पद पद मैं परबत नदी बट बट मैं बन राए l
यह संपत्ति जगपति की सोच समझ बरताएं ll१II
चरण चरण पर ये पर्वत नदियां मार्ग मार्ग पर यह वनस्थली में स्थित वृक्षसमूह ये सभी संपत्ति जगत के कारण भूत परमेश्वर की है अतएव मनुष्य को इनका विचार पूर्वक व्यवहार करना चाहिए
खोद खन नद परबत बन, लाएँ आगि दिए बाल l
वाका मोल चुकाएगा,आज नहीं तो काल ll२II
ये पर्वत नदी खनिजों की खानों को उत्खात इन्हें आग में झोंक कर मानव धड़ल्ले से अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति कर रहा है इसके स्वामित्व से अनभिज्ञ मनुष्य का आज नहीं तो कल अवश्य ही उसका मूल्य चुकाएगा
पथ पथ मैं परबत नदी बट बट मैं बन राए l
पद पद येह भव सम्पति जगपति दिए बिरचाए ll३II
पथ पथ पर यह पर्वत नदी मार्ग मार्ग पर वनस्थली में यह वृक्षसमूह चरण चरण पर यह समूची सम्पति जगत के कारण भूत परमेश्वर द्वारा सृजित की हुई है
जगत जनों के जगत में पाप पुण्य दो रंग |
पतित पावनि पुण्य प्रदा पाप नाशिनी गंग II४II
घर घर होती बेटियाँ,पढ़ लिख कर गुणवान l
यह शिक्षा फलीभूत जब, रखे पिता का मान ll
भरे दया के भाव से,देख घाव गंभीर l
दे रक्त प्राण दान दे,वही है रक्त वीर ll
प्रसर पंथ पर चरण धर,उड़ा उतंग विमान ।
वियत गमन करतेआह! गिरा तरु पत्र समान II
प्रसर पंथ = रनवे
जिउते मिरतक होत बस,लगे पलक कुल दोए ।
कलजुग तोरे काल में,समुझे नाही कोए ॥
जीवित से मृतक होते केवल दो ही क्षण लगते हैं हे कलयुग ! तेरे काल की गति का बोध किसी को नहीं है
आदर्श चरित्र राम का,यह गीता का उपदेश l
अखिल विश्व को दे रहा सद पथ का संदेश ll
भगवान श्री राम का चरित्र व भगवद्गीता का उपदेश समूचे विश्व के लिए आदर्श स्वरूप सत्य पंथ का संदेश देते हैं... वस्तुत: भगवान श्री राम का चरित्र आदर्श स्वरूप है सम्पूर्ण रामायण नहीं और श्रीमद्भगवद्गीता आदर्श स्वरूप हैं भगवान श्रीकृष्ण नहीं.....
सहस षोडश सताष्टिका बहु पाणिनि के जाए l
हैं एतनिक फिर केहि कर ऐतिक जन कलिसाए ll
16108 पत्नियों वाले भगवान के एवं बहुपत्नीक वाले कुल के हम वंशजों की इतनी संख्या पर आपत्ति है तब फिर पत्नीविहीन संस्कृति केअनुगामी ईसाई धर्मावलंबियों की संख्या विश्व में इतनी अधिक क्यों है
अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखाई देता है?... हलवे के जैसा... और हम सनातनी?... उसके घृत जैसा... ये अंतरिक्ष गए उन चतुर चौकड़ियों को दिखाई...
नैनन्ह को जान दरस पलक पाँख सम लेख l
मनस गति कर चढ़े नभस रहे जगत को देख ll
नेत्रों को यान के सदृश्य व पलकों को पंखों के समान मानकर मन की गति से अंतरिक्ष चढ़के जगत का अवलोकन करते हैं.....
जन जन भोजन रूप है जगत भूमि एक थाल l
घृत स्वरूप हम भारती अन्यानोदन दाल ll
अन्यान्य= और दूसरे, ओदन=चावल,दालिका के जैसे
अंतरिक्ष से विश्व भूमि यह पृथ्वी एक थाल केऔर लोग भोजन के सदृश्य दिखाई दे रहे हैं और दूसरे चावल और दाल से और हम भारतीय घृत, शाक, अचार, इत्यादि के जैसे दिखाई देते हैं
पारसी बौद्ध और सिक्ख शाक सब्जी के जैसे, जैनी अचार के जैसे दिखाई दे रहा है जो दुग्ध उत्पाद व कंद मूल से रहित केवल बीज फल के भरोसे क्षार व खटास लिए थाल के किसी कोने में पड़ा है
विश्व में धर्म निरपेक्षों की भी कुछ संख्या है जो थाल में रोटी जैसे है खा लो तो ठीक नहीं खाओ तो ठीक.....
विश्व की भोज्य थाल में आधे पर तो चावल सदृश्य ईसाई धर्म के अनुयायि प्रसरे हुवे हैं और ये दाल सदृश्य इस्लाम..... दो दो कटोरियों में भर कर छलक रहा है न घृत को रहने देते न शाक सब्जियों को.....
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