Friday 24 May 2019

----- || दोहा -विंशी 2 || ----

बन में सिँह बहु रहि सकैं, तूनी में बहु बान |
दोइ खाँड़ा न रह सकै, कबहुँक एकै पिधान ||१ || 
भावार्थ : - वन में बहुतक सिंह रह सकते हैं तूणीर में बहुतक बाण रह सकते हैं, किन्तु एक पिधान में दो कृपाण एक साथ नहीं रह सकते | 
तात्पर्य : -विपरीत कृत्य करने वाले व्यक्ति एक साथ रह सकते हैं किन्तु दो विपरीत स्वभाव वाले व्यक्ति एक साथ नहीं सकते उनमें परस्पर विवाद अवश्य होता है | 

रुसे न ए बरस बदरिया रुसे नाहि रे मेह |
बूँद बूंद कहुँ तरसते तिलछत कस खन खेह || २ || 

भावार्थ : - इस वर्ष बदली न रूठे,मेघा न रूठे | बून्द बून्द को तरसते खेत-खंड देखो कैसे व्याकुल हैं | 

सोवैं खावैं पँख पसुहु  जनमत जीवहु सोए | 
ताते बिलगित कृत करै सो तो मानस होए || ३ || 
भावार्थ : - भोजन व् शयन यह दिनचर्या तो पशु-पक्षियों की भी होती है संतान को वह भी जन्म देते हैं | जो इससे पृथक कृत्य करे वस्तुत: वही मनुष्य है | 

साँच दया दान अरु तप मानस केरा धर्म | 
सब धर्मिन को चाहिये करतब सोई कर्म || ४ || 
भावार्थ : - सत्य भाषण, दयाभाव, दान क्रिया, त्यागाचरण यह मनुष्य का परम धर्म है सभी धार्मिक सुमदायों को चाहिए कि वह मनुष्य हेतु विहित कर्तव्यों में प्रवृत होकर सर्वप्रथम उक्त मनुष्योचित धर्म का पालन करें  तत्पश्चात अपने अपने धर्मगत सिद्धांतों एवं उनकी पद्धतियों का अनुशरण करे | 

दोइ नैया पाँव धरे लागे नही कगार |
डगमग डगमग दोल के बूढ़े सो मझधार || ५ || 
भावार्थ : - दो नाँव में पाँव रखने से वह तट को प्राप्त नहीं होती | असंतुलन के कारण वह डगमगा उठती है और स्वयं के साथ पारगामी को भी मझधार में डुबो देती है | 


सूखे सूखे नैन सब नदि झरने बिनु पानि | 
दुनिया तोरे ए निरदै  हरिदै केरि कहानि || ६ || 
भावार्थ : - नेत्रों में शुष्कता व्याप्त है नदी झरनों में भी पानी नहीं है |  ऐ दुनिया ! ये तेरे निर्दय हृदय की कहानी  हैं  | 

सब बनस्पति बिनसावै जीउ जंत हति जात | 
बन अस्थलि ए देस अजहुँ मरू अस्थलि दरसात || ७ || 
भावार्थ : - जीव जंतुओं की क्रूरता पूर्वक ह्त्या हो रही है, वनस्पतियां दिनोदिन नष्ट होती जा रही हैं | कभी वनस्थली रहा यह देश अब तो मरुस्थल दर्शित हो रहा है | 

सोइ दसा को दोष दए जोइ दसा का दास |
सो तो रीते घट सदा राखे कंठ पिपास || ८ || 
भावार्थ : - लक्ष्य प्राप्ति हेतु परिस्थतियाँ कभी बाधक नहीं होती,  परिस्थितियों को वही दोष देता है जो उनका दास होता है तथा अयोग्यता के कारण अप्राप्त लक्ष्य की अप्राप्ति का सदैव रोना रोता रहता है | 

नैन गगन दै गोरि काल घटा घन घोर रे |
बैस पवन खटौले चली कहौ किस ओर रे || ९ || 
दोहा : -
नैन गगन दे के गोरि काल घटा घन घोर |
बैस पवन करि पालकी चली कहौ किस ओर ||९ -ख || 

साँच दान दया अरु तप सो त परम हितकारि | 
काम कोह लोभु अरु मद मह अराति एहि चारि || १० | 
भावार्थ : - सत्य, दान, दया और त्यागतप ये मनुष्य के परम हितैषी है | काम क्रोध लोभ और मद ये चार उसके परमशत्रु हैं | 

केतक राजा राज गए गए केतिक धनबंत | 
जग के चाका थमै नहि आगत केहु गयंत || ११ || 
भावार्थ : - कितने ही राज चले गए, कितने राजा चले गए, कितने ही धनवंत चले गए | किसी के गमनागमन से इस जगत का कालचक्र स्थिर नहीं होता यह अनवरत संचालित रहता है || 
मारि खाए जौ  काटि के अजहूँ सो त  उदार | 
कट्टर पँथ कहलाइया जोई राखनहार || १२ || 
भावार्थ : - अधुनातन जो मारकाट कर खाने वाले हैं वह उदार कहलाते हैं जो प्राणिमात्र के प्राणों की रक्षा में संलग्न हैं वह कट्टर पंथी अर्थात मारकाट कर खाने वाले कहे जा रहे हैं | 

पहले राज खसोट जो लूट खूँद करि खाए | 
हमरे पुरखाइन कइँ अजहुँ लूट मचाए || १३ | 
भावार्थ : - जिन्होंने पहले देश की सत्ता व् सम्प्रभुता खसोट कर उसका आर्थिक शोषण किया |  अब इन्होने हमारे पूर्वजों की लूट मचा रखी हैं |  

लूट खूँद करि खाए के जोइ खसोटे राज | 
दरस दीनता आपुनी लूटन चले समाज || १४ || 
भावार्थ : - जिन्होंने पहले हमारे देश को लूटा फिर इसका शासन लूटा और शारीरिक यंत्रणाएं देकर उसका  आर्थिक शोषण किया | अब वह अपने समुदाय की सामाजिक दरिद्रता दूर करने के लिए हमारा सामाजिक शोषण करने पर तुले हैं 

 पराए स्वत बिरोधि  के तौ सौ राखनहार | 
बिरोधि आपन आपनौ वाके को रखबार || १५ || 
भावार्थ : - पराए स्वामित्व का विरोध करने वाले के सौ रक्षक होते हैं | अपने स्वत्व अथवा अस्तित्व हेतु अपना ही विरोध करे उसकी रक्षा कौन कर सकता है | 
तात्पर्य : - आप ब्राह्मण की रक्षा करते  हैं किन्तु बाह्मण अपनी रक्षा करने न दे तब फिर भला उसे कौन बचा पाएगा | 

सबहि देह हरिदै बसे सब हरिदय बसि साँस  |
पीरा होत सबन्हि कहुँ जिउ सब एकै सकास || १६ |
भावार्थ : -  सभी देह में ह्रदय का निवास है, सभी हृदय में सांस का निवास है | ईश्वर के बनाए सभी जीउ एक समान हैं क्योंकि पीड़ा और कष्ट सभी को होती है | 

देही सबहीं जिउ गहे रकत सबै  का लाल |
ताहि हत हिंस करे सो मानस जंत ब्याल || १७ ||
भावार्थ : - देह तो सभी जीव ने पाई है  रक्त तो सभी का लाल है | जो हिंसा कर इनकी ह्त्या करता  है वह मनुष्य मनुष्य न होकर हिंसक जंतु  है | 

पीरे पराए जीउ कहुँ खाए खिंच के खाल | 
मानस कहिता आपुनो रे तू जंतु ब्याल  || १८ || 
भावार्थ : - पराए जीव् को पीड़ा देता है उसकी खाल खिंच कर खाता है |  स्वयं को मनुष्य कहने वाला अरे  मनुष्य तू  मनुष्य न होकर हिंसक जंतु है | 
प्रान रखबारि आपुने  करिता बहुस बिधान | 
जिन कातर मुख बानि नहि लेवे वाके प्रान || १९ || 
भावार्थ : - रे मनुष्य ! अपने प्राणों  की रक्षा के लिए तो तू बहुतक विधान की रचना करता है | जिस निरीह के मुख में वाणी नहीं है उसके प्राण लेने पर उतारू रहता है | 

अपुना जी प्यारा बहु प्यारि अपुनी काय  | 
तब कहा होइ कोइ रे  मार तोहि जब खाए  || २० | 
भावार्थ : - अपनी काया बहुंत प्यारी है अपना जी तो बहुंत प्यारा है |सोचो तब क्या होएगा जब कोई तुझे मारकर खाएगा | 



Wednesday 22 May 2019

----- ॥ हर्फ़े-शोशा 14 ॥ -----

1.सहन-सहन सुलगती हुई सुर्ख़ शमा के जलवे..,
तश्ते-फ़लक पे रक़्स करती कहकशाँ के जलवे..,
शब्-ओ-शफ़क़ बखेर के निकलता है जब चाँद..,
देखते ही बनते हैं फिर तो आसमाँ के जलवे.....
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2..कहीं इशाअते-अख़बार हैं कहीं हाकिमों के तख़्ते हैं..,
शाह हम भी हैं अपने घर के क़लम हम भी रख्ते हैं.....
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3..बिक रहा ख़बर में हर अखबार आदमी..,  
ख़रीदे है सरकार, हो खबरदार आदमी..,
मालोमता पास है तो ही है वो असरदार..,
हो ग़रीबो-गुरबां तो है वो बेक़ार आदमी.....  
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4..सुर्खो-स्याह रु का बाज़ार हूँ मैं..,
सूरते-हाल से बेख़बर अख़बार हूँ मैं.... 
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5.. रिन्द-ए-रास्तों की ये अज़ब दास्ताँ है
काफ़िला बर्के-रफ़्ता औ रहबर न कोई
न कोई आबे-दरिया और तिश्ने-लब है
तिरे मरहलों पे आबे-दरिया न कोई

न रहमत न रिक़्क़त न दयानत की रस्में
इल्मो-इलाही से इसके रहले हैं खाली
न ख़िलक़त के ख़ालिक़ की ही इबादत
  ख़ातिरो-ख़िदमत न कोई

रिन्द = स्वच्छंद, निरंकुश, मनमाना आचरण करने वाला
काफ़िला बर्के-रफ़्ता = द्रुत गति से जानेवाला यात्रिसमूह
रहबर = पथप्रदर्शक
तेरे मरहलों के

न मरहला ही कोई गुजरे-गह पे इसकी
न मंजिल है उसका न रहमाँ ही कोई
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6..सफ़हा-ए-दिल तेरे..,
दरिया की लहरों पे..,
यादों की कश्ती की.,
अजीब दास्ताँ है ये.....

सहरों और शामों के
गिरह बंद दामन से
छूटते हुवे लम्हों की
अजीब दास्ताँ है ये.....

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7..कोई ख़्वाहिश नहीं कोई अरमाँ नहीं..,
कभी यूं भी सफ़र हम तो करते रहे..,
और बसर का कोई पास सामाँ नहीं..,
कभी यूं भी बसर हम तो करते रहे.....

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8..ज़श्न औ जलवा जलसा ज़रूरत से ज्यादा..,
जिंदगी क्या है तू इस हक़ीक़त से ज्यादा.., 
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9..मिटा लक़ीरें औरों की खुद फ़क़ीर बन गए.., 
ऐ दुन्या वो फ़क़ीर आज लक़ीर बन गए.....  

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10..जिसके ज़ीस्त-ए-जहाँ में रहमो-करम के मानी..,
वो इंसा फिर इंसा है जिसकी नज़रों में पानी.....
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11..रख्खें ग़र ईमाने-दिल सच कह दें तो गुनाह है
ये कौन सी दुन्या है ये कौन सा जहाँ है.....
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12..खिल के चमन में रंगो-खुशबु लुटाना है,
तू गुल है तुझे सदा मुस्कुराना है
ए शोला-ए-आफताब औ चॉंद सितारों सुनो,
तुम्हे बुलंदे-आस्माँ को सर पे उठाना है 
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13..तवारिख को स्यह तहजीब को बदरंग किए हुए,
मिरी मुल्के-मलिकियत को वो फरहंग किए हुए,
रहती है मिरे घर में मिरी गुलामियत अब तक,
गड़े मुर्दे उसके उसपे हैं मुझे तंग किए हुए...
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14..लावा से न लश्कर से तोप से न तीर से..,
ख़त्म हुई हकूमतें क़लम बंद शमशीर से..... 
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15..अपनी गुलामियत के हुक्म रानो का..,
मैँ दुश्मन अंग्रेजों का मुसलमानो का.....
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16..फक्र न कर अपनी गरीबो-गर्दवारी पर..,
लोग हँसते हैँ तिरी ईमानदारी पर..,

है पास दौलत तो है सल्तनत औ साहबी..,
है आबाद ज़महुरियत भी इसी रायशुमारी पर..,

इंसाफ पे पाबंदियाँ जबहे-जुल्म को आजादियाँ ..,
बजती हैँ तालियाँ य़ाँ रइय्यते-आज़ारी पर..,
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17..ढली शाम वो सुरमई, लगा बदन पे आग l
फिर रौशनी बखेरते, लो जल उठे चराग ll

चली बादे-गुलबहार, मुश्के बारो-माँद l
सहन सहन मुस्कराके निकल रहा वो चाँद ll

Monday 20 May 2019

----- || दोहा-एकादश 16|| -----

बेद बिधि बिधानतस एक सनातन संविधान |
नेम नीति निरधार जौ दए जथारथ ग्यान ||
भावार्थ : - वेद वस्तुत: वैधानिक सिद्धांतों का प्रबंधन स्वरूप एक सनातन संविधान है जो नियम व् नीतियों का निर्धारण कर यथार्थ ज्ञान का प्रबोधन करते हैं |

टिप्पणी : - संविधान मनुष्य के लिए हैं मनुष्य संविधान के लिए नहीं एतएव यह परिवर्तनशील है | कोई संविधान कितने समय तक मान्य रहता है यह देखने वाली बात है |

नेमनीति एहि हेतु कर सुधित जो


Saturday 18 May 2019

----- ॥ हर्फ़े-शोशा 13 ॥ -----

दुन्या इक बाज़ारे-शौक़ है..,
ख़्वाहिशें-दराज़ हैं ख़रीदार उसकी..... 
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कहतें हैं जो सब रह दीन-धर्म सब मेरे.., 
उस क़ाफ़िले-क़दम का तमाशा भी देखिए.....
रह= राह,पंथ  
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उन दोनों की फ़ितरत एक जैसी थी..,
ये ऐसा था तो वो वैसी थी..,
पूछते हैं ग़ालिब अब दोनों कैसे हैं..,
बढ़िया ! ये ऐसा है न वो वैसी है.....  
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ऐ हुकूमतों होश करो के फिर क़लम के दीवाने.., 
अहले वतन की दीवानगी दिल में ले चले.....
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निकला फिर शान से  सुबह आफ़ताब.., 
सितारों की फ़ौज का सिपह आफ़ताब.., 
 हरिक स्याहपोश सतह को देके शह .., 
 करता हुवा तिरगी पै फ़तह आफ़ताब..... 

सिपह = सिपाही 
स्याहपोश सफ़हे = धरती के ऊपर की बुराइयाँ 
शह = ललकार 
तारीक़ी = अंधकार 

समंदर से उठते वो घटाओं के साए.., 
निगाहों में क़तरे बन के समाएँ..... 
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शोला-ओ-सुर्ख़रू आतश फ़शाँ है आफ़ताब.., 
सरे-बरहन नातवाँ  ज़ोर जवाँ है आफ़ताब..,
हाय कोई रगे-अब्र शमशीरे-बर्क़ लिए कहे..,
अच्छा ये बात है बताओ कहाँ है आफ़ताब.....     
शोला-ओ-सुर्ख़रू आतश फ़शाँ = ज्वलामुखी के अंगारों सा लाल हुवा 
सरे-बरहन  = बिना छत्र का सिर 
नातवाँ = निर्बल 
ज़ोर जवाँ = वीर बलवान 
रगे-अब्र = बादलों की धारी (बादलों की सेना )
शमशीरे-बर्क़ = बिजली की तलवार 
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फिर झूमते मेरी छत की मुँडेर से निकला चाँद.., 
लोग बोले आज तो बड़ी देर से निकला चाँद..... 

Friday 17 May 2019

----- ॥पद्म-पद 34 ॥ -

 रे पलकन्हि पाँखि पखेरे, 
घनिघनि अलकनि पिंजर देई कन खाँवहि छिन छिन केरे..,

भोर भईं नभ उड़ि उड़ि जावैं सो उठिते मूँह अँधेरे ..,
पहरनन्हि के परधन पहरैं प्यारे पियहि को हेरें.., 

बैसत पुनि छत छत छाजन पै सुरति के मुतिया सकेरे..,
बिचरत बीथि बीथि थकि जावैं सिरु पावत घाउँ घनेरे.., 

तापर हेरी हेर न पावैं अरु केहि फेराए न फेरें.., 
ढरकत दिन अब निकसिहि चंदा रे हारि कहैं बहुतेरे..,

तबहि बियद गत होत बिहंगे बिहुर चरनन्हि निज डेरे.., 
आन बसे साँझी सपन सदन करि नैनन रैन बसेरे..,

फिर मौसमे-गुल खिल खिल के महके 
दरख्तों के शाख़सार नए मेहमानों से चहके 




Thursday 16 May 2019

----- ॥ हर्फ़े-शोशा 12 ॥ -----,

ऐ शबे-नीम ज़रा ख़्वाबों के कारिंदों से कहो..,
इन निग़ाहों को भी जऱ निग़ारी की जरुरत है.....
शबे-नीम = अर्धरात्रि
कारिंदों = सुनार
जऱ निग़ारी /= सोने का सुनहरा काम



बर्क़-ए-ताब-ओ-ऱगे-अब्र के क्या मानी है..,
ऐ निगाहे-नम तिरी ज़द क्यूँ पानी पानी है..... 
बर्क़-ए-ताब-ओ-ऱगे-अब्र = बिजली की चमक लिए बादलों की काली धारियां
मानी = अर्थ, आशय, मतलब
ज़द = पलक

क्या होता गर हम आसमानी परिंदे होते..,
बिला इल्म के मानिंद-ए-चरिन्दे होते..,
होते हम भी गर मसलहतों से ख़ाली..,
नीम सहाराओं के ज़ब्हे-कश दरिंदे होते.....
इल्म = ज्ञान, धर्म शास्त्र 
मस्लहत = विचार 
नीमसहरा = घनेजंगल 
जबहे-कश = हिंसक 

कभी रूहानी सी कभी सुहानी सी..,
जिंदगी इक मुश्ते-ख़ाके फ़ानी सी.., 
कभी नज़रों से बरसती बूंदों सी.., 
कभी बहते दरिया के पानी सी...... 
मुश्ते-ख़ाके फ़ानी =   क्षण में नष्ट होने वाली एक मुठ्ठी धूल 

शबे-गूँ-ओ-नीम स्याह फ़लक पे पुरनूर.., 
निकला है आज चाँद सुर्ख़े-रंग में डूब के..... 

मंजिल हो जाती है आसाँ जब कोई हम सफ़र हो 
ग़म ख़्वार अगर हो 
तारीके-शबे- स्याह में वो चराग़े-सहर हो 
क़दम-ब-क़दम उस रहे-ख़ुदा की हो रहबरी 
तरबियत से तर हो 
तफ़रक़ा-ए-अंदाज़ ताक़ पे रखा हो इक तरफ 
तफ़ावतें भी कुछ फासले पर हो 





Tuesday 14 May 2019

----- ॥पद्म-पद ३३ ॥ -----

                             बुधवार, १५ मई, २०१९                          
-----|| राग-मल्हार || ----

बरखे घटा घनकारे नयन से.., 
घिर घिर आवैं सो पहिले सावन से..,  

पलकन कै सीपियन में मोतियन की बुँदिया..,
लटकत लड़ि पड़ते लट पड़ेउ अलकन से.., 

झरि झरि सो गालन के छाजन पै झूरैं.., 
घडी घडी झड़ी करत लपटे रे अधरन से.., 

चढ़ी चढ़ीवहि सो आँट पे परी परी के गाँठी..,
कंठ सहुँ उतरे रे रसि रसि के रसियन से.., 

निरखत रे छबि प्यारे प्रीतम पिया की.., 
प्रीति सहित मेलत हरिदय के दरपन से.....
--------------------------
 रे पलकन्हि पाँखि पखेरे 
घनिघनि अलकनि पिंजर देई कन खाँवहि छन छन केरे 

भोर भईं नभ उड़ि उड़ि जावैं सो उठिते मूँह अँधेरे 
पहरनन्हि के परधन पहरैं प्यारे पियहि को हेरें 

बैसत पुनि छत छत छाजन पै सुरति के मुतिया सकेरे 
बिचरत बीथि बीथि थकि जावैं सिरु पावत घाउँ घनेरे 

तापर हेरी हेर न पावैं अरु केहि फेराए न फेरें 
ढरकत दिन अब निकसिहि चंदा रे हारि कहैं बहुतेरे 

तबहि बियद गत होत बिहंगे बिहुर चरनन्हि निज डेरे 
आन बसे साँझी सपन सदन करि नैनन रैन बसेरे 

----- ॥ टिप्पणी १९ ॥ -----,

भारत में बाह्यवर्ग की सम्प्रभुता 
  •  मुस्लिम भारतीय नहीं हैं क्योंकि आपके पूर्वज लगभग डेढ़ सहस्त्र वर्ष पूर्व इस देश में आए थे |
  • ➝धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट कर यह संसूचित करते हैं कि आप कौन हैं कहाँ से आए हैं | 
  • ➝भारतीय का अर्थ है भारतवासी या भारतभूमि में उत्पन्न भारतवंशी | आप भारत के वासी नहीं है आप वहां प्रवासी बनकर आए और अधिवासी बनकर निवासरत रहे |
  • ➝चूँकि आप अधिवासी हैं एतएव इस राष्ट्र के मूलगत नहीं हैं यह सर्वविदित है कि कोई शाखा उसी वृक्ष की कहलाती जिससे वह उत्पन्न हुई हो वह चाहे पूरे संसार में विस्तारित ही क्यों न हो | आपका वृक्ष भारत नहीं है क्योंकि आपकी जड़ें कहीं और हैं, अत : भारत आपकी जन्म भूमि है न कर्म भूमि इस हेतु स्वयं को  भारतवंशी कहकर  भारत सहित आप अपने ही पूर्वजों को धोखा दे रहे |
  • ➝जाके पूर्बज जनम भए जाहि देस के मूल |
  • जनमत सो तो होइआ सोइ साख के फूल || ३४०० ||
    भावार्थ : -"कोई व्यक्ति किसी राष्ट्र का मूल नागरिक है यदि उसके पूर्वजों की जन्म व् कर्म भूमि उक्त राष्ट्र की भूमि रही हो तथा उसका जन्म ऐसे पूर्वजों द्वारा उत्पन्न माता-पिता से हुवा हो |" और उसने ऐसे पूर्वज सहित ऐसे मातापिता के धर्म से भिन्न धर्म क्यों न अपना लिया हो |
  • ➝जाके पूर्बज जनम भए जाहि देस के  मूल | 
          जनमत सो तो होइआ सोइ साख के फूल || ३४०० || 
          भावार्थ : -"कोई व्यक्ति किसी राष्ट्र का मूल नागरिक है यदि उसके पूर्वजों की जन्म व् कर्म भूमि                      उक्त राष्ट्र की भूमि रही हो तथा उसका जन्म ऐसे पूर्वजों द्वारा उत्पन्न माता-पिता से हुवा हो |" और                उसने ऐसे पूर्वज सहित ऐसे मातापिता के धर्म से भिन्न धर्म क्यों न अपना लिया हो एतएव इस बात प्              संदेह है कि भारत के ९० प्रतिशत मुसलमानों के माता-पिता सहित उनके पूर्वजों की जन्म व् कर्म भूमि              भारत थी | 
  • पाकिस्तान ने स्वयं कहा है भारत नया पाकिस्तान है | भारत में मुस्लिमों की संख्या और उनकी सम्प्रभुता पर दृष्टिपात करें तो यह सत्य सिद्ध होगा | कल्पना कीजिए यदि भारत विभाजन नहीं होता तब भारत में इनकी संख्या कितनी होती | भारत का संविधान प्रत्येक नत्थू खैरे को शासन का अधिकार प्रदान करता है इस अधिकार द्वारा संख्या बल प्राप्त कर कोई भी बहिर्देशीय समुदाय इस राष्ट्र पर शासन कर सकता है और वह भी करते | तब यह देश एक इस्लामिक राष्ट्र होता | प्रवासी रूप आ बसे अधिवासियों के रोग का उपचार विभाजन तो कदापि नहीं है जबकि वह उक्त राष्ट्र के आधिकर्ता हैं | विद्यमान में दासत्व मानसिकता के कुछ लोग इन मुसलमानों को भारतीय कहते है|आने वाली जनगणना में हमें चौंकाने वाले आकड़ें प्राप्त होने वाले हैं, ये आकड़ें हमें सोचने पर विवश कर देगें कि क्या यह देश में मुसलमानों के लिए स्वतन्त्र हुवा था क्या संविधान में किसी को भी शासन करने व् शासक चयन करने का अधिकार होना चाहिए ? यदि नहीं होना चाहिए तब फिर भारत के मूलगत निवासी क्या छलें नहीं जा रहे जहाँ उन्हें अपने ही राष्ट्र का सम्प्रभुत्व प्राप्त नहीं है.....
  • अपनी साम्राज्यवादी सोच को मूर्त रूप देने के लिए भारत में इस्लाम की ये एक नई चाल है कि यहाँ के मुसलमान हिन्दू से मुसलमान बन गए और पाकिस्तान व् अफगानिस्तान के नहीं बने | 

  • धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट कर यह संसूचित करते हैं कि आप कौन हैं कहाँ से आए हैं | यदि यह उपकरण नहीं होता तो  बाह्य  आँतरिक में भेद करना कठिन हो जाता | राष्ट्रवाद इस भेदवाद अथवा द्वैतवाद  पर अवलम्बित हैं द्वैतवाद के बिना राष्ट्रवाद की कल्पना नहीं की जा सकती, द्वैतदृष्टि ने ही मानव जाति के मध्य सीमाएं व् मर्यादाएं निश्चित की जैसेएक वैज्ञानिक पहचान है : - तुम्हारा स्वभाव हमसे भिन्न है इसलिए तुम उधर रहो हम इधर रहेंगे | इस प्रकार एक  सीमाबद्ध क्षेत्र अंतर्गत एक परिवेश निर्मित हुवा फिर इसी परिवेश आवेष्टित निश्चित भूभाग ने देश अथवा राष्ट्र का स्वरूप लिया | अब यदि  विपरीत स्वभाव संस्कृति के जातक अथवा उनके वंशज अपने भूभाग को छोड़ कर दूसरे के भूभाग में रहेंगे और उसपर शासन करेंगे या उसपर शासन करने की अभिलाषा करेंगे तब उस भूभाग को निर्मित करने वाले वहां के मूल निवासी अथवा उनके वंशजों को इससे आपत्ति होगी.....
  • समय आ गया है कि अब हमारी सोच सत्ता परिवर्तन अथवा नेतृत्व परिवर्तन की परिधि में संकीर्ण न रहकर व्यवस्था परिवर्तन तक विस्तारित हो | वर्तमान में भारत का जनसंचालन तंत्र दासोन्मुखी होते हुवे अतिशय दोषपूर्ण है इसे कई सुधारों की आवश्यकता है समय रहते हमने इसे दोषमुक्त नहीं किया तो ऐसी स्थिति में इसके आमूलचूल परिवर्तन की परिस्थितियां निर्मित हो जाएंगी....
  • किसी राष्ट्र की स्वतंत्रता उसके संवैधानिक निबंधों से बड़ी होती है वह संविधान अंगीकार्य योग्य नहीं है जो तत्संबधित राष्ट्र के स्वातंत्र तथा उसके सम्प्रभुत्व में बाधा उत्पन्न करे.....
  • प्रबंधन सों प्रभुत बड़ा बड़ो नेम ते देस |
    सो बिधि सकारु जोग नहि करे देस जौ सेस ||

    भावार्थ : -  संचालन प्रबंधन से सम्प्रभुत्व बड़ा होता है और नियम निबंधनों से राष्ट्र बड़ा होता है वह संविधान अंगीकार योग्य नहीं है जो देश को खंड-खंड कर उसे शेष करने प्रवृत हो
  • यह गर्व का  नहीं प्रत्युत खेद  का विषय है कि सत्ता धारियों के षड़यंत्र का भाजन बना हिन्दू और उसका धर्म अपने मूल से विलगित होकर आज अपनी पहचान खो रहा है | 
  • इसका कारण हैं भारत के वह संविधान निर्माता जिन्होंने मौलिक अधिकारों के नाम पर झुनझुना पकड़ा कर भारतीयों से अतिशय छल कपट किया | मूल की सुरक्षा से मौलिकता की सुरक्षा है किसी राष्ट्र का मूल सुरक्षित तभी होगा जब उसकी मौलिकता सुरक्षित होगी, मूल तभी सुरक्षित होगा जब उसे अपने राष्ट्र का सम्प्रभुत्व प्राप्त हो | किसी राष्ट्र के मूलगत को सम्प्रभुत्व तब प्राप्त होगा जब उक्त राष्ट्र पर उसके स्वयं का नियम नियन्त्रण हो ,यह नियंत्रण 'शासन के अधिकार' से प्राप्त होता है | इस संवैधानिक नियंत्रण हेतु उन्हें संवैधानिक संस्थाओं का भारतीयकरण करना चाहिए था जो नहीं किया जबकि इसके विरोध का तर्क भी था  | ये नेहरू की चाल थी की उसने पाकिस्तान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप प्रस्तावित किया  | चाहते तो व एक उपनिवेश भी हो सकता था जिसका संवैधानिक नियंत्रण भारत के हाथों में होता और मुसलमान वहां जाने हेतु कभी भी किसी औपचारकता की आवश्यकता नहीं होती | जाने को वह अब भी जा सकते हैं किन्तु इन्हें भारत का ठप्पा चाहिए भारतीयों की सांस्कृतिक व् सामाजिक समृद्धि का लाभ चाहिए इस हेतु वह वहां जाना नहीं चाहते | उन्हें यह ज्ञात नहीं कि ऐसी समृद्धि के लिए पीढ़ियों का रक्त लगता है वह अपनी दरिद्र संस्कृति को भारत की घोषित कर वैश्विक पटल पर यहाँ की समृद्धि का अनुचित सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं | इस्लाम इस्लाम एक है, भारत से बाहर पूछिए क्या इस्लाम भारत की संस्कृति है ? आपको उत्तर नहीं में मिलेगा | यदि इस्लाम भारत की संस्कृति नहीं है तो फिर यह दोरंगी ( दोरंगी का अर्थ दोगली होता है )कैसे हो गई भारत की मूर्ख मीडिया व्  नेता जिसे प्राय: गौरवान्वित होकर कहा करते हैं | 
  • वह सौहर्दय ( बंधू ) न होकर शत्रु है जो राष्ट्र के खंड-खंड होने का कारण हो 
  • हम किसी समुदाय के व्यक्तिगत विषयों पर आक्षेप नहीं करना चाहिए  क्योंकि न्यूनाधिक दोष सभी में होते हैं | किन्तु इतना अवश्य है कि भारत व् भारतीय  स्त्रियों पर इस समुदाय की सदैव कुदृष्टि रही है कदाचित भारत की आर्थिक व्  सांस्कृतिक समृद्ध इसका कारण  है क्योंकि समृद्धता सदैव दरिद्रता को आकर्षित करती है |  कुछ अपवाद स्वरूप भारतियों ने मुस्लिम स्त्रियों से विवाह सम्बन्ध स्थापित किए हैं किन्तु यह कुप्रचलन बहुंत काल पश्चात् प्रारम्भ हुवा जो भारत शासन के अंतर्जातीय व् अंतरधर्म विवाह के प्रचार व् पुरष्कार का कुपरिणाम था | यदि आप किसी अन्य के निवास में वासित  हों और आपको अपनी स्त्रियों के प्रति असुरक्षा का बोध हो तो आपको वह निवास त्याग देना चाहिए  और अपने परम पिता के निवास में चले जाना चाहिए |  यदि उक्त गृह का स्वामी अपने घर में घुसे परायों से ऐसी असुरक्षा से ग्रस्त हो तो वह कहाँ जाए, ये कौन बताएगा ? किसी संविधान में यह स्पष्ट  उल्ल्खित होना चाहिए कि  वह जिस राष्ट्र हेतु अंगीकार्य हो रहा है वो राष्ट्र किसका है यदि वह उस राष्ट्र के लोगों का है तब उन लोगों का परिचय क्या है यदि उस राष्ट्र को  दास बनाया गया तो वह कौन थे कहाँ से आए थे..... 
    • भारत की सत्ता सदैव विदेशियों के हाथों की कठपुतली रही और रहेगी जब तक इस देश में दास     मानसिकता वाले वैदेशिक पूजक उत्पन्न होते रहेंगे 
    • भारत-विभाजन ने इन्हें विकल्प दिया था भारत छोड़ कर अन्यत्र जाने के लिए यह कहते हुवे ये भारत भारतियों हेतु वो तुम्हारे लिए | और ये विकल्प एक बार नहीं तीन तीन बार दिए गए थे किन्तु ये नहीं गए |
    1. अब भी विश्व में अनेकानेक इस्लामिक राष्ट्र पलक पांवड़े बिछाए बैठे हैं इन्हें अपनाने के लिए ये क्यों नहीं जाते ?
    2. इनके धर्म ग्रन्थ में उल्लखित है कि ये जब चले तो इनका मुख काबे के सम्मुख हो
    3. किन्तु ग़ालिब ने कहा '' क़ाबा मेरे पीछे कलीसा मेरे आगे ,देख तू क्या रंग है तिरा मेरे आगे'' कलीसा = कैलाश
    4. विभाजन के समय भारतीयों के बच्चे तक उठा ले गए थे ये जैसे तैसे फिर उन्हें छुड़वाया गया |
    5. प्रश्न ये है कि यदि भारतीय इनसे असुरक्षित अनुभव करें तब वो कहाँ जाएं….. ?  
    6. इनका व्यवहार इनके हृदय की भावना को अभिव्यक्त कर रहा है, इन्होने इस हिन्द को सदैव परास्त किया फिर यह जयहिंद पुकार कर अपनी हार और उसकी विजय की कामना क्यूँ करें |
    7. और यह भारत भूमि उनकी जन्म भूमि है ही नहीं फिर ये इसे माता क्यों कहे…..
    8. दासमानसिकता वाले कुछ भारतीय कुपुत्र हैं जो इन्हें भारतीय कहकर अपनी माता को इनकी बेड़ियों में बंधा देखना चाहते ये..... 
  • किसी राष्ट्र में निवासित अथवा अधिवासित समुदाय उक्त राष्ट्र के संवैधानिक नियमोपबन्धों से प्रभावित होता हैं विद्यमान शासन काल ने अब तक ऐसा कोई विधान उपबंधित नहीं किया जो भारत में अधिवासित मुस्लिमों को प्रभावित करने में सक्षम हो | पूर्व के सदृश्य उनका इस राष्ट्र पर प्रभुत्व पूर्ववत है….
  • आतंक राष्ट्रों के प्रति किया गया अपराध है अब तक किसी अन्य  राष्ट्र में हिन्दू धर्म द्वारा आतंक हुवा हो अपवाद स्वरूप भी ऐसा दृष्टांत दृष्टिगत नहीं हुवा यह भारत की सत्ता के लालचियों का एक षणयन्त्रकारी आक्षेप है जो यहाँ बहिर्देशीय वर्ग का साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं.....
  • >> डेढ़ शताब्दी तक हमने अंग्रेजों को सहन किया, एक सहस्त्र से अधिक वर्षों तक मुसलमानों को सहन किया और अब तक सहन कर रहे हैं उनके लिए देश के चार खंड हो गए और अधिक सहनशीलता से खंड-खंड होकर हम अपने ही देश में शरणार्थी हो जाएंगें.....विभाजन के पूर्व से ही संविधान निर्मात्री समिति को सभी संवैधानिक संस्थाओं का भारतीयकरण करना चाहिए था 
  • >> पाकिस्तान ने स्वयं कहा है भारत नया पाकिस्तान है | भारत में मुसलमानों की संख्या और उनकी सम्प्रभुता पर दृष्टिपात करें तो यह सत्य सिद्ध होगा | कल्पना कीजिए यदि भारत विभाजन नहीं होता तब भारत में मुसलमानों की संख्या कितनी होती | भारत का संविधान प्रत्येक नत्थू खैरे को शासन का अधिकार प्रदान करता है इस अधिकार द्वारा  संख्या बल प्राप्त कर कोई भी बहिर्देशीय समुदाय किसी राष्ट्र पर शासन कर सकता है और वह भी करते | तब यह देश एक इस्लामिक राष्ट्र होता | प्रवासी रूप आ बसे अधिवासियों के रोग का उपचार विभाजन तो कदापि नहीं है जबकि वह उक्त राष्ट्र के आधिकर्ता हैं | विद्यमान में दासत्व मानसिकता के कुछ लोग  इन मुसलमानों को भारतीय कहते है | आने वाली जनगणना में हमें चौंकाने वाले आकड़ें प्राप्त होने वाले हैं, ये आकड़ें हमें सोचने पर विवश कर देगें कि क्या यह देश में मुसलमानों के लिए स्वतन्त्र हुवा था क्या संविधान में किसी को भी शासन करने व् शासक चयन करने का अधिकार होना चाहिए ? यदि नहीं होना चाहिए तब फिर भारत के मूलगत निवासी क्या छलें नहीं जा रहे जहाँ उन्हें अपने ही राष्ट्र का सम्प्रभुत्व प्राप्त नहीं है.....
  • कहने का तात्पर्य है हमें और अधिक सहिष्णुता से बचना चाहिए क्योंकि सहिष्णुता की यह अधिकता शेष देश की अखंडता के लिए घातक सिद्ध हो सकती है सहिष्णुता से जन सामान्य निरपेक्ष रहा है यह सदैव नेताओं व् मंत्रियों द्वारा बहिर्देशीय समुदाय के विरोध का भावनात्मक दमन करने हेतु उपेक्षित की गई है यह विरोध भी तब होता है जब देश का चार चार बार विभाजिन हो गया, अपने सहपंथियों के साथ निवास करने हेतु विकल्प प्राप्त होने के पश्चात भी यह बहिर्देशीय वर्ग अपने पंथ के विस्तार के साथ साथ पीढ़ियों से इस देश पर राज करने के पश्चात भी इसकी सम्प्रभुता पर एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास करता हैं | दो खड्ग एक पिधान में नहीं रह सकती यह जगतविदित कहावत है दो विपरीत स्वभाव वाले समुदाय भी एक साथ नहीं रह सकते| यह देश उन भारतीयों का है जिनके माता पिता ऐसे पूर्वजों की संताने हैं जिन्होंने इस राष्ट्र को अपने रक्त से सींचा, अपनी तयाग और तपस्या से इसे जगत प्रतिष्ठित किया और अपने सत्य से इसे अनश्वर बनाए रखा | यह देश वास्तव में स्वतन्त्र हुवा था तो यह अन्योदर्य को अन्यदीय न हो इस हेतु इसके समस्त संवैधानिक संस्थाओं एवं शासकीय विभागों में ऐसे भारतीयों की प्रधानता कर देनी चाहिए थी.....
  • आधी दुनिया पर जिसका शासन हो क्या उसपर कोई अत्याचार करने का साहस कर सकता है |  ये जहाँ रहतें वहां के मूलनिवासियों को ऐसे भावनात्मक उत्पीड़न देते हैं जिससे वहां उनकी सत्ता          व् आधिपत्य स्थापित रहे | 
  • मुसलमानों के राज का विरोध करते तात्कालिक भारतीय जनमानस के आक्रोश से लड़ने में इंद्रा का धर्मनिरपेक्ष सफल सिद्ध हुवा | 
  • हिन्दू धर्म के स्वयं के अनुयायियों ही नहीं अपितु अन्य धर्मों के अनुयायियों ने भी  सत्ता हेतु इसका भरपूर दुरूपयोग किया | यह स्वयं के अनुयायियों द्वारा ही सर्वाधिक निन्दित व् उपेक्षित किया गया है.....
  • हिन्दू धर्म भारत में प्रादुर्भूत ईश्वरीय उपासना की वह पद्धति है जो प्रकृति देववाद के सिद्धांतों पर आधारित है.....
  • 'फूट डालो और राज करो' ये भी कांग्रेस द्वारा फैलाई हुई भ्रान्ति है अंग्रेजों ने चेताया था तुम अपने
    भुजाओं में पराए देश के सांप पाल रहे हो वो सांप जो एक दिन तुम्हारा देस तुम्हारी संस्कृति को डस लेंगे
    'न समझोगे तो मिट जाओगे हिन्दुस्तान वालों तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी दास्तानों में,(अज्ञात) और ख़ाँ-ग्रेस ने इसे फूट कहा | आज ये सांप कश्मीर को डसने के लिए तैयार हैं उसके पश्चात उत्तर प्रदेश फिर हैदराबाद और केरल को डसेंगे फिर तो समूचे भारत में इनका विष फैल जाएगा
  • आर्य वस्तुत: सम्बोधन सूचक शब्द है जिसके सम्बन्ध में प्रवासी से अधिवासी हुवे मुसलमानों एवं अंग्रेजों द्वारा भारत में अपना प्रभुत्व स्थिर रखने के लिए कई भ्रांतियां फैलाई गई | खेद है की सत्ता के लालचियों ने उनकी इन भ्रांतियों का अनुमोदन भी किया | आर्य इस राष्ट्र के मूल में है जिन्होंने इस भारत भूमि को अपनी त्याग व् तपस्या से एक समृद्ध व् अखंड राष्ट्र का स्वरूप दिया…..
  • एक सहस्त्र वर्ष से अधिक अवधि तक दास बनाकर भारत के टुकड़े टुकड़े करने वाले मुसलमानों की बर्बरता की कहानी है भारत-विभाजन.....
  • धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट कर यह संसूचित करते हैं कि आप कौन हैं कहाँ से आए हैं | जातिवाद शब्द का आश्रय लेकर सर्वप्रथम नेहरू ने भारतीयों की जड़ें काटने की कुल्हाड़ी का आविष्कार किया | यह सर्वसम्मत कथन है कि नेहरू मुसलमानों के परम हितैषी थे उन मुसलामों के हित  हेतु उन्होंने इस कुल्हाड़ी से भारतीयों की जड़ें काटनी प्रारम्भ कर दी |  किसी भी सामाजिक व्यवस्था में गुणदोष दोनों होते हैं और समाज का विघटन न कर हमें दोषों का निवारण करना चाहिए | यदि निर्धनता एक दोष है तो इसका तात्पर्य यह नहीं है की निर्धन को ही समाप्त कर दिया जाए | भारत की सामाजिक व्यवस्था जातिगत वर्गीकरण पर आधारित हैं | नेहरू को ज्ञात था इस राष्ट्र का निर्माण इस जातिगत समाज के संघटन से हुवा है यदि इसे विघटित कर दिया जाए तब भारत का विघटन होने में देर नहीं लगेगी | वह दुर्भावना से ग्रसित थे, पुत्री का अंतरधर्म विवाह होने से उन्हें उसके सामाजिक बहिष्कार का भय था  | समाज ही नहीं होगा तो बहिष्कार कैसा यह विचार कर उन्होंने जातिवाद का विष फैलाया कालांतर में इस विष के प्रभाव से जातियों के जातक अपने मूल से वियोजित होते चले गए | कारण की जातिसंकरता से संक्रमित होने के पश्चात इन्हें धर्मसंकरता की नागिन डस लेती है |आज कांग्रेस अध्यक्ष पुष्कर में अपनी जड़ें ढूंढ़ आए किन्तु नहीं मिली यदि जातिवाद के नाम पर हमारी जड़ें इसी प्रकार कटती रहीं तब एक दिन हममें से किसी को ये जड़ें नहीं मिलेगी | इस प्रकार मुसलमान भारतीय तथा ये भारत उसका होता चला जाएगा | 
  • हाँ ! क्योंकि इसने एक सहस्त्र से अधिक वर्षों तक भारत को दास बनाए रखा | आधे विश्व पर स्थापित इसका साम्राज्य यह दर्शाता है कि इसका समुदाय विद्यमान समय में भी साम्राज्यवादी सिद्धांत का समर्थक है| अंग्रेजों ने तो भारत छोड़ दिया किन्तु ये भारत छोड़ने का नाम नहीं ले रहा |
  • जो प्रबंधन प्रभुत्व से रहित करता हो वह दोषपूर्ण है  से विहीन करता हो तो वह 
  • कौन अधिक दुष्ट है वह मुसलमान जिसने भारतीयों से शासन छीन कर उन्हें दास बनाया अथवा वह अंग्रेज जिन्होंने मुसलमान से शासन छीन कर उसे दास बनाया.....? 
  • संविधान से सदैव राष्ट्र सर्वोपरि होता है क्योंकि राष्ट्र के अस्तित्व से ही संविधान का अस्तित्व है | ये वक्तव्य भारत की सम्प्रभुता एवं उसकी अखंडता को निर्बल करने वाले रोगों की जड़ों के विषय में है | यदि उसे अपनी अस्मिता प्रिय है तब वह जड़ चाहे धर्म ही क्यों न हो उसे उसका निवारण करना ही होगा  | आप धर्म का नाम सुनकर इसलिए तिलमिला जाते हैं क्योंकि यह आपकी पहचान निर्दिष्ट करता है एक मुस्लिम की यही पहचान है कि वह इस देश का नहीं है जब वह इस देश का नहीं है तो  यह उसका कैसे हो सकता है | 
  • किसी राष्ट्र विशेष में जब बाहिरि समुदाय संख्या में अधिक होकर बहुमत को प्राप्त हो जाता है तब वहां लोकतंत्र असफल सिद्ध होता है यदि तत्संबंधित राष्ट्र के संविधान में ऐसे बाहरी समुदाय को शासन करने का अधिकार प्रदत्त हो | 
  • ----- || धर्मो रक्षति रक्षित: || -----यदि भारत को खंड-खंड होने से बचना है तो उसे अपने द्वारा प्रादुर्भूत धर्म की रक्षा करनी होगी | यदि वह धर्म की रक्षा करेगा तो धर्म उसकी रक्षा करेगा | 
  • इस्लाम और कैथोलिक भारत की धार्मिक विवधता का अंश नहीं हैं क्योंकि ये भारत में प्रादुर्भूत नहीं हुवे इस हेतु इनके अनुयायी भी भारतवंशी नहीं है | भारत इनके अनुयायियों द्वारा दासत्व को प्राप्त हुवा, भारतीयों द्वारा इसके विरोध का दमन करने हेतु सत्ता के लालची नेताओं ने असहिष्णुता को उत्पन्न किया  | भारत में प्रादर्भुत धर्मों के मध्य युगों से लेकर अब तक ऐसा कोई व्यवहार ही नहीं हुवा जो असहिष्णु हो | 
  •  हिन्दू शब्द धर्म का प्रतीक नहीं है जिसे हिन्दू धर्म कहाँ गया वह वैदिक धर्म या सनातन धर्म है ऐसा माना जाता है कि हिन्दू शब्द मुसलमानों ने भारत आगमन पर सिंधु नदी के तट पर वासित भारतीयों के लिए किया तथा ये 'थ' का उच्चारण 'त' करते थे इस लिए इन्होने इस देश को हिन्दुस्थान अर्थात हिन्दुओं का स्थान कहा कालांतर में यह नाम प्रचलन में आया और विद्यमान समय में भी प्रचलित है….. 
  • सोचिए ! यदि इस्लाम भारत में फलीभूत होता रहा तो भारत के भविष्य क्या होगा | निश्चित ही खंड-खंड होकर खंडहर हुवा वह भविष्य स्वतंत्रता को एक छलावा सिद्धि कर देगा और चँदोवों में पड़े भारतीय शरणार्थी होकर हम जैसे पूर्वजों को कोस रहे होंगे…..
  • प्रत्येक भारतीय को इस्लाम से भयभीत रहना चाहिए | क्योंकि वह अपनी साम्राज्वादी सोच को मूर्त रूप देने में सफल होता दिखाई दे रहा है, जिससे भारत की स्वतंत्रता छलावा सिद्ध हो रही है | भय होता है कि यदि हमारा देश दासता की बेड़ियाँ बंध गया तो हमारी आने वाली पीढ़ियां को वर्षोंवर्ष तक स्वाधीन करने वाला कोई न होगा और इसकी समृद्धि इसकी अस्मिता फिर एक बार लूट ली जाएगी…..
  • ''किसी राष्ट्र में बाह्य संस्कृति उसके आचार विचार बाह्यलोकव्यवहार सहित बहिर्लोक द्वारा उसके शासन-प्रशासन को अपने हितों का साधन बनाना ही पराधीनता है |'' कदाचित भारत स्वतंत्रता संग्राम का उद्देश्य यही था कि भारत में भारतीयों की पूर्ण सम्प्रभुता रहे किन्तु वह अपने उद्देश्य से भटक कर सत्ता संग्राम में केंद्रित हो गया | किसी राष्ट्र की स्वतंत्रता का यह अभिप्राय है  कि उसपर उसकी सभ्यता संस्कृति लोकव्यवहार आचार-विचार भाषा वेशभूषा उसकी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा करने वाले उस मूलगत का स्वामित्व हो जिसने ऐसे पूर्वजों द्वारा जन्म ग्रहण किया हो जो उक्त राष्ट्र के निर्माण में मूलभूत रहे 
  • धर्मपरिवर्तन केवल अपवाद स्वरूप ही हुवा है इस्लाम अपनी साम्राज्य वादी सोच को मूर्त रूप देने के लिए ऐसा भ्रामकता प्रसारित करने का षड़यंत्र कर रहा है | धर्म श्रद्धा उपासना प्रेम भक्ति का नाम है यह भावों से उत्पन्न होने वाली विषयवस्तु है, आप भावों को छल से तो जीत सकते हैं किन्तु बल से नहीं जीत सकते | आप बलपूर्वक मुझे नहीं कह सकते आप ईश्वर की उपासना ऐसे करो वैसे करो ऐसे चलो वैसे चलो | हाँ छल से कह सकते किन्तु छल भी अधिक दिनों तक नहीं चलता है वह भी एक न दिन समझ आ जाता और भक्त पुनश्च पूर्वानुसार आचरण करने लगता है….. 
  • आर्य वस्तुत: सम्बोधन सूचक शब्द है जिसके सम्बन्ध में प्रवासी से अधिवासी हुवे मुसलमानों एवं अंग्रेजों द्वारा भारत में अपना प्रभुत्व स्थिर रखने के लिए कई भ्रांतियां फैलाई गई | खेद है की सत्ता के लालचियों ने उनकी इन भ्रांतियों का अनुमोदन भी किया | आर्य इस राष्ट्र के मूल में है जिन्होंने इस भारत भूमि को अपनी त्याग व् तपस्या से एक समृद्ध व् अखंड राष्ट्र का स्वरूप दिया…..'फूट डालो और राज करो' ये भी कांग्रेस द्वारा फैलाई हुई भ्रान्ति है अंग्रेजों ने चेताया था तुम अपने भुजाओं में पराए देश के सांप पाल रहे हो वो सांप जो एक दिन तुम्हारा देस तुम्हारी संस्कृति को डस लेंगे'न समझोगे तो मिट जाओगे हिन्दुस्तान वालों तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी दास्तानों में,(अज्ञात) और ख़ाँ-ग्रेस ने इसे फूट कहा | आज ये सांप कश्मीर को डसने के लिए तैयार हैं उसके पश्चात उत्तर प्रदेश फिर हैदराबाद और केरल को डसेंगे फिर तो समूचे भारत में इनका विष फैल जाएगा.....
  • आपके जैसे विचारधाराओं को ही राष्ट्र विरोधी शक्तियाँ कहा जाता है |
  • नीतिनेम बिनु देस बिनु करनधार जलजान |
    अपुना जहाँ न आपुना राजएँ तहाँ बिरान || ३५५७ || 

    भावार्थ : - नीति नियम से रहित राष्ट्र कर्णधार से रहित जलयान के समान होता है | जहाँ स्वत्व पर अपना अधिकार नहीं होता वहां उस पोत के पति पराए हो जाते हैं |
  • देसबाद बिरोधजनक पुनि बिचार की धार |
    चढ़त जगत बोहत ताहि बूड़त पाए न पार || ३५५९ || 

    भावार्थ : - जब विचारों की ये धाराएं राष्ट्रवाद अथवा सीमावाद हेतु विरोध व्युत्पन्न करने वाली होती हैं तब वह तट रूपी सीमाओं की पहुँच से विहीन हो जाता है जिससे विश्वभर के यात्री उसपर आरूढ़ हो जाते हैं और फिर असहनीय भार उस जलयान को डूबो देता है |ऐसी विचार धाराएं देश की सम्प्रभुता व् उसकी अखंडता पर निरंतर आघात करके उसे दुर्बलता प्रदान करती है | भारत में इस्लाम को इस प्रकार की शक्तियों से संपन्न इसलिए ही कहा जाता है इस्लाम से इस राष्ट्र को इस हेतु भय है कि पूर्व में भी इसप्रकार की शक्तियों का प्रयोग कर उसने इस देश को खंड-खंड कर दिया और उन खण्डों पर अपना आधिपत्य कर इसका शत्रु बन बैठा आज वह वैश्विक पटल पर उसकी निर्बलता का कारण है | सत्ता की लालच लिप्सा के वशीभूत नेताओं ने राष्ट्र के विरुद्ध षड़यंत्र किया और शत्रुपक्ष से एकता को भारतीय एकता का नारा दिया | भाईचारा 
लोकतंत्र कब विफल सिद्ध होता है 
  • धर्म निरपेक्ष से भारत के सम्प्रभुत्व व् उसकी अक्षुण्यता पर संकट मंडरा रहा है |अच्छा होगा कि हम समय पर सचेत हो जाएं अन्यथा पराधीन होकर हम अपने ही देश में शरणार्थी हो जाएंगें …..
  • कोई तंत्र तब विफल सिद्ध होता है जब वह राष्ट्रविरोधी शक्तियों व् बाहरी तत्वों को  शासन के अधिकार जैसे मूलगत अधिकारों से संपन्न  करता हो | 
राष्ट्रद्रोह 
आपके जैसे विचारधाराओं को ही राष्ट्र विरोधी शक्तियाँ कहा जाता है | ऐसी विचार धाराएं देश की सम्प्रभुता व् उसकी अखंडता पर निरंतर आघात करके उसे दुर्बलता प्रदान करती है | भारत में इस्लाम को इस प्रकार की शक्तियों से संपन्न इसलिए ही कहा जाता है इस्लाम से इस राष्ट्र को इस हेतु  भय है कि पूर्व में भी इसप्रकार की राष्ट्रविरोधी शक्तियों का प्रयोग कर उसने इस देश को खंड-खंड कर दिया और उन खण्डों पर अपना आधिपत्य कर इसका शत्रु बन बैठा आज वह वैश्विक पटल पर उसकी निर्बलता का कारण है | सत्ता की लालच लिप्सा के वशीभूत नेताओं ने राष्ट्र के विरुद्ध षड़यंत्र किया और शत्रुपक्ष से एकता को भारतीय एकता का नारा दिया | भाईचारा जैसे शब्दों का आश्रय लेकर वह राष्ट्र विरोधी शक्तियों को और अधिक शक्तिसंपन्न करते चले गए.....
जातिवाद 
हिन्दुधर्म 
  • हिन्दू समुदाय में निर्गम मार्ग सहस्त्रों हैं किन्तु उसका प्रवेश मार्ग अवरूद्ध है। ....-----रवीन्द्रनाथ टैगोरएतएव नियम व् निबंधों से सबसे अधिक अनुशासित हिन्दू धर्म है | किन्तु यदि बहिर्गमन की बात हो रही है तो सबसे अधिक इसी धर्म से बहिर्गमन हो रहा है इस प्रकार अनुशासन की आवश्यकता सबसे अधिक इसी धर्म को ही है…..
    • मुद्रा 

     वैश्वीकरण
    • किसी विषय,वस्तु अथवा विचार विशेष के दृष्टिकोण में किसी स्थान, विभाग,क्षेत्र, देश की प्रधानता निश्चित न कर उसे समग्र विश्व की प्रधानता सुनिश्चित करने की प्रक्रिया वैश्वीकरण है.....
    धर्म एवं धर्मनिरपेक्ष 
    • कोई व्यक्ति या तो हिन्दू हो सकता है या धर्म निरपेक्ष | विश्व में अन्य धर्मों के सह धर्मनिरपेक्षों का भी अपना एक संख्या वर्ग है.....
    •  जो पंथों के यातायात नियमों का पालन नहीं करते वह पंथ निरपेक्ष है.....  जो  सत्य,अहिंसा,दान,त्याग रूपी   मनुष्योचित स्वाभाविक कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते वह धर्म निरपेक्ष है.....
    • ''धर्म वस्तुत: एक पंथ है ईश्वर जिसका अंतिम लक्ष्य है |''धर्म दो प्रकार का होता है एक साधारण धर्म दुसरा विशिष्ट धर्म
    •  साधारण धर्म : - "साधारण धर्म सत्य,अहिंसा,दान,त्याग रूप में वह संवेदनशील स्वभाव है जो मनुष्य मात्र में प्राकृतिक रूप से उपस्थित होता है....."

                                                                      अथवा
              " साधारण धर्म सत्य,अहिंसा,दान,त्याग रूप में वह मनुष्योचित स्वाभाविक कर्तव्य है जिसका निर्वहन                 सभी मनुष्यों को करना चाहिए....."

               विशिष्ट धर्म : - '' विशिष्ट धर्म ईश्वरीय उपासना की एक पद्धति है जिसका अनुशरण मनुष्य, मनुष्य                 समुदाय अथवा सम्प्रदाय करता है |''

    • धर्म (विशिष्ट धर्म)वस्तुत: एक पंथ है और ईश्वर उसका अंतिम लक्ष्य है | धर्मों ने भी अपने नियम विहित किए हैं दो पंथ से संचालन यातायात के नियम का उल्लंघन है नियम पथिक की सुरक्षा हेतु होते हैं इनके उल्लंघन से दुर्घटना की संभावना अधिक होती है और पथिक को गंतव्य की प्राप्ति नहीं होती |

    • अपने नाम के सम्मुख 'श्री' 'जनाब' अथवा 'मिस्टर' लगाने के लिए तत्संबधित धर्म में विहित नियमों का  दृढ़तापूर्वक पालन करना पड़ता है | राजपथ में जिसप्रकार यातायात के नियमों का पालन न कर  'लीक निरपेक्ष'अंग्रेजी में कहें तो 'लेन निरपेक्ष' होने से दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है और प्राण जाने खतरा रहता है उसी प्रकार पंथ निरपेक्ष होने से भी आपकी मौलिकता विनष्ट हो जाती है और आपकी पहचान खोने का खतरा रहता है.....
    • हिन्दू अथवा वैदिक धर्म ने सर्वप्रथम शौर्य मंडल और ब्रह्माण्ड का अध्ययन कर भौगोलिक विज्ञान, जीवों का वर्गीकरण कर जीव विज्ञान, धातुओं का परिशोधन कर भौतिक विज्ञान, नाना रसन का अध्ययन कर औषधि विज्ञान,जनसंचालन प्रबंधन तंत्र का निरूपण कर राजनीतिविज्ञान, मानव समूह को समाज का स्वरूप देकर सामाजिक विज्ञान को प्रतिपादित किया था अत: हिन्दू धर्म को श्रेष्ठ वैज्ञानिक धर्म कहा जाता है.....
    • जिस प्रकार बल से बड़ी बुद्धि होती है क्योंकि : -धनुधर के सर कदाचित, करे न एकहु हास । बुद्धमान के बुद्धि सन, सर्वस् करै बिनास ।१६७५।  ------ ॥ विदुर नीति ॥ -----भावार्थ : -- शस्त्र धारी का शस्त्र चले तो कदाचित एक भी न मरे । यदि बुद्धिमान की बुद्धि चल गई तो वह सर्वस्व का नाश  कर देती है ॥उसी प्रकार : लिखनिहि सौंही बड़ी नहि करतल गहि तलबार |तलबारि की धार सहुँ बड़ी सब्द की मार ||भावार्थ : - तलवार से बड़ी लेखनी होती है क्योंकि तलवार की धार से शब्द की मार गहरी होती | तलवार का वार एक बार मारता हैं शब्द का वार वारंवार मारता हैं
    • प्राचीन समय में मुद्रा अस्तित्व में नहीं थीं और समूचा वाणिज्यिक प्रबंधन वस्तु-विनिमय पर आधारित था | एक दो सहस्त्र वर्ष के पश्चात की पीढ़ियां हम पर हँसेगी कहेंगी ये लोग कितने मूर्ख थे कागद के कुछ टुकड़ों के बदले अपना सर्वस्व देने को तैयार रहते थे अब जो अंक मुद्रा का चलन आ गया भविष्य में वह और अधिक हास्यास्पद सिद्ध होगा | जो भावी समय होनेवाला है उसे वर्तमान में क्रियान्वित कर हमें अपनी निर्यात नीति का सुधारीकरण करना चाहिए और अन्न में मुद्रा के व्यवहार को अस्वीकृत कर उसके बदले अन्न को प्राथमिकता दें इस उपाय से निश्चित ही हमारी मुद्रा दृढ़ और अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ होगी.....
    • गांधी का समर्थन विदेशी शिक्षा ग्राहियों व् अंग्रेजी बोलने वालों को ही होता था | विदेशी वस्तुओं की होली एक ढकोसला था…..
    भारत में व्याप्त अंधविश्वास
    • महीनों तक बोतलों में बंद पानी व् शीतल पेय शुद्ध व निर्मल होता हैं
    • तीन तीन चार चार दिनों तक शीतलगृह में पड़ा भोजन स्वास्थ को हानि नहीं पहुंचाता
    • मांस-मछली भक्षण सभ्यता व् आधुनिकता है | 
    • नग्नता नारी स्वातन्त्र की प्रतिक है | 
    • रासायनिक उर्वरा से उत्पादन में वृद्धि होती है |
    • संकरता ( दो भिन्न जातियों के संयुग्मन से एक नई जाति प्राप्त करना ) आधुनिक विचार है
    • ऐलोपैथिक चिकित्सालय खुलने चाहिए, एलोपैथिक उपचार से हम स्वस्थ हो जाएंगे |
    • उद्योगिक अपशिष्टों के नाले नालियों से नदिया मैली नहीं होती |
    • वाहन के अत्यधिक प्रयोग से प्रदुषण नहीं होता वो तो पड़ोस के खेतों में पैरा जलाने व् गायों के रम्भाने से होता है |द्वारा वेदों में प्रादुर्भूत 
    • भू सम्पदा के अधिकाधिक उत्खनन से राष्ट्र समृद्ध होता है |
    • भू सम्पदा से प्राप्त खनिज उत्पादन है ( जबकि यह उत्पादन नहीं है )|
    • पाश्चात्य संस्कृति एक समृद्ध संस्कृति है |
    • भारतीय वैदिक सामाजिक व्यवस्था पिछड़ी सामाजिक व्यवस्था है, और पाश्चात्य वाली अग्रणी है 
    • इ वी एम् मशीन कभी हैक नहीं हो सकती 
    अलंकार 
    • रस व् अलंकार, संस्कृत व् हिंदी व्याकरण का एक अंग है जिसका अर्थ विभूषण है इसका प्रयोग काव्यरचना में किया जाता है सर्वाधिक उत्तम श्रृंगार रस प्रधान अलंकार को माना गया है, क्योंकि : - 
    • यदि काव्य एक स्त्री है तो श्रृंगार रस उसका  सौभाग्यचिन्ह है | 
    निर्धन रेखा 
    • क्या भारत शासन में छः अंकीय भृति एवं अन्यान्य  लब्धियों से युक्त पद पर पदस्थ  व्यक्ति को अत्यंत निम्न आय वर्गीय चिन्हित कर निर्धन रेखा के नीचे की श्रेणी में रखा जाएगा ?  भले ही वह उक्त वृति व् उपलब्धियां ग्रहण न करता हो तथा वह किसी अन्य संपत्ति का स्वामी भी हो ?
    विवाह की परिभाषा एवं हिन्दू विवाह
    • स्त्री पुरुष के पारस्परिक सम्बन्ध एक इकाई का निर्माण करते हैं प्रत्येक ईकाई से अधिकार के सह कतिपय उत्तरदायित्वों की भी व्युत्पत्ति होती है | इन उत्तरदायित्वों के निर्वहन हेतु ली जाने वाली शपथ विवाह है |
    • ईसाई की मैरिज एक व्यवहार है, चूँकि उभय पक्षों की परस्पर सहमति संविदा का लक्षण है एतएव मुस्लिमों का निकाह एक संविदा है | हिन्दू विवाह में स्त्री पुरुष को परस्पर परिणद्ध किया जाता है इस हेतु यह एक बंधन (बॉन्ड)है जो मनुष्य के संस्कार स्वरूप में ग्रहण किया गया है यह संस्कार उसके पाश्विकता को परिशोधित करते थे |
    • शपथ  हेतु साक्षी का भो होना आवश्यक है हिन्दू धर्म में अग्नि को साक्षी माना गया और बंधन को दृढ़ता प्रदान करने हेतु ग्रहों के द्वारा सूर्य की परिक्रमा से अग्नि के परिक्रमण की रीति को प्रचलित किया  |
    • स्त्री का पुरुष के गृह में गमन एक समाजिक व्यवस्था के रूप अंगीकृत किया |
    • विवाह के पूर्व विभिन्न प्रकार की प्रथाएं व् रीतियां  विवाह को उत्सव का स्वरूप देने हेतु अपनाई गई थी तैलहल्दी जैसी रीति केवलमात्र परिणेय का सौंदर्योपचार हेतु व्यवहारित की गई |वर पक्ष के बंधू बांधव द्वारा सडकों में ढोल बजाकर वधु का लाने की प्रथा श्री रामायण से प्राप्त की | विश्व मान्य इतिहास ने इसे सिंधु घाटी की सभ्यता काल की प्रथाओं से सुमेलित किया |
    • चूँकि किसी इकाई के संचालन हेतु कतिपय निधियों की भी आवश्यकता होती है इस हेतु दान की प्रथा प्रचलित की | उपहार की प्रथा तो सभी धर्मों द्वारा अपनाई गई | उपहारों के इस लेनदेन को भारतीय संविधान ने विशेषकर हिन्दू धर्मावलम्बियों हेतु  दायजा या दहेज़ कहकर उसे आपराधिक कृत्य की श्रेणी में रखा | जबकि स्वेच्छा से दी गई कोई वस्तु आपराधिक कृत्य न होकर पुण्यकृत्य है.....
    समसामयिक घटनाएं इतिहास नहीं हुवा करती |
    1. समसामयिक घटनाएं इतिहास नहीं हुवा करती | राजस्थान ने इन घटनाओं को इतिहास बताकर बच्चों हेतु विषयात्मक न्यूनता उत्पन्न की है |
    2. सत्तासूत्र जिसके हाथों में होता हैं शासन भी उसी का मान्य होता है अधीनस्थ केवल आज्ञाकारी होते हैं |यह निर्णय करने का अधिकार सत्ताधारी का होता है कि वह कौन सी घटना को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करे कौन सी नहीं किंतु सत्ताधारियों को इस बात का भी विशेष ध्यान रहना चाहिए कि पाठ्यक्रम ज्ञानपरक, गुणवर्द्धक व् नैतिकता की शिक्षा देनेवाला हो पाठ्यक्रम की विषयसूची केवल मात्र उदरपूर्ति का माध्यम न बनकर बच्चों का चारित्रिक गठन करे |
    3. घटनाएं समसामयिक हो अथवा ऐतिहासिक वह उनके वास्तविक तथ्यों का उल्लेख करे और किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न करे |
    4. पाठ्यक्रम देश व् उसके धर्म (देश विशेष में प्रचलित संस्कृति सभ्यता भाषा अचार-विचार, आहार-विहार रीति -प्रथा व् उसके जातक ) के प्रति किसी प्रकार की दुर्भावना उत्पन्न न करे |
    राजनीति
    • किसी विचार अथवा प्रबंधन को दी गई हमारी अभिमति हमें उसे धिक्कारने के अधिकार  से वंचित करती है | मतदान के पश्चात उसे धिक्कारने का कोई औचित्य नहीं है | साम, दाम, दंड, भेद राजनीति के नहीं अपितु विजय प्राप्त के चार उपाय हैं जो वेदों में विहित हैं जिसका दुरूपयोग वर्तमान में सत्ताप्राप्ति हेतु हो रहा है |
    • राजनीति : -''कार्य विशेष की सिद्धि हेतु प्रयुक्त होने वाला वह युक्ति व् आचरण है जो लोक व्यवहार के निर्वाह हेतु निश्चित किया गया है |''
                                                अथवा
    • सरल शब्दों में : - राजनीति वस्तुत: एक युक्ति है जो संसार, पृथ्वी, अथवा उसका कोई भूभाग, कोई प्रांत तथा उसमें निवासित प्रजावर्ग, समूह, समाज के व्यवहारों के सरल रूप में निर्वाह हेतु निश्चित की गई है |
    नीति परक विचार 
    • सत्य है इस प्रकार के व्यक्ति उस व्यवसाय वर्ग से आते जो धर्म व् जातियों का भावनात्मक दुरूपयोग कर अपना उल्लू सीधा किया करते हैं | किन्तु जहाँ तक एक सामान्य व्यक्ति का प्रश्न है सबको अपने अपने धर्म में दृढ़ रहना चाहिए किसी कारण वश धर्म परिवर्तन करना पड़े तो वह अपने परिवर्तित धर्म में निष्ठवान रहे वारंवार पंथ परिवर्तन से दुर्घटना का भय बना रहता है |
    • धर्म को नहीं धर्म में परिवर्तन करें और वही परिवर्तन अंगीकार योग्य है जो समस्त विश्व के लिए कल्याणकारी हो.....
    • शास्त्रों में लिखा है कि गर्भकाल अत्यंत पीड़ा जनित व् कष्टमय काल है जन्म के पश्चात वह स्मरणातीत हो जाता है | यदि वह स्मृति होने लगी तब हमें कदाचित अपने शरीर में उस पीड़ा का अनुभव होने लगेगा.....
    • यदि चरण हैं तब मार्ग की आवश्यकता भी होगी ये ग्रन्थ ऐसे मार्ग का निर्माण करते हैं संसार में वही ग्रन्थ सद्ग्रन्थ है जो सन्मार्ग का निर्माण करते हैं और वह मार्ग सन्मार्ग हैं जो हमें ईश्वर तक पहुंचाते हैं.....
    • अपेक्षित विषय, वस्तु, विचार, कार्य, हेतु जन सामान्य के अभिमत का संग्रह जनमतसंग्रह है...
    •  जो अंतिम स्वांस तक सीखता है मरणोपरांत वही गुरु कहलाता हैयदि हमारी सीख स्वार्थ हेतु न होकर परमार्थ हेतु हो.....
    • एतएव भारतीय समाज अन्तर्जाती व अंतरधर्मीय विवाह से स्वयं को बचाए | क्योंकि इस प्रकार की विवाह से उत्पन्न संतानों से उनकी भारतीयता छीनी जाएगी और भारतीय कहीं दिखाई नहीं देंगे | भारतीयों से ही भारत है और भारत है तो भारतीयता है | भारतीयों के रहने से पर बाहरी लोग इसकी सांस्कृतिक,सामाजिक व् वानस्पतिक समृद्धि से स्वयं को सम्पन्न करते चले जाएंगे |
    दिव्यांग एवं विकलांग में अंतर 
    • और चार दिन के प्रधानमंत्री सत्ता के धुरंधर अवश्य होंगे किन्तु शब्दों के नहीं | दिव्यांग और विकलांग दोनों शब्द परस्पर भिन्नार्थी है यह शब्द न होकर शब्द युगम हैं यदि इस युग्म का संधि विच्छेद करेंगे तो हमें ज्ञात होगा कि  
    1. दिव्य + अंग = वह दिव्याङ्ग  जिसके अंग अलौकिक हैं,प्रदीप्तवान वान हैं लोकातीत हैं वह दिव्यांग जैसे : - चतुर्भुज, दसभुजा,चतुरानन
    2. विकल+ अंग = वह न्यूनाङ्ग जिसके अंग खंडित हैं, क्षुब्ध हैं ,निस्तेज हैं, अपूर्ण हैं,क्षीण हैं, बलहीन हैं
    अंतर्जाल का जगत और साहित्य 
    • अपने नाम के सम्मुख कवि साहित्यकार और पत्रकार लिखकर 'कपटवेशी लेखक' तो बहुंत से बन गए हैं |  हाँ ! यह सत्य है कि अंतर्जाल ने लेखन  प्रतिभाओं को अपनी भावों को अभिव्यक्त करने का एक मंच दिया है एक ऐसा मंच जिसका उपयोग वह दैनिक जीवन का निर्वाह करते हुवे  बिना किसी आडम्बर व् लोक प्रदर्शनी के कर सकते है, इस मंच हमारे देश की महिलाएं बहुंत प्रसन्न हैं | साहित्य व् पत्रकारिता जगत अभी भी समाचार पत्रों पर प्रकाशित लेखकों को ही लेखक या साहित्यकार की उपाधि देता है समय आ गया है वह अब समाचार पत्र पत्रिकाओं के जगत से बाहर निकल कर अन्तर्जालजगत का भी अवलोकन करे क्योंकि यहाँ श्रेष्ठ लेखकों की अर्हताओं को पूर्ण करती बहुंत सी ऐसी प्रतिभाएं हैं जो साहित्यिक आडम्बरों सो रहित है वह लोकप्रदर्शनी नहीं चाहती | 
    सभ्यता  
    • पाश्विकता से पृथक कर मानवीय गुणों का क्रमबद्ध विकास ही सभ्यता है | 
    • मानव को पाश्विक दोषों से परिष्कृत कर गुणों की प्राप्ति के लिए आवश्यक धर्म का विकास संस्कृति है| 
    • भाषा, वेशभूषा, आहार-विहार,आचार-विचार सभ्यता व् संस्कृति के आवश्यक कारक हैं | 
    • पाश्विक लक्षणों से पवित्रीकरण करने वाले कृत्य संस्कार कहलाते हैं | नाम न होना, विवाहेतर संबंध, केश, मांस व् कच्चा अन्न ग्रहण करना आदि  पशुओं का नाम नहीं होता तो उसका नामकरण संस्कार करते हैं, पशुओं में केश होता है इसे केशमुक्त करने के लिए उपनयन संस्कार करते हैं, पशु विद्याध्ययन नहीं करते विद्याध्ययन संस्कार करते हैं, मनुष्य पशुओं से इतर मांसभक्षण न कर पके अन्न का भोजन ग्रहण करे इस हेतु अन्नप्राशन का संस्कार किया जाता है, मृत होने के पश्चात पशुओं से इतर उसके देह की उत्तम गति हो इस हेतु अंतिम संस्कार किया जाता है | 
    • कोई संस्कृति उत्तम तभी कहलाती हो जब वह मनुष्य के पाश्विक  दोषों को अधिकाधिक परिष्कृत करने में समर्थ हो | जैसे : - नग्नता एक पाश्विक दोष है वेश इस दोष को परिष्कृत करते हैं, मांसभक्षण एक पाश्विक दूषण है तो शाकाहार इस दोष का परिष्करण है इस प्रकार परिष्करण के अधिकाधिक सांस्कृतिक उपकरणों से युक्त संस्कृति उत्तम कहलाती है तथा ऐसे संस्कृति से युक्त मनुष्य अधिकाधिक सभ्य है | 
    • संस्कृति भी संपत्ति है अधिकाधिक सांस्कृतिक संपत्ति से युक्त समाज समृद्ध कहलाता है 
    • कोई राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था संपन्न हो तो यह आवश्यक नहीं की उसकी सामजिक व्यवस्था भी समृद्ध हो | 
    • विद्यमान समय में केवल भारतीय सामाजिक व्यवस्था ही सभ्यता के चरमोत्कर्ष पर है इस चरम पर उसे संतुलन की आवश्यकता है किंचित असंतुलन से वह पतन की ओर अग्रसर होगी 
    • विश्व की अन्य सामुदायिक अथवा सामाजिक व्यवस्थाएं  विकास शील एवं पिछड़ी या पाश्चात्य हैं भविष्य में ये समाज अथवा समुदाय सांस्कृतिक समृद्धि को प्राप्त होकर  सभ्यता के चरम को भी प्राप्त हो सकते हैं और असंस्कृत होकर अधोगति को भी प्राप्त हो सकती हैं 
    • वर्तमान में सभी मानवजाति समूह सभ्यता के किसी न किसी सोपान पर खड़े हैं इस हेतु किसी नई सभ्यता के उत्पन्न होने की सम्भावना लगभग समाप्त हो चुकी है|  
    पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम १९६० 
    • पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम १९६० तो हैं किन्तु ये किसी दोषी को दण्डित करने में प्रभावशील सिद्ध नहीं हो रहे या यूँ कहें कि सही ढंग से काम नहीं कर रहा | आज नियम रचयिता शासन स्वयं ही इसका खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर  रक्षा पक्ष को उलटे कट्टर कहकर अपराधी को संरक्षण दे रहा हैं | और प्रशासन भी अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहा | ऐसे प्रकरण लेकर थाने जाओ तो भगा दिया जाता है यह कहकर कि यहाँ मनुष्य की रखवाली हो नहीं रही पशुओं की कहाँ से करें | 
    सिद्धांत 
    • सिद्धांतों की नीव पर प्रयोगों का भवन निर्मित होता है 
    नीति 
    अन्याय को प्रतिबंधित करने वाले प्रावधान उत्तम नियम हैं 
    न्याय का नियमन करने वाले उत्तम नियमों का प्रावधान उत्तम नीति है 

    इसके विपरीत 
    न्याय को प्रतिबंधित कर अन्याय का प्रावधान करने वाली नीति दुर्नीति है 

    Thursday 2 May 2019

    ----- ॥ हर्फ़े-शोशा 11॥ -----

    दिल को सियाहे-बख़्त किए उठते हो सुबहे रोज..,
    मासूम- ओ - मज़लूम को फिर करते हो जबहे रोज..,
    पीरानेपीर- ओ- मुर्शिद  अरे कहते हो खुद को..,
    जफासियारी के दस्तूर को देते हो जगहे रोज़.....
    -------------------------------------------
    एक जोर की आंधी चली..,
    दो आंसुओं की बून्द गिरी..,
    एक बून्द गंगा बनी..,
    दूसरी भारत माँ बनी..... 

    Wednesday 1 May 2019

    ----- ॥ दोहा-द्वादश २१ ॥ -----

    जनमानस के तंत्र में भयो अँधेरो  राज | 
    तहँ जान निजोगते जहँ चले सुई ते काज || १ || 
    भावार्थ : - भारत ! प्रजातंत्र की शासन व्यवस्था में नीति नियमों योजनाओं का सर्वत्र अभाव है  इस तंत्र में जहाँ सूचि से कार्य सम्पन्न हो सकता है वहां यान नियोजित किए जाते हैं |  
          
    भुईं जोइ धन सम्पदा जुग लग रही सँजोइ  | 
    जनमानस के राज में खात पलक गइ खोइ  || २ || 
    भावार्थ : - यह पृथ्वी जिस खनिज सम्पदा को युगों तक संचयित की हुई थी प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में वह लोगों द्वारा अल्प काल में खा पी कर समाप्त कर दी गई |   

    छनिक जाके प्रान नहीं कनिक नहीं परिमान | 
    समुझत मानस आपुनो जगत रचेता मान || ३ ||   
    भावार्थ : - संसार  की तुलना में जिसका परिमाण कण मात्र भी नहीं है  जिसके प्राण क्षण भंगुर हैं  वह मानस स्वयं को संसार का रचनाकार समझने लगा है | 

    झूठा स्वाँग भर करे साँचा का पाखण्ड | 
    निर्दोष को न्याय नहि दोषी को नहि दंड || ४ || 
    भावार्थ : - झूठा स्वांग भर कर सत्य का पाखंड करता है निर्दोष को न्याय नहीं मिलता दोषी को दंड नहीं मिलता | 

    जनमानस तिल मान भए मंत्री गन भए  ताड़ | 

    राजा बिहुने देस में लगि समास करि बाड़ || ५ || 
    भावार्थ : -  जहाँ जनमानस तिल के समान समझे जाते हैं और मंत्री ताड़ से हुवे जाते हैं हे भारत ! शासन के अभाव से ग्रसित ऐसे देश में फिर समस्याएं विकराल रूप ग्रहण कर लेती हैं | 


    पहरी हसि पहरा नहीं सीँउ होत नहि सीँउ | 
    लाँघत नित गह देस कहुँ भया पडोसी पीउ || ५ || 
    भावार्थ : - प्रहरी तो हैं किन्तु पहरा नहीं है सीमा रेखा है किन्तु सीमा नहीं है उसका उल्लंघन करते प्रतिवेशी  नित्य उल्लंघन करते इस गृह इस देश के स्वामी हो गए |  

    जहँ जाग जगरीति नहीं नहीं जोड़ के जोग | 
    होत जात गह आपने पराधीन सो लोग ||  ६ || 
    भावार्थ : - जहाँ जागृत होते हुवे स्वकर्तव्य के विषय में सचेत न हो  और अपनी भू सम्पति की सम्यक सुरक्षा नहीं करते वहां जनमानस अपने ही गृह में पराए के अधीन हो जाते हैं | 

    लोक जाग जगरीति नहि होतब जहाँ सबेर |  

    घनियारि रैन रहे तहँ ब्यापत घन अँधेर  || ७ || 
    भावार्थ : - जहाँ लोक जागृति न हो जनमानस स्वकर्तव्य के विषय में सचेत न हों वहां स्वातंत्र का प्रभात होने पर भी नियम व् नीतियों का अभाव रूपी घना अन्धेरा व्याप्त करती दासता की काली रात्रि ही रहती है |  

    अनुसासन बिबँधेउ कहुँ सासन चाहिए नाह | 
    तासु हीन कहुँ होत है सासन केरी चाह || ८ || 
    भावार्थ : -अनुशासन बद्ध को शासन की आवश्यकता नहीं होती, अनुशासन हीन को ही शासन की आवश्यकता होती है |

    अनुसासन बँधे जन कहुँ सासन चाह न होंहि | 
    मरजादा गह संचरै सो तो आपन सोंहि || ९ || 
    भावार्थ : -अनुशासन बद्ध जनमानस को शासन की आवश्यकता नहीं होती एक निश्चित मर्यादा का पालन कर वह अपना संचालन स्वयं कर लेता है| 

    सासन जहँ कोल्हू किए जन जन भएँगे बैल | 
    सासक सोंटी मार कै निकसावैगा तैल || १० || 
    भावार्थ : - हे भारत !  शासन जहाँ कोल्हू के समान हो जाता है वहां फिर जनमानस वृषभ के सदृश्य हो जाती है | ऐसे शासन व्यवस्था में फिर श्रम से शिथिलीकृत अवस्था में भी शासक अपनी इच्छाचारिता की सोंटी से चोट देते उस वृषभ का शोषण व् दोहन करता है |