Thursday 19 February 2015

----- ॥ उत्तर-काण्ड २७-२८ ॥ -----

सोम / मंगल , १६ /१७ फरवरी २०१५                                                                                

जर जर जब ज्वाल उत्तोले  । पुष्कल रकत कमल मुख बोले ॥ 

मोरे बान ए  तुहरी देही । खैंच तहँ सोन प्रान  न लेहीं ॥ 
कोप की ज्वाला जलते-जलते जब उत्तोलित हो गई तब पुष्कल के रक्त-कमल के समान लाल हुवे मुख से बोले --'ये मेरे बाण है, ये तुम्हारी देह है, यदि इन बाणों ने तुम्हारी देह से प्राण न खैंच लिए - 

त सील बिरध सति पति पियारी । करे कलंकित  को अस नारी ॥ 

परत जम पासल सो खलचारी ।होइअहि जस गति के अधिकारी ॥ 
तो सदाचार से सुशोभित पतिव्रता सती स्त्री को कलंकित करने के कारण यम के पाश में पड़े दुष्टाचारी जिस गति के अधिकारी होते हैं 

होही काल बस मम गत सोई । मम  प्रण अवसिहि पूरन होई ॥ 
पुष्कल पुनि जब करकत लाखे । रिपु दल मुखिआ हँस अस भाखे ॥ 
काल के वशीभूत होकर मेरी भी गति वही हो और मेरी यह प्रतिज्ञा  अवश्य ही पूर्णता को प्राप्त होगी | फिर जब पुष्कल ने तीक्ष्ण दृष्टि से शत्रु की ओर देखा तो शत्रु दल के नायक  हँस  कर बोले -

प्रान गहि जग  आनि जो कोई । तासु मरनि पुनि  अवसिहि होई ॥ 

जो जुधिक जुद्ध  जुझावत मरे । सो काल पास के भय न करे ॥ 
'पुष्कल ! प्राणाधान कर जो इस संसार में आया है फिर उसकी मृत्यु निश्चित है जो योद्धा युद्ध में संघर्ष करते हुवे मृत्यु को प्राप्त होते हैं वो काल के दण्डपाश का भय नहीं करते | 

जो में काटि न नीबेरौं,  तुहरे छाँड़े बान । 
हे रन प्रनत अजहुँ बहुरि  , मोर ए  प्रन लो जान ॥  
यदि मैने तुम्हारे छोड़े बाण को काटकर उनका निवारण न कर दिया तो हे दक्ष योद्धा !अब मेरे इस प्रण का भी संज्ञान कर लो |'

तीरथ सेवन कोउ  उछाहे । जो अस उछाह नासन चाहे ॥ 
तासु पाप निज सिरु मैं  लैहौं  । प्रन भंजन कर दोष जनैहौं   ॥ 
जो तीर्थ सेवन हेतु उत्सुक पुरुष की उत्सुक्ता को नष्ट करता है उसके द्वारा किए गए ऐसे पाप का में भागी होऊंगा और स्वयं को प्रतिज्ञा भंग  करने का अपराधी समझूंगा | 

अस कह चित्रांग मुख उरगाए । करसत  कुसा कर चाप चढ़ाए ॥ 

जो मोरि भगति प्रभु पद चीन्हि । कपट हीन जो बंदन कीन्हि ॥ 
ऐसा कहकर चित्रांग मौन हो गया और प्रत्यंचा कसकर उसने धनुष सम्भाला  | यदि मैने निष्कपट भाव से भगवान श्रीराम का वंदन किया है और मेरी भक्ति भगवान के चरणों में ही स्थिर रही है 

जो मम हिय प्रिय तिय अपराई । करे बिचार न कोउ पराई ॥ 
मोरे कहे बचन सत जोहीं  । किए जो प्रन सो पूरन  होंही ॥ 
 जो मैने मेरे ह्रदय को प्रिय अपनी स्त्री के अन्यथा किसी भी स्त्री का विचार नहीं किया है  तो मेरे कहे ये वचन सत्य होंगे तथा मेरी प्रतिज्ञा अवश्य पूर्ण होगी | 

अस कह काँति मति केहु कन्ता । करम कार्मुक गहै तुरंता ॥ 
मर्म भेदि एक बान  संजोई । जोइ अगन जस तेजस होई ॥ 
ऐसा कहकर कांतिमती के श्रीमान तथा रामानुज भरत के पुत्र पुष्कल ने भी  तत्काल एक सुदृढ़ धनुष उठाकर उसपर एक मर्म भेदी बाण का संधान किया जो अग्नि के समान तेजस्वी था | 

उर कपाट पुर लच्छ किए छूटे सूल प्रचंड । 
चित्रांग चाप चपल तब , काटि करे दुइ खंड ॥ 
वे प्रचंड बाण चित्रांग  के विशाल ह्रदय का लक्ष्य करते हुवे छूटे तब चित्रांग के धनुष ने चपलतापूर्वक काटकर उन्हें दोखंड कर दिया | 

बुधवार,१८ फरवरी, २०१५                                                                                                    

भै रन भुँइ कोलाहल भारी । बरखि धूरि कीन्हेसि अँधियारी ॥ 
पुच्छल भाग मुख सोहि निबरे। घर्घर करत  घुरमत महि गिरे ॥ 
बाण की प्रचंडता इतनी अधिक थी कि उसके कटजाने से रणभूमि में भारी कोलाहल होने लगा | बरसती हुई धूल ने जैसे वहां अन्धेरा सा कर दिया, फल  से पृथक हो कर बाण का पुच्छल भाग घूमते -घर्घराते हुवे पृथ्वी पर गिरा, 

पूरबारध भाग फल जोहीं । रिपु दल पति पुर  बेगि अगौहीं ॥ 
भयउ अरध सर धारा सारी । चतरंग कंठ काट निबारी ॥ 
 फल से युक्त बाण का पूर्वार्द्ध भाग  बड़ी तीव्रता से शत्रु पक्ष के सेनापति चित्रांग की ओर बढ़ा |  अर्ध सायक ने खड्ग का रूप धारण उसके कंठ को काट दिया | 

कटे सीस भुइ निपतै एैसे । कटत निपति नलिनी रूह जैसे ॥ 
निपति अस कल किरीट कमंडल । निपत सोहि जस सस भू मंडल ॥ 
कटा हुवा शीश फिर भूमि पर ऐसे गिरा जैसे नलिन नाल कटकर गिरती है उसपर के गिरते सुन्दर किरीट कमंडल पृथ्वी पर टूटकर गिरते चन्द्रमा के जैसे सुशोभित हो रहे थे  | 

कलिक सैन भै कंठ बिहीन | ऊरधउ सुर भई सुर हीना | 
पंखि रहत भै बिनहि बिताना | प्रानप  रहत भई बिनु प्राना || 
इस प्रकार सुबाहु की ऊँचे स्वर में ललकारने वाली सेना क्रौंच सेना कंठ विहीन होकर  स्वरहीन हो गई |  पंख होते हुवे भी विस्तार विहीन हो गई और प्राणाधान होते हुवे भी वह जैसे निष्प्राण हो गई थी | 

चित्रांग धरनि पारी जब देखे । पुष्कल कलिक ब्यूह प्रबेखे ॥ 
सोहत जिन्ह बीर बहुतेरे  । किए जय जय निज दलपत केरे ॥ 
 चित्रांग को धराशायी और सेना को कंठ विहीन देखकर पुष्कल ने अपने सेनापति की जयघोष करते अनेकानेक वीरों से सुशोभित  कलिक व्यूह में प्रवेश किया  

दरसी सुतन्हि सुबाहु जब, भयऊ प्रान बिहीन । 
सोकारत अस तरपे जस तरपत जल बिनु मीन ॥ 
इधर सुबाहु ने जब प्राण विहिनहुवे अपने पुत्र  को देखा तन वह शोक से आर्ट होकर ऐसे तड़पे जैसे जल के बिना मछली तड़पती है | 

बृहस्पतिवार, १९ फरवरी, २०१५                                                                                                

तेहि काल निज रथ कर कासे ।आगत दुनहु कुअँर पितु पासे ॥ 
प्रनत सीस अवनत चरन गहै ।सुरीत समयोचित बचन कहे ।। 
उसी समय रथ रश्मियों को कसे दोनों कुमार अपने पिता सुबाहु के पास आए और नतमस्तक होकर उनके चरणों में प्रणाम करते हुवे समयोचित व् रीतिनुसार ये वचन बोले --

 हमरे जिअत गहै दुःख भारी ।राजु बीर गति होत  प्यारी ॥ 
चित्रांग रिपु सन  लौहु बजाए । संग्रामाँगन सोइ गति पाए ॥ 
राजन ! हमारे जीते जी आपको को यह भारी संताप हो रहा है, वीरता पूर्ण कार्य करते हुवे यदि मृत्यु हो जाए तो वह भी अभीष्ट होती है चित्रांग संग्राम भूमि में शत्रु के साथ संघर्ष करते हुवे वह गति प्राप्त हुई है  | 

मात पिता बाँधउ अनुरागी । धुरंधर सो धन्य के भागी ॥ 
महमते अजहुँ सोक निबारौ । बीर तनुज हुँत दुःख नहि धारौ ॥ 
वह धुरंधर अब माता, पिता व् बंधुओं का विशेष अनुरागी होकर धन्य का पात्र  हो गया है एतएव महामते ! इस समय आप शोक त्याग दीजिए और अपने वीर पुत्र के लिए व्यथित मत होइये  | 

महमन हमहि रन आजसु दाएँ । आपहु चित रन रंग रंगाएँ ।। 
बाँध जिआ धनु बान सुधारे । तनुज बचन सुनि सैन सँभारे ॥ 
मान्यवर!अब आप उत्कंठित होते हुवे संघर्ष कीजिए और  हमें युद्ध की आज्ञा दीजिए | ' अपने पुत्रों के इन वचनों को सुनकर हृदय की भावनाओं को वश में करते हुवे धनुष और बाण सुधारकर सेना की संभाल की | 


सोकाकुल उर घन जानि दमकत पानि कृपानि । 
तूर चरन राजन रनन , तमकत रन भुइ आनि ॥ 
पिता के ह्रदय को शोक से व्याकुल मेघ जानकर हाथ में बिजली बनकर कृपाण दमक उठी, आक्रोश से भरे सुबाहु के आतुर चरण शत्रु के साथ संघर्ष करने के लिए रण भूमि को प्रस्थान हुवे | 

शुक्रवार, २० फरवरी, २०१५                                                                                                    

कर सरासन  सर भरे भाथा । आए कुँअर दुहु पितु के साथा ॥ 
कोटि कोटि भट भरे पूराए । जीवट उत्कट कटक भितराए ॥ 
हाथों में सरासन व् सायकों से भरे तूणीर लिए दोनों राजकुमार भी पिता के साथ आए | उनकी जीवट व् उत्कट सेना के अन्तस्थ में करोड़ों सैनिकों भरे हुवे थे | 

निज निभ बाहु बली अभिलाखे । रन रंग रंजन भनिति भाखे ॥ 
नील रतन संग बिचित्र भेले | रिपुताप सन दमन रन खेले  ॥ 
 अपने समदृश्य बाहुबली को अभिलक्षित कर वीरों का उत्साह वर्द्धन करने वाली संक्षिप्तोक्ति करते हुवे विचित्र ने नीलरत्न के साथ तथा दमन ने रिपुताप के साथ लोहा लिया |  

सुबाहु हिरनजटित रथ चाढ़े । भेलन सत्रुहन पुर चलि बाढ़े ॥ 
पानि जुगत  कृपान चहुँ फेरे । घेरे जिन्हनि बीर घनेरे।। 
स्वयं सुबाहु स्वर्ण जटित  रथ में आरूढ़ होकर शत्रुध्न से युद्ध करने के लिए बढ़ चले जिन्हें कृपाण युक्त हस्त को चारों ओर घुर्माते अनेकानेक वीरों ने घेरा हुवा था  | 

सुबाहु घेर बिभेदन लागे । हनुमन सत्रुहन रच्छन  भागे ॥ 
भुज दल सिखर सागर बल धरे। घन सोह मुख घन गर्जन करे  ॥ 
रोष में भरे सुबाहु जब उस घेरे का विभेदन करने लगे तब वीर हनुमान शत्रुध्न की रक्षा के लिए दौड़ पड़े | उनकी कंधे सागर जितने  बल से युक्त थे  उनका मुख मेघ के समान विकट  गर्जना कर रहा था | 

तेहि  अवसर सुबाहु दस कठिन बान संधान । 
छूटत बेगि सरसर चर  देइ चोट हनुमान ॥ 
उसी समय सुबाहु ने देश कठिन बाणों का संधान किया छटते ही वे बाण वेगपूर्वक सरसराते चले और हनुमंत को चोटिल कर दिया | 

शनिवार २१ फरवरी, २०१५                                                                                                   

बीर भयंकर सर  उर छोड़े । गहे हस्त तिल तिल करि तोड़े । 
जिन्ह कहत बली बिनहि तुलाए । झपट राउ  रथ खैंच  लेवाए ॥ 
किन्तु हनुमंत भी भयंकर वीर थे उन्होंने  ह्रदय पर छोड़े गए उन बाणों को तिल -तिल करके तोड़ दिया | जिन्हें अतुलनीय बलशाली कहा जाता है उन्होंने फिर  झपट्टा मारकर  राजा के  रथ को खैंच लिया ,

लपट पुंग तुर चले अगासा । नाहु नयन छत छाए हतासा ॥ 
बिचरत गगन हिरन रथ संगा । पाँख बिहूनइ भयउ बिहंगा ॥ 
और उसे अपनी पूँछ में लपेटकर तीव्र गति से आकाश में ले गए नृपश्रेष्ठ के नेत्र-क्षितिज पर हताशा व्याप्त हो गई | उस समय हनुमंत हिरण्मयी के साथ आकाश में विचरण करते जैसे पंख रहित होते हुवे भी पक्षी हो चले थे | 

रथ जहँ नृप तहँ रहँ अबलम्बित । लखत पुंग मुख बाहु प्रलम्बित ॥ 
मर्म अघातक पीरा दायक । छाँड़ेसि तुर तेज मुखि सायक ॥ 
नृपश्रेष्ठ सुबाहु भी वहीँ स्थिर हो गए जहाँ रथ था और कपिवर हनुमंत की पूँछ, मुख व् प्रलंबित भुजाओं का लक्ष्य कर मर्माघाती व् पीड़ा दायक तीक्ष्ण मुखी बाण छोड़ने लगे | 

बिहतत गए  जब बारहि बारा ।किए हनुमंत अक्रोस अपारा ॥ 
धरि लात एक नाहु उर मारा । परे घात जनु बजर  प्रहारा ॥ 
जब वह वारंवार आहत होने लगे तब उनको अपार आक्रोश हुवा | प्रतिउत्तर में उन्होंने वीर योद्धाओं से घिरे राजा सुबाहु के हृदय भवन में एक लात मारी, वह चरण-प्रहार वज्र-प्रहार के जैसा था | 

गह अस तेज अघात,छतबत  मुरुछा गहन किए । 
आँगन होत निपात, तपत रुधिर मुख बमन किए ॥  
इस तीव्र आघात से घायल राजा मूर्छा ग्रहण कर रणांगण में गिर पड़े , और मुख से तप्त रक्त का वमन होने लगा | 

रविवार, २२ फरवरी, २०१५                                                                                               

साँसत लमनि साँस भरि  काँपे । अचेत नयन सपन बिअ बाँपे ।।  
श्री राम छबि इब अंकुर साजे  । दरसिहि पख मख मण्ड बिराजे ॥ 
अत्यधिक कष्ट के कारण वह लम्बी लम्बी सांस भर कांपने लगे उनके अचेत नेत्रों ने फिर स्वप्न के बीज बोये जिसमें  श्री राम की अंकुरित छवि सुसज्जित हो गई पलक-पट में वह यज्ञ-मंडप के भीतर विराजित दिखाई दे रहे थे | 

भयउ रजनि कन जगन्न केरे । कांति  किए रहैं चहुँ दिसि घेरे ॥ 
कोटिक ब्रम्हांड के प्रानी । ठाढ़ि रहे तहँ जोरे पानी ॥ 
ओस बिंदु के रूप में यज्ञ कराने वाले ब्राम्हण मुख पर  कांति वर्द्धन करते हुवे उउन्हें चारों और से घेरे हुवे थे | ब्रम्हांड के करोडो प्राणी उनके सम्मुख हाथ जोड़े खड़े थे | 

ब्रम्हादिदेउ सहित मुनीसा । किएँ बर अस्तुति अवनत सीसा ॥ 
रमा रमन के कमल नयन के । श्री बिग्रह घन स्याम बरन के ॥ 
ब्रह्मा आदि देवता सहित मुनि गण नतमस्तक होकर उनकी सुन्दर स्तुति कर रहे थे | कमल जैसे नेत्रों वाले रमा के रमन का श्री विग्रह गहरे श्याम वर्ण का था | 

बोलत  कल भूषन भए भृंगा । मुकुलित हस्त धरे मृग सींगा ॥ 
नारदादि रिषि  हस्त अधीना | सुजस गान कर बाजिहि बीना || 
उसपर के अनुरणन करते सुन्दर आभूषण मधुकर से  प्रतीत हो रहे थे | भगवान अपने मुकुलित हस्त-कमल में मृग-शृंग लिए हुवे हैं | नारद आदि देवर्षियों के हस्ताधीन होकर  वीणाएँ उनके सुयश का गान करती हुई झंकृत हो रही हैं | 

बेद  मूर्ति मान होत  प्रगसे सगुन सरूप । 
राजन के सपन दरपन, दरसिहि छटा अनूप ॥  
राजा सुबाहु के स्वप्न-दर्पण में दर्शित यह छटा अनुपम है, चारों वेद मूर्तिमान होकर सगुण स्वरूप में प्रकट हुवे हैं | 

सोम /मंगल  २३/२४ फरवरी, २०१५                                                                                 

करत भनित प्रभु चरन अराधएँ । तपो निधान रूप जस लागएँ ॥ 
जे जग जो किछु सुघर सँजोइल । देनहार श्री रामहि होइल ॥ 
प्रभु की स्तुति करते हुवे वह उनके चरणों की आराधना में अनुरक्त वह श्रेष्ठ तपस्वियों  के समरूप प्रतीत हो रहे हैं | जग में जो कुछ उत्तम पदार्थ है उसके दाता भगवान ही हैं | 

कुजिहि कूनिका सहु छहु रागे । तबहि नाहु चेतत  उठि जागे ॥   
छाए मोदु मन गयउ प्रमादा । सत्रुहन पद पुर चले पयादा ॥ 
जब कूणिकाओं के कंठ से छहों राग रंजन कर रहे थे कि तभी अचेत नृप श्रेष्ठ सुबाहु की चैतन्य होकर जाग उठे | प्रमाद जाता रहा अब मन में प्रमोद का बसेरा हो गया और उनके चरण शत्रुध्न के चरणों की ओर चल पड़े | 

चरत चरत सो रन भुइँ आवा  । बिचित्र दमन रंजीत पावा  । 
हाँक दिए तिन्ह निकट बुलायो । रन रोधन कारन समझायो ॥ 
चलते चलते वह युद्ध-भूमि में आए वहां रणोद्यत विचित्र एवं दमन को संघर्ष करते देखा तो इन्हें पुकारकर अपने निकट बुलाया और युद्ध-विराम  का कारण समझाया | 

बहोरि सुकेतु कोत बिलोके ।  करत सँकेतु अजुद्धिक रोके ॥ 
सपन दर्पन छबि लोचन छाए । कहि भै हमसों बहुत अन्याए ॥ 
फिर उन्होंने सुकेतु की ओर देखकर युद्ध-विराम का संकेत  कर उसे भी रोका | स्वप्न- दर्पण में भगवान श्रीराम की दर्शित छवि को संज्ञापित कर कहा हमसे बड़ा ही अन्याय हुवा है | 

जड़ जंगम जग कर भरतारा । जो परब्रम्ह राम अवतारा ॥ 
कारज कारन दुहु सोहि परे । तिन्ह के बीर भदर तुम हरे ॥ 
जो परब्रह्म राम के रूप में अवतरित हैं वह इस चराचर जगत के स्वामी हैं ये कार्य व् कारण दोनों ही से परे हैं तुमने उनके त्यागे हुवे वीरभद्र (मेधीय अश्व ) का हरण किया | 

सोई राम रूप भगवाना ।ए गूढ़ बचन अजहुँ मैं जाना ॥ 
मनुज गात गह लिए अवतारे।एहि अवनिहि हित हेतु हमारे ॥ 
राम रूप में वह ईश्वर का स्वरूप हैं यह गूढ़ वचन मुझे अब जाकर ज्ञात हुवा |  हमारे कल्याण के हेतु ही मानव शरीर धारण कर इस धरती पर अवतरित हुवे  | 

पुनि सुबाहु सुत भ्रात सहुँ, बरनै सोई प्रसंग । 
असितांग मुनि को हाँस,भयउ जोइ तिन संग ॥    
 राजा सुबाहु पुत्रों व् भ्राताओं के सम्मुख उस घटना का वर्णन किया असिताङ्ग् मुनि का उपहास करने के कारण घटित हुई थी |  

बुधवार,२५ फरवरी, २०१५                                                                                             

निगदि नाहु कर मिरदुल बानी । सुनु सुत भ्रात ए बात पुरानी ॥ 
पैहन मैं सत सार ग्याना । पर हित हेतु तीरथ पयाना ॥ 
राजा सुबाहु ने फिर मृदुल वाणी से कहा -- पुत्रों ! हे मेरे बंधुओं ! अब इस मेरे साथ घटित इस पुरातीत  घटना को सुनो | मैं तत्त्व ज्ञान प्राप्ति की अभिलाषा एवं परमार्थ हेतु तीर्थ यात्रा के लिए निर्गत हुवा  | 


देइ दरस मग मुनिबर नेका । धरम परायन परम प्रबेका ॥ 
भगवन मम कर औसर  देबा । किए असितांग मुनि के सेबा ॥
मार्ग में मुझे अनेकानेक श्रेष्ठ मुनियों के दर्शन हुए जो धर्मपरता में अतिशय प्रवीण थे | भगवान ने मुझे अवसर प्रदान किया जिससे मैं असिताङ्ग् मुनि की सेवा सुश्रुता कर पाया | 

मो ऊपर किए कृपा बिसेषा । जति धर्म दिए मोहि उपदेसा ॥ 
जासु महत माहि अगम अबाधा । बरे सिंधु जस बारि अगाधा ॥ 
मुनिवर ने मुझपर विशेष कृपा करके यतिधर्म का यह उपदेश दिया -- जिनका महात्मय में अगम्य असीम है  सिंधु के अगाध जल के समान उनका महात्मय भी अगम्य व् अखंड है || 

जो सुभ सरूप रूप सँजोई । तासु नाउ परब्रम्हा होई ॥ 
जनक किसोरि राम की जानि । साखि चिन्मई बल गई मानि ॥ 
जो कल्याणकारी रूप-स्वरूप संजोए हुवे हैं उनका नाम ही परब्रह्म है जनक-किशोरी जानकी जिनकी अर्धांगिनि हैं  वे भगवान की साक्षात चिन्मयी शक्ति मानी गई हैं | 

दुस्तर अपार संसार सिंधु पार गमन जो कोउ चहैं ।
सो जति धरमी सङ्कृत करमी हरिहि पदुम पद पूजतहैं ॥ 
चतुर्भुज रूपा महि भूपा जासु गरुड़ ध्वज धारी कहैं । 
दसरथ के अजिरु बिहारी सोई बिष्नु अवतारी अहैं ॥ 
जो कोई इस दुस्तर संसार सिंधु के पारगमन की अभिलाषा वाले  धर्मी सुकृति कर्मि योगीजन जिन भगवान के चरणों की उपासना करते हैं जो चतुर्भुज स्वरूपी धरापति,  गरुड़ ध्वज धारी है और जो भगवान जगन्नाथ कहलाते हैं, दशरथ के अजिर में विहार करने वाले श्रीराम उन्हीं के अवतार हैं | 

तिन्ह भगवन भावनुरत पूजिहि जो नर नारि । 
भव सिंधु तर सो होइहि परम गति के धिकारि ॥ 
जो कोई नर-नारी  उन भगवान भावपूरित उपासना करते हैं वह इस संसार सिंधु से पारगम्य होकर परम पद के अधिकारी होते है | 

बृहस्पतिवार,२६ फरवरी, २०१५                                                                                                 

सुनि मुनि निगदन मैं उपहासा । भय भूप सो मोर सकासा ॥ 
राम मनुज सधारनहि होई । बिष्नु रूप धर  सकै न कोई ॥ 
मुनि के इन वचनों को सुनकर मैने उनका उपहास कर कहा -- वह तो मेरे जैसे ही राजा हैं राम कोई साधारण मनुष्य ही हैं, विष्णु का स्वरूप धारण करना  किसी मनुष्य के वश का नहीं है | 

हर्ष सोक सागर जो गाहिहि । सो तिय श्री कैसेउ कहाही ॥ 
अजनमनी कैसेउ जन्माए । जगत अकर्ता जगत कस आए ॥ 
जो हर्ष व् शोक के सागर में अवगाहन कराती हैं वह स्त्री श्री कैसे हो सकती हैं ? भगवान तो अजन्मे हैं अजन्में का जन्म कैसे हो सकता है ? जो जगत अकर्ता हैं उनका जगत में आने का क्या प्रयोजन ? 

जासु आदि न मध्य अवसाना । अमित प्रभाउ बेद नहि  जाना ॥ 
भब भब बिभब पराभब कारी । नयन भवन एक प्रश्न निहारी ॥ 
इतने प्रश्नों के पश्चात मेरे दृष्टिभवन में पुनश्च एक प्रश्न दृष्टिगत होने लगा -- जिसका न आदि है न मध्य न अंत है जिनके अमित प्रभाव का व्याख्यान वेद भी नहीं कर सकते जो संसार की उत्पत्ति और उसपर की सम्पति को पराभूत करने वाले हैं 

जूट केस उपदेसु मो कहहु  । सो राम बिष्नु रूप कस अहहु ॥ 
निगदित बचनन दिए जब काना । किए अभिसपत मोहि बिद्बाना ॥ 
हे जटाधारी मुनि ! मुझे यह उपदेश देकर बोध कराइये कि वे राम विष्णु के अवतार कैसे हो सकते हैं ?विद्वान मुनि ने मुझे ये कहते हुवे सुना तो उन्होंने मुझे अभिशप्त कर दिया | 

कोप सिंधु गह नयन हिलोले । धनुमुख बानि बान भर बोले ।। 
अधमी रघुबर रूप न जाने । मुनिबर कहेउ बचन न माने ॥ 
उनके नेत्रों में जैसे कोप कासमुद्र उमड़ आया  फिर वे मुख रूपी धनुष में वाणी के बाण का संधान कर बोले -- रे अधमी ! तुम्हे रघुबर का स्वरूप ज्ञात नहीं है तुम मुनिवरों के वचनों का भी तिरस्कार करते हो ? धिक्कार है तुम पर ! 

निंदरहु  मान सधारन भगवन मानस रूप । 
मोर कथनन प्रतिबादिहु  समुझइ निज बर भूप ॥ 
तुम भगवान को साधारण मानव मानकर उनकी निंदा कर रहे हो ? और स्वयं को जगत सम्राट समझ कर मेरे कथन  का  प्रतिवाद कर रहे हो ? 

शुक्रवार, २७ फरवरी, २०१५                                                                                                       

कहे ऐसेउ उपहास बचन । होहु अजहुँ ते उदर परायन ॥ 
तुम्हारे सकल  सार ग्याना । मोर श्राप सों होहि बिहाना ॥ 
तुमने भगवान के प्रति ऐसे उपहास वचन कहे ?जाओ अब से तुम उदर परायण हो जाओगे, तुम्हारा समस्त तत्त्व ज्ञान मेरे श्राप से नष्ट हो जाएगा | 

सुन अस मम उर भए भय भीता । सकल सार ग्यान सों रीता ॥ 
जोए पानि दुहु मैं पग पारा । मुनिरु उपल मन बहि द्रव धारा ॥ 
ऐसा सुनकर सार ज्ञान से रिक्त हुवे मेरे अंतस में भय व्याप्त हो गया | दोनों हाथ जोड़े फिर में  मुनि के चरणों में गिर पड़ा  तब मुनिवर का पाषाण हृदय द्रविभूत हो गया | 

भरे भीत करुना के सागर । बोले अस मो  भर भुज अंतर ॥ 
रघुबर अश्व मेध जब करिहीं । तुहरे सोहि रन बिघन धरिही॥ 
उनके अंतर्मन में करुणा का सागर उमड़ पड़ा फिर  वे मुझे भुजांतर में भरकर बोले -- 'अयोध्या के अधिपति भगवान रघुनाथ जब अश्वमेध करेंगेयुद्ध में संघर्षरत होने के कारण तुम्हारे द्वारा  उस यज्ञ में विध्न होगा  | 

करिहीं घात बेगि हनुमंता । सुनु हे चक्रांका के कंता ॥
हे चक्रांका नगरी के कांत आगे सुनो -तब वीर हनुमान तुमपर वेगपूर्वक चरण-प्रहार करेंगे | 


तब तोहि होहि ए ग्यान राम रूप भगवान । 
न तरु निज कुमति संग तुअ, सकिहु न अजिवन जान ॥ 
तब तुम्हे यह ज्ञान होगा कि राम ही भगवान का स्वरूप हैं, अन्यथा अपनी कुबुद्धि तुम्हे यह आजीवन ज्ञात नहीं होगा | '

शनिवार, २८ फरवरी, २०१५                                                                                                   

मुनि मनीषि मुख जो कहि भाखा । तासु भान होइहि मो साखा ॥ 
जाहु महबली रघुबर जी के । आनहु लेइ तुरंगम  नीके ॥ 
उन मुनि मनीषी ने अपने मुख से जो कुछ कहा अब मुझे उसका प्रत्यक्ष अनुभव हो रहा है | महाबली सैनिकों ! जाओ अब रघुबर जी के उस शोभयमान अश्व को ले आओ | 

सब धन सब सम्पद ता संगा । मम राजित एहि  राज प्रसंगा ॥ 
करिहउँ में अर्पित भगवाना । कारन एहि मख धर्म प्रधाना ॥ 
उसके साथ मैं समस्त धन सम्पदा तथा मेरे द्वारा राजित ये राज्य भी भगवान को अर्पित कर दूंगा,  कारण कि यह यज्ञ धर्म के हेतु है |  

दरस प्रभु मैं कृतकृत  होइहउँ । सरब समरपत पानि जोइहउँ ॥ 
सुबाहु सुत बर रीति रनइता । श्रुतु पितु बचन भए अति हर्षिता ॥ 
हाथ जोड़कर अश्व सहित अपना सर्वस्व समर्पित करते समय मैं भगवान श्रीराम के दर्शन कर कृतार्थ हो जाऊंगा |' सुबाहु के पुत्र राण की उत्तम-उत्तम नीतियों के ज्ञाता थे पिता के ऐसे वचन सुनकर वे अपार हर्षित हुवे | 

पितु जस रघुबर दरस  उछाहीं । मोदु प्रमोदु मेह मुख छाहीं ।\ 
नयन गगन जल बिंदु हिलोले ।अनुज तनुज दुहु भीनत बोले ॥ 
रघुवर के दर्शन हेतु पिता की उत्कंठा देखकर उनके मुख पर प्रसन्नता और आनंद के बादल छा गए नयन रूपी से गगन से फिर जल बिंदुएं लहराने लगी और पुत्र और बन्धुगण उस जल से द्रवीभूत होते हुवे बोले --

हमहि कुछु अरु जानए नहि, एक तव चरन बिहोर । 
तुहरे दिनकर बचन किए हमरे तमि मन भोर ॥ 

महाराज ! एक आपके चरणों के अन्यथा हमें और कुछ ज्ञात नहीं है दिनकर के समान आपके इन वचनों ने हमारे तमस मन में जैसे भोर कर दिया | 

रविवार, 01 मार्च ,२०१५                                                                                                    

जो प्रभु दरस के सुभ संकल्पा । तुहरे हरिदै जो किछु कल्पा ॥ 
सो सब पूरन होवनि चाहिब । चन्दन चर्चित हय लिए जाइब ॥ 
आपने प्रभु दर्शन का जो शुभ संकल्प लिया है तथा आपके ह्रदय जो कुछ  परिकल्पना की है वह सब अब पूर्ण होनेवाला है | चंदा से चर्चित इस उत्तम अश्व को भी संकल्प मेधीय अश्व को भी प्रभु के पास ले जाइये   | 

तुम स्वामि तुम अग्याकारी ।हम तव सेबक हम अनुहारी ॥ 
 अनुपजोगि यहु  राज  पटौहा । तव अग्या उपजोगित होही  ॥ 
आप तो स्वामी हैं आप आज्ञा करने वाले हैं हम आपके सेवक आपकी आज्ञा के पालनकर्ता हैं | यह अनुपयोगी राज-पाट  आपकी आज्ञा का अनुशरण करके ही उपयोगी सिद्ध होगी  | 

मुकुत मरकत मनि स्याम सम रतन ।हय हस्ति सोहि हिरन सयंदन ॥ 
सम्पत कोष ए  लाखहि लाखा । सब द्रव प्रभु पद देइहु राखा ॥ 
मुक्ता पन्ना नीलम जैसे बहुमूल्य रत्न ये घोड़े हाथी साथ ये स्वर्णमयी रथ आदि सम्पदा कोष लाखों की संख्या में प्रस्तुत हैं, ये सब द्रव आप प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना | 

ताते अबरू अहँ  जोइ जोई | महा अभ्युदय केरि सँजोई || 
जाइ  तहाँ तिन भगवद सेबा  | सादर पद अर्पन करि देबा || 
इससे अन्यथा और जो-जो महान अभ्युदय की वस्तुएं हैं इन्हें भी भगवद सेवा हेतु भगवान श्रीराम के चरणों में सादर समर्पित कर देना | 

हम सुत किंकर सकल तुहारे ।हमहि तिन्ह सन अर्पित कारें ॥ 
रिद्धि सिद्धि  सो सब लिज्यो ।गमनु बेगि अरु बिलम न किज्यो  ॥ 
महामते ! हम सभी पुत्र आपके किंकर हैं उनके साथ हमें भी भगवान के चरणों में अर्पित कीजिए | अब आप और विलम्ब न कर इन  रिद्धियों व् सिद्धियों को साथ लिए प्रभु के चरणों की ओर प्रस्थान करें | 

श्रुत सुत बचन सुबाहु मन भयउ हर्ष अति भारि  । 
बीर बलि बलिहार अस , गदगद गदन उचारि ॥ 
अपने सुपुत्रों के इन वचनों को सुनकर राजा सुबाहु के मन-मानस में अपार हर्ष हुवा अपने वीर बलवान पुत्रों पर न्योछावर होकर फिर उन्होंने ऐसे गदगद वचन कहे --

सोमवार,०२ मार्च,२०१५                                                                                                  

चँवर  ध्वज बर बाजि सुसाजे । बीर बंत  रन साज समाजे ॥ 
गहे कर अजुध बिबध प्रकारे । तुम्ह सबहि रथ घेरा घारे ॥ 
तुम सब वीर वंत समस्त सैन्य सामग्रियों सहित  ध्वजा चँवरादि से सुशोभित अश्व के साथ विविध प्रकार के अस्त्र-शस्त्र व्  रथों से घिरकर 

साजि राज गज सब ले लइहौ ।बहुरि मैं सत्रुहन पहि जइहौ ॥ 
कहत सतत अहिपत भगवाना ।सुबाहु कही बत देइ  काना ॥ 
सुसज्जित राज वाह्य आदि सब ले आओ तत्पश्चात में शत्रुध्न के पास प्रस्थान करूंगा | भगवान शेष जी सतत रूप से कहते हैं -- मुने ! सुबाहु के कहे वचनों को ध्यानपूर्वक सुनकर -

बिचित्र दमन सुकेतु सरि धीरा । अन्यानै समर सूर बीरा ॥ 
प्रजा पालक अग्यानुहारे । गयउ सहरषित नगर पँवारे ॥ 
और उन्हें सिरोधार्य कर विचित्र, दमन, सुकेतु आदि अन्यान्य शूरवीरों ने प्रजा पालक की आज्ञा का अनुशरण करते हुवे युद्ध-भूमि से प्रसन्नतापूर्वक  राजधानी को गए | 

पयस मयूखी बदन मनोहर । रजत चंवर बर जोगित तापर ॥  
सुबर्नमय पत्रक लक लँकृते । अक्छत कृत तिलक लषन सहिते॥ 
जिसका मुखचन्द्रमा के समान मनोहर था, उसपर वह रजतमयी चंवर से युक्त था | अक्षत कृत तिलक चिन्ह सहित स्वर्णमयी पत्रिका से अलंकृत जिसका मस्तक था | 

चपल चरन स्याम करन,मनिसर माल सँजोह  । 
हय कर किरन पुंज धरे आनि प्रजा पति सोंह  ॥ 
जिसके कान श्याम वर्ण के थे ,जिसकी ग्रीवा हीरक माला से सुशोभित थी उस चपल चरणी अश्व की किरण पुंज को धारण किए फिर वे अपने महाराज के समक्ष उपस्थित हुवे | 

मंगलवार, ०३ मार्च,२०१५                                                                                                

बीरभदर जब सम्मुख  देखे । सुबाहु मन भा  हर्ष बिसेखे ॥ 
दुहु सपूत  भट भ्रात प्रसंगे । सकल साज सँजोउ लए संगे ॥ 
मेधीय अश्व को अपने सम्मुख देखकर सुबाहु को मन में विशेष हर्ष हुवा |  दोनों सुपुत्र, सैनिकों व् अपने बंधू-बांधवों के प्रसंग समस्त धन-वैभव को साथ लिए -

चले पयादिक पंथ अधीसा । अबनत नयन बिनय बत  सीसा ॥ 
सत्रुहनहि पदक पुर अस धूरे । भोर भूरे जस साँझ बहुरे ॥ 
फिर वह  विनीत नेत्रों व् विनम्र भाव से भगवद पंथ पर चल पड़े | तदनन्तर शत्रुध्न के पादपुर के निकट ऐसे पहुंचे जैसे कोई प्रात का भुला हो और संध्या को लौट रहा हो | 

जीवन साधन छन छबि जाने । तासों अनुरति दुःख गति माने ।। 
जोइ नसावनि पथ ले गवने । सो धन सम्पद् सहुँ  लए अवने ॥ 
महाराज ने जीवन और उसके सुख-साधनों को क्षणभंगुर  जानकर उससे होने वाली आसक्ति को  दुःख का कारण माना | जो धन-सम्पति विनाश के मार्ग की और ले जाती है उसका सदुपयोग करने के हेतु उसे वह साथ ले आए | 

सत्रुहन नियरावत का देखे । बरे बपुरधर बरन बिसेखे ॥ 
पीत बसन बल बल्गत बासे । पटकनिया उपपंखि निबासे || 
शत्रुध्न के निकट जाकर वह क्या कि शत्रुघ्नजी की देह विशेष वर्ण की है जो बल पड़े पीतम वस्त्र से घिरी है कन्धों पर पीतम पटका सुशोभित हैं |  

भरे भेष भुज सिखर बिसाला । हरिद पलासिक लावनि लाला ॥ 
कूल  कलित कल खंकन बाजे । मनियारि मंजरी बिराजे ॥ 
उनकी विशाल भुजांतरों पर पलास के समान लाल-हरे वस्त्र-खंड अपना लावण्य बिखेर रहे हैं जिसके कगारों में मञ्जुलित मंजरियों पर विराजित छुद्र-घंटियां मधुर ध्वनि कर रही थी | 

उज्जबर छतर छाँउकर सोहि ।  बीरोचित प्रभा पलुहन होहि  ॥ 
चतुरंगिनि घन  गगन पताका । किए निहतेज  बार एक ताका ॥ 
उनका शीश श्वेत छत्र छाया से सुशोभित था उसपर वीरोचित दीप्ति उदीप्त हो रही थी  | गगन में पताकाएं लहराती सघन चतुरंगिणी सेना उनके साथ थी जो अपनी एक दृष्टि मात्र से शत्रु को निश्तेज करने वाली थी | 

रहँ भट  तीरहि तीर धीमंत सुमति सँग डटे । 
पूछ रहे महबीर श्री राम कथा बारता, ॥  
तीर-तीर पर सैनिक उपस्थित थे जिसके साथ धामंत सचिव शत्रु की प्रतीक्षा में डटे हुवे थे, महावीर हनुमान  उनसे भगवान श्र्री राम की कथा वार्ता पूछ रहे थे | 

बुधवार, ०४ मार्च, २०१५                                                                                                            

सत्रुहन कुल दीपक सम लस्यो ।कुल प्रताप द्युतिस सम बस्यो ॥ 
बिलोकत बीर बलि बाँकुर पुर । भय आपहि तब होत भयातुर ॥ 
शत्रुध्न वहां रघु कुल दीपक के समान सुशोभित हो रहे थे जिसमें रघु कुल के प्रताप की छटा बसी हुई थी | जब वह शूर-वीरों की दृष्टि करते तब उनका सामना कर स्वयं भय भी भय से आक्रान्त हो उठती | 

दरसत तिन्ह सुत भ्रात सहिता ।सुबाहु भयउ  रन रोष रहिता ॥ 
जपत अधर रघुबरहि नामा ।परस  चरन पुनि करे प्रनामा ॥ 
उन्हें पुत्र व् बंधू-बांधवों के सहित देखकर सुबाहु यौद्धिक रोष से रहित हो गए | अधरों से भगवान श्री राम का ही जाप करते हुवे उन्होंने फिर उनके चरण स्पर्श कर प्रणाम अर्पित किया | 

पाए जबहि रिपुहंत समीपा । हर्षित होइ गयउ अधीपा ॥ 
बानिन भाव भगति रस बोरे । धन्य धन्य मैं कहि कर जोरे ॥ 
शत्रुध्न का सामीप्य प्राप्तकर राजा सुबाहु अत्यंत हर्षित हुवे |  वाणी को भाव-भक्ति के रस में डूबो कर कहा : - 'वीरवर ! में धन्य हो गया |'

 तेहि समउ मन भयउ बिरागा |  रघुबरहि चिंतन माहि लागा | 
बिलखत रिपुहु हिती सम बाढ़े ।  रामानुज उठि आसन छाँड़े॥
उस समय उनका मन जैसे वैराग्य को प्राप्त होकर एक मात्र रघुवर के चिंतन में ही लगा था | शत्रु को हिताकांक्षी के सदृश्य बढ़ते देखकर रामानुज शत्रुध्न आसन परिहारते उठ खड़े हुवे | 

मेलिहि सब सहुँ बाहु पसारे ।मुदित भेँट सब  लेइ सकारे ॥ 
और सबसे भुजा पसारकर मिले तथा राजा सुबाहु की भेंट को प्रसन्नचित होकर स्वीकार किया | 

पलक पयस पखारी के पूजत पद भल भाँति । 
सर्बस अरपन करतेउ, छाए बदन कल काँति ॥ 
पलकों के अश्रु बिंदुओं से शत्रुध्न के चरणों का भली प्रकार से पूजन किया | सर्वस्व अर्पण करते समय उनके मुख मंडल पर अलौकिक कांति व्याप्त हो रही थी | 

बृहस्पतिवार,०५ मार्च,२०१५                                                                                                 

गदगद गिरा पेम रस साने । कहत कोमली करुन निधाने ॥ 
जो पद जग अभिबन्दित  होंही । मिले भाग सो परसन मोही ॥ 
अपनी गदगद वाणी को प्रेमरस में भीगा कर फिर उन्होंने कोमलता से कहा -- 'करुणानिधे ! जो चरण जगदाभिवंदित है सौभाग्यवश आज मुझे उनका स्पर्श प्राप्त हुवा | 

तरसहि पावस पुरी पँवारे । अहो भाग तव चरन पधारे ॥ 
मोर सुत दमन बयस न सोधा ।प्रभो  अजहु सो भयउ अबोधा ॥ 
इस नगर  के द्वार पावस के लिए तरस गए थे अहो भाग्य ! आपके चरण पधार गए ( अब पावस दूर नहीं है यह हराभरा हो जाएगा  ) | स्वामिन ! मेरा पुत्र दमन वयस्कता को प्राप्त नहीं हुवा है इस हेतु वह अभी अबोध है | 

मम सुत बालक आपु सयाने । बाँधे बाजि तिन्ह छम दाने ॥ 
जो सब देवन्हि देवल हारा  ।जग सर्जत पालत संहारा ॥ 
मेरा पुत्र बालक और आप परिपक्व हैं आपके अश्व को बांधने की उसकी धृष्टता को क्षमा करें | जो सम्पूर्ण देवताओं के भी देवता हैं, जो जगत का सृजन, पालन और संहार करने वाले हैं | 

जान बिनु रघु बंस मनि  नामा । कौतुकी करत किए एहि कामा । 
सम्पन भा राजहि प्रति अंगा | बढ़ी चढ़ी बहु चमि चतुरंगा॥ 
रघु वंश के मणि श्रीरामचन्द्र जी के नाम से अनभिज्ञ  है उसने कौतुक  वश  यह अनीतिपूर्ण कार्य किया | हमारे राज्य के प्रत्येक अंग ( स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, कोष, दुर्ग, बल, सुहृदय ) समृद्धशाली है | सैनिकों व् सैन्य सामग्रियों से संपन्न चतुरंगिणी सेना है | 

भरे पुरे एहि राज के, अहैं भूति जो कोइ । 
मो सहित मोर सुत भ्रात,सब आपहि के होइ ॥  
इस प्रभुत -संपन्न राज्य की जो भी प्रभुता है वह आपकी है | मेरे साथ मेरे ये पुत्र व् बंधू- बांधव भी आप ही के हैं | 

शुक्रवार,०६ मार्च, २०१५                                                                                                       

कहै सुबाहु पुनि चरन गहि के । श्री राम स्वामि हम सबहि के ।
बिभो अग्या मैं सिरौ धरिहउँ । तुहरे मुख के कहि सब करिहउँ ॥ 
सुबाहु ने पुनश्च चरण पकड़ कर कहा -- 'भगवान रामचंद्र जी हम सबके स्वामी हैं मैं उन विभो की आज्ञा सिरोधार्य कर आपके मुख से कहे प्रत्येक वचन का पालन करूंगा | 

मोरे दए सब भेंट सकारौ । सुफल करत तिन्हनि उपकारौ ॥ 
सिय पिय पुरइन चरन रमन्ता । अहइँ कहाँ  मधुकर हनुमंता ॥ 
मेरे द्वारा प्रदान किए गए इन उपहार को स्वीकार्य कर इन्हें सफल बनाइये और हमें उपकृत कीजिए | माता सीता के पदुम चरणों में जिनकी अनुरक्ति है वह मधुकर स्वरूप हनुमंत कहाँ हैं ?

प्रभु दरसन अब बेर न होंही  । तासु कृपा सों मेलिहि मोही ॥ 
तिन्ह अवनि का का नहि मेले । साधु सुबुध मेलिहि जो हेले ॥
भगवान श्रीराम  के दर्शन में अब विलम्ब नहीं है उनकी कृपा से वह मुझे प्राप्त होने वाले हैं | साधू और सुबुध जनों के मेल-मिलाप से इस धरती पर क्या- क्या नहीं मिल जाता | 

 संत प्रसादु मैं लेइ पारा । होइहि अजहुँ  श्रापु उद्धारा ॥ 
जिन्ह भगवन के जसो गाना । कहिहि सुनिहि नित संत सुजाना ॥ 
मैं मूढ़ था; संतों का प्रसाद मुझे प्राप्त हुवा आज मेरा ब्रह्मश्राप से उद्धार हुवा है | संत-समाज जिस भगवान का यशोगान कहते व् सुनते हैं,

मोरे दरपन लोचना तिनके दरसन जोहि । 
सो छबि मंगल मूरती, अंतर मन थिर  होहि ।।   
मेरे लोचन दर्पण में जिनके  दर्शन का संयोग हुवा, मंगल मूर्ति स्वरूप वह छवि मेरे अंतर्मन में स्थापित हो गई है |                                  
रविवार , ०८  मार्च,२०१५                                                                                          

बितिहि बयस प्रभु दरस बिछोही । सेष माहि कस दरसन होहीं । 
परसत जिनके चरन धूलिका । मुनि पतिनिहि  रूप भयउ सिलिका ॥ 
प्रभु दर्शन के वियों में में अधिकाधिक अवस्था व्यतीत हो गई जो शेष है उसमें प्रभु के दर्शन हों भी तो कैसे ? जिनके चरण-धूलि का स्पर्श कर पाहन शिला भी मुनि पत्नी में परिवर्तित हो गई | 

जो जोधिक प्रभु बदन लखाइहि । जुझनरत सो परम गति पाइहि ॥ 
जो रसना प्रभु  नाउ पुकारी । होइहि सोइ गति के अधिकारी ॥
जो योद्धा युद्ध में उनके मुख का अवलोकन करते हैं वह परम गति को प्राप्त होते  है | जिनकी  जिह्वा राम नाम का आह्वान करती हैं वह भी उसी गति के अधिकारी होते  है | 

जिन्हनि चिंतहि नित जति जोगी । पद अनुरत जत मनस निजोगी ॥ 
धन्य धन्य सो अबध निबासी । धन्य धन्य सो सकल सकासी ॥ 
 यति-योगीजन  जिनका नित्य ही चिंतन करते हैं उन भगवान के चरणों में अनुरक्ति में जो अपने मन को नियोजित करते हैं वह अयोध्या निवासी धन्य है और उनके समान वह  सभी लोग भी धन्य हैं | 

जो बिभु बदन पदुम कर चिन्हे ।लोचन पुट  दरसन रस लिन्हे ॥ 
पुनि सत्रुहन अस बचन कहेऊ । नृप तुम बिरधा बयस गहेऊ ॥ 
जो अपने लोचन पुटों से प्रभु वदनारविंद का लक्ष्य कर उनके दर्शन रूपी मकरंद का पान करते हैं | ' शत्रुध्न जी ने कहा -- 'राजन ! आप वृद्धावस्था को प्राप्त हैं, 

एहि हुँत तुअ श्रीराम सहुँ, पूजनीअ मम सोहि  । 
करे समर्पन आपही  तुहरे बढ़पन होहि ॥ 
श्रीराम के समान ही आप भी मेरे पूज्य हैं  | ये आपका बड़प्पन है कि आपने सर्वस्व समर्पण किया | 
सोमवार , ०९  मार्च, २०१५                                                                                                

होहि जग सों ए राज अनूपा। तुहरे भू के तुअहिहु भूपा ॥ 
छतरी के करतब अस  होही । किए उपनत रन अवसरु ओही ॥ 
यह राज्य जगत से अनुपम है यह राज भूमि आपकी है एतएव इसके भर्तार भी आप ही हैं | क्षत्रिय का कर्त्तव्य ही ऐसा है कि वह युद्ध के अवसर उपस्थित कर देता है | 

एहि धन सम्पद  लेइ बहोरै । अस कह सत्रुहन  दुइ कर जोरै ॥ 
अरु कहि एहि सब सैनी साजू । सँग महि जाइ  मोर हे राजू ॥ 
भेंट स्वरूप यह धन संपत्ति आप लौटा लिए जाइये ऐसा कहकर शत्रुध्न हाथ जोड़ लिए और साथ में कहा -- ' हे राजन ! यह सब सैन्य समुदाय  मेरे साथ चले | 

होइहि सैन समागम तोरे ।  तिनके बल बाढ़िहि बल मोरे ॥ 
हिती बचन  सुधि सत्रुहन जी के । सुंबाहु मन लागिहि बहु नीके ॥ 
आपकी सेना का यदि समागम होगा तब इसके बल से मेरी सेना का बल और अधिक बढ़ेगा   | शत्रुध्न के ये हितार्थ- बचन राजा सुबाहु के मन को बहुंत ही भले लगे | 

निज तनुज राजु तिलक धराई । जन पालक कर भार गहाई ॥ 
बहुरि महारथि संग घेराए । दाह करन सुत समर भू आए ॥ 
अपने पुत्र को राज्य पर अभिषिक्त कर और उसे उसकी बागडोर सौंप कर फिर जन पालक महारथियों से घिरकर वीरगति को प्राप्त अपने पुत्र का अंतिम संस्कार करने रण भूमि आए  | 

सुत कर किरिया करम के आरत दिरिस बिलोक । 
नयन भयउ गगन बरखन छाए रहे घन सोक ॥ 
पुत्र की विधिपूरित क्रियाकर्म के आर्त दृश्य को देखकर उनके गगन रूपी नेत्रों को बरसाने केलिए शोक के घन आच्छादित हो गए | 

मंगलवार, १० मार्च, २०१५                                                                                                

पलकनि पटल जल बिंदु झारै । रघुबर सुमिरन सोष निबारै ।  
सतत सुरति सब सोक दूराए । बहोरि सकल रन साज सजाए ॥ 
पालक पटल जल बुँदे की जब झड़ी लगा दी तब रघुवर के ध्यान  ने उन बूंदों को अवशोषित कर लिया व् निरंतर के स्मरण ने उन्हें शोक मुक्त कर दिया | तदनन्तर राजा सुबाहु सभी सैन्य-सामग्री सुसज्जित 

ले चतुरंगी  सैन बिसाला । रामानुज पहि आए भुआला ॥ 
गहि बल दल गंजन जब देखे । बाजि रच्छन गमन हुँत लेखे ॥ 
विशाल चतुरंगिणी सेना लिए रामानुज शत्रुध्न के पास आए | उनकी सेना को बलवान वीरवंत को देख शत्रुध्न ने घोड़े की रक्षा के लिए जाने का विचार किया | 

समर्पिइत सुबाहु कर छाँड़े ।तासु पाछे  सेन पुनि बाड़े ॥ 
 बढे सत्रुहन सहित सब रायो |  पुनि हय बामाबरत भरमायो  || 
सर्वस्व समर्पयिता राजा सुबाहु के द्वारा छोडे जाने पर उसके पीछे श्रीराम चंद्र की सेना भी आगे बढ़ी  | सभी राजाओं के साथ शत्रुध्न भी उनके साथ बढे ततपश्चात वह अश्व वामावर्त परिक्रमा करता 

प्राची दिसि के देस घनेरे । सब कहुँ गंतत चरनन फेरे ॥ 
तहँ रहि  भूरिहि संत बिबेका । रजै राज जग एक ते ऐका ॥ 
 पूर्व दिशा के अनेकानेक देशों के  कोने -कोने में गया  लौट चला | उन सभी देशों में विवेकशील संतों की भरमार थी तथा वहां जगत के एक से एक राजाओं का राज्य था | 
  बर बर समर सूर संग पूजित रहि  सब नाहु ।
किरन गहन जुग बाहु बल गहे रहे नहि  काहु ॥  
वे सब भूपाल  बड़े बड़े युद्ध वीरों के द्वारा पूजित थे किन्तु उस अश्व के किरण को ग्राह्य करने जितना बल किसी में नहीं था  | 

बुधवार, ११   मार्च,२०१५                                                                                                   

को निज राज भूति दानए । को निज राजित राज प्रदानए ॥ 
को निज राज सिहासन देई । बिबिध बिधि अस चरन सब सेईं ॥ 
किसी ने अपनी राज्य विभूति का दान किया किसी ने अपना महान राज्य ही प्रदान कर दिया तो किसी ने अपना सिंहासन दे दिया इस प्रकार भिन्न-भिन्न विधि से सबने रघुनाथ के चरणों की सेवा की | 

रुचत रवन रत सुनत मुनीसा । कहत बार्ता सतत अहीसा ।। 
मुनिबर पवन पाँखि अरोहित । सुबरन पतिका संग सुसोहित ॥ 
इस सतत वार्ता को रूचिपूर्वक श्रवण करते मुनिवर वात्स्यायन से भगवान शेष ने कहा-- हे मुनिवर ! तब पवन पखों में आरूढ़ होकर स्वर्णपत्रिका से सुशोभित -
पूरब कथित  देसु  भमराए । तेजसी तुरग तेजपुर आए ॥ 
धरम धुजा धर  धीरु प्रसन्ता । रहे दयामय तहँ के कंता ॥ 
वह तेजस्वी तुरंग पूर्वोक्त देशों का भ्रमण कर तेजपुर आया, वहां के  राजा  दयामय, धीरप्रशान्त तथा  धर्म ध्वजा को धारण करने वाले थे | 

सदा साँच  के चरन  जुहारै । किए न्याय तो धर्म अधारै ॥ 
जोइ अनी अरि नगरि नसानी । रमनीक नगरि सों  निकसानी ॥ 
वह सदैव सत्य की ही पूजा किया करते थे और धर्माधारित न्याय करते थे | शत्रु के नगर का विध्वंश करने वाली शत्रुध्न की सेना उस रमणीय  नगर से होकर निकली | 

 बिचित्र मनि कृत परकोट रचाए । भीत नागर जन बसत सुहाए ॥ 
भगवन के चरनन्हि रति राखै ।पेम पूरित  सबहि मन लाखे ॥ 
 विचित्र मणि से रचयित उसका  परकोट था  जिसके अंतस में निवास करते हुवे नागरिक सुहावने प्रतीत हो रहे थे | इनकी अनुरक्ति एक मात्र भगवान् के चरणों में इनकी अनुरक्ति थी सबका मन भगवद प्रेम से परिपूर्ण लक्षित हो रहा था  | 

सत्रुहन दृग दरसत रहे देवल चारिहि पास, । 
खनखन खंकन गुँज रहे ,बास रहे सुख बास ॥ 

बृहस्पतिवार, १२ मार्च, २०१५                                                                                                

 सिउ संभु कर  जटा  निवासिनी । सुर तरंगिनी पबित पावनी ॥ 
तीर तीर  तहँ बहत सुहाई |  पौर पौर पथ पथ पबिताई || 
शिव शंभु की जटाओं में निवास करने वाली पवित्र पावन गंगा तटवर्ती क्षेत्रों बहती हुई सुहावनी प्रतीत हो रही थी | पवित्र गंगा की उपस्थिति से उस नगरी के द्वार-द्वार और पंथ-पंथ भी पवित्र हो गए थे | 

रिषि  महर्षि मनीषि समुदाई । तिनके कूल सुरगति पाईं ॥ 
हबिरु भवन तहँ घर घर होईं ।ह्वन योजन करें सब कोई ॥ 
ऋषि- महर्षियों व् मुनि- मनीषियों का समाज उनके तट पर देवगति को प्राप्त होते हैं | तेजपुर के प्रत्येक निवास में हवन-कुंड निर्मित था वहां के निवासियों की हवन  करने में प्रवृत्त रहते थे | 

हवन धूम घन पदबी पावै  । दूषन दूषित अनल बुझावै ॥
ऐसो  पबित पुरी  जब पेखे । सत्रुहन सुमति सन पूछ देखे ॥ 
अग्निहोत्र का धुंआ वहां घन की पदवी को प्राप्त कर वायु के दोषों को समाप्त कर दूषित अग्नि को शांत करता था | ऐसी पवित्र नगरी को देखकर शत्रुध्न ने सुमति से प्रश्न किया --

सौं नागर जो देइ दिखाईं । तिनके दरसन आनँद दाई ॥ 
मंजुल मृदुल मुख जासु महि के । सो नीक नगरि अहहि केहि के ॥ 
मेरे समक्ष जो नगर दिखाई दे रहा है उसका दर्शन अतिशय आनंददायी है | जिसकी भूमि का मुख इतना  मृदुल और मंजुल है, वह सुन्दर नगरी किस भाग्यवान की है ? 

कहत सुमति महानुभाव, बुद्धि बल के निधान ।  
इहँ के राउ रहें सदा,गहे चरन भगवान ।।   
तब सुमति ने कहा -- महानुभाव ! यहाँ के राजा बुद्धि व् बल के निधाता हैं उनकी सदैव भगवद चरणों में ही भक्ति रहती है  शुक्रवार, १३ मार्च, २०१५                                                                                                      

कोमल हिय हरि सुरति सँजोई । अबिरल भगति तासु पद होई ॥ 
ताहि  कथा सुनीहि जो कोई । ब्रम्ह हंत सों मोचित होईं ॥ 
अपने कोमल ह्रदय में हरि की स्मृति संजोए वह भगवान की अविरल भक्ति को प्राप्त हैं | उनकी कथा को जो कोई श्रवण करता है वह ब्रह्म-ह्त्या जैसे पाप से उन्मोचित हो जाता है | 

राउ नाउ जहँ लग मैं जाना । होइब श्री मान सत्यबाना ।। 
सुबुधजन  माहि परम ग्यानिहि ।  जागइक के सब अंग जानिहि ॥ 
जहाँ तक मुझे ज्ञात है उस राजा का नाम श्रीमान सत्यवान है | सुबुध जनों के वर्गमें वे परम ग्यानी है वह यज्ञ के सभी अंग जानते हैं | 


महोदय इहाँ पूरब काला । रहे ऋतम्भर नाउ भुआला ।। 
अस तौ तिनकी बहु तिय होइहि। तथापि रहे न जनिमन कोई ॥ 
महोदय ! पूर्वकाल में यहाँ ऋतंभर नाम के एक राजा हुवे थे | वैसे तो उनकी बहुंत सी पत्नियां थीं तथापि वे निसंतान थे | 

को सुभागिनि गर्भ न गाही । पलाऊ रहेउ को सुत नाही ॥ 
एक बार सुभाग सों  दुआरे ।  देबबस मुनि जबालि पधारे ॥ 
किसी भी सौभाग्यवती ने गर्भ धारण नहीं किया एतवा उनका गोद पुत्र से विहीन थी |देव वश उनके यहाँ मुनि जाबालि का आगमन हुवा | 
  अर्थ धरम कामादि प्रदेसे । समउ अनुहर सेवैं नरेसे ॥ 
होतअगुसर चरन सिरु नायउ । निज सुख दुःख के मुनिरु सुनायउ ॥ 
अर्थ धर्म काम आदि प्रदेशों का समयानुसार सेवन करने वाले उस नरेश ने मुनि का स्वागत करते हुवे उन्हें नट मस्तक होकर प्रणाम किया और अपने सुख-दुःख की वार्ता के पश्चात 

पूत कामना परगसत  पूछे जनित उपाए । 
महिपत मन गलानि जान,मुनि बहु बिधि समुझाए ॥ 
पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रकट कर उसके उत्पन्न होने का उपाय पूछने लगे |महिपत के मन में ग्लानि को भान कर मुनि ने उन्हें बहुंत प्रकार से समझाया | 

शनिवार, १४ मार्च, २०१५                                                                                                    

 प्रजापति पुनि पुनि पूछ देखे । कोउ त जुगति मुनि मोहि लेखे ॥ 
जात जनित जो होए सहाई ।  कहौ कृपानिधि को उपाई ॥ 
किन्तु प्रजापति वारंवार प्रश्न करते हुवे कहते - मुनिवर ! कोई तो युक्ति बताइये, कृपानिधि ! ऐसा कोई उपाय बुझाइये जो पुत्र प्राप्ति में सहायक हो | 

दिष्ट बिधा जिन करिए प्रजोगे । मम कुल तरु नव साख सँजोगे ।। 
सुनि अस मुनि एहि बचन उचारे । होही सिद्ध सुत काम तुहारे ॥ 
उस निर्दिष्ट विधा का प्रयोग करने पर मेरा वंश वृक्ष नवीन शाखाओं से युक्त हो | ऐसा सुनकर मुनि बोले -- तुम्हारी पुत्र कॉमन अवश्य पूर्ण होगी | 

जननि जनक जो संतति चाही । त्रिबिध उपाउ तासु हुँत आहीं ॥ 
गिरि पति श्रीधर एक गौ होइहि । तीनि कृपाकर जिन सिरु जोइहि ॥ 
संतान की इच्छा रखने वाले मात-पिता के लिए संतानोत्पत्ति के ये त्रिविध उपाय है | भगवान शिव की, भगवान विष्णु की और एक गौमाता इन तीनों की कृपा जिसके शीश पर होती हैं | 

ऐसेउ कृपा जुगति प्रजोगिहि  । सो अवसिहि संतति सुख भोगिहि  ॥ 
भयउ उपजुगत तव हुँत राजन । देऊ सरूपा गउ के पूजन ॥ 
जो ऐसी कृपा युक्ति का प्रयोग करता है वह अवश्य ही संतान सुख को भोगता है | हे राजन ! तुम्हारे लिए यही उपाय उपयुक्त है कि तुम नित्य देव स्वरूपा गौमाता का पूजन करो | 

गौ मात के सकल अंग  सुर के होत निकाए । 
एही कारन तासु पूजन, संतति के बर दाए ॥ 
गौ माता के समस्त अंगों में देवताओं का निवास होता है इस कारण उसका पूजन संतति का वरदाता है | 

रविवार १५ मार्च, २०१५                                                                                                 

चतुस्तनिहि पूजन परितोखा । देऊ पितन  सब बिधि संतोखा॥  
ब्रताचरन जो गौ गुन गावै । नेम सहित नित भोजन दावे ॥ 
चतुःस्तनि का पूजन द्वारा परितोषण देवताओं व् पितृ जनों को सभी प्रकार से तुष्टि प्रदान करता है | व्रत का पालन करते हुवे जो गौ का गुणगान करता है नियम पूर्वक उसे भोजन देता है | 

ऐसेउ सत्कर्म के कारन । होयब  सकल मनोरथ पूरन ||  
तिसित गौ जो  भवन बँधइहै । ऋतुमती कनिआँ बिनहि बिहइहै ॥ 
ऐसे सत्य धरम अनुष्ठान के कारण उसके समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं | यदि गृह में तृषालु गौ बंधी रहे, रजस्वला कन्या अविवाहित हो,

देंवन्हिबिग्रह चढ़े चढ़ावा ।दिवान्तर सों गति नहि पावा ॥ 
एहै करनी अस दूषन आनी । किए सत्कर्म सब धर्म नसानी ॥ 
देवताओं के विग्रह पर चढ़ा हुवा निर्माल्य  दिवस के अंतराल पर शुभ गति को प्राप्त न हो तब इन सब करनी से उत्पन्न दोष पूर्व के किए धर्म-कर्म को नष्ट कर देती है | 

चरत चरान जोइ अबरोधे । जानपनी हो हो कि अबोधे ॥ 
तासु पितर जन जोइ पद पाए । एहि करनी ओहि संग गिराए ॥ 
जो कोई गौचर भूमि में जानबूझ कर अथवा अन्जाने में अवरोध उत्पन्न करता है उसके पूर्वज  जिस पद अथवा  योनि को प्राप्त हुवे होते हैं ऐसी करनी से वे पतोन्मुखी  होकर निकृष्ट पद अथवा योनि में चले जाते हैं | 

को कुबुद्धि कर धरे लकौटी । जान गँवारुहु मारए सौंटी ॥ 
ऐसेउ पापक बिनहि हाथा । परि जम पुर निज पातक साथा ॥ 
कोई हतबुद्धि हाथ में सौंटी लिए गौ माता को असभ्य  समझ कर प्रहार करता है वह पापी ऐसे पाप के साथ बिना हाथ के ही नरक के द्वार पर पहुँच जाता है | 

को कंठी पासा कंटक डाँसा पीठ करन चरन भरे ।  
करुनामई पर करुना करत तिन्हनि हरत पीरा हरे ॥  
स्त्रबत  रुधिरु अवसोषत स्नात  मात जिअ  साँत करे।  
रोगिनी गउ मात औषधि दात घात  घाव जो तन धरे ॥ 
यदि कोई  कंठ से कंटकों का  तथा पीठिका, कर्ण व् चरणों में भरे डॉंसों का हरण कर करुणामई माता पर करुणा करते हुवे उसकी पीड़ा का हरण करता है साथ ही स्त्रावित होते रुधिर को सुखाकर स्नान आदि क्रिया से  उसे शान्ति व् सुख पहुंचाता है | जो कोई औषधि आदि से रोगी, चोटिल, घाव ग्रहीता गौ माता  का औषधि आदि से उपचार करता है | 

ऐसेउ कृत करम संग तासु पितरु सुख  पाएँ । 
होत  कृतारथ आपने बंसज असीरु दाएँ ॥ 
इस प्रकार के कृतकर्म से उस कर्ता के पूर्वज सुख को प्राप्त होते हैं फिर वह कृतार्थ होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं | 



















   
























  




 





Wednesday 18 February 2015

----- ॥ टिप्पणी १ ॥ -----

ऐसा करते हैं देश के करदाता कर न दे कर प्राइम मिनिस्टर व् उनके मिनिस्टरों को कच्छे बंडी, चोगे,  कुर्ते चादर उपहार में दे देते हैं फिर वो उसका उपयोग कर बोली लगाएंगे, दस टके का कच्छा दो सौ में बिकेगा..... देश का कर कोष भर जाएगा और आयकर विभाग की भी आवश्यकता नहीं होगी है ना.....

हम लोग न नेता-मंत्रियों को ऐसेई चौपट राजा नहीं कहते..... 
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राजू : -- मिडिया के केमरे भी ऐसेई दिखते हैं..... इस विधि से इन नेताओं को मारना कितना सरल 'था'.....
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दिल्ली से उसका जी डी पी पूछो तो कहती है जी डी पी.....!!! वो क्या होता है.....? 
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राजू : - मास्टर जी! ये इतनी सारी गाड्डियों में भर के क्या ले गए थे..? 
"शिष्टाचार और ईमानदारी "
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सत्ता के लड्डू को ललहे के जैसे खाने से शुन्य वाला रोग हो जाता है.....
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सम्प्रदाए किसे कहते हैं.....? 
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शिखर पे चढ़ के  ईमानदार को पहले सबसे ज्यादा बेईमान से मिलना चाहिए सबसे ज्यादा ईमानदार से नहीं.....
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अर्थात देश की अर्थ व्यवस्था अब ईंधन पर निर्भर  हो गई और ईंधन अरब के शाहों के पास है.....  ई बिजनेस किलास किसको बोलते हैं तनिक हमें भी तो बताइये.....और उ केटली किलास.....
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यदि हैंडिल वाले पिलासटिक के थैले प्रदूषण करते हैं तो बिस्कुट-भुजिया वाले क्या करते हैं.....
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ये सभी हज़ारी-कमान के छूटे हुवे तीर हैं.....
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प्रेम तो एक मंत्री जी नै किया था ओर किसी नए थोड़े ही किया था,
प्रेम सै तो एक मंत्री जी के बालक हुवे थे औरा के तो पूंची बाँध बांध के हुवे थे.....
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महादलित अपने इस लड़के के लिए लड़की काहे नहीं देखते, बिहा के बाद ही सही इसको आटे-दाल के भाव तो पता चले.....
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कमाल है ! ये बम दीवाली में आया और बिना फूटे ही चला गया.....
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गुंडों का अउ फूलिस का गठबंधन कोन्हु नई बात है का.....
इस गाने में ये वाला सुर नहीं लगेगा.....

एक बात तो बता तू ट्रेकटर ही पैदा हुवा था की पहले नैनो होके फिर ट्रेक्टर बन गया
मेरा कर्जा तेर से ज्यादा है कोई और दरवाजा देख.....
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इसको त ऐती-तेती पिला डारे के ही बुता हे काय.....
पुष्प सदैव कोमल ही होता है हम गूँथ कर उसे कठोर बना देते हैं.....
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आतंक का कोई धर्म नहीं होता आतंकी का होता है, आगे का पता नहीं
 माने  की अभी तक तो होता है आगे का पता नहीं.....
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विद्यमान में समाचार पत्र अश्लील सामग्री हो चले हैं बच्चों को इस सामग्री से दूर रखना चाहिए
ये इलेक्ट टॉनिक  मीडिया जो कभी मैक्सी थी ही नहीं मिनी से माइक्रो हो गई है.…. भारतीय समाज की दशा बताती है आजकल..... दिशा भी दिखाती है अब कोई इसको देखे की दिशा को देखें

राजू : -- चौबीस पच्चीस की होगी नई इससे पहले बुलेट की रफ़्तार वाली बुले-टिन थी ये.....
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सभी राष्ट्र इण्डिया वाली  डी बी टी, डी पी टी की पहल योजना चालु कर देते हैं उनके राष्ट्र में कालाबाजारी समाप्त हो जाएगी.....है न.....ये काला-बाजारू की कलाबाजारी है..... 

लूटक लूलू लूमरे दलों के लेखों को चूहे बिल्ले खा जाते हैं.....


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तंबूरा सितार जैसा एक बाजा है जिसमें दो तंतु होते हैं , तानपुरा सितार जैसा बाजा नहीं है वो तम्बूरे जैसा बाजा है.....कदाचित इसमे तीन होते होंगे.....


गोविन्द मेरो है न गोपाल मेरो है, 
आधा .....न…न.…न पूरो माल मेरो है.….  

राजू : -- ले ओर सुण ले परबचन 
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हाँ और बैंक ८००००००० * १००००० इतनी बीमा की रकम कित्त लावेगी.....जब बिम्मे का भरोस्सा नई तो बैंक का के भरोस्सा.....ठन ठन गोपाल हो जाओगो.....
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मिडिया गलफरैंड हो गई प्रधानमंत्री जी की.....ये कितने करोड़ की है.....?
यदि मिडिया बोले भ्रष्टाचार नहीं है तो बोलना नहीं है.....नहीं तो.....!!!!

एक बार दिखाया तो 'ख़ास' हो गए दो चार बार में जाने क्या हो जाएँ.....? ऐसे बनता है महाराज का मंत्री मंडल.....

और फिर वह महाराज कब द किंग आफ इण्डिया बन जाता है पता ही नहीं चलता
मेक इन इण्डिया, साइन इन इण्डिया फिर इनका थीम सांग हो जाता है


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हमारे न एक ठो और रिस्तेदार हैं.....छोडो इन लोगन को चड्डी पहनना हमई लोग सीखाएं हैं.....

भारत में चड्डी पहनना माँ सीखाती है इण्डिया का पता नहीं.....तेरे को किसने सीखाया है.....?  

ऐसे मर्दों को ही माँ  बहन का फर्क पता नहीं होता इनके लिए ये बस औरत हैं ये ही इंडियन हैं जो भ्रूणका भक्षण भी कर लेते हैं.....


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अलीबाबा उदर हैं  होटल बाज इधर-किदर हैं.....
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राजू : - जहां महारानी हो वहां.....
लुगाइयों के जैसे लड़ते हैं लोग.....हैं क्या ये.....?

राजू : - मास्टर जी ! मैं मैं कर रहा है बकरा या बकरी में से कोई एक है..,

" अम्मा तो इसकी अम्मा ही होगी कब तक ख़ैर मनाएगी.....इसका भी वही होना है जो बाकियों का हुवा है.....

हमरे न एक ठो रिस्ते दार हैं वही हवेली वाले, बैंक उन्हें किसान कहता है खेत है केतना बेच दें फिर भी रहते ही हैं पहले धान भी होता था घर भी आता था, अभी भेंट नहीं हुई होता है की नहीं पता नहीं बैंक से ऋण लेते थे अब पता नहीं लेते हैं की नहीं बहुंत बार  बिहा-सिहा के लिए भी लेते थे पढ़ाई-सढ़ाई के लिए भी..... वापस भी कर देते थे.....दुबारा लेने के लिए..... 

वोई तो बताते हैं किसानी वाली बात..... कहते थे अबके अगहन की बुवाई नहीं हुई डेमवा का पानी नहीं मिल रहा.….  

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उस पेसाने-सलंडर को कोई घर की बही न दे..... देस की बही लिखने का काम उसे किसने दे दिया.....
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ऐ कामरस का फेलभर कहानी उदर है इधर नहीं हैं,

और हाँ हमरी तिजोरी ही उस तिजोरी को भरेगी पॉट्टी की तिजोरी से नहीं.....
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"कैसी सेना है ये.....? इसको घूस पैठि को पकड़ने के लिए परमाणु गोले चाहिए"

राजू : -- मास्टर जी !  ये भी इंडियन गोरमेंट के जैसे काम कम करती है और टी बी में फिलिम ज्यादा दिखाती है.....

कैसी सरगम है ये किसी बाजे में बजती है किसी में नहीं..,
सरगम जब सभी बाजों में बजे गाने-बजाने वाला भी कुशल हो बजा हो विश्व तभी सुर में होगा.....
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 " इसको तो किसी सरस्वती सिसु मंदिर में भरती कर देना चाहिए" 

राजू : -- काहे मास्टर जी ? 

 नीति और योजना में अंतर समझाने के लिए .....
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देश काल व परिस्थितियां सत्ता धारी दल के पक्ष में है वह बहुंत कुछ परिवर्तित कर सकती है बहुंत कुछ परिवर्तन के लिए सर्वप्रथम उसे अपना प्रधान मंत्री परिवर्तित करना पड़ेगा और हमें स्वयं को ततपश्चात व्यवस्था स्वत:ही परिवारिति हो जाएगी.....
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जनता ने जिन कारणों से पिछले शासन को पिछला किया अगले उन्हीं कारणों को सिर पे धरे हैं.., 
माई बाप जिस निर्धन को चार सौ रुपय का ईंधन क्रय करने में कठिनाई हो रही है वह अब  एक साथ एक सहस्त्र रुपया कहाँ से लाएगा.....

इनकी तो वही उजड्ड पालिसी है 'खाते खुलवाओ -सेठ बन जाओ'
भई लेखा बही रखने से कोई सेठ  होता है क्या होता हो तो सारा जगत रख ले.....

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क्या करें ! अंतर की दृष्टी और कुछ देखने नहीं देती, भगवान करे ये दस बीस साल और न मरे.....
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ये नेता केवल अपने दल के रत्न होते हैं इन्हें परिणायक-रत्न  कहते हैं । भारत के वास्तविक रत्नों को पुरस्कार  की आवश्यकता नहीं होती.....

अँगरेज यदि वो नहीं लौटाएंगे तो हम इनको छोड़ आएँगे.....
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हमरे छेत्र मा तो यह एक धंधा है, अभी कुछ मंदा है काहे की दरवाहा शिकारी मर गया न.....इसीलिए.....
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श्रीमदपद्म पुराण में सूत जी भारत वर्ष की सीमाओं का वर्णन करते हुवे कहते हैं : -- यवन, कम्बोज,कृघृह,पुलट्य, हूण, पारसिक ( ईरान )  दशमानिक इत्यादि अनेकों विदेशी जनपद हैं.....

प्रचन जनगणना के अनुसार एक जनपद की जनसख्या कितनी होगी.....?
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सत्ताधारी दल अपने नेता व् प्राइम मिनिस्टर को सीमाओं पर  और मतदानों केन्द्रों में चलने वली गोलियों की भाषा अंतर करना समझाएं.....तभी इसे अपने-पराए, पक्ष-विपक्ष, भाव -अभाव, में अंतर समझ आएगा.....
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कौन था वह राष्ट्रद्रोही निर्मोही मंत्री जिसे इस राष्ट्र से अधिक अपनी बेटी प्रिय लगी.....
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'इंडिया' की न्याय व्यवस्था ऐसी ही कि आप आतंकवादी भी क्यों न हों आइये, सॉरी कहिए और फिर अपने काम पर लग जाइए.....

आह ! इतना शोक ! 'इंडिया'में तो मृतक के परिजन को दो चार लाख दे के चलता कर देते हैं  । 

भारतीयों का  बचपन कुपोषित है भूखा है और भारतीय के धन से ही  प्रधान -सेवक इंडियंस के लिए हेलीकॉप्टर की फैक्टरी लगाएंगे.....उजड्ड कहीं के.....

और यह इंडिया पहले प्राइम-मिनिस्टर का डिस्कवर किया हुवा है. 

भारतीय मत देते तो सांसद व् प्रधान-मंत्री को हैं किन्तु जीतते इंडिया  के एम.पी. व् पी. एम. हैं.....भैया ! इस्लाम -इस्लाम खेलना है तो फारस की खाड़ी में जा के खेलो न.....






इनको समांत-अपरान्त की चिंता है, अपने राष्ट्र की नहीं हैं..... 
वेदों के वर्त्तमान रूप के संकलन कर्त्ता कृष्ण-द्वैपायन ( महर्षि व्यास जी ) हैं.....

यह आश्चर्य का विषय है कि प्रथमतस इतनी समृद्ध भाषा संस्कृत का प्रादुर्भाव कैसे हुवा.....?
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लोक राज दुइ तंत्र दुहु बरे बिपरीत रीति । 
एक राजा हित नीति किए दूजी जन हित नीति ।। 
 भावार्थ :-लोक व् राज ये दो तंत्र हैं दोनों की विपरीत रीतियाँ हैं,एक में राजा हित की नीति का तथा दूसरी जन-साधारण के हित की नीतियों का वरण  करती है ॥ लोकतंत्र में देश-निवासी महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि यहन यदि एक मंत्री मर जाए  तो सौ और जनम ले लेते हैं  राज-तंत्र में राजा की सुरक्षा की जाती है कारण यदि राजा सुरक्षित है तो जनता को भी सुरक्षित माना जाता है ॥ 

ये लोकतंत्र भी एक नई शतरंज है.....
यह अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति नहीं है  यह विदेश नीति है और भारत की स्पष्ट नीति नहीं  है  कूट राजतन्त्र में विजय प्राप्त करने के चार उपायों में से एक है यह लोकतंत्र का उपाय नहीं है 
हाँ पहले समझया था वो शरहदों की शतरंज है चुनाव की ट्वंटी- ट्वंटी  
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जब झौंका कोई जुल्फ को हवा देता है..,
तिरे लरज़िशे-लबे-जूँ का पता देता है.....   

इंडिया का विकास - भारत का सत्यानाश 
 ----- ॥ साइनिंग इंडिया का लक्ष्य ॥ -----

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मुट्ठीभर विलासित वंशवादियों के हाथ से यह भारत हिंदुस्तान कहलाता हुवा यमन के हाथों हस्तांरित हो गया, फिर कई आए कई गए अंतत: मुगलों की विलासिता  ( ऐय्याशी ) कारण यह इंडिया कहलाता हुवा अंग्रेजों  के हाथों हस्तारंतरित हो गया । अब यह साइनिंग इंडिया, इनक्रेडिबल इण्डिया कहलाता हुवा कलुष-योनिज के हाथों में है । ऐसी विलासित में पता नहीं अब इसे कौन क्या कहलवाकर हस्तांतरित कर ले.....  


अपवाद को छोड़ दें तो भारत की स्थापत्य कला मुट्ठीभर  यमन के विलासिता का ही परिणाम है । और ये उद्योग मुट्ठीभर अति उच्च धनीवँत की विलासिता का ही परिणाम है सौ दो सौ वर्ष पश्चात जब ऊर्जा के स्त्रोत समाप्त हो जाएंगे तब हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इनपर थूकने जाया करेंगी.....


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हमारे देश में विश्व का सबसे मूल्यवान गृह व् गृहहीन जनता का होना शासकों की औद्योगिक दुर्नीतियों एवं किसानों के शोषण का ही दुष्परिणाम है..... 

इस सायनिंग इंडिया को तो ये भी नहीं कह  सकते कि जब चायवाला प्रधान मंत्री बन सकता है तो कवि क्यों नहीं.....रोड छाप को उठा उठा के प्रधान मंत्री बनाती है ये.....पांच साल बाद किसी ढोर डाँगर को ले आएगी..... 


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राष्ट्र-पति प्रधान-मंत्री से लेकर पार्सद तक धंधा करने के पद हो गए हैं अमीर हो या  फकीर यहाँ से सब अमीर बनकर ही जाते हैं.....दमड़ी आए चमड़ी न जाए.....ये कैसे हो सकता है..... 
------------------------------------------------------------------------------------------------------ भाई ! सिखर पे चड कै  झंडे तो सभी गाड़ गए कोई किम्मे ढंग का करे.....

बात बनने की नहीं है बन के क्या किया उसकी है..... तेरे आगे बीन कौन बजाए..... 


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वंश विरचन एक आनुवांशिक प्रक्रिया है सेवा एक कर्मगत प्रक्रिया है 


भगवान राम इसी वंशवाद की व्युत्पत्ति हैं जिनका नाम ले ले कर ये सभी सत्ता हथियाएँ  है अब इनको इस बंसबाद में बांस आ रही है.....
सिँहासन हथियावन कू  बोले जय जय राम । 


वास्तविकता यह है कि यमनों के हाथ में सत्ता जाने के पश्चात ही भारतीयों को वंश वाद से विरक्ति हो गई ॥ 
हर्यक वंश, शिशु नाग वंश, नन्द वंश, मौर्य वंश,  शुंग वंश, कण्व वंश, आंध्र सत्वाहन,शक राज्य, गुप्तवंश, वर्द्धन वंश, राजपूत वंश,   फ़िर आया महमूद गजनी साथ गुलाम वंश जो तुर्की का शासक था.....


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अब तो प्रत्येक औद्योगिक क्षेत्र विषैले प्रदुषण कारण त्रासदी के क्षेत्र हो चले हैं..... 
विद्यमान समय के भ्रष्टाचारी  वातावरण में व्यक्ति वादिता अथवा राज व्यवस्था की 

 यह व्यक्तिवाद अथवा राज व्यवस्था की स्वेच्छाचारिता  का है केवल एक व्यक्ति के लिए इतने बड़े दुर्ग का निर्माण । वह व्यक्ति फिर भी नहीं रहा किन्तु दुर्ग यहीं रह गया.....

भारत के राष्टपति की गतिविधियों का अवलोकन कर यह प्रतीत होता है जैसे ये राष्ट्-हित हेतु नहीं अपितु विपक्षी दल के हित हेतु प्रयत्ननशील हों.....  
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यदि हम अपना भंडार किसी अड़ोसी-पड़ोसी अथवा चाय वाले पानवाले को सौंपते रहे तो ये उसे विदेशों में रखकर  अथवा किसी को उधारी दे दा कर उसपर अपना कमीशन बना कर  चम्पत हो जाएंगे । पांच वर्ष पश्चात जब गुंडों की सभा बैठेगी, उठाई गिर्रों की कचहरी लगेगी तब ये कहेंगे ये तो 'मैं' ने किया हमने थोड़े किया है..... 

यह व्यक्ति वादिता का एक दोष है.....  
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एक वर्ष में सेना के ऊपर २'२०'०००० लाख करोड़ रूपए व्यय करने वाले भारत-शासन की सत्ताधारी  पार्टियां अमेरिका के राष्ट्रपति से कहती हैं..... भैया भैया हमारे देशद्रोहियों को पाकिस्तान से ला दो न.....एक टुच्चे से संत को पकड़ने में ये तैंतीस करोड़ रूपए व्यय कराती हैं.....
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सभी खैलों का यही हाल है.....

खैल = दल

इन झोला छाप जर्नलिस्टन से कोई बचाए.....

भारत में भाइट हाउस जैसे पांच  सात महल तो ऐसे ही पड़े हैं उनपर कोई थूकता भी नहीं है.....झंडा फहराना चालू कर दो तुम अपने भाइट किले से.....



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लो दर्द उधर वाले सहाबे-आलम को हुवा..,
और बैंक में डिस्को इधर वाले साहबे-आलम कर रहे हैं.....
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 ये केवल प्रशंसा के प्रशंसक हैं.....

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उद्योग जगत, नेता जगत, चित्रपट जगत, जन सामान्य की अति आवश्यकता, विलासिता, व् महति आकंक्षाओं का ही दुष्परिणाम है.....
----- ॥ अज्ञात ॥ -----
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एक ये ही असंत है बाकी तो सारे संत-महात्मा हैं.....बंद करो ये तमाशा.....
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यह कुव्यवस्था का ही परिणाम है कि भारत में मदिरा अघोषित रूप से राष्ट्रिय-पेय घोषित हो गई है.....
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वैदिक काल में देश/समाज को सुचारू रूप से संचालन के लिए वेदों ने चातुरवर्णिक व्यवस्था विहित की गई थी । बुद्धिजीवियों ने  निकृष्ट कर्म करने वालों को कहा ये काम छोड़ दो..... वे नहीं छोड़े..... कालांतर में जब जातियों का वर्गीकरण हुवा तब वही जाति निम्न जाति कहलाई.....

जैसे कि वर्तमान में नेता-अभिनेता जाति निम्न जाति हो गई है.....



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इनको खा के तो अग्नी  देव का भी पेट ख़राब हो जाएगा.....
इसको खा के तो अग्नि  देव का भी पेट ख़राब हो गया होगा....
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यहाँ बिसात बिछ रखी हैं.....दम सूली पर चढ़े हुवे है.....जहाँपनाह उधर किधर ट्वैंटी-ट्वैंटी खेल रहे हैं.....
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यदि इच्छा धारी की इच्छा जाग गई न तो शेष सब अपनी हार की समीक्षा करते हुवे दीक्षा लेने हमारे पास आएंगे.....
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ये लो ! ये येलो न हुवा अल्बर्ट पिंटो हो गया.....
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विचार इधर है धारा उधर है  पानी इधर-उधर है चारा जाने किधर है..,
पक्ष के साक्ष्य चूहे खा जाते हैं, विपक्ष के दीमक..,
 ऐसे चलेंगे ग़रीबों के साथ.....
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कितनी जेलें हैं सरकार के पास पहले गिण लें फिर कनून बनाएं.....
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रै जनता जनार्दन, ये अपनी वाली को तो ले के उड़ गया तेरी वाली को काम बता गया

तू अपने इन पी. अम -सी. अम सालों की नसबंदी क्यूँ नहीं करता.....

बड़ा बड़ाई ना करे, छोटा बहुंत इतराए । 
ज्यों प्यादा फर्जी भया, टेढ़ो टेढ़ो जाए ।। 
----- ॥ संत कबीर ॥ -----
भावार्थ : -- बुद्धिमान आत्म प्रशंसा नहीं करते, किन्तु बुद्धिहीन अभिमानवश इठलाते घूमते हैं । जैसे किसी पैदल को यदि मंत्री का पद प्राप्त हो जाए तो वह अभिमान करते हुवे टेड़ा टेड़ा ( अकड़कर ) चलता है ॥
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इफ़तदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या..,
आगे आगे देखिए.....होता है क्या.....
----- ॥ नामालूम ॥ -----

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" मगर बम तो पाकिस्तन में फूटा है..... " 

राजू : -- मास्टर जी  ! क्या है न पीने के बाद उधर का इधर दीखता है..... -----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इसीलिए माता जी! बहनजी! तनिक मर्यादा में रहिए.....सामूहिक बलात्कार हो जाएगा और पता भी नहीं चलेगा, काहे की छप्पन इंच बाले मर्दों का जमाना है.....समझो न.....

उ  प्रपोगैंडा की दूकान केबल डिराइबरों के बलात्कार ही दिखाती है 

हमारे देश में एक उड़ीसा नमक प्रदेश है वहां कब चुनाव हुवे कौन हारा कोई मंत्री संत्री बना की नहीं..... पता चला.....

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इस फूलन देबी के निसदिन नित नए क्रिया कार्यक्रम हो रहे हैं और प्रपोगेण्डा की दुकानें है कि न्योछावरी मांगने खड़ी ही रहती है, भावी प्रधानमंत्री जी ! कुछ दे दो.....  
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यह सरकार अभी तो ठीक से आई भी नहीं है, और इनके विकास खंड स्तर के  कार्यकर्त्ता कारखाने लगाने की तैयारी कर रहे हैं यदि इतने निम्न स्तर पर इतने उच्च स्तर का भ्रष्टाचार होगा तो प्रधान मंत्री के स्तर पर जाने क्या होगा, क्या हमें यह स्वीकार्य होना चाहिए.....? 
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लाभ के पद से तात्पर्य है, पदासीन को सेवा पारिश्रमिक रूपी दुग्ध के सह घूस घोटाले की माल-मलाई मिले..... 
जैसे : - गृह, वित्त, कोयला आदि मंत्रालयों में मोटा माल मिलता है.....

हमारे पालक/पूर्वज कदाचित निरक्षर रहे होंगे, किन्तु उन्हें धर्म ग्रन्थ हमसे अधिक समझ में आते थे.....
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देहाती अर्थात गँवईं इनको गाली लगते हैं, नगर नागर मानद उपाधि लगते हैं, पलायन के गहन समर्थक हैं ये फिर तो सारे दिल्ली जा कर बस जाते हैं नगर नागरी हो जाते हैं.....
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उच्च जीवन एवं तुच्छ विचार से कोई भी पद गौरान्वित नहीं होता.....
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पक्ष के नेता की माएँ और छठी का दूध.....
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व्यापार का गणित क्रय-विक्रय के सूत्र पर आधारित है । निवर्तमान सत्ता धारी दल ने सत्ता खरीदी थी तो प्रधानमंत्री भी एक एक करोड़ में बेचा था, अब की बार के दल उसे थोड़ा सस्ता करें जिससे की यह मध्यम वर्ग हेतु भी सुलभ हो.….
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पहले अपने आजू-बाजू देखो इन देशभक्तों का छोड़ा हुवा कोई आतंकवादी तो नहीं है,
कहीं फूट जाओ और पता भी नहीं चले.....
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अभी तो कोई कुछ बना नहीं है, देश में भय का वातावरण व्याप्त हो गया.....
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किसी राष्ट्र की प्राकृतिक सम्पदा के अंधाधुंध संदोहन का दुष्परिणाम में सर्वप्रथम उसका जल सूखता है फिर जीवन.....

राजू : -- मास्टर जी !
 यह पावन धरा ऐसी उपजाऊ हैं कि यदि इसमें मरी हुई आत्मा भी बो दें तो वह भी वह भी जी उठेगी
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उफ़ !!! फिर से वही नौटंकी, गुरजी ने ऐसी ही नौटंकियाँ कर कर के अंग्रेजों से सत्ता छीनी थी,  
और वो चेले !!  अरे वही छ दिसम्बर बाले , भगवान के धाम को इन्होने ने नौटंकियाँ कर कर के टंकी बना दिया था..... 
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चुनाव बुरा नहीं है चुनाव प्रणाली बुरी है लोग बुरे नहीं हैं लोगों की मानसिकता बुरी हैं ये देश सेवा को धंधा समझने लगे हैं.…. 

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आह! ये होने बाली 'बि' पक्ष की दुर्नीति अर्थात संचय की नहीं व्यय की नीति..... 

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>> आप किस परिवर्त्तन का समाख्यान  कर रहे हैं, सामाजिक , भौगोलिक, सत्तात्मक अथवा कुछ और; कृपया स्पष्ट करें ।
>> 'राजनीतिक सत्ता' वो क्या है, मुझे राजनीतिकरण जैसे शब्दों से भी एलर्जी है, राजकरण का अर्थ न्यायालय  होता है.....
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The Kohinoor always making the Britishers remember they are plunders.....
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इन्हें जीव-जंतुओं पर हिंसा करने,  प्राकृतिक सम्पदाओं पर डाके डालने की पूरी छूट दी जाती है..... 
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बड़े लोग चाय पीते है तो चीनी मीलों का उद्धार होता है.....अथवा किसी टाटा-फाटा का.....
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आशा है 'प्रधानमंत्रीजी' अब माँ का पल्लू छोड़ देंगे और अपनेआप खाना सीखेंगे..... 

यदि न्यायालय न्याय की दूकान न होते तो चुनौती दी सकती थी.....   
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रेल दुर्घटना में मारे गए जन रूप जनार्दन का कुछ पता चला.....?
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और इन्हें कहते हैं 'पडोसी की औलाद.....'
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राजू : -- मास्टर जी ! लो ये तो बिना बुद्धि का प्रधान मंत्री बन गया, इस बुद्धहीन को मुख्यमंत्री किसने बनाया.....? 

'मंत्री बनने के लिए बुद्धि की चुनाव-फुनाव की आवश्यकता थोड़े होती है 'शपथ लो मंत्री बनो' 

राजू : -- मास्टर जी ! ये तो मस्त लोकतंत्र है.....
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बावली बूझ इब झंडे-झंडे खेलना बंद कर कै कुछ काम कर..... 
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ब्राह्मण किसे कहते हैं.....? 
ब्रह्मतत्व के मीमांसक, धर्मपरायण , सात्विक स्वभाव वाले व्यक्ति को कदाचित संक्षेप में ब्राह्मण कहते है । यह लक्षण किसी भी धर्म के अनुयायी में हो सकते हैं.....
सही ज्ञान तो पशु भी दे सकते हैं..... हिन्दू-मुस्लिम की क्या जरुरत.....?
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हाँ और एक राजसी भोज भी,
अरे राजा ! तू राजा भोज नहीं हैं, फिर काहे को इत्ते भोग करता है..... 
वैधानिक चेतावनी : -- अबसे सभी महिलाएं राजा को राजा-राजा बोलेंगी अन्यथा हश्र पता हैं न..... हम्म पता ही  नहीं चलेगा.....  
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परसों आपने देखा : -- राजा -भोज-गंगू बाई और 'तेली..... 
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एक राजा है एक पति है, फिर हम कौन हैं..... ? 
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घणे बरसा पले की बात स, जब भारत की पावण धरती मैं  बेदों की रचना हो रही थी । रचैता ने रचते-रचते एक मिट्ठा लाड्डू भी रच दियो, कालांतर मैं सब उसने खान न ललाइत हो उठे  लड़-मरे जी मार काट मच गी  । फेर के एक देस था तातारी वठे बड्डे बड्डे लड़ाकू बसा करते थे, वे इनके बाप थे रुलते-रुलते भारत आ बसे ।  हजार साल तक बापगिरी भी दिखाई ओर लाड्डू भी खाया । फेर के इनके बाप के भी बाप आ गए,लाड्डू भी खाया और ऐसी दादागिरी दिखाई कि क्षीर समुन्दर म काला पाणी दिख्खन लाग्यो । फेर आया एक बाप्पू बोला लाड्डू तो मेरा स ; लत्ते कोणी पैरूँ पण लाड्डू खाऊंगा, पाणी कोई पीऊं पण लाड्डू खाऊंगा । बाप के बाप बोले रै मान जा पण मानो कोणी । 
                                फेर के वे सदका  उतारे ओर लाड्डू की वारफेरी कर चौराहे पे रख के चले गए । किस न ठाया बेरो कोणी ? कालांतर म फेर एक डबल सूगर वाली आई बोली तेरे तो सूगर स उसने वारफेरी कर के अररर्र चौराहे पर नहीं अपनी जेब मैं रख लियो । जेब थी फाटी दूसरा आया कौआ और चूहा की टोली बनाई पीसे दिए, बोला जा काट दे, काट दी, झोक लियो इब दिखावे स.....ये देखो लाड्डू.....
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"तुम अपने  गिरेबाँ में झांकों तुम अपने में"ये छब्बीस जनवरी की झांकियां  वर्त्तमान /निवर्तमान सत्ताधारी दल स्वयं ही देखे । जनता आपको कर देती है, अपनी धरती देती है, अपने जंगल है, खेत देती है, नदी-पर्वत  देती है, आपको उत्तर देना होगा ..... 
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 बेच दिया है देश को सत्ता के लालची इन दलों ने । अड़ोसी को हमारी प्राकृतिक सम्पदा बेच दी,  पड़ोसी को हमारी धरती, किसी ने अपने सर पर स्वतंत्रता मुकुट सजाने के लिए, किसी ने ने अपनी सेवा पुस्तिका में पुस्तिका में विजय उल्लखित करने के लिए, किसी ने अपनी क्षुद्र आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए, किसी ने अपना स्वार्थ साधने के लिए ।  भारत का जो मानचित्र हमें दिखाया जाता है  वास्तविक आकृति अब वह नहीं रही, कुछ और ही हो गई है.....  
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राजू ! ये चायवाले भी अब बेचारे हो गए , मालुम उन्हें लोग क्या कहते हैं अबे ए प्रधानमंत्री चल दो चाय दे । 

राजू : -- मास्टर जी ! और प्रधान मंत्री को ? 

"वही, अबे ए चायवाले चल दो चाय दे....."
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मीडिया बनाम 'प्रपोगेण्डा की दूकान 'का आकार किसी सेना जैसा है इसके प्रत्येक सैनिक करोड़पति है केवल हवा से बातें करते हैं । दो तीन करोड़ रुपल्ली के बैलेंस शीट वाले प्रधान मंत्री  इन्हें अपनी कीर्ति गाथा गाने एवं दोषों को छुपाने के लिए कितनी धनराशि देते हैं, और यह धनराशि लाते कहाँ से है......?  
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असवैधानिक विधि अविधान अंगीकार है.., 
दुराचरण, दंड दानव कुल हमें स्वीकार है.....  

दंड दानव कुल = अन्यायालय, कोठा बनाने वाले न्यायालय 
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बोतल-बंद-पानी के पार्श्व-प्रभाव से उत्पन्न गंभीर रोग भी एक न एक दिन उजागर हो जाएंगे..... 
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मैने भी तीन साल तक खूब गुटके खाए.., 
अब तो तीन साल हो गए उसे खाना तो दूर उसकी तरफ देखा भी नहीं..... 

मेरी माता जी तम्बाखू घिसती थी, एक दिन कहीं प्रवचन हो रहे थे महाराज बोले कुछ दान करो, वो तम्बाखू का डब्बा दान कर आई, फिर क्या लत छूट गई..... 
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उच्च एवं उच्चतम वर्ग के लिए तीन लाख हजार करोड़ की शाहे-सवारी, 
मध्यम वर्ग के लिए महंगाई, असाध्य रोग, प्रदूषण, और  न जाने क्या क्या ,
छी ! गरीब अछूत चायवाले कहीं के  ।  तुम्हारे बारे में लिखकर अपनी स्याहे-ताब को कौन खराब करेगा..... 
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कैसे कैसे नमूने हैं, भैया पहले खेत ठीक कर, अन्न उपजा,फिर उसको खा फिर तो उस शौचालय  का उपयोग होगा  । लोडिंग तो कुछ नहीं अनलोडिंग की बात हो रही है...... 

एक और नमूना : --एक दिन को अपने घर की बत्ती बुझाओ-बिजली बचाओ  , भैया एक-दो ठो ऐसी-वैसी को हटा दे न.....   
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मेट्रो चाहिए कि बिजली-पानी ? 
बुलेट चाहिए कि हवा ?  वो आएगी तो ये भी नहीं मिलेगी..... 
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पद पर आसीत हो जाने से कोई प्रधान मन्त्र नहीं हो जाता , जिसकी मंत्रणा राष्ट्र के सह विश्व की दिशा को निर्दिष्ट करे दे वही प्रधान मंत्री है..... 
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 एक गाँव में दो मित्र रहते थे, एक शिव जी का अनन्य भक्त था अत: वह शिव मंदिर में जाकर नित्य प्रतिदिन लिंग पर जल चढ़ाता और दुसरा प्रतिदिन उन्हें एक डंडा मार के आता । एक दिन धारा प्रवाह वर्षा हुई  भगवान शिव जी उस के जा में डूब गए भक्त ने सोचा भगवान तो जल में डूबे पड़े है अब मेरा जल कहाँ चढ़ेगा सो वो उस दिन मंदिर नहीं गया डंडे मारने वाला गया ।  सोचा डूबा रहे तो  डूबा रहे मैं तो इसे डंडा अवश्य मारूंगा । शिव जी थे भोलेभाले सो डंडे वाले पर यह तर्क देते हुवे प्रसन्न हो गए कि यह जो भी कार्य करता है पूर्ण लगन से  करता है.….
                                     ( मेरी माता जी के कथनानुसार )
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क्षमा कीजिए इनमें एक भारत के राष्ट्रपति थे, एक नोबल वाले थे, और एक बी एच यू वाले थे, शिक्षक कोई नहीं था.....इसीलिए कोई शिक्षक बनना नहीं चाहता.....
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" जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी । सो नृप अवसि नरक अधिकारी ॥"
       ----- ॥ गोस्वामी तुलसीदास ॥ -----
अर्थात : -- जिसके शासनकाल में जनता दुखी हो वह शासक अवश्य ही दुर्गति के योग्य है ॥ 
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"पल भर की खबर नहीं, सौ बरस का सामाँ.....
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अपुनेधरमु चरन रति राखें । अहहीं दोषु कछु सबहि साखें । 
कालप्रतिकुलसोइ निबेरे । बिसुद्धात्मन सोधन केरे ॥ 
भावार्थ : -- अपने धर्म के चरणों में प्रीति रखनी चाहिए । कुछ न कुछ दोष प्रत्येक धर्म में होता है ॥ जो देश काल के विपरीत आचरण करें उन दूषित विचारों का परिहरण कर उसे विशुद्धात्मान द्वारा समय समय पर उन्हें शोधित करते जाना चाहिए ॥ 

दृष्टांत : --  'बलि प्रथा अधुनातन काल के सर्वथा प्रतिकूल है" 
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किसी फ़रमाँ बरदार का इंतकाल हो जाए ये मीडिया बनाम 'प्रपोगेन्डे की दूकान' ऐसे मरसिया पड़ते हैं जैसे इनके वालिद का इंतकाल हुवा हो.....
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जानवरों की कोई मस्लहत नहीं होती, इस वज़ह से कि इनमें इंसानों जैसा दिमाग नहीं होता।इसलिए इनका कोई मजहब भी नहीं होता । इनकी नस्ल ( कुल, वंश, जाति ) जरूर होती है, गायोँ में जैसी जर्सी गाँय देसी गाँय वैगेरह, वैगेरह.....
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एक गंदा नाला बार बार बोले है 'गंगा' साफ़ करनी है, मैं बोलूँ पहले खुद तो साफ़ हो जा.....
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हम मत दें अथवा न  दें, किसी शासन व्यवस्था से संतुष्ट हों अथवा न हों , एक दिन ऐसा आएगा जब हमारे द्वारा अस्वीकार किए गए प्रत्याशियों का ही मंत्रिमंडल होगा, उन्हीं के हाथों में सत्ता का सूत्र होगा, वही इस 'जनतंत्र' को संचालित करेंगे.....

काँकर पाथर जोरि कै, महजिद एक बनाए ।
ता चढ़ मुल्ला बांग दे, बहरे हुवे खुदाए ॥
----- । संत कबीर ॥ -----
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अभाव ग्रस्त जनता जनार्दन के भाग्य में तो फल-फूरूट के चित्र भी नहीं है..,
एक ही कार्य होगा, नेता-मंत्री मलाई बाले विभागों की मलाई खाएं अथवा अभाव ग्रस्त फल फूरूट.....
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कच्चे घरों में फिर रहते क्यों नहीं..?
निर्मल है नदिया फिर गहते क्यों नहीं.....
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भई भारतीय दंड सहिंता की धारा २९५ के अंतर्गत "किसी धर्म या वर्ग का अपमान करने के उद्देश्य से अथवा  पूजा-स्थली को क्षति पहुंचाने  अथवा करने का प्रयास करना । ऐसे अपराध हेतु दोनों में से किसी भाँती के कारावास का दंड जिसकी अवधि दो वर्ष तक या अर्थदंड या दोनों से दण्डित किए जाने का पहले से ही प्रावधान है

गंगा उसका कोई भी तट  अन्य धर्म के अनुयायियों हेतु आदरणीय है किन्तु हिन्दू धर्म के अनुयायियों हेतु पूज्यनीय है.....

इसी लिए पहले अपना सिर,  फोड़ फिर भारत के लोग इस बावली बूझ को बावली बूझ कहते बुरे लगे है.....

इत्ते बड़े बड़े अफसर इत्ते बड़े बड़े उकील को मंत्री इस बावली बुझ को ये छोटी सी बात नहीं बताते बस फ़ोकट  का खाते हैं.....
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मुझे उन छात्रावासीय पाठशालाओं की सोच पर क्रोध आता है,जहां जीवों पर हिंसा करते हुवे  मांस -आहार परोसकर फिर बच्चों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया जाता है..... 
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कृषि कर्म के अनुकूल जलवायु के कारण भारत कभी कृषि प्रधान देश रहा था । जलवायु तो वहीँ रही किन्तु प्रधानता नहीं रही । ऐसे देश के नौनिहाल यदि कुपोषित है तो इसका अर्थ हैं यह पोषण, भ्रष्टाचारियों  एवं भोग विलासिता के उदर में पूजित हो रहा है..... 
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प्रधान मंत्री जी ' लघुशंका भी जाते हैं तो मीडिया बनाम प्रपोगेण्डा की दूकान को साथ लेकर जाते हैं......
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तू कुछ भी नहीं है, धरती का बोझ है बस तू.....भाई-बहन को नहीं छोड़ रहा इसको हिन्दू-मुस्लिम दिख रहे हैं .....
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ये भ्रष्ट तंत्र  के चार खम्बे आपस में  मिल कर सारे देश को खा गए, इनका वश चले तो ये जन साधारण को हवा भी न खाने दें..... 
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निवर्त्तमान सत्ता धारी दल एवं उसके सहयोगियों ने भ्रष्टाचार, महंगाई, घपले-घोटाले आदि दुराचारों का जो कीर्तिमान स्थापित किया था ऐसा लगता है वर्त्तमान सत्ताधारी दल एवं उसके सहयोगी, लगता है उस कीर्तिमान को ध्वस्त करने की तैयारी कर रहे हैं.....
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वर्त्तमान शासन तंत्र के संचालन में महिलाओं की भागीदारी शुन्य सी हो गई है, जो पांच सात चयनित भी हुई हैं वे सिंगर के मीडिया बनाम प्रपोगेण्डा की दूकान में ही बैठी रहती हैं.....
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भई सांठ-गाँठ की दुर्नीति नहीं अपनाएंगे तो बि-पक्ष के दुराचारों का कीर्तिमान कैसे ध्वस्त होगा.....
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"भाषा के बंधन में बंधने का अर्थ है ज्ञान को बंधनस्थ करना....."

अपने अपने स्थान पर प्रत्येक भाषा उपयोगी है,  यद्यपि संस्कृत को वैज्ञानिक भाषा की पदवी प्राप्त है तथापि विगत वर्षों में आंग्ल भाषा ने विज्ञान के क्षेत्र में अतिशय कार्य किया, अत: विज्ञान के विद्यार्थियों का इस भाषा का ज्ञान होना आवश्यक हो जाता है, सुसाहित्य के क्षेत्र में संस्कृत हिंदी व् उर्दू भाषा में जितना कार्य हुवा है कदाचित अन्य सभी भाषाओं ने सम्मिलित स्वरूप में इतना कार्य नहीं किया होगा । चूँकि भाषा अभिव्यक्ति का साधन है अत: हमें उत्तम साधन को संजोकर रखना ही चाहिए.....
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वैधानिक चेतावनी : -- यह एक शोष हेतु उत्तम वषय हो सकता है..,
आंग्ल भाषा में बहुंत से एस शब्द है जिनका प्रादुर्भाव संस्कृत भाषा से हुवा है जैसे : -- द्रप्स = ड्राप्स, पिष्ट=पेष्ट, नियर =नियर, दन्त =डैंट आदि, त्रि= थ्री, राय = रॉयल इत्यादि ।
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भारत में एक अनपढ़ भी अमरीकन एवं बर्तानिया अंग्रेजी के कुछ शब्द तो बोल ही लेता है, बर्तानिया फिर भी अन्य भाषाएँ सिख रहे हैं अमरीका का पता नहीं.....
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" आपका वेश भी आपके विचारों को अभिव्यक्त करता है" टाई-साई पहन के हिंदी पर भाषण..?
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विश्व भर में भारत का ही संविधान कदाचित एकमात्र होगा, जिसमें एक हारा हुवा प्रत्याशी मंत्री बन जाता हो.....
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कहते थे बाजा दिखाएंगे, जनाज़ा दिखाए जा रहे हैं  .....
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'प्रधान मंत्री जी' तम्बाखू को पंद्रह बीस लाख रूपए तोला और दारु को पच्चीस लाख में दो बूंद  काहे नहीं कर देते.....
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 अर्थात : -- 'अंग्रेज हटाओ-कांग्रेस लाओ..'

अरे भैया 'पराधीनता हटाओ-स्वाधीनता लाओ.....'
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आह ! इतना दुष्प्रचार !!! 
कोई प्रधान मंत्री जी से बोलो । वह इस मीडिया बनाम प्रपोगेण्डा की दूकान को शीघ्र हफ्ता पहुंचाए..... 
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देश के सवा सौ करोड़ जनता प्रधानमंत्री जी से यदि भेंट करना चाहे तो सत्ता धारी दल कृपया यह बताएं 'दर्शन-कर' की मानसिकता वाले उनके प्रधानमंत्री जी कितना रपैया लेंगे.....

"पहले तो पांच रपैया ही लेते थे....." 
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मैं भारत की नागरिक हूँ एवं संविधान के नियम -उपबंधों को अंगीकृत करने हेतु बाध्य हूँ,अत: मुझे तत्सम्बन्ध में अपने विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार है.....
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प्रधानमंत्री जी के प्रदेश के बचपन का पोषण  प्लाव ( प्लास्टिक ) में आबद्ध होकर बिक रहा है । यदि वह देशभर में भी यही दुर्नीति अपनाएंगे तब देश के बचपन का क्या होगा..... 
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ये तो कह रहा था मुझे जादू आता है.....आप बस साठ महीने दे दो.....उनसठ हो गए.....
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कौन सी दुन्या में रहते हो मियाँ.....? ये अतलसी लिबास छोड़िये और मुल्क की खिदमत कीजिए.....वरना आपकी जगहे कोई और होगा .....ये ख़्वाब बहुंत कॉमन हो गया है..... 
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ये विश्व युद्ध की तैयारी है क्या.....? 

कहीं पढ़ा है अगला विश्व युद्ध यदि होगा तो वह पानी के लिए होगा.....इसमें विजय पानी वालों की होगी..... 
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हाँ ! अब अंतराष्ट्रीय मंच भारत को योद्धोन्मत्त दृष्टि के कोण से देखेगा.....
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ई सत्ता धारी पहिले तो लग लग कहते हैं, जब लग जाए तो 'लग गया' 'लग गया' चिल्लाते हैं......
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अर्थवादी अस्पृश्यता को जातिवादी अस्पृश्यता के आवरण में छुपाना कितना सरल है.....
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समय ने ऐसे नियम गढ़ दिए कि अब तो योग्यता होने पर भी लिए-दिए बिना चाकरी नहीं मिलती । इन अयोग्यों को जाने किसने अपनी सम्मति देकर पूरे प्रशासन के साथ अपने जीवन का नियंत्रण ही सौंप दिया .....
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कहीं मार्ग चरण तरस रहे हैं कहीं चरण पगडंडियों को भी तरस रहे हैं । अस्त-व्यस्त अनावश्यक निष्प्रयोजन निर्माण का यह दुष्परिणाम हुवा कि अब तो चार घंटे की भारी वर्षा से ही नदियों में बाड़ आने लगी है, फिर वह आई और सारा पानी खेतों में भर गया, पहले तो बरखा को जोहते आँखे पथरा गई फिर यह बाड़ बेढ़ और शाक-पात को खा गई  । आस पास के गाँवों की जो दुर्दशा हुई अब के आधा भरा साप्ताहिक हाट, उसकी कहानी कुछ इस भांति कह रहा था.....

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जब इनको इतनी अंग्रेज्जि आती है तो कोई तो सेक्स पियर बने.....थोड़ा सा ही बने तो भी चलेगा .....आता जाता कुछ नहीं थपथपा के मेजें तोड़ रहे हैं सो अलग..... 
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भारत में अंग्रेजी सुसाहित्य अभी भी अत्यंत दरिद्र स्थिति में है, अंग्रेजी माध्यम की शालाओं में बच्चे विदेशी लेखकों को पढ़ते हैं अभी तक वहां किसी भारतीय लेखक का प्रवेश नहीं हुवा है इसका अर्थ यह है भारत इस भाषा से अभी भी अनभिज्ञ हैं,फिर कोई इसका पक्षधर भी कैसे हो सकता  हैं..... दक्षिण वाले अपनी भाषा का पक्ष लें न.....

राष्ट्रपति जी की बंगाली वाली अंग्रेजी सुन के तो.....गाली देने का मन करता है.....वी को वुई बोलते हैं। वो बंगाली बोले हम समझ जाएंगे....किन्तु अंग्रेजी.....? प्रधान मंत्री जी को तो ठीक से हिन्दी भी नहीं आती.....जवानी , पानी, लकीर, तेरी माँ, मेरी माँ जाने क्या क्या कहते रहते हैं, यदि ये पंद्रह अगस्त को भी ऐसे ही बिना सोच विचार के बोलेंगें तो कितना बुरा लगेगा.....नई.....  
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यदि आपको सत्य देखने, सत्य सुनने, सत्य कहने की बानि है तो पत्रकारिता पलक पांवड़े बिछाए आपकी प्रतीक्षा कर रही है .....

एक हारे हुवे प्रत्यासी को इतना नहीं बोलना चाहिए.....
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कलाकार यदि चाटुकारिता, माया एवं मान त्याग दें तो उनकी कला कौशलता शिखर पर विराजित हो जाए.....  
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हमारे देश को 'भाषा निर्पक्ष' देश होना चाहिए.....
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स्वाधीनता दिवस का उत्सव अब तो किसी बरात जैसा लगने लगा है जहां नेता-मंत्री एवं अधिकारी नाच दिखाते है  लोग कुढ़ते हुवे उन्हें कोसते चलते हैं.....
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भारत शासन ने गली गली में मधुशालाएं खोल रखी हैं, न्याय की दूकान ने कोठे बना रखे हैं, मायानगरी निरंकुश होकर अश्लील मनोरंजन परोस रही है, माँ कहे बेटा उधर मत जाना.....दारू मत पीना.....कोठे पे मत जाना.....पी के बलात्कार तो बिल्कुल मत करना....और आज्ञाकारी बेटा मान जाएगा.....

" अपने खोखले भाषणों से  समाज को कोसनेवाले सत्ता धारी पहले शासन-व्यवस्था को सुधारें....."  
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ऐसी सीढ़ियाँ दिखा दिखा के अमरीकियों को मूरख बनाया था वहां के राष्ट्र-पोती ने.....
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प्रेम -प्रियता को मर्यादा में होना चाहिए  अमर्यादित प्रेम रक्त सम्बन्धी को भी खंड खंड करने में समर्थ होता है.....

संबधों को मर्यादित करना परिवार एवं समाज का कर्त्तव्य है, चुनावी दलों का नहीं..... 
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हमारी वसति में तो ऐसे चित्र 'शिक्षा का अधिकार ' के विज्ञापन पटल तक के नीचे दृष्टि गोचर होते हैं उसमें लिखा  होता है ऐसे बच्चे कहीं दिख जाएं तो फून करें.....एक ही काम हो सकता है या इनको फून करो या इनको भोट करो..... यह दृश्य इस हेतु हैं क्योंकि आप इन खटिया तोडों को अपना बहुमूल्य मत देते हैं.....
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यदि मैं किसी शासकीय कार्यालय में जाकर कहूँ कि मैं चाय- व्यापारी हूँ, मजदूर हूँ,  अथवा मांगता हूँ, फलाने का नाती हूँ, अथवा किसी व्यवसायिक संस्थान में जाकर कहूँ कि व्यवसाय तो मेरे रक्त में है,  तो क्या ये मुझे सेवा का अवसर देंगे ?

द्वार से ही भगा देंगे .....और आपने ऐसे को प्रधानमंत्री बनने का अवसर दे दिया.....
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क्या है  न इनको वो तेरा दिन वाला भय था.....
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इन बेवड़ों ने पहले तो पूजा स्थलों को अपवित्र किया, अब ये शिक्षा के मंदिरों को अपवित्र करने पर तूलें हैं.....
और यदि इन्हें राम-राज्य भर बोलने के लिए कहा जाए, ये राम बोलते बोलते ही दो बार हिचकी ले लेंगे, चार बार घूस ले लेंगे, छ बार घोटाले कर देंगे , और आठ नौ बार विप्लव कारित कर देंगे.....सर्बोच्च न्यायालय सत्ताधारियों  का साकी बोले तो मदिरा परोसक है.....'अश्लील नाचघर' का निर्माता.....
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गुरू वह है जो ज्ञान देता है, शिक्षक वह है जो शिक्षा देता है, विद्वान वह है जो विद्या देता है .....,


ज्ञान :-- पदार्थ के मूल अंश को ग्रहण करने वाली चित्त की एक वृत्ति है..,
शिक्षा : -- चारित्रिक एवं मानसिक शक्तियों का विकास है.., 
विद्या : -- किसी विषय का विशेष अध्ययन कर प्राप्त विशेषज्ञता, विद्या कहलाती है..... 

शब्द, ध्वनि, स्वर - ज्ञान है ,
संगीत- शिक्षा है,
धनुर- विद्या है.....

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ग्रह ग्रहीता पुनि बात बस, तेहि पुनि बिच्छु मार । 
तेहि पिआइअ बारुनी, कहहु काह उपचार । । 
 ------ ॥ गोस्वामी तुलसी दास ॥ -----
भावार्थ : -- जिसे महंगाई लग गई हो, हवावाला रोग हो गया हो , फिर नाग-बिच्छू-डस लें । ऐसे तीन प्रकार से पागल हुवे लोगों को  बार-उनी बोले तो दारु पिला दे,  कहिए ये कैसा उपचार है ॥ 

समस्याओं का ऐसे ही समाधान करते हैं ये पीने-खाने वाले..... 
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निर्धनता धन से नहीं अपितु कारण एवं निवारण से दूर होती है.....
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इस समय राष्ट्रीय बचत पत्र ( नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट ) में दस वर्ष की अवधि पूर्ण होने पर र एक लाख पर रु दो लाख छत्तीस हजार छ: सौ प्राप्त हो रहे है.....
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अन्य देशों में लोग पर्व को पूछते है तू कब आएगा, हमारे देश में पर्व हमको पूछता है मैं कब आऊँ.....
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भिखमंगे को भीख दी जाती है, दान नहीं दिया जाता.....
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बिना लोग-लुगाई के तो गोदी में कुत्ते बिल्ली ही खेलेंगे.....
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बच्चों को लाने ले जाने में अभिभावकों के दो सौ से  तीन सौ रूपए व्यय हो गए वो भी छोटे छोटे नगरियों में बड़ी का तो पूछो ही मत.., कौन देगा.....? ऊपर से आधा दिन व्यर्थ गया..,
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देश को आपदाओं ने घेर रखा है और सत्ताधारी दल के मूर्ख-मंडल को ढुलकिया बजने और भद्दे-भद्दे अश्लील नाच करने से फ़ुरसत नहीं.....
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विलासिताओं  से संपन्न प्रदेश कृषकों, बनिहारों, श्रमिकों का दोही व् शोषी होते हैं यही वो प्रदेश हैं जो शोषक श्रेणी का निवास स्थल होते हैं.....
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प्रपोगेण्डा की दूकान उर्फ़ मीडिया के अनुसार "आपदा से प्रभावित लोग उन्हें दौड़ा दौड़ा के पीट रहे हैं" अत: इनके कहे
, लिखे और दिखाएँ गए संदेशों पर अवधारणा व्यक्त करने से पूर्व सौ बारी सोच लेना चाहिए.....
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और भारत-शासन ऐसे धिंग धंधे करने वालों को पत्रकार मानती है  हमारे श्रम जनित कर का अपव्यय कर इन मोटे मोटे पैकेज धारियों को विशेष सुविधाएं देती हैं..... बंगला, गाड़ी, लाखों की घडी, ट्रेन, प्लेन और जाने क्या क्या.....बंद करो ये सब ये सब अन्यथा कोई कर नहीं देगा.....
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संविधान-निर्माण के चौसठ वर्ष पश्चात भी भारत के दक्षिण पूर्वी प्रदेशों  में हिंदी-सरिता बून्द-बून्द बनकर रिसती रही यह कभी धाराओं में प्रवाहित न हो सकी । मुग़ल-काल से लेकर अबतक जिस किसी ने भी भारत पर शासन किया उसने भारतीय भाषाओँ को जैसे बेड़ियों से बांध कर रखा । यह भारतीयों का दुर्भाग्य ही है कि संविधान निर्माण के पश्चात संस्कृत भाषा को कालापानी का दंड ही मिला और अंग्रेजी भारत पर राज करने लगी.....

संस्कृत विश्व की  प्राचीनतमा, दुर्लभा एवं वैज्ञानिक भाषा है,  अपने ज्ञान के अथाह प्रकाश द्वारा यह शताब्दियों से हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं को आलोकित करती आ रही है इस मातृवत भर्तृ का  तिरष्कृत रूप देखकर हृदय कुंठित होना स्वाभाविक ही है.…..   

मातृवत भर्तृ = सौभाग्यवती माता 
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मुझे सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी भाषा की बाध्यता का कारण अब तक समझ नहीं आया.....
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ये ब्लॉग प्रपंजी से पंजिका कब बनेगा.....? पंजिका = रोकड़ 
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 प्रधान मंत्री जी के प्रदेश के कुपोषित बचपन के कुपोषण का कारण स्पष्ट करने के लिए प्रस्तुत चित्र पर्याप्त है..... ऐसे माडल को तो मैडल मिलना चाहिए.....नई.....  राजसी वाहनों माने की लक्सरी बसों के स्थान पर    राजसी वाहनों माने की लक्सरी बसों के स्थान पर प्रधान मंत्री जी यदि गौ पालते तो बचपन कुपोषित नहीं होता.....
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चौदह पंद्रह वर्ष के बच्चों को मतदाता बनाकर नेता-मंत्रियों के लाभ के लिए काम कर रहा है ये चुनाव आयोग.....
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टॉपर प्रथम दिवस से ही टॉपर कहलाता है, गधा नक़ल मार के भी फेल हो जाता है और गधा ही कहलाता है.....

 धूत बुड़बग --  फेलबर के नक़ल मारेगा तो फेल नहीं होगा तो औउर का होगा.....

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मुगलों द्वारा अनर्थार्थानुबन्ध करने के कारण ही भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का विस्तार हुवा और वह अंग्रजों के अधीन हो गया । वर्त्तमान एवं निवर्तमान शासकों द्वारा  वारंवार वही कुनीति अपनाई जा रही है .....
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जानें कहाँ - कहाँ  ! रूहे  रवाँ ले जाएगी
देखिये ! पागल हवा किस तरफ ले जाएगी 

ख्वाब सारे देख लें  कल सुबह होनें के पहले 
क्या भरोसा !किस बहानें से कज़ा आजाएगी

किस ज़ानिब जाँ निसाँ रूहे रवाँ ले जाएगी.., 
 दीवानी बादे-सबा अब जाने कहाँ ले जाएगी.., 

सुब्हे-दम से पहले ए ख़्वाब कहीँ पलकों में ठहर..,  
न जाने किस बहाने क़ब्ले- क़ज़ा आ जाएगी..... 

 क़ब्ले = सम्मुख 
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जनता जनार्दन ने पंद्रह घाटों का पानी पिया हुवा है, उसे घाटों की सीडियां चढ़ना मत सिखाओ..... 
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 मीडिया के चश्में से दुनिया को देखना छोड़ दो प्रधान मंत्री जी ! और उसके माया जाल से बाहिर आओ
यदि क्रिकेटर कोई प्रतियोगिता जिततें हैं तो केवल मीडिया ही नाचती है.....  
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राजू : -- बुलेटवा भी चलाएंगे, निर्धन रेखा भी मिटाएंगे.....जो कहीं चल ही गई..... तौ हम जैसे मिडिलहु निडिल होके उ रेखा के नीचे कचकचा जाएंगे.....
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विकसित देश विकासशील देशों के प्रमुखों की रंगरेलियों का अड्डा बनते जा रहे हैं, आश्चर्य है ! वहां के नागरिकों ने ऐसे दुस्साहस पर कोई विरोध प्रकट नहीं किया.....?
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यदि आपको पत्रकारिता करना चाहते हैं तो मीडिया में करने योग्य कुछ नहीं है, यदि आप नाटक-नौटंकी करना चाहते है तो नाटक -नौटंकी में करने योग्य कुछ नहीं है, यदि आप अभिनय करना चाहते हैं तो सिनेमा में करने योग्य कुछ नहीं है, और यदि आप कुछ नहीं करना चाहते, तो फिर साहित्य में करने योग्य बहुंत  कुछ है.....    
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क्रांतियाँ क्रांतिकारियों को ही मुबारक हो, और सत्ता प्रधान मंत्री जीओं को.....क्यों.....?
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उड़ीसा के बहुंत से वासियों को हिंदी बोलनी तो आती है किन्तु लिखनी पढनी नहीं आती कारण कि चूँकि उड़िया की लिपि है अत:  वहां बहुंत सी शालाओं में शिक्षा का माध्यम उड़िया एवं अंग्रेजी ही है.….
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किसानों की धरती हड़प कर उसे  उद्योग पतियों के अधिकार में देते हैं भारत के ये प्रधान मंत्री गण.....
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किसानों की धरती हड़प कर उसे  उद्योग पतियों के अधिकार में देते हैं भारत के ये प्रधान मंत्री गण.....
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बिजली उद्योग वापस जाओ, वापस जाओ.....

गोबर गैस बनाओ, अपनी मेट्रो स्वयं चलाओ.....टिंगटांग.....
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प्रधान मंत्री बताएं इनके उद्योग की विष्ठा बोल तो फैलाई ऐश की सफाई कौन करेगा,जो सारे देश में फैली हुई है.....
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 ये नहीं करने दूंगा वो नहीं करने दूंगा.....प्रधान मंत्री जी किसी अच्छे सत्संग की संगती करें तो थोड़ी बुद्धि आए.…पहले एक संकल्प को पूरा किया जता है, फिर दूसरा  किया जाता है   पहले वाला दूंगा पूरा करें.....

मंत्रियों के कोट उतारो, इस कुव्यवस्था डंडा मारो..,
मत पेटी में ताला लगाओ- देश बचाओ देश बचाओ.....

सफाई कर्मी नेतागीरी कर रहे हैं, मंत्री सफाई कर रहे हैं डाकटर बिल चेक कर रहे हैं इंजिनियर क्या करें सुई लगाएं.....?
कुर्बानी हो तो खुद की हो, बेजबाँ क्यूँ शहीद हो.., 
तोड़ दे रवायतें फिर, कुछ इस तरह की ईद हो.….
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अंधेर नगरी है और चौपट राजा है भैया.....

इन प्रधान मंत्रियों एवं राष्ट्रपतियों को देखकर के लगता है कि देश इन पदों के बना भी चल सकता है.....
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कम्पूटर काहे नहीं चला लेते टीवी रेडियो दुनो दिख जाएंगे.....
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राजू : -- मास्टर जी ! जब इलाहबाद में इत्ती बड़ी युनिभर्सिटी थी फिर इ उकील साहेब उकील बनने बिदेस काहे गए.....?

 " लो ! उस समय उनको थोड़े ही पता रहा होगा कि वो एक महान आत्मा हैं....."
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जब्हे कर कर के इंसान भी कितना बेस्वाद हो गया है, अब तो शेर भी उसको नहीं खाते.....
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 एक चक्रीय राज नहीं बाबा, एक छत्रिय राज --- कैसा प्रधान मंत्री है ये न इसको हिंदी आती न अंग्रेजी.....गुजराती आती है सो वो हमको नहीं आती.....ये तो मजा मा छे..... हम सजा मा.....
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अच्छा ! फिर तो रूपए के पीछे में इनकी फोटो छपनी चाहिए.....
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ये तो भारतीय किरकिट ( गोलक-पट्टम ) टीम है , प्रश्न यह कि करोड़ों अरबों रूपए वाली भारतीय सेना कहाँ है.....?

प्रधान मंत्री जी ! चाय वाले से रातों रातों प्रधान मंत्री आप ही बन सकते हैं  ये जो करदाता हैं न ये नेतागीरी करके शार्टकट से धन नहीं कमाते, ये जब हाड़तोड़ परिश्रम करते हैं.....अपने बच्चों का पेट काटते हैं, धरती अपनी छांती फाड़ती है  तब कहीं जा कर देश का राजस्व एकत्र होता है.....बताइये कि देश की सुरक्षा इस समय कौन सी गुफा में है.....

खड़े हो जाते हैं वोट मांगने.....
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पिछले दिनों एक मंत्री जी यह कहते हुवे पाए गए थे कि : -- मैं सब 'की' खोल के देखूंगा.....प्रधानमंत्री जी ! तनिक ये बताइये क्या खोल के दखेंगे आप लोग.....और ये भी बताइये अब तक कितनों की देख लिए हैं.....
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कलाईयों का सुन्दर उपयोग करते हुवे ये बढ़िया लेग ग्लांस.....लक्ष्य भेदी प्रहार.....
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उसके घर तक किसे रसाई है..,
वो ही जाएगा जिसकी आई है..,

बात इक दिल में मेरे आईं है..,
गर कह दूँ तो अभी लड़ाई है..,

दूसरी जान है तेरी उलफ़त..,
एक खोई है एक पाई है..,

भर दिया नमक जख्म में उसने..,
ये दुआ-गो की मुँह-भराई है.., 

सच है बे-ऐब है खुदा की ज़ात.., 
तुझमें जाने क्या क्या बुराई है..,

क़त्ल कराती है गफ्तगू भी उनकी..,
बात में बात है की सफ़ाई है..,

----- ॥ दाग़ दहलवी ॥ -----

 रसाई = पहुँच 

 स्याहे -आलम के हंसी पैहरन में..,
शबे-तारीक तू कितनी शनासाई है.....

यहां ख्वाब भी देखें तो दौलत लगे..,
चश्में-बाज़ार में कितनी महंगाई है.....
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हाँ हाँ चलो संसद में जा के फूटते हैं..... 
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ये जादू देश को समस्याओं से निवृत्त करने में क्यूँ नहीं चलता.....इस हेतु कि वो स्वयं भी एक समस्या है.....
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हाँ ! क्योंकि वह हाथ से निकाला हुवा अथवा सरसों से पैरा हुवा होता है..... 

जो दुखी दिखाई देते हैं वो सदैव सुखी रहते हैं, जो सुखी दिखाई देते हैं वे सदैव दुखी रहते हैं.…. 

और जो दिखाई ही नहीं देते वो .....? न दुखी रहते हैं न सुखी.....वो दुःख-सुख से परे होते हैं..... 
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बम-सम रखने किसी और को आते होंगे.....फोड़ने तो हमें ही आते हैं.....  
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न वो भी ले गए कुछ साथ जो मुल्कों के वाली थे.., 
सिकंदर जब गया दुनिआ से दोनों हाथ खाली थे..... 

वाली छे नहीं वाली थे थे..... 
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बोए बबुल का बीज तो आम कहाँ से खाए..... कोई विषाक्त मिठाई खा रहा है तू सी ए फैल खा.....  
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उ गोले-गोली चलाते रहते हैं, इधर से घुसते हैं उधर से घुसते हैं.....अउर इ लघु तुपक के साथ  फोटू खैंचाते रहते हैं .....ई जो बढ़िया बढ़िया गणवेश, बढ़िया बढ़िया पकबान, तुहरे कुटुम का भरण पोषण आदि आदि है न उ प्रधान मंत्री जी के पार्टी कोष से नहीं आते.....जनता होली दीवाली बिसरा के कमाती है.....तब आते हैं.....
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इत्ते वड्डे वड्डे घर हैं उनकी पोछा पोछी कर ले न, लोग लुगाया सरडक बुहारती अच्छी लगती है क्या, सौ दो सौ दे के किसी से बुहरा ले, जिसक काम है उसी को करने दे.....हाँ नई तो  कभी साग भाजी बेचती है कभी सरडक बुहारने लग जाती हैं.....   
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प्रधानमंत्री जी इइइइइ!!!!!!.....उद्योग पतियों के लिए कुर्सियां ही लगाते रहेंगे या कभी प्रधान मंत्री भी बनेंगे..... 
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कौन कमबख्त घर को खुद साफ़ करता है.....जो घर खुद साफ नहीं करते वो सरडक क्या साफ करेंगे.....
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देसी गांय के दूध की रसमलाई.....
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इतना भी नहीं खाना चाहिए कि वो सेध जाए.....और उल्टियाँ होने लगे..... 
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भैया मेरे अबके किसी पुल  या सरडक से गुजरियो तो सोच समझ के गुजरियो.....ये मत सोचियो की इसे किसी ईमानदार, नेक, सच्चे, रहम दिल इंजिनियर ने बनाया होगा.....अब बिना सीमेंट छड़ का जमुना का पुल तो गिरेगा ही..... जिस सिर  पे गिरेगा कहीं वो तुम्हारा हुवा तो घर नरक बन जाएगा.....

जिस घर में रहतो हो उसकी कहानी फिर कभी..... 

इसीलिए खा था एक दिन 
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यही तो.....हम चाहते  हैं कि हम तो भ्रष्टाचार  कर कर के  माल कमाएँ और सामने वाला सज्जन शिष्ट, सदाचारी , सुहृदयी रहे..... 
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जिल्लो जिल्लो  में जिल्लाधीस साहेब दीवाली की वसूली  के लिए छापामारी कर रहे हैं वो चाहते हैं कि वो तो भ्रष्टा चार कर कर के कर कर के माल कमाएं, और सामने वाले सज्जन, शिष्ट, सदाचारी एवं सुहृदयी रहे..... 

राजू : -- ई सासन -प्रसासन है कि दुस्सासन है.....
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हम जब हाड़तोड़ परिश्रम करते हैं.....अपने बच्चों का पेट काटते हैं, धरती अपनी छांती फाड़ती है  तब कहीं जा कर देश का राजस्व एकत्र होता है...जो इन न्यायाधीशों की बहु बेटियों को सम्मान जनक जीवन प्रदान करता है.....कितने दुःख की बात है कि यही न्यायाधीश हमारी बहु बेटियों के लिए अश्लीलिलता का  नाच घर खोल रहे हैं.....
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ऐ फ़ौजी ! तनिक इनको मानव बम दिखाओ तो..... फूट के औउर कैसे.....

 बहुंत सस्ते में आते हैं..... बीस लाख और एक ठो पिट्रोल पम्प लगता है बस 

हवाई जहाज ! लो ये भी कोई बम है.....उसमें राष्ट्र का प्रमुख कहाँ मरता है.....

ये रही शह.....अबसे हमरी सीवाँ का अतिक्रमण मत करना.....अउर दूसर के फटे में टाँग मत अड़ाना.....समझे.....चीनी 
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लो ! हम को तो फिलिम के गाने सुन सुन के आ गई.....उर्दू जबाँ अउर का.....

कोई चार साल से कुछ सुनेगा तो कुछ न कुछ तो आएगा ही न.....

ए तेर कू हिंदी आती है.....अंग्रेजी.....? जहाँ पनाह को थोड़ी सी आती है.....अपन को थोड़ी सी भी नहीं आती.....
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यह कैसी विडंबना है,यहां चुनाव में विजित प्रत्याशियों के  नाम घंटे भर में घोषित हो जाते  है,, और देश को बेच कर खाने वालों के भेद चिता में जल जाने के पश्चात भी उजागर नहीं होते.....
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पंचगव्य : -- एक गुणकारी औषधि है जो रोगों के  कारकों एवं महापातक दोषों को नष्ट करने में सहायक होती है । देसी गौ का मूत्र, गोमय, दुग्ध, दधि, घृत एवं कुशा से मार्जित जल युक्त मिश्रण को शास्त्रकारों ने  पंचगव्य कहा है । तीन भाग गोमय, तीन ही भाग दुग्ध,  दधि, एक भाग घृत शेष कुशाजल होना चाहिए । विष्णु धर्म में कहा गया है कि जितना पंचगव्य बनाना हो उसका आधा अंश गोमूत्र का होना चाहिए अर्थात  उक्त मिश्रण के समानुपात ही गौमूत्र होना चाहिए 

गोमूत्रं गोमय क्षीरम् दधि सर्पि कुशोदकम् । 
पंचगव्यमिदम् प्रोक्तम्महापातक नाशनम् ॥ 
 ----- ॥ वशिष्ट संहितायाम् ॥ -----

श्वेत, लाल पीला, काला एवं हरा यह पंचवर्ण है जो मांगलिक कार्यों में उपयोग किए जाते हैं  
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ये उद्योग पति भी न.....हाई-फाई की डील करते हैं अउर दान में निडिल देते हैं, एड्स बाली और कैसी.....मत लेना.....
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प्रधान मंत्री जी के भी नए नए चोचले हैं, देखना कहीं ये नरसिम्हा राव तक न उतर जाए.....वैसे कितना  दौड़ते हैं..... नई किन्तु पहुंचते कहीं नहीं..... 
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शवों पर बैठ कर खाने वालों की जात है ये.....
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मोहन दास करमचंद गाँधी से चूक तो हुई थी उन्हें अंग्रेजों का भारत गमन के पश्चात भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस को तत्काल भंग कर देना चाहिए था और सत्ता को लपलपा रहे लोगों को अपने बल पर दलों का गठन करने हेतु आदेशित करना चाहिए था.....तब पता चलता कौन कितने पानी में है.....  
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 हाँ ! और कोई उसका कोई दूसरा अनुगामी न हो यह भी सावधानी रखनी होगी..... इसके लिए भारतीय  संविधान में दलगत चुनावी प्रणाली को समाप्त करना होगा..... 
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"  अभी तक जितने आए छुपछुपा के खाए । यदि तुम शपथ ग्रहण समारोहों जैसे तुच्छ आयोजनों में सौ सौ करोड़ का अपव्यय करते हुवे झुल्ला  में बैठ के खुलमखुल्ला भी खाओगे  तो तुम्हारी फटफटिया पांच का एवरेज देने लगेगी....." 

राजू : -- मास्टर जी ! पांच माने की कितना.....? 

" जितना बिना चढ़े ढुलका के देती है न उतना..... 
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अह : जमीन वमीन छोड़ो.....मीडिया का  कैमरा छू दिया.....? इसे तो फांसी पर लटका कर काल पानी भेजकर आजीवन कारावास का दंड दो.....

 मोहतरमा इतनी रात  को होटलों में क्या कर रही थी..... बिना राक्षसनियों वाले राक्षसों का राज है पता नहीं है क्या.....

केवल मैं अधिवक्ता हूँ शेष सभी तो न्यायाधीश हैं.....
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इस फ्री की गोरमेंट को बोलो  ज़रा नए गारमेंट न खरीदे.....
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 मुल्क दहशत गर्दों के निशाने पर है इधर जहाँ पनाह और उनका लश्कर है की तख्तो-ताज़ के ख्वाब में खोए हुवे हैं.....
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