Saturday 26 January 2019

----- ॥ दोहा-द्वादश १७ ॥ -----,

दासकरिता हेतु प्रान न्योछाबरिहि देह |
ताते भलो त बीर सो रहे आपने गेह || १ ||
भावार्थ : - इस देश को अपने अधीन करने वाले समुदाय की सुरक्षा में प्राणों का बलिदान करने से तो अच्छा है वह वीर अपने घर में ही रहे |

राजू : - हाँ ! टांग उठाते हुवे राजपथ में न फिरे

भारत बटिका फूरते चारि बरन के फूर |
जौ झुरमुट सहुँ झूरते बहिर देस के मूर || २ ||

भावार्थ : - भारत देश की पुष्पवाटिका में हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख्ख ये चार धर्मों के ही पुष्प पुष्पित होते हैं, जो अन्य झाड़ियों के समूह दिखाई दे रहे हैं वह भारत से भिन्न देश के मूल हैं |

आँगन में नदिया बही आया मरत पियास |
दासा गोसाईं भया अरु गोसाईं दास || ३ ||

भावार्थ : - इस देश से भिन्न इन परधर्मावलम्बियों के भारत आने की इतनी सी कहानी है की एक समय इस देश में समृद्धि की नदियाँ बहने लगी थी मरुस्थलों से ये प्यासे मरते हुवे यहाँ आए प्रथमतः स्वयं दास बने, फिर देश को लूटा, कालान्तर में देश के सम्प्रभुत्व को ही अपना दास बना लिया |

बैसे भीतर आपने अपुने सोंहि बिरुद्ध |
स्वाम संगत आपनी करते निसदिन जुद्ध ||४ ||

भावार्थ : - और यहाँ अपनों के विरोधी अपने ही भीतर बैठे हैं वे अपने स्वाम्य को अपने सम्मुख किए उससे निसदिन संग्राम करते हैं |

जोग बनाया आपुनो पराए संगत प्रीत |
निज सत हेतु बिरोधता सो तो अनभल रीत ||५ ||

भावार्थ : - प्रीति योग्य अपनों ने बनाया और परायों से प्रीत कर अपने ही स्वत्व का विरोध करना यह भली रीत नहीं है |

दंड ताहि होतब अहइँ अपराधिहि निर्बाध | 
संस्कार ताहि होतब निर्बंधित अपराध || ६ || 
----- || अज्ञात || -----
भावार्थ : - दंड से केवल अपराधी अवरुद्ध होता है अपराध नहीं संस्कारों से तो अपराध ही अवरुद्ध हो जाता है |

नगर अँधेरा माहि भा ऐसो चौपट राज | 
हस्त सिद्धि मेलिहैंगी अजहुँ बिनहि श्रमकाज || ७ || 
भावार्थ :- नियम व् नीतियों के अभाव में अब ऐसा चौपट शासन होगा कि अब जनसामान्य बिना परिश्रम के पारिश्रमिक मिलेगी और नेताओँ को बिना सेवाकार्य किए सत्ता का सुख प्राप्त होगा | 

गहे पराया देस कहुँ सासन के अधिकार |
दाता निज मत दए पुरब किंचित करे बिचार || ८ || 
भावार्थ :- बहिर्देशीय देश पर शासन के अधिकार से संपन्न है यहाँ स्वदेशी उपेक्षित हैं | हे मतदाता !अपना मत दान करने से पूर्व तू इसपर किंचित विचार कर | 

बसा पराया जोइ दए पराधीन के मंत्र | 
मत दाने बिनु परिहरे जन जन ऐसो तंत्र || ९ || 
भावार्थ :- जन जन को मत का दान न कर ऐसे तंत्र की अवहेलना करनी चाहिए जो बहिर्देशियों को वसवासित कर पराधीनता की मंत्रणा करता हो | 

जनतंत्र के नेता जौ चले चलनि सो लीक | 
जोइ करे सो नीक है जोइ कहे सो ठीक || १० || 
भावार्थ : - किन्तु जनतंत्र में जनसामान्य की करनी, कहनी, व् चलनी का कोई मूल्य नहीं है इस तंत्र के नेता जो चलनी चले वही परम्परा,रीति व् धर्म पंथ है, जो कुछ करे वह सुन्दर है, और जो कहे वह नीतिपरक वचन है |  



बाज रही सुठि झाँझरी बाजे ढपरी ढोल  |
कृष्ना कृष्ना बोल के राधे राधे बोल ||  ||

लाल पील हरि केसरी रंग कलस मैं घोल |
कृष्ना कृष्ना बोल के राधे राधे बोल ||  ||

लाल पील हरि केसरी रंग कलस मैं घोल |
बूँद बूँद बौछारि पुनि हो री होरी बोल || 

बाज रही सुठि झाँझरी बाजे ढपरी ढोल  |
बूँद बूँद बौछारि पुनि हो री होरी बोल || 




Wednesday 23 January 2019

----- ॥ टिप्पणी १८ ॥ -----,

भारत  
  • हम आज भी इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि सिंधुघाटी के पतनोपरांत सिंधु घाटी के लोग कहाँ गए और नई नई कहानी गढ़कर भारत के लोगों को ही भारत आगमन होना बताया गया | जबकि उस समय विश्व यातायात  के साधनों से नितांत वंचित था |  जब वह अपने पैरों पर ठीक से खड़ा भी नहीं हो पाया था तब एकमात्र भारत के लोग ऐसे थे जिन्होंने चक्र और नौका का आविष्कार किया और यातायात के साधनों से परिचित हुवे | इनका जाना यदि कहीं उल्लखित होता तब वह  तथ्य मान्य होता किन्तु  सभ्यता के चरम शिखर को प्राप्त प्रगति पथ का अग्रदूत हुवे राष्ट्र में असभ्यों का आना असंभव सी बात है | 
  • ऐसा अनुमान है कि और डेड सौ वर्ष पश्चात जब पृथ्वी की भूसम्पत्ति उत्खनित हो चुकी होगी तब ऊर्जा के स्त्रोत समाप्ति की कगार पर पहुँच जाएंगे यदि ये नेता-मंत्री इसी प्रकार हवा में उडते और उड़ाते रहे तब तो उसे समाप्त होने में डेड सौ वर्ष भी नहीं लगेंगे | अच्छा होगा कि हम अपने बच्चों को गौ पालन कर कंडे बनाना  सिखाएं | जिससे उनकी आनेवाली पीढ़ी भोजन को पका कर खा सके और सभ्य रहे | 
  • प्राचीन समय में मुद्रा अस्तित्व में नहीं थीं और समूचा वाणिज्यिक प्रबंधन वस्तु-विनिमय पर आधारित था | एक दो सहस्त्र वर्ष के पश्चात की पीढ़ियां हम पर हँसेगी कहेंगी ये लोग कितने मूर्ख थे कागद के कुछ टुकड़ों के बदले अपना सर्वस्व देने को तैयार रहते थे अब जो अंक मुद्रा का चलन आ गया भविष्य में वह और अधिक हास्यास्पद सिद्ध होगा | जो भावी समय  होनेवाला है उसे वर्तमान में क्रियान्वित कर हमें अपनी निर्यात नीति का सुधारीकरण करना चाहिए और अन्न में मुद्रा के व्यवहार को अस्वीकृत कर उसके बदले अन्न को प्रथम प्राथमिकता दें इस उपाय से निश्चित ही हमारी मुद्रा दृढ़ और अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ होगी.....
  • किसी राष्ट्र अथवा किसी विरोधी समुदाय का दमन करने हेतु दूसरे राष्ट्र अथवा समुदाय द्वारा भयोत्पादक तत्वों का अवलम्बन ही आतंकवाद है.....
  • एक निश्चित भूखंड के लिए 'राष्ट्र' ( नेशन ) एवं वहां के वासियों हेतु 'जन' (प्यूपिल)शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वैदिक काल में किया गया था..... 
  • लोक हो अथवा राज जनमानस को शासन के द्वारा संचालन के तंत्र का मंत्र विश्व को भारत ने दिया है ऐसा विश्व प्रमाणित इतिहास में उल्लेखित है 
  • भारत आपके लिए व्यापारिक संस्थान हो सकता है हम भारतियों के लिए तो यह देश एक गृह एक मंदिर के समान है जिसके स्वामी पति अथवा पिता होते हैं पति व् पितृभक्ति इस देश की संस्कृति है कितनी भी दुर्दशा हों हमें अपना गृह अपना देश नहीं बदलना चाहिए ये संस्कार हमें दिए गए हैं.....


  • जाके पूर्बज जनम भए जाहि देस के  मूल | 
          जनमत सो तो होइआ सोइ साख के फूल || ३४०० || 
          भावार्थ : - "कोई व्यक्ति किसी राष्ट्र का मूल नागरिक है यदि उसके पूर्वजों की जन्म व् कर्म भूमि         उक्त राष्ट्र की भूमि रही हो तथा उसका जन्म ऐसे पूर्वजों द्वारा उत्पन्न माता-पिता से हुवा हो |"  और उसने ऐसे पूर्वज सहित ऐसे मातापिता के धर्म से भिन्न धर्म क्यों न अपना लिया हो आपकी इस बात प् संदेह है कि भारत के ९० प्रतिशत मुसलमानों के माता-पिता सहित उनके पूर्वजों की जन्म व् कर्म भूमि भारत थी 


  •  देश तो एक सहस्त्र वर्ष तक इस्लाम ने भी चलाया था डेढ़ शतक वर्ष तक अंग्रेजों ने भी  चलाया था उसका विरोध हुवा |  किसी राष्ट्र को स्वहित का साधन बनाने वाले विचार ही राष्ट्र विरोधी विचार हैं  ये सत्तधारी दल भी इसी विचारधारा से ओतप्रोत हैं जो इस्लाम की है और जो कभी अंग्रेजों की हुवा करती थी-----
  • भारतीय धर्म शास्त्र एवं प्रसिद्द वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन के वर्गीकरण सिद्धांत के अनुसार : - धर्म व् जाति जीव की एक वैज्ञानिक पहचान है न की भौतिक
  • किसी अन्य के स्वभाव अथवा धर्म को अंगीकृत करने से मौलिकता परिवर्तित नहीं होती वह यथावत रहता है दो विपरीत स्वभाव वाली जाति  व् धर्म के संयुग्मन से यह परिवर्तित होती है  इस संयुग्मन को संकरण अथवा hybridisation कहते हैं और इससे  उत्पन्न संतति को ही संकरित संतति या हाइब्रिड स्पीसीज कहते हैं..... अब पाम यहाँ आकर बोलेगा की में भारतीय हूँ तो केवल सत्ताधारी ही उसे भारतीय मानेगें विज्ञान और भारतीय उसे नहीं मानेंगे.....और आम जाकर बोलेगा की में अमेरिकन हूँ तो आप ही उसे अमेरिकन मानेगें विज्ञान और हम तो नहीं मानेगे हाँ उसने पाम से बच्चे दे दिए  तब हम कहेंगे ये बच्चे खाम खाँ हैं | 
  • धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट करता  है आप कौन हैं कहाँ से आए हैं इसके संसूचक धर्म व् जाति है, यदि यह उपकरण नहीं होता तो  बाह्य  आँतरिक में भेद करना कठिन हो जाता | राष्ट्रवाद इस भेदवाद अथवा द्वैतवाद  पर अवलम्बित हैं द्वैतवाद के बिना राष्ट्रवाद की कल्पना नहीं की जा सकती, द्वैतदृष्टि ने ही मानव जाति के मध्य सीमाएं व् मर्यादाएं निश्चित की जैसेएक वैज्ञानिक पहचान है : - तुम्हारा स्वभाव हमसे भिन्न है इसलिए तुम उधर रहो हम इधर रहेंगे | इस प्रकार एक  सीमाबद्ध क्षेत्र अंतर्गत एक परिवेश निर्मित हुवा फिर इसी परिवेश आवेष्टित निश्चित भूभाग ने देश अथवा राष्ट्र का स्वरूप लिया | अब यदि  विपरीत स्वभाव संस्कृति के जातक अथवा उनके वंशज अपने भूभाग को छोड़ कर दूसरे के भूभाग में रहेंगे और उसपर शासन करेंगे या उसपर शासन करने की अभिलाषा करेंगे तब उस भूभाग को निर्मित करने वाले वहां के मूल निवासी अथवा उनके वंशजों को इससे आपत्ति होगी.....
  • राष्ट्रविरोधी नेतृत्व के प्रति प्रत्येक नकारात्मक विचार राष्ट्र व उसके जनसामान्य हेतु सकारात्मक होते हैं
  • ये दोनों दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं ये दोनों ही दल राम राम कर भारत की सत्ता के सिंहासन पर चढ़े और इस्लाम-इस्लाम कर उतर गए, यदि ये यूँही इस्लाम-इस्लाम खेलते रहेंगे तो एक दिन जागरूक भारतीय इस लोकतंत्र के खेल का सत्यानाश कर देगा…..
  • सत्ता निरंकुश न हो इस हेतु  लोकतांत्रिक दलगत शासनप्रणाली की संसद्सभा में एक शसक्त विपक्ष का होना परम आवश्यक है | एक विपक्ष का यह कर्तव्य है कि वह शासक की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश रखे  | किन्तु कई बार ऐसा दृष्टिगत हुवा कि राष्ट्रहित विषयों के निर्णय व् नियम नीतियों के निर्धारण में विपक्ष ने अकारण बाधाएं उत्पन्न कर राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को तिलांजलि दे दी  | ऐसा भी दृष्टान्त मिला जब राष्ट्रहित विषयों के विरुद्ध दोनों ही पक्ष मतैक्य थे ऐसी मतैक्यता ने राष्ट्र की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया | पक्ष हो अथवा विपक्ष राष्ट्र तथा उसकी सम्प्रभुता की रक्षा करना उनकी प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए | संविधान से सदैव राष्ट्र सर्वोपरी होता है क्योंकि राष्ट्र के अस्तित्व से ही संविधान का अस्तित्व है इस हेतु उभय पक्षों को चाहिए कि वह चारों ओर से राष्ट्र की रक्षा करें इस उपक्रम में वह ऐसे प्रावधानों का उपबंध करें जिससे उसकी अखंडता पर आंच न आए.....    


  •  यदि ये दल सत्ता हेतु हिन्दू धर्म का दुरुपयोग करके ''मुख में राम-बगल में इस्लाम''' रखना छोड़ दे तो यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा यदि नहीं छोड़ेंगे तो लोकतंत्र वाट लग जाएगी.....
  • भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी कौड़ियों के भाव में बिकी थी और उसका  क्रेता एक भारतीय है ऐसा मैने कहीं पढ़ा था.....
  • भगवान शिव-पार्वती के विवाह से,

          करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा | गनन्ह समेत बसहि कैलासा ||
          हर गिरिजा बिहार नित नयऊ | तेहिं सिंगार न  बखानत कहउँ  ||
          प्रसंग : - यह पंक्तियाँ भगवान शिव व् गिरिजा के विवाह पश्चात का प्रसंग है
          भावार्थ : विवाह पश्चात शिव-पार्वती विविध प्रकार की प्रणयक्रिया करते हैं और गणों समेत कैलाश पर              रहने लगते हैं ये नित्य नए विहार करते हैं तुलसी दास जी कहते हैं : -  विवाह पश्चात उनके श्रृंगार का मैं             वर्णन नहीं कर सकता क्योंकि वह जगत के मात-पिता हैं |

  • गंगा हमारी परिष्कृत संस्कृति की द्योतक है इसे दूषित कर हम एक दिन गंगाजल को भी समाप्त कर देंगे.....
  •  'आम के आम और गुठलियों के दाम' अर्थात उत्पाद के साथ साथ उसके अवशिष्ट से भी लाभ अर्जित करना | शास्त्रों में कृषि कर्म को संसार की सबसे उत्तम आजीविका कहा गया है | कृषि कर्म में उपज से आय तो होती ही होती है साथ ही इसके अवशिष्ट से भी लाभार्जन किया जा सकता है | कृषोपज का अवशिष्ट गौमाता का भोजन है यदि कृषि हमारी आजीविका है तब हमें गौपालन अवश्य करना चाहिए | गौ माता आय का एक बहुआयामी साधन है इससे हमें अमृत तुल्य गौरस, खेतों की पोषणकारी उर्वरा, ईंधन के रूप जैविक गैस और गौमूत्र के रूप कीटनाशक व् रामबाण औषधि प्राप्त होती हैं | आजकल शुद्धता की अत्यधिक मांग हो चली है लोग इसके मुंहमांगे दाम देने को तैयार हैं हम दुग्ध से दुग्धडेयरी का अतिरिक्त व्यवसाय कर सकते हैं जहाँ विशुद्ध खोवा,घृत,छेना-पनीर, नवनीत, दही,मही का निर्माण इकाई के रूप में किया जा सकता है | खोवे व् छेने से विशुद्ध मिष्ठान तैयार कर उसके भण्डार या शोरूम खोले जा सकते हैं  शुष्क गौमय के चूर्णकर उसकी धूप अगरबत्ती आदि  पूजन सामग्री की लघु इकाई भी स्थापित की जा सकती है | हाँ खेतों के किनारे किनारे हम फलदार वृक्ष लगाना न भूलें ये रसीले फल प्रदान करने के साथ साथ आपके खेतों की मिटटी के कटाव की रोकथाम करते है | तो देखा साथियों इस प्रकार हम आम के साथ उनकी गुठलियों के दाम ही अर्जित नहीं करते प्रत्युत उनके छिलकों को भी सोना बना सकते हैं आवश्यकता है तो थोड़ी लगन और थोड़े परिश्रम की.....
  • कहते हैं तलवार विश्व का सबसे घातक हथियार है और इससे भी अधिक घातक लेखनी है.....
  • ये लाल गुलाबी भारत जिनके भीषण रक्तपात कहानी कहते हैं उन मुगलों, मुसलमानों की सत्ता भारत में आज भी यथावत है आज के अकबर संसद में बैठे हुवे हैं और राणा प्रताप को जनसामान्य में नक्कार खाने की तूती बना दिया गया है | सुचना के माध्यम जब तब उसे भरमाते हुवे कहते हैं मत दो ! तूती कहता है क्यों दूँ ? उत्तर मिलता इसलिए कि यह तुम्हारा अधिकार है इसलिए कि तुम्हें लोकतन्त्र सुदृढ़ करना है वह कहता है अकबरी सत्ता वाला लोकतंत्र ? उत्तर मिलता है यदि तुमने मत नहीं दिया तो ऐसे वैसे लोग संसद पहुँच जाएंगे | तूती कहता है जब मत दिया ही नहीं तब कोई कैसे संसद पहुँच सकता है ? उत्तर मिलता है जनादेश को धत्ता बताकर जैसे अपने वित्त मंत्री पहुंचे थे | अच्छा होगा कि तुम उसे मत देकर पहुंचाओ अन्यथा जिसे संसद पहुंचना है वो तो पहुंचेगा ही | तूती प्रश्न करता है क्या हम स्वाधीन हैं ? क्या देश स्वतंत्र है ? मुग़ल मुसलमान गए नहीं क्या ये लोकतंत्र है ? समय आ गया है अब हम किसी नए तंत्र का चिंतन करें जो दासोन्मुखी न हो, जो पतनोन्मुखी न हो,जो  राष्ट्र विरोधी न हो,  जो भारत की मौलिकता का संरक्षण कर उसकी सीमाओं का संवर्द्धन करे, जो बुराइयों व् समस्याओं से रहित हो, तब तक हम मत तो दें किन्तु स्वयं को.....|


>> जब देश की बुद्धि रूपी इस संसद में चलचित्र के तारक तारिकाएँ बैठे हों, आपराधिक तत्व बैठा हो, दुश्चरित्रता बैठी हो तब उसे भ्रष्ट तो होना ही है और जब इस बुद्धि में देश को दास बनाने वाले बहिर्देशी भी बैठे हों तब इस देश के टुकड़े-टुकड़े होना भी निश्चित है.....

>> पहिरत सोई कापड़ा पावत सोई रोटि |
     तापर सत्ता हेतु किए बुद्धिहि आपुनि छोटि ||

>> माहो-अख्तर रखने की है औक़ात तो आसमाँ हो तुम..,
     वर्ना तो एक मुश्ते ख़ाक का ज़र्द ज़र्रा हो तुम..,
    रोजो करता है जफ़ा ज़ब्ह -ओ -जुल्मो सितम..,
    उस कमज़र्फ आदमी कहते हो हाँ खुदा हो तुम.....



  • होगी संख्या अल्पतर जब भारत तेरी संतान की.
   राज करेगा मुस्लिम सत्ता होगी मुसलमान की.....

हो रही जो दशा सुनो जम्मू और कश्मीर की
हो रही जो दशा अवध में राम के मंदिर की

पाकर दाता फिर से शक्ति तेरे मतदान की
राज करेगा मुस्लिम सत्ता होगी मुसलमान की.....


>> योग्यता  की उपेक्षा करने वाले (आरक्षण के समर्थक)योग्यता अपेक्षा न करे.

>> लक्ष्मी का पाणिग्रहण कर लक्ष्मीवान बनना यदि मूर्खता है तो यह मूर्खता अच्छी है.....

>> जिन्हें राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्ष, आतंकवाद जैसे शब्दों की परिभाषा ज्ञात नहीं वह देश के शासक बनने हेतु लालायित हैं.....दुर्भाग्य.....!!

>> पाखंडी कारागार से मुक्ति अभिलाषा करते हैं और संत कारागार को भी तपोभूमि में परिवर्तित कर देते हैं.....
>> भारतीय जनमानस सत्ता परिवर्तन हेतु सोचने लगा है किन्तु उसमें व्यवस्था परिवर्तन वाली समझ विकसित होनाअभी शेष है-आपके मनोभावों से ऐसा प्रतीत होता है.....

>> चौकीदार चोर न होकर ऐसा संत महात्मा है तो उसको बोलो सत्ता का लालच न कर किसी मंदिर में जाके घंटा बजाए.....
>> ये सत्ताधारी लोगों के घरों में बलपूर्वक प्रविष्ट होकर झंडे लगाते हैं और विरोध करने पर दुर्व्यवहार करते हैं.....

>> भारतीय संविधान में न्यायपालिका का कार्य न्यायनिर्णय करने का है न कि  आदेश देने का
संविधान का उल्लंघन होने पर कोई न्यायाधीश महाभियोग द्वारा पदच्युत किया जा सकता है.....

> यहाँ यदि कोई कुशल शासक होता तो पाक अधिकृत कश्मीर  पर पुनश्च भारत का अधिकार स्थापित हो जाता.....

>> यह सत्य हो सकता है लंका में घुसे हनुमंत को रावण ने पूँछ में आग लगाकर लौटाया था सूट-बुट पहनाकर नहीं..... यदि यह सत्य है तो बंदरनाच दिखा काहे नहीं देते.....
>> काम लज्जा को, क्रोध बुद्धि को,लोभ धर्म को व् मोह ज्ञान को नष्ट कर देता.....
>> योद्धा युद्धक्षेत्र में बोलते अच्छे लगते हैं ध्वनि विस्तारक पर नहीं.....
>.> मानव की दुनिया से प्रकृति विलुप्त होती जा रही है.....
>.> जहाँ नेता निडर हों वहां का लोकतांत्रिक शासन निरंकुश होता है.....

>.>  मुसलमानों के भारतीय होने का एक ही अर्थ है वह है पराधीन भारत.....

>> विश्वमान्य इतिहास के अनुसार हिन्दू धर्मावलम्बियों का मांगलिक अवसरों पर नृत्य परम्परा सैन्धव सभ्यता की देन है.....

 >> घोटालों की अदरक का स्वाद ज्ञात न ही हो तो ही अच्छा है.....
>> श्रवणकुमार के मातपिता की कोई वधु नहीं थी.....
>>  क्योंकि हिन्दू धर्म के मूल में अहिंसा है इसलिए यह कटु सत्य है कि इस्लाम आतंक का जनक है.....

>> यह परिश्रम सत्ताप्राप्ति हेतु है देशहित के लिए नहीं.....
>>  पराक्रम  किसके लिए है ?
 एकजुटता किससे है ?
इच्छाशक्ति किस हेतु है ?

>> देश की सेवा और विश्व का कल्याण.....

>> हमने अपना धर्म अपनी जाति विस्मृत कर दी तो ये देश भी हमें विस्मृत कर देगा फिर एक दिन पराए कहेंगे ये देश हमारा है और हमसे पूछंगे कौन है तू.....?

>> अमृतमय ये पवित्र नदियाँ इन बुद्धिमानों की बुद्धि से ही मलीन हो रही है.....

>> कश्मीर तो कब से इस्लाम का हो चुका है और इसे हमारा हमारा कहकर भारतीयों को मूर्ख बनाया जा रहा है.....
>> वल्लभ भाई पटेल का नारा था पराधीनता को ''कर मत दो'' क्या हम स्वाधीन हैं, क्या हमें मत और कर देना चाहिए.....?
>> "आमदनी अठन्नी खर्चा रुपय्या....."

>> जो दूध पिलाए वह माँ ही होती है अट्ठारह पुराणों में से एक मार्कण्डेय-पुराण है विश्वास नहीं होता कि यह पाषाणपंथी सोच वाला व्यक्ति अपने  नाम रखने वाले माता-पिता की संतान है.....


>> यह भी ध्यानने योग्य बात है कि भारत की संतान ने कभी कोई लूट नहीं मचाई किन्तु खान की संतान ने आते ही लूट मचा दी.....

>> और शेष सभी दल इन 'ख़ाँ-ग्रेसी' के पदचिन्हों पर चल रहे हैं.....कोई दल ऐसा नहीं है जो इनकी विचारधारा से पृथक हो.....

>> अरे भाई बिंदु में सिंधु लिखा करो तो लोग पढ़ेंगे जैसे : -
भारतीय ''प्राण जाए पर वचन न जाए'' के अनुयायी हैं इंडियन ''चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए'' के.....


>> कुछ रचनाएं तात्कालिक पाठकों हेतु तो कुछ पीढ़ियों और उनके मार्गदर्शन हेतु होती हैं.....

>> भारत का बचपन मात-पिता की छत्रछाया में पलता है और इंडिया का सड़कों पर .....


>.> वैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग से गृह युद्ध होता है पहली बारी पढ़ रहे हैं.....

>.> अरब देशों के उधार की सरकार है इनकी.....
>> वर्तमान की २०से ३० वर्ष वाली नवागत नेता पीढ़ी भविष्य में इतनी अधिक असंयमित होगीं कि सत्ता प्राप्ति केलिए सेना तक का दुरूपयोग करने से भी नहीं चुकेंगी.....

>> राम मंदिर की बात करो तो ये न्यायधीश बने नेताओं के बंगले झांकने लगते हैं.....

>> ठगवे का तो एक ही काम ''मुख में राम बगल में इस्लाम.....''
>> यदि घूस घोटाला वाला भ्रष्टाचारी तंत्र चाहिए तो ही मतदान केंद्र तक जाइये और अपना घर लुटवाने को तैयार रहिए.....

>> इन्हें पाशविक वर्ग (कैटलक्लास ) भी कहें तो यह पशुओं का अपमान होगा.....

>> आमदनी अठन्नी कर दी खर्चा रुपय्या..... 

>> ये हमारे आराध्य हमारे जन्मदाता हैं क्या इनकी छवि इस प्रकार दर्शानी चाहिए.....?

>> ये सचमुच में भगवे  है या सत्ताधारी के ठगवे हैं.....?

>> एक बात बताइये, यदि सवा करोड लोग प्र.मंत्री का परिवार है तो जो  ४०% बहिर्देशीय समुदाय पंजे के बाप हैं वो उनके क्या लगते है.....? दूसरा प्रश्न : - इस देश की एकशासन पद्धत्ति (एक व्यक्ति द्वारा संचालित शासन पद्धति ) है अथवा दलगत शासन पद्धति है.....?

>> चारित्रिक गठन भी उतना ही आवश्यक है जितनी की शालेय शिक्षा, यह गठन उच्च आदर्श मानकों व् नैतिक ज्ञान से होता है ये नैतिक ज्ञान और आदर्शक हमें धर्मचर्या से प्राप्त होते हैं पूजन गृह की स्थापना धर्मचर्या का ही एक कृत्य है.....

>> ''सिकल सेल अनीमिया'' ये एक रोग है जो भारत में सर्वाधिक छत्तीसगढ़ में पाया जाता है इसका कारण चकित करने वाला है  ''साहू'' जाति वर्ग  के लोग इस रोग से अधिक ग्रस्त पाए गए हैं  इस प्रदेश में इस जाति का बाहुल्य है अभी इस रोग पर शोध चल रहा है हो सकता है किसी रोग अथवा उपचार के शोध हेतु किसी रोगी से उसका धर्म पूछा गया हो.....

>> कश्मीर तो कबसे इस्लाम का हो गया.....हमारा हमारा कहकर मूर्ख बनाया जा रहा है हमें.....

>> धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होए |
माली सींचे सौ घड़ा रुत आवै फल जोए ||
----- || संत कबीर दास || -----

>> ''आप'' के लात मारे हुवे और कितने नेता हैं आपके व्यवसायिक समाचार समूह में.....?

> दुइ पंगत करि कहनी महँ दोइ पलक खरचाए | 
    करनि माहि सदरे दिवस भर की लागत आए || 
भावार्थ : -  कथनी की दो पंक्तियाँ रचने में दो क्षण ही व्यय होते हैं किंतु इसे करनी में परिवर्तित करने हेतु दिवस भर की लागत लग जाती है |
अर्थात : - कथनी करना सरल है उसे करनी में परिवर्तित करना कठिन है.....

>> करतब दासा देस जो लूट खूँद कर खाए | 
      कहौ बंधू साँचहि कहा कहन जोग सो भाए || 
भावार्थ : - इस देश को दास बनाकर जिन्होंने इसका आर्थिक शोषण किया बंधू सत्य कहिए क्या वह भाई कहलाने के योग्य हैं ?

>>   पृथ्वी में जबतक ईंधन शेष है ये मशीनी युग भी तभी तक है.....फिर कंकड़ों के जंगलों में कागद भी नहीं होंगे..... तबतक यदि लोकतंत्र जीवित रहा तो लोग पाषाणयुग के जैसे चट्टानों में भित्तिचित्र  द्वारा मतदान करेंगे.....


>> यद्यपि उच्च शिक्षा से विश्व की आधारभूत विज्ञता तो प्राप्त होती है किन्तु यह विज्ञता व्यक्ति को ज्ञानी नहीं बनाती या यूं कहे अंग्रेजों की शिक्षा पद्धति शिक्षित तो करती है किन्तु ज्ञान नहीं देती एक शिक्षित शासक से एक ज्ञानी अधिक उत्तम होता है और वह दोनों हो तो सोने पर सुहागा है.....

>>बिलकुल सही..... यदि वास्तव में ये मूलत: भारत के हैं और यदि बांग्ला देश भारत का मित्र देश है तो इनके बसने के लिए उससे भूमि की भी मांग करनी चाहिए.....वैसे ६९ वर्ष हो गए संविधान लागू हुवे अबतक देशवासियों यह ज्ञात नहीं है कौन इस देश का मित्र देश है कौन शत्रु और कौन तटस्थ..... क्या करते रहते हैं इस देश के विदेश मंत्री क्या संसद मख्खियां मारने के लिए है.....?

>> कहो श्याम घन कब छाएंगे..,
  प्यासी धरती तड़प रही कब पानी बरसाएंगे..,
      बरखा रानी कब बरखाएगी बूँद.....

      कहो श्याम घन कब छाएंगे..,
 बादल गरज गरज कब मेघ मल्हारा गाएंगे..,
       कब बुँदे छम छम बरसेंगी.....

  यह कैसा युग परिवर्तन है..,
रही कहाँ राम की वह मर्यादा अब..,
   यहाँ रहे राम आदर्श कहाँ.....   

सूरज देखें आँखें लाल किए
किरण किरण को ज्वाल किए
नदी पर्वत वन हुवे तप्तायन

गगन मैं स्याम घणा बिराज्यो..,
पिचरंगी पुरट को पटको रे काँधेन देइ..,
कारो काजलियो सों नैनन साज्यो.....

आदि माहि करतब भला अंत बुरा परिनाम |
बंधु सो तो साँच नहीं  झूठहि वाका नाम |
भावार्थ :
कोई असत्य प्रारम्भ में भले ही भला करता हो तथापि अंत में बुरा ही परिणाम देता है,इसलिएअसत्य भाषण कभी नहीं करना चाहिए…..

  • जिस भाषा मेँ अधिकाधिक स्वर व् व्यंजन हों उस भाषा का व्याकरण समृद्ध होता है और व्याकरण की समृद्धि भाषा को समृद्ध करती है |संस्कृत में सर्वाधिक स्वर व् व्यंजन हैं तत्पश्चात हिंदी में फिर उर्दू में इसके पश्चात चौथे क्रमांक में अंग्रेजी की बारी आती है | वह भाषा श्रेष्ठ मानी जाती है जो भावों को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करने में समर्थ हो और समृद्ध भाषा में ही ऐसी क्षमता होती है | 




Monday 14 January 2019

----- ॥ टिप्पणी १७ ॥ -----,

>> रेवड़ी के जैसे बंटने वाली नागरिकता का भी अंतत:यही परिणाम होना है.....ये नागरिकता या तो हमारा सब कुछ लूट कर ले जाएगी या हमें घर से ही निकाल देगी.....

>> यदि किसी अन्य दल ने चुनाव जीत कर मंदिर बना दिया तो देश हो न हो संसद अवश्य बीजेपी मुक्त हो जाएगी.....

>. ये देश है कि कोई धर्मशाला है जिस धर्म को देखो यहीं आ जाता है..... सारे जगत को भारतीय का ठप्पा लगा के यहीं काहे नहीं बसा लेते.....हमें जगत में भेज दो..... वहां भी हमने एक गंगा न निकाल दी तो फिर चन्द्रमा में भेज देना.....

इस देश को बहु बेटियों के रहने योग्य छोड़ेंगे कि नहीं ये न्यायाधीश बने नेता.....ये लोकतंत्र का नाटक क्यों कर रहे हैं..... स्पष्ट कहते क्यों नहीं कि ये अधिनायक तंत्र है.....

राजू ; -- में कहता हूँ इस न्यायालय की अंग्रेजी बंद कर दो तब इसकी बुद्धि ठिकाने आएगी.....


>> न्हाए धोए क्या हुवा मन का मैल न जाए |
मीन सदा जल में रहे तापर देइ बसाए ||
भावार्थ : - कबीर दास जी कहते हैं स्नान का महत्व तभी है जब मन में कोई मलिनता न हो | स्नान से पाप नहीं धुलते यदि धुलते तो मीन मलीन न होकर पावन पवित्र होती |

>.> ''अहिंसा परमो धर्म :'' का सूत्रपात कर हिन्दू धर्म में मांसाहार वर्जित किया गया देह की लाभहानि हेतु नहीं.....और फिर गांय तो एक पालतू अहिंसक और ममतामई प्राणी है इसका वध तो परम दोष है.....

>> मुंह टेड़ा हो जाएगा, टाँगे दो से एक रह जाएगी, चल नहीं पाएंगे.....तथापि भगवद रटन के स्थान पर ये नेता सत्ता सत्ता रटते हुवे ही मरेंगे.....

>> भगवान का कारावास में जन्म निर्दोष को दंड का प्रतीक है.....

>> जैसे ईश्वर को अर्पित किया गया भोजन पवित्र होकर प्रसाद हो जाता ,है वैसे ही ईश्वर के निमित्त किए गए स्नान से हमारी देह पवित्र होकर पापमुक्त हो जाता है.....

>> यूरोप अमेरिका के अल्पसंख्यक हैं किस धर्म के.....? यदि ये हिन्दू हैं तो फिर इस धर्म के अस्तित्व पर ही भारी संकट आन पड़ा है.....
आप संसद में हैं इसे उसे कोसने से अच्छा होगा की आप इस हेतु नियम बनाएं.....

>> बात तो सही है किन्तु आपकी कौन मानेगा.....? आजकल सत्ताधारी और उनके चाटुकारों की मनती है.....

>> ये शरणार्थी होकर ही जागेंगे.....इन्हें देश नहीं केवल नौकरी चाहिए.....बिजली पानी चाहिए..... वो अंग्रेज दे दे या मुसलमान.....
>> धाम धनु घरहि अरु बंधु मरघट छुटिहि जाए |
सुभासुभ करतब करमहि पाछहि पाछे आए ||
----- || गरुड़ पुराण || -----
भावार्थ : -धन-सम्पदा घर में छूट जाती है बंधु बांधव्य श्मशान में छूट जाते हैं | किए गए शुभाशुभ कर्म ही मृतक के पीछे पीछे जाते हैं |

>> भाव भगति रामजी सी लंका पति सा साज |
राम का मंदिर अहहैं कहु कहँ वाका राज ||

>> विवाह स्त्री पुरुष के पारस्परिक सम्बन्ध की अनुमति मात्र है, इस अनुमति से रहित संबंधों में भी वही दोष दर्शित हो रहा है जो ''बाल विवाह'' अथवा ''किशोर वृद्ध विवाह'' अथवा ''अधिवेत्ता विवाह'' (एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करने वाला पुरुष )में दृष्टिगत होता था ऐसी अनुमति विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था या न्यायपालिका प्रदान कर रही हैं मायानगरी में यह रूढ़िवादिता सर्वाधिक देखने को मिल रही है.....वर्तमान में निर्धन अश्पृश्य हो गया है, मालों (मंडियों ) में संसद सभा में ऊंची अट्टालिकाओं में उसका प्रवेश निषेध हो गया है अर्थात : -

''राहे-रवां वही रही राही बदल गए.....''

>> पाखंड रहित नग्न साधुत्व हमें त्याग की शिक्षा देता हैं,

एक त्यागा हुवा वस्त्र किसी अभावग्रस्त के देह को ढांक सकता है..,

हम वस्त्रों का उपयोग करें उपभोग नहीं.....


>> एक आरक्षित अवसर १० को पिछड़ा, पददलित व् निर्धन बना देता है.....

>> डेढ़ सहस्त्र वर्ष हो गए, ये सत्ताधारी अब भी हमसे इन मुसलमानों की टट्टियाँ ही उठवाते रहेंगे क्या.....?

>> एक धर्म में कोई वर्ग उपेक्षित हो तो आवश्यक नहीं वह दूसरे धर्म में भी उपेक्षित हो..... पर नहीं : - खाता न बही - जो सत्ताधारी कहें वो सही.....

>> पाखण्ड रहित नग्नसाधुत्व प्रकृति के आतप्त के प्रति सहिष्णुता की शिक्षा देता है..... प्रलयकाल में ऐसे सहिंष्णु ही मनुष्य जाति को बचा रखेंगे.....

>> राजा होकर भी जब भगवान ने राजसी स्नान नहीं किया तो हम क्यूँ करें.....?

>> हिन्दू धर्म में भी स्त्रियों की दशा दयनीय थी कालान्तर में इस धर्म ने सुधारवादी विचारों को स्थान दिया।....भय है की इस प्रकार के अधिनियमों से वह स्थान लुप्त न हो जाए.....

>> हिन्दू विवाह सचमुच में एक अटूट बंधन ही था, इस बंधन में तलाक व् डाइवोर्स जैसे शब्द ही नहीं थे.....इस बंधन में इन शब्दों का विष भी इन सत्ता के लालचियों का ही घोला हुवा है.....

>> विभाजन में आपको अवसर दिया गया था ''इस्लामावाद'' अपनाने का.....ये एक धर्म विशेष की सामाजिक व्यवस्था है यदि ये बुराई हैं तो भी आपको अधिकार नहीं है इनपर टिका टिपण्णी करने का....आप अपने धर्म की बुराइयों को देखिए.....


>> किसी संविधान का विरोध देशद्रोह है.....? वह संविधान जो अपनी मौलिकता को विस्मृत कर अपने ही राष्ट्र के दासकर्ता को अधिकारों से संपन्न करता हो.....?

गए.....देश द्रोह में कितना दंड है.....बापरे ! फांसी.....

 ----- ॥ धर्मो रक्षति रक्षित: ॥  ----- 

>> कांग्रेस प्रोसेस से ऋण लो और भाजपा प्रोसेस से ऋणमुक्त हो जाओ.....देश का बंटाधार कर देंगे ये एक थैली के चट्टे-बट्टे.....

>> औरन की देहरि पड़ा भुल्या अपना मूर |
धन धरती कइ लाहु मैँ मातुपिता गै भूर || ५ ||

भावार्थ : -दूसरों की देहली में पड़ के अपनी जड़ें भूल गए धन और धरती का इतना लोभ हुवा कि अपने मातापिता, अपने पूर्वज तो क्या उनकी कब्रें भी याद नहीं रही |

>> अपने सम्मुख बैठे विपक्ष से प्रधानमंत्री ने कभी इस सम्बन्ध में प्रश्न किया कि यह स्वतंत्रता देश की थी या कांग्रेस की.....

>> हिन्दू विवाह अधिनियम है भाई.....

>. जिस देश में चरित्रहीनता का वास होता है, वहां नारी असुरक्षित रहती है.....

>> सेवा व् उपासना दोनों शब्द एक ही भाव से व्युत्पन्न हुवे हैं एतएव दोनों का धर्म भी एक ही होना चाहिए वह है लोकोपकार.....

>> पच्चीस तीस लाख पैकेज वाली दासी आई 'आई टियर्स' से एक करोड़ लाभांश वाली पकोड़ा मुस्कान का समाज में अधिक सम्मान है.....










Tuesday 8 January 2019

----- ॥ दोहा-द्वादश १६ ॥ -----,

गदहा भए उपाधि लहे जोग भये अपराध |
अधुनातन एहि देस मह साधक भए बिनु साध || १ ||
भावार्थ : - अयोग्यता को योग्यता सूचक पत्रोपाधि व् पद प्राप्त हो रहे हैं योग्य होना अपराध हो गया है | विद्यमान परिदृश्य में कुशलता को देश के संचालनोपकरणसे रहित व् अकुशलता को उससे युक्त किया जा रहा है कैसे चलेगा ये देश.....?

गहे नहि गुन ग्यान जौ होतब सो अगवान |
ग्यानबान दीन करत अब होइहि धनबान || २ ||
भावार्थ : - जिसने गुणज्ञान ग्रहण नहीं किया है जो अयोग्य है वह अब आगे होकर उपाधियों का अधिकारी होगा और योग्य मध्यमवर्गीय ज्ञान वान को निर्धन रेखा के नीचे लाकर रातोंरात धनवान बनेगा.....

अधिकार वादी लोकतंत्र का नया आदेश.....

पाहन होतब नीउँ के भए सो कलस कँगूर |
सेष उठे बिनु होत भरित भवन ते दूर || ३ ||
भावार्थ : - जिन पत्थरों को नीचे रहकर समाज रूपी भवन की नीव होना था समाज का उत्थापक होना था वह पर्वत शिखरों के कंगूरे बनकर ऊँचे पदों, ऊँचे स्थानों पर सुशोभित हो जाएं तब फिर शेष रहे पत्थर रूपी समाज, उत्थित भवन बनने से दूर होता चला जाता हैं |


ऊंचाई सोई भली राखे जिउ जिउ जेहि | 
नीचाई बुरी जौ निज नीच निरखे न केहि || ४ || 
भावार्थ : - वह ऊंचाई उत्तम है जो नीची दृष्टिकर जीव मात्र की रक्षा करे | वह नीचाई निकृष्ट है जो यह नहीं देखती कि उसके नीचे भी कोई है |

औरन की देहरि पड़ा भुल्या अपना मूर | 
धन धरती कइ लाहु मैँ मातुपिता गै भूर || ५ || 
भावार्थ : -दूसरों की देहली में पड़ के अपनी जड़ें भूल गए धन और धरती का इतना लोभ हुवा कि अपने मातापिता, अपने पूर्वज भी याद नहींरहे |

धरम बिहूना मानसा भया दया ते हीन | 
लखत लखत मुख सबन कै गौउ मात भइँ दीन || ६ ||   
भावार्थ : - धरम से निरपेक्ष हुवा मनुष्य दया से रहित हो गया आशा पूरित नेत्र से सब ओर निहारती सर्वकामद गौ माताएं विपदाग्रस्त हो गईं |

जबह करे जुलूम करे बनता फिरे इंसान | 
ख़ौफ़ ख़ावत ता संगत भागे दूर मसान || ७ || 
भावार्थ : - जो जीवों पर क्रूरता पूर्ण व्यवहार कर फिर मनुष्य बना फिरता हो ऐसे भूत से सहमकर तो श्मशान भी दूर भागता है |

धरम न कोउ बिसारिये निकसत जबहीं प्रान | 
धरके काँधे धर्मही लेइ जात श्मसान || ८ || 
भावार्थ : - किसी को भी धर्म का अनादर नहीं करना चाहिए  वह धर्म ही है जो प्राण निकलने के पश्चात मनुष्य को अपना कंधा देकर श्मशान ले जाता है | 

धरम रहित मनुष्य पशु के समान है यदि पशुओं में धर्म होता तो उनकी भी श्मशान में अंत्येष्टि होती 

 दुइ पंगत करि कहनी महँ दोइ पलक खरचाए | 
 करनि माहि सदरे दिवस भर की लागत आए || ९ || 
भावार्थ : -  कथनी की दो पंक्तियाँ रचने में दो क्षण ही व्यय होते हैं किंतु इसे करनी में परिवर्तित करने हेतु दिवस भर की लागत लग जाती है |
अर्थात : - कथनी करना सरल है उसे करनी में परिवर्तित करना कठिन है.....

करतब दासा देस जो लूट खूँद कर खाए | 
कहौ बंधू साँचहि कहा कहन जोग सो भाए || १० || 
भावार्थ : - इस देश को दास बनाकर जिन्होंने इसका आर्थिक शोषण किया बंधू सत्य कहिए क्या वह भाई कहलाने के योग्य हैं ?