्धन्यास के स्वामी, संचालक के 
  आधिकरणिक व्यक्ति जो सेवा नियोगी(गिन) हो अथवा नियोग विहीन   
  द्वारा अथवा इसके अधीन निर्वाचित   नियोजित, नियुक्तिक, निष्पत्तित,
  हो, भ्रष्टाचार के अपराध के कर्ता, कर्तृत्व,कारयिता अथवा उत्प्रेरित,
  उत्प्रेरक हो सकते है.."


" अपराध की गंभीरता दृष्टिगत रखते हुवे एवं यह द्रष्टांकित करते हुवे 
  कि 'भारत एक है' उपबंधों के प्रावधान जम्मू एवं काश्मीर के भारतीय 
  नागरिक, भारत के अन्दर अल्पवासी अथवा दिर्घवासी अनागरिक 
  भारतीय भी भ्रष्टाचार के अपराध के कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता हो 
  सकते है.."


" सर्वोच्च सत्ताधारी, विदेशी सर्वोच्च सत्ताधारी, राजदूत, विदेशी शत्रु,
  विदेशी सेनाएं, युद्धपोत, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी भ्रष्टाचार के अपराध
  के कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता हो सकते है.."


" उन प्रकरणों के अतिरिक्त जहां आतंरिक सुरक्षा सेवक जब की ऐसे 
  आपराधिक कृत्यों की परिष्टि हेतु स्वयं अधिकृत हों, भ्रष्टाचार अथवा 
  कोई भी अपराध, आपराधिक कृत्य ना होकर तब तक एक सामाजिक
  कुरीति भर है जब तक की पीडित पक्ष न्याय की शरण न ले.."


" भ्रष्टाचार का अपराध अधिक गंभीर हो जाता है, जब वह प्रचारित व 
  अधिकाधिक व्यवहारिक हो जाए.."








  



  

Sunday 13 May 2012

" Vikaraal Bhrashtaachaar"

" सृष्टि ने भवभूति का सृजन कदाचित यथेष्ट 
  सुख प्रयोजन हेतु किया है किन्तु त्याग 
  में ही जीवन का सार है.."


" समस्त आत्मानात्म सृष्टि का कोष है,
  सृष्टि का कोष जीवन का कोष है.."


" प्राकृतिक संसाधन, यथेष्ट सुखमय व 
  संतुलित जीवन के निमित्त है, न की 
  भोग विलास हेतुक.."


" सुख व भोग विलास सन्निकट है,
  लक्ष्मी व माया के;
  लक्ष्मी से सुख की प्राप्ती होती है,
  माया से भोग विलास की.."


" प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन सदैव 
  भोग विलास हेतु ही होता है,
  भोग विलासित जीवन का आरम्भ सुखमय 
  जीवन की मर्यादारेख लांघ कर होता है.."


  तात्पर्य है:--
" प्राकृतिक संसाधनों का दोहन मानव, भुत्निर्मित विकास के तदर्थ 
  उत्खात खनिज द्रव्य को मुद्रा सह भुक्तभूति में परिणीत करता है,
  किन्तु यदार्थ परिणति का दोषपूर्ण अर्जन सह संचयन होने लगता है.
                      परिणाम स्वरूप एतत कतिपय क्षेत्रों में आधारभूत 
  सुविधा साधन की न्युनता के कारक होते है, तदनुरूप इन न्युनताओं   
  की पूर्णता हेतु नवीन ऑद्योगिक इकाईयों की स्थापना की आवश्यकता 
  होने लगती है जो मूलत: उत्खनन आधारित होती है इस तरह यह  
  कुचक्र का रूप धारण कर रहा है जो दोषपूर्ण अर्जन सह संचयन पर 
  अंकुश लगने पर ही स्थिर हो सकता है 
                       एतेव भ्रष्टाचार का आकार संक्षिप्त है किन्तु इसकी 
  आकृति न केवल विकराल है अपितु अनावश्यक दोहन के परिमित 
  में भविष्यत् हेतु प्रलयंकारी विनाश का कारक सिद्ध हो सकता है.."


" सम्पूर्ण विश्व में( भारत में अधिकतम) यदि प्राकृतिक संसाधनों के 
  दोहन की परिमाणीक लब्धि का सम्यक वितरण होता तब न केवल 
  भारतीय अपितु विश्व का प्रत्येक व्यक्ति लब्धमान हो आधारभूत 
  सुविधा से कहीं अधिक साधन का सन्निधि होता....."



 
           
  
  

Saturday 12 May 2012

"Bhrashtaachaar Ke Prakaar"

भ्रष्टाचार के प्रकार क्या है..??


" भ्रष्टाचार मुख्यतया नैतिक व आर्थिक प्रकार के होते है.."


" नैतिक भ्रष्टाचार विस्तारित है:-- आपराधिक आचरण सहित व्यवह्रत कृत्य जो शरीर-संपत्ति 
                                                   (चल-अचल) के विरुद्ध वैधानिक उपबंधों के अधीन दोषपूर्ण
                                                   कार्याकार्य का अवैधानिक कृत्य हो, नैतिक भ्रष्टाचार के अपराध
                                                   की श्रेणी है.."


" आर्थिक भ्रष्टाचार :-- विधिविरुद्ध संसाधनों का व्यवहृति, यदार्थ 'दूषित नियत' एवं कपटपूर्ण 
                                 आशय के अंतर्गत 'धोखा' व 'क्षति' अपेक्षित हो, एतदर्थ व्यक्ति स्वयं 
                                 अथवा अन्य व्यक्ति हेतुक ऐसा दोषपूर्ण अर्जन का कर्ता, कर्तृत्व,
                                 कारयिता हो जो यह सुनिश्चित करता हो कि जिसके अवैधानिक एवं दोषपूर्ण  
                                 समुन्नय के प्रयोजन का सन्निधान स्वयं के अथवा अन्य व्यक्ति हेतु है,
                                 आर्थिक भ्रष्टाचार का अपराधी है.."
                                 



" जहां प्रकट स्वरूप दोषयुक्त लाभ का प्रयोजन हो..,
  वहां दोषयुक्त हानि का भी विरूपण होता है.."


" भा.द.स. 1860 की धारा 23 के अंतर्गत 'सदोष अभिलाभ' व 
  'सदोष हानि' के प्रासंगिक है किन्तु इसकी व्याख्या लघुत्तम 
  व दंड का प्रावधान न्यूनतम है.."


" भा.द.स. की धाराऍ  161-171 
 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988(संशोधित) की धाराएं 161-165(क)
 में भी भ्रष्टाचार के अपराध का प्रावधान तो है किन्तु संक्षिप्त है.."


वास्तव में " भारतीय वैधानिक उपबंधों में 'भ्रष्टाचार' शब्द की स्पष्ट  
                  परिभाषा उपलब्ध ही नहीं है विशेषकर आर्थिक भ्रष्टाचार
                  के अपराध से सम्बंधित वैधानिक उपबंधों की व्याख्या 
                  लघुत्तम व दंड के प्रावधान न्यूनतम है.."

  
                             







"Bhrashtaachaar Ka Parimey"

प्रश्न है भ्रष्टाचार का परिमेय क्या है..??


' भ्रष्टाचार निम्नाकार में हो सकता है:--
  व्यक्तिक,
  पारिवारिक,
  सामाजिक,
  राष्ट्रिक,
  अंतर्राष्ट्रिक.."


" व्यक्तिक भ्रष्टाचार का दृष्टांत:-- अन्यायपूर्ण कृत्य के कर्मत: स्वीकृति सह सहमति.."



" पारिवारिक भ्रष्टाचार के दृष्टांत:-- पारिवारिक शोषण जैसे की पुत्री की अपेक्षा पुत्र को 
                                                   अथवा पुत्र  की अपेक्षा पुत्री को अधिकाधिक अधिकार 
                                                   सम्पन्न करना.."



" सामाजिक भ्रष्टाचार का दृष्टांत:-- सामाजिक आडम्बर जैसे वैवाहिक ढाट-बाट.."



" राष्ट्रिक, अंतर्राष्ट्रिक भ्रष्टाचार के दृष्टांत:-- अनावश्यक उत्खनन, दमनपूर्ण आक्रमण.."



" उपरोक्त में कोई भ्रष्टाचारिक कृत्य जैसे ही संवैधानिक अधिनियम के उपबंधों के अधीन 
  न्यायिक शरण में होता है, भ्रष्टाचार का अपराध कहलाता है.."


" विचारण पश्चात आचारणीत अपराध धृष्ट प्रकृति का होता है..,
  विचारण पूर्व आचारणीत  अपराध अधृष्ट प्रकृति का होता है.."



Thursday 10 May 2012

"Bhrashtaachaar Ki Paribhaashaa"

क्या भ्रष्टाचार अपराध की श्रेणी में आता है..??
" ये भ्रष्टाचार किस पंछी का नाम है.."


" भ्रष्टाचार द्वीशाब्दिक युग्म है:--
  भ्रष्ट + आचार 
  भ्रष्ट समानार्थ है दूषित के 
  आचार समानार्थ है आचरण के
  भ्रष्टाचार समानार्थ है दूषित आचरण के.."


" दूषित आचरण के व्यवहार का कर्ता,
  भ्रष्टाचारी है.."


" जिस व्यक्ति का आचार-व्यवहार पतित हो,
  भ्रष्ट व्यक्ति है.."


" विधिविरुद्ध आचरण का कृत्य भ्रष्टाचार है.."


" व्यक्ति जो संविधानिक अधिनियम में निर्दिष्ट 
  उपबंध, उपबंधों के अंतर्गत विधिविरुद्ध व 
  दूषित आचरण का कर्ता, कर्तृत्व अथवा 
  कारयिता हो, भ्रष्टाचार के अपराध का दोषी है.."


" विधिविरुद्ध अथवा अवैधानिक कृत्य से 
  भ्रष्टाचार का निकट सम्बन्ध है, सिद्ध होता 
  है की भ्रष्टाचार अपराध है न की दुष्कृति.."


" कोई शरीर किसी पद्विशेष जो की 
  उच्चोच्च क्यों न हो यदि मानव का है एवं 
  निर्दिष्ट वैधानिक उपबंध, उपबंधों का हनन सह 
  अतिक्रमण या विलोपन का कर्ता, कर्तृत्व,
  कारयिता है या उत्प्रेरक-उत्प्रेरित है, अपराधी है.."
  

----- || DHARMNIRPEKSHATAA || -----

THURSDAY, JUNE 14, 2012                                                                                               

   "धर्म द्विशाब्दिक युग्म है :--
    धर्म+निरपेक्ष 
    धर्म = धार्मिक विचार विशेष,  विचारों का संकलन  
    निरपेक्ष = अपेक्षा रहित, उदासीन  
    धर्मनिरपेक्ष शब्द-युग्म  का भाव = धर्म विशेष के विचारों की अपेक्षा से रहित 
                        अर्थात सर्वधर्म सद विचारों से युक्त.."
   

" स्वजाति एवं स्वधर्माचरण के परायण का निर्वहन के सह पर-
  जाति व परधर्म के प्रति आदर व निरापदवलंबन  ही धर्म -
 निरपेक्षता है....."    


SUNDAY, JUNE 17 2012                                                                                              

" दया में ही धर्म निहित है ....."  


" स एष एक एकवृदेक एव....."
   ----- ।। अथर्ववेद ।। -----                                                                                                                         dr.neet107@gmail.com

"Raashtra Va Usaka Tantra"

राष्ट्र रूपी काय के मुख्यत: कौन से अंग होते है..??


वेदानुसार:-- " राष्ट्र के प्रमुख अंग है ,
                      मात भूमि, मात भाषा एवं संस्कृति.."


" राष्ट्र के सुसंचालन हेतु एक तंत्र की आवश्यकता होती है,
  विद्यमान विदित तंत्रों में परतंत्र व सैन्यतंत्र दमनकारी प्रवृत्ति 
  के निमित्त असफल रहे, राजतंत्र आधारभूत न्यूनताओं जैसे 
  की कार्यपालिका, व्यवस्थापिका व न्यायपालिका का 
  विकेंद्रीकरण, वंशवाद एवं आक्रमणकारी प्रवृत्ति के निमित्त 
  असफल हुवे व होते रहे; वर्तमान देशकाल परिस्थिति में 
  लोकतंत्र एक सफल तंत्र के रूप में अधिकाधिक राष्ट्रों द्वारा 
  मान्य व मनोनीत है.."


" एक लोकतांत्रिक राष्ट्र रूपी अवयव के प्रमुख तत्त्व है:--
  राष्ट्र की सीमाए ( भारत के सन्दर्भ में भारत की सीमाएं )
  राष्ट्र के निवासी ( भारतवासी )
  राष्ट्र का संविधान ( भारतीय संविधान ).."


" नीतियुक्त राष्ट्रिक पर्याय है नीतियुक्त राष्ट्र के,
  नितिमुक्त राष्ट्रिक पर्याय है नितिमुक्त राष्ट्र के.."


" नीतियुक्त राजन्य पर्याय है नीतियुक्त राजतंत्र के,
  नीतिमुक्त राजन्य पर्याय है नीतिमुक्त राजतंत्र के.."


" नीतियुक्त संविधान पर्याय है नीतियुक्त लोकतंत्र के..,
  नीतिमुक्त संविधान पर्याय है नीतिमुक्त लोकतंत्र के .."


" एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के कुशल संचालन एवं दमनकारी 
  शक्तियों के प्रवेश नियंत्रण हेतु जनहिताकांक्षी, नीतिमान 
  नियंता, प्राविधिक प्रभावकारी, विधिप्राविन्य, सर्वसम्मत,
  संविधात़ा संतुलित, सशक्त, संधान संदिष्ट; संविधान की 
  आवश्यकता होगी....."

Wednesday 9 May 2012

" Dharm' Kyaa Hai..??

  प्रश्न यह है की धर्म क्या है..??                                                                                  
  
" ईश्वर की उपासना से सम्बंधित पारलौकिक 
  सुख प्राप्ति का कर्मण, धर्म है.."


" चित एवं अचित के सृष्ट सत्तत्व में सृष्टि
  के सत्त्व की सेव्यस्तुति का स्तोम , उपासना है.."


" प्राणिमात्र में ईश्वर का अंश होता है,
  प्राणिमात्र की सेवा धर्म है.."


" उपासना सम्बंधित कर्त्तव्य विभिन्न  धर्मों 
  में भिन्न होता है.."


" धर्म, मानव जाति का मूलगुण निश्चित कर उसकी
  प्रकृति सुनिश्चित करता है.."


  वास्तव में " धर्म कदाचित सुविचित  सुविचारों के 
                    संचयन का स्थापित संग्राहलय है, जिसके 
                    अनुगमन, अनुशरण के परायण का कर्मण 
                    व्यक्ति, परिवार, समष्टि, समाज व राष्ट्र करता है.."


" विचारों की शिथिलता व हानि
  धर्म की शिथिलता व हानि है.."


" यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
  अभुत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम 
  परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम
  धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे....."
  -----11  श्री मद्भवद्गिता  11 -----
                  
                  
                  
    
  

'Aparaaadh' 'Dand' Va 'Kaaraavaas'

" संविधान में निर्दिष्ट अधिनियम के वैधानिक उपबंधों के 
  अतिक्रमण अथवा विलोपन का अवैधानिक कृत्य, 
  संविधान द्वारा स्थापित न्यायिक निकायों में सिद्धांतित 
  व अधिमान्य हो, अपराध है.."


" कुत्सित विचारों के कर्तृत्व परायण का विधिविरुद्ध प्रयोग, 
  अवैधानिक कृत्य है.."


" कुत्सित विचारों से सामाजिक सुरक्षा एवं ग्रसित व्यक्ति के 
  मानसिक परिवर्तन हेतु कारावास का दंड अपेक्षनिय व सर्वथा 
  उपयुक्त है.."


" जाति आनुवांशिक होती है,
  अपराध आनुवांशिक नहीं होता यह व्यक्ति के अवगुण रूप में
  प्रकृति स्वरूप होता है.."


'' दूषित आचरण व्यवहारी, विषय-प्रासंगिक व धृष्ट प्रकृति के 
  व्यक्ति के लिए विधि-विधान केवल मात्र हास-परिहास की  
  विषय-वस्तु है..''


'' Dushit Vichaaron Ke Mshtshk Ka Svaami Dusht Hotaa Hai,
  Dusht Sadaev Dandaniy Hotaa Hai..,


'' Dushit Vichaaron Ki Punaraavritti Aparaadh  Ko Dhrishtataa
  Kaarit Karati  Hai..,


'' Doshaaropan  Maatra Se Koi Vyakti Aparaadhi Nahi Hotaa
  Kintu Nyaayaalay Men Aarop Sddha Va Pramaanik Hone Ki
  Sthiti  Men Vyakti Aparaadhi Kahalaate Huve Dand Ka 
  Bhaagidaar Hotaa  Hai..,
  Bharatit Dand  Sanhitaa Ki Dhaaraa 53 Anusaar Dand Ke 
  Praaar Nimn Hai ;--
  1. Mriryudand
  2. AajivanKaaraavaas
  3. Kaaraavaas
  4. Kaaraavaas Do Prakaar Ke Hai
      I. Kadhor   II.  Saadhaaran
  5. Sampatti Ka Adhigrahan
  6. Arthdand..''


 'अपराध' व 'दुष्कृति' में अन्तर है:--
 अपराध सदैव दंडनीय है,
 दुष्कृति में क्षतिपूर्ति का प्रावधान है
 प्रश्न यह है की 'भ्रष्टाचार' अपराध है अथवा दुष्कृति.....?? 

"Sanvidhaan Ki Paribhaasaa"

" राष्ट्र के सुसंचालन हेतु राष्ट्र इकाई द्रारा आवश्यक सैद्धांतिक व मौलिक
  नीति-नियमों के निर्माण की क्रमबद्ध सूची  , संविधान है .."


" भारतीय संविधान के मुख्यत: पांच अंग है:--
  कार्यपालिका 
  विधायिका,
  न्यायपालिका,
  बाह्य सुरक्षा उपतंत्र अथवा सैन्य उपतंत्र,
  आतंरिक सुरक्षा उपतंत्र,
  बाह्य एवं आतंरिक सुरक्षा उपतंत्र कार्यपालिका एवं विधायिका के अधीन है.."


" जहां न्यायपालिका में न्याय अयोग व्यवहृत होने लगे,
  वहां संविधान निष्फल होने लगता है एवं लोकतंत्र की 
  असफलता का आरम्भ हो जाता है....."


" भारत सहित अधिसंख्य राष्ट्रों के लोकतंत्र में संसद या संसद सदृश्य संस्था
  जनता के मताधिकार के प्रयोग पर अवलंबित है, संसद अस्तित्वहिन होगी
  यदि राष्ट्र के नागरिक मत प्रयोग न करें; कार्यपालिका, विधायिका, न्याय -
  पालिका की प्रकल्पना संसद के अनस्तित्व पर अनुलंबित है..,
                                                  मताधिकार संसद के समर्थन के सादृश्य है;
  संसद का समर्थन, संविधान व लोकतंत्र का समर्थन है किन्तु निर्वाचित जन-
  प्रतिनिधियों को ऐसा कोई प्राप्ताधिकार नहीं है जिससे वह संसद, संविधान ,
  या लोकतंत्र का समर्थन कर सकें..,

  स्पष्टीकरण 1:--ऐसे प्रत्येक भारतीय मतदाता निर्वाचित जनप्रतिनिधियों
                          पर टिपण्णी का अधिकार सुरक्षित करता है..,
  स्पष्टीकरण 2:--मतदान की अनिवार्यता का आशय संविधान का अनिवार्य
                          समर्थन से है, संविधान तदर्थ निर्दोष नागरिकों के प्राण तक
                          क्यों न हर ले, संसद मताधिकार को कर्त्तव्य परक विधेयक
                          के रूप में निर्मित कर सकती है, जिसके परिपालन में बाह्य
                          व आतंरिक सुरक्षा का बलपूर्वक दुरुपयोग कर सकती है.."

'' भारतीय संविधान में जनता प्रत्याशी के सह अप्रत्याशित रूप से दल का 
  चुनाव भी करती है जबकि संविधान में दल के चुनाव का प्रावधान ही नहीं है.....'' 
                       
                       
  
भ्रष्टाचार के कृत्यकार कौन कौन हो सकते है ..??