Tuesday 12 March 2013

----- || दुर्वासना जनित कुदृष्टिनिपात, अंग भंगिमा, दुरालाप एवं अंग व्यतिक्रांत || -----

दुर्वासना जनित कुदृष्टिनिपात, अंग भंगिमा एवं दुरालाप 

एक स्त्री  के द्वारा एक पुरुष के प्रति अपवादित अवस्था के अतिरिक्त 
किसी पुरुष अथवा किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति चित्त की 
प्रवृत्ति में दुर्वासना की धारणा से युक्त  विषय इन्द्रियों द्वारा उद्दीप्त सम्भोग के अभिमत का 
दुराशय  रखते  हुवे, दूषित  दृष्टि  आक्षेपित  करते  हुवे , अंगो  द्वारा दूषित भाव भंगिमा 
प्रदर्शित करते हुवे, दुरालाप प्रसारित करते हुवे अनभिमत प्रतिपक्ष को मानसिक रूप से उत्पीड़ित  
करता हो/ करते  हों  ऐसे  दुर्वासना  जनित  कुदृष्टिनिपात, अंग भंगिमा या दुरालाप को 
अपराध कहा जाएगा । 

स्पष्टीकरण १ : --  ऐसी सभी दुष्क्रियाएं एक साथ या कोई एक दुष्क्रिया के अनुषंगिक अन्य 
                           दुष्क्रियाए हो सकती हैं 

                   २ : -- चूँकि परिभाषा में 'दूर' एवं 'दुष' शब्दों का  प्रयोग हुवा है ये शब्द स्वयं सिद्ध है 
                             है की क्रयाएँ उत्पीडित पक्ष की सहमति के विरुद्ध हुई है ॥   
   

दुर्वासना जनित अंग व्यतिक्रांत 

एक स्त्री  के द्वारा एक पुरुष   के प्रति अपवादित  अवस्था के  अतिरिक्त किसी  पुरुष  अथवा 
किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति  चित्त की  प्रवृत्ति  में  दुर्वासना की 
धारणा  से  युक्त   विषय  इन्द्रियों  द्वारा  उद्दीप्त,  सम्भोग के अभिमत का  दुराशय  रखते  हुवे, 
वस्त्राच्छादित  जननेंद्रिय   सहित  अंग  प्रत्यंग ( शरीर के विभिन्नअवयव  जैसे  हस्त, पाद, 
कर्ण, नासिका, मुख आदि) का  प्रयोग  कर  अनभिमत  प्रतिपक्ष  स्त्री/स्त्रियों  के  आच्छादित 
उपस्थ एवं उरस क्षेत्र सहित अंग प्रत्यंग का  स्पर्शन, दापन, घर्षण, मर्दन या इसके समकक्ष 
अन्य क्रियाएं से  व्यतिक्रांत  करते  हुवे  शारीरिक एवं  मानसिक रूप से उत्पीड़ित  करता है/
करते है तो वह दुर्वासना जनित अंग व्यतिक्रान्त का अपराध कहलाएगा एवं ऐसी व्यतिक्रान्ति 
में यदि बल का प्रयोग हुवा हो तो वह बलातंग व्यतिक्रान्ति कहलाएगा । 


स्पष्टीकरण १ : -- जननेंद्रियों के आच्छादन से तात्पर्य ऐसी आवृति जिससे अंगप्रत्यंग आवृत 
                           हो सकें । 
                  
                  २ : -- यदि  कोई  पुरुष  आच्छादित  जननेंद्रिय  से किसी स्त्री/स्त्रियों के आच्छादित 
                           उपस्थ एवं उरस क्षेत्र  सहित अंग प्रत्यंग का  स्पर्शन, दापन, घर्षण,मर्दन या 
                           इसके  समकक्ष  अन्य  क्रियाएं से  व्यतिक्रांत करते हुवे स्खलित होकर चित्त-
                           निवृत्ति होता है तो कृत्य की प्रकृति को  अपेक्षाकृत अधिक गंभीर हो जाती है । 

                   ३: -- किसी  स्त्री या  किन्हीं स्त्रियों  की  चित्त-विकृति  की  अवस्था,  संज्ञान  हीनता, 
                           संज्ञाशुन्य  एवं  मत्तता  की  अवस्था  को  उसका/उनका  अभिमत  नहीं  माना 
                           जाएगा । 

                   ४: -- ऐसी  स्थिति  जब  कि  पीड़ाकार एवं पीड़ित समान लिंग धारण  करते  हो तो 
                           वह कृत्य अप्राकृति यौनापकृति की श्रेणी के कृत्य होंगे । 

  दुर्वासना जनित बलात्संग या बलातभिमर्षण 

संग, संगत, संसर्ग, संपर्क,  : -- नर एवं मादा का लैंगिक संयुग्मन जिसके द्वारा संसेचन क्रिया 
                                               के फलस्वरूप जीवन की उत्पत्ति संभव है । 

मनुष्य जाति में संग, संगत, संसर्ग, संपर्क, संभोग : --  विषयवासना एवं कामोद्दीपन के वशीभूत 
                                               स्त्री एवं पुंस में परस्पर लैंगिक संयुग्मन जिसके द्वारा संसेचन क्रिया 
                                                के फलस्वरूप मनुष्य की उत्पत्ति संभव है ॥ 

'बलात्संग' दो शब्दों का संयुग्मन है ----- बलात + संग 
                                                बलात का अर्थ है बलपूर्वक + संग का अर्थ है सम्भोग 
                                                अर्थात बलपूर्वक किया गया सम्भोग, संगत, संसर्ग 

बलातभिमर्षण भी दो शब्दों का संयुग्मन है ----- बलात + अभिमर्षण  
                                                बलात का अर्थ है बल पूर्वक + अभिमर्षण का अर्थ है आक्रमण, सम्भोग 
                                                स्पर्शण, बलातस्त्रीकरण अर्थात बलपूर्वक किया गया संभोग 

                              टिप्पणी : - संस्कृत भाषा में पुरुष की जननेन्द्रिय को कामायुध भी कहा जाता है 
                                                अर्थात  -- काम+ आयुध, अस्त्र 

                                                मनुष्य जाति में सम्भोग एक ऐसी क्रिया है जिसमे पुरुष पक्ष को बल की  
                                                आवश्यकता होती है किन्तु स्त्री पक्ष को बल की आवश्यकता नहीं होती 

                                               "स्त्री के अभिमर्षण/संगति में अनभिमत की अवस्था के विरुद्ध बल का प्रयोग  
                                                कर पुरुष द्वारा मैथुन या लैगिकसंयुग्मन करने की क्रिया 'बलात्संग' या 'बला-
                                                तभिमर्षण' है"
                                                                                                                                     

                                                " बलात्संग अथवा बलातभिमर्शण एक स्त्री की अस्मिता पर किया गया  
                                                  आघात है इस दुष्कृत्य से उत्पीड़ित स्त्री को अपने स्त्रीत्व पर पश्चाताप
                                                  होने लगता है" 

                                                  दुर्वासना जनित बलात्संग या बलातभिमर्षण किसी  पुरुष  अथवा 
किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति  चित्त की  प्रवृत्ति  में  दुर्वासना की 
धारणा  से  युक्त   विषय  इन्द्रियों  द्वारा  उद्दीप्त,  सम्भोग के अभिमत का  दुराशय  रखते  हुवे,  संसर्ग हेतु  अनभिमत की अवस्था में प्रतिपक्ष स्त्री/स्त्रियों के अनाच्छादित स्त्रीन्द्रिय को  पुरुषेन्द्रिय का प्रयोग कर 
बलात स्पर्श करता है अथवा संधान करते हुवे सम्भोग करता है ऐसा दुर्वासना जनित कृत्य बलात्संग 
अथवा बलातभिमर्षण कहलाएगा  ।  

स्पष्टीकरण १ : -- जननेंद्रियों के आच्छादन से तात्पर्य ऐसी आवृति जिससे अंगप्रत्यंग आवृत हो 
                          सकें ।                                                                           

                  २ : -- किसी  स्त्री या  किन्हीं स्त्रियों  की  चित्त-विकृति  की  अवस्था,  संज्ञान  हीनता, 
                           संज्ञाशुन्य  एवं  मत्तता  की  अवस्था  को  उसका/उनका  अभिमत  नहीं  माना 
                           जाएगा । 

                   ३ : -- बलात्संग या बलातभिमर्षण के अपराध को गठित करने के लिए आवश्यक नहीं
                           है कि समागम हो केवल स्त्रीन्द्रिय में पुरुषेन्द्रिय का स्पर्श ही पर्याप्त है कारण कि 
                           एक  छह  माह  की  आयु  अवस्था  या  ऐसी ही अवस्था के समकक्ष बालिका के 
                           जनेन्द्रिय में एक युवा पुरुष अथवा प्रौड़ अथवा वृद्ध पुरुष की जननेद्रिय का संधान 
                           दुष्कर है वैसे भी स्पर्श मात्र से ही एक स्त्री का मानसिक बलात्संग हो चुका होता है । 
                 
                   ४ : -- यह तथ्य महत्वपूर्ण नहीं है कि पुरुष स्खलित  होकर चित्त निवृत्त हुवा की नहीं 
                             यहाँ उत्पीड़ित की मानसिकता ही प्रधान होगी । 
                                                                                                                        क्रमश:.....












                                                                                           

Monday 11 March 2013

-----।। दांपत्य सम्बन्ध - एक दृष्टिकोण ।। -----


स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में नव निर्मित संविधान लागू हुवा, संविधान में निहित
अधिनियम के उपबंधों में 'एकल विवाह पद्धति' का विधान किया गया..,


'एकल विवाह पद्धति' का अर्थ है अपने सम्पूर्ण जीवन काल में विवाह के पश्चात, एक स्त्री
एक ही पुरुष से एवं एक  पुरुष  एक  ही स्त्री  से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर सकता है
केवल मृत्यु की दशा में ही अथवा सम्बन्ध-विच्छेद हो जाने पर ही वह स्त्री अथवा पुरुष
अन्य पुरुष अथवा स्त्री से (एक से अधिक नहीं)सम्बन्ध स्थापित कर सकता है..,


'एकल विवाह पद्धति' को अपनाने के बहुंत से कारणों में प्रमुख कारण यह था यह पद्धति
सामाजिक व्यभिचारिता पर अंकुश लगाने के साथ ही जनसंख्या पर नियंत्रण करने  की
सिद्ध साधन थी..,

विवाह, वास्तव में यौवन अवस्था को प्राप्त एक युवक एवं युवती को; परिवार, समाज एवं
उस राष्ट्र जहां के वह नागरिक है के द्वारा स्थापित संविधान के अतर्गत परस्पर शारीरिक
संबंध स्थापित करने का अनुज्ञान(अनुमति) है..,

इस कामना के सह कि यह सम्बन्ध चिर स्थायी रहे वैवाह्यित युगल, स्वधर्म शास्त्र में
निहित विचारों का अनुसरण एवं सामाजिक संस्कारों व प्रथाओं को अंगीकृत करते हुवे
दाम्पत्य सूत्र में आबद्ध होने हेतु प्रस्तुत होते हैं..,

विवाहित दंपत्ती के परस्पर शारीरिक सम्बन्ध से चूँकि उत्पादन संभव है अत: यह एक उत्पाद
इकाई होते हुवे 'पारिवारिक इकाई' की संज्ञा धारण किये हुवे है..,

विवाह से अन्यथा एक स्त्री-परुष द्वारा स्थापित शारीरिक सम्बन्ध से भी उत्पादन की संभावना
है अत: यह भी एक उत्पादन इकाई ही है किन्तु है संज्ञाहीन । अत: इसे 'भागीदार इकाई' कह
सकते हैं..,

यदि कहीं उत्पादन हो रहा है तो लागत भी अवश्य ही होगी जिसके सह अधिकार एवं दायित्व
भी होंगे..,

पारिवारिक इकाई भी चूँकि एक भागीदार या साझा इकाई है अत: भागीदारों के सम्बन्ध- विच्छेद
की दशा में उत्पाद की गुणवत्ता एवं उसके स्वरूप को यथावत रखने हेतु संविधान वेधानिक आचरण
का पालन करते हुवे विधि सम्मत होकर उत्पाद से सम्बद्ध अधिकारों एवं दायित्वों का निर्धारण कर
सम्बन्ध- विच्छेद का देता है..,

अब यदि विवाह से अन्यथा स्थापित परस्पर शारीरिक सम्बन्ध द्वारा सृजित 'भागीदारी इकाई' के
भागीदारों प्रथमत: क्या वह अवयस्क हो सकते हैं द्वितीय इस इकाई के द्वारा जनित उत्पाद से
सम्बद्ध अधिकारों एवं दायित्वों का निर्धारण किस प्रकार से होगा..,

यदि विवाह परिवार, समाज एवं राष्ट्र के संविधान द्वारा एक युवक एवं युवती को परस्पर
शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु दिया गया अनुज्ञान ( अनुमति) है तो फिर विवाह
से अन्यथा स्थापित ऐसे शारीरिक संबंधों का क्या औचित्य है?? और क्या उद्धेश्य है ??

यह हो सकता है की किसी स्त्री अथवा पुरुष को विवाह जैसी संस्था पर विश्वास न हो
ऐसी  अवस्था  में  शारीरिक  सम्बन्ध  स्थापित  करने की अनुज्ञा तो दी जा सकती है
किन्तु  एक  से  अधिक  स्त्री  अथवा  पुरुष  से  नहीं । अर्थात  ऐसे किसी सम्बन्ध को
वैधानिक मान्यता तभी दी जानी चाहिए जबकि ऐसे सम्बन्ध के स्थापक भी उन सभी
विधि- विधानों का पालन करें जो कि संविधान ने एक विवाहित दम्पत्ति हेतु निर्धारित
किये हैं अन्यथा ऐसे संबध, वैवाहिक अधिनियमों की प्रासंगिकता समाप्त कर बहुंत सी
वेधानिक विषमताओं को जन्म देंगें.....


Thursday 7 March 2013

-----।। नारी नयन पीर भरी नीर भरी उरसीज ।। -----


आदि काल से लेकर विद्यमान समय तक नारी, पुरुषो के लिए सदैव उपभोग की
वस्तु ही रही , कहीं उसकी सहमति से तो कहीं असहमति से..,

विवाह क्या है ??

विवाह एक  ऐसी  पारिवारिक  संस्था है जिसके अंतर्गत एक स्त्री एवं एक पुरुष,
स्व धर्म-विषयक  विचारों  का अनुसरण व सामाजिक संस्कारों एवं उसके द्वारा
स्थापित प्रथाओं को अंगीकृत करते हुवे दाम्पत्य सूत्र में आबद्ध होते हैं..,

विवाह संस्था का उद्देश्य परस्पर शारीरिक शुभाशुभ सम्बन्ध स्थापित कर नव
 जीवन के सृजन द्वारा सृष्टि के संचालन में रचनात्मक सहयोग करना है..,

प्रस्तुत बलात्कार निरोधक अधिनियम में १८ वर्ष से  न्यून स्त्री से सहमति पूर्वक
शारीरिक संबंधों का उद्देश्य क्या है??

केवल  केवल  और  केवल  स्त्री  की  देह  का पुरुषों के द्वारा उपभोग तो क्या यह
जीवन केवल उपभोग के हेतुक है??

अत: यह अधिनियम बलात्कार का निरोधक तो नहीं किन्तु  पुरूषों के कुकृत्यों
का कवच मात्र है..,

स्वतत्रता  प्राप्ति के  पश्चात  नव  निर्मित संविधान के वैधानिक उपबंधों में हिन्दू
विवाह  अधिनियम  १९५५  के अंतर्गत विवाह की आयु सीमा स्त्री हेतु न्यूनतम
१६ वर्ष एवं परुषों हेतु १८ वर्ष निश्चित की गई..,

इधर जनता को संतुष्ट करने के लिए बहुंत से तर्क दिए गए, जो तर्क प्रमुख था
उसका  आधार  वैज्ञानिक  था जिसके  अंतर्गत  यह कहा गया कि १८ वर्ष से
 न्यून आयु अवस्था की  महिला, शारीरिक एवं मानसिक रूप से गर्भ धारण
करने  एवं  उससे  उत्पन्न सन्तति  के  दायित्व का  निर्वहन  करने में सक्षम
हो..,

अब  यदि  स्त्री-पुरुष  के  विवाह  पूर्व  संबध  जबकि  वह  वयस्कता कि आयु से
न्युनावस्था  कि  स्त्री से स्थापित हो, के फलस्वरूप स्त्री गर्भधारण करती है और
इस  गर्भ  से  कोई  सन्तति  उत्पन्न  हो जाए  तो  क्या उसके भरण-पोषण का
दायित्व सरकार लेगी??.....


Monday 4 March 2013

----- ॥ स्वातंत्रता का मर्म । -----




आन्दोलन मर्त्य ( मरण धर्मी)  होते हैं , यदि उद्देश्य अमर हो तो वह मृतोत्थित हो जाते हैं.....

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कुछ लोगों के संघर्ष का उद्देश्य केवल मात्र 
सत्ता प्राप्ति था और वे अपने उद्देश्य में सफल रहे, शेष सभी असफल रहे.....  





Friday 1 March 2013

----- ॥ कण-कण में भगवान ॥ -----


जड़ व चेतन के संगठित स्वरूप का ही गुणधर्म धरा करते हुवे
सगुण अर्थात दृश्यमान होते  है, विघटन के पश्चात वह निर्गुण
अर्थात अदृश्य हो जाता है.....

" जीव, निर्जीव का संघटक है..,
  निर्जीव, जीव  का विघटक है.."



वेदानुसार : --
जीवन की संरचना  पंचतत्व के संयोजन से हुई है
" पृथ्वी + अग्नि + जल + वायु + आकाश (अर्थात शुन्य ) = देह..,


पञ्च तत्वों में  तीन तत्व दृश्यमान है वे है : -- पृथ्वी, अग्नि एवं जल
दो तत्व अदृश्य हैं वे है : -- वायु एवं आकाश

अदृश्य वायु से दृश्य जल की रचना हुई : -- H2O = जल
इसी प्रकार आकाश जो अदृश्य है उससे पिंड अथवा कण की रचना हुई
कैसे = ??

कण एवं जल से अग्नि की रचा हुई
H2O + कण = अग्नि ( ऊर्जा)

अदृश्य अर्थात वायु एवं आकाश को देखना असंभव है इनकी केवल गणना ही की जा सकती है

हमने वायु की गणना की वायु में आक्सीजन + हाइड्रोजन + नाइट्रोजन आदि गैसे हैं
आकाश की गणना क्या है =??

कोई भी कण चाहे वह कितना भी सूक्ष्म क्यों न हो यदि दृश्यमान है कण कहलाएगा आकाश या
वायु नहीं

अंनत अर्थात अदृश्य आकाश ही ईश्वर है दृश्यमान अनीश्वर
किसी भी कण को ईश्वरीय कण नहीं कहा जा सकता क्योंकि कण सदैव दृश्यमान होते हैं
अदृश्य से सदृश्य तत्पश्चात सदृश्य से ही जीवन की रचना हुई

यदि जल + कण के संयोजन से अग्नि उत्पन्न हो तो संभवत: सूर्य में सौ प्रतिशत जल है
जो विशेष घूर्णन अवस्था के कारण ऊर्जा उत्पन कर रहा है पृथ्वी भी एक वृहत कण है जो
लगभग ७०% जल से आच्छादित है कि घूर्णन गति कदाचित संतुलित है जिसके कारण
 ऊर्जा का उत्पादन भी संतुलित है.....