जीत गए भई जीत गए फिरे बजाते ढोल l
बोल चले बत एकै ही और न दूजे बोल ll१क||
:--जीत गए भई जीत गए, जीत का प्रचार करते फिर रहे हैं जीतने वाले की केवलमात्र एक ही रटन है और दूसरी नहीं
बिता परब न भाए जेत भावै परब नवान |
चंद्रोदय सोह न बिहान जेतक दिनावसान ||१ ख|| ----महर्षि वाल्मीकि
:--जिस प्रकार चन्द्रमाका उदय जितना सांयकाल में सुशोभित होता है उतना प्रातकाल में नहीं, उसी प्रकार बिता उत्सव उतना रुचिकर प्रतीत नहीं होता जितना की कोई भावी उत्सव.....विजयादशमी कब की व्यतित हो गई इनके पटाखे अभी तक फूट रहे है.....
देस बिरोधि बचन कहत जोइ होइ बाचाल |
शासन हर काहे नही तिन्हनि देय निकाल ॥२||
:- देश विरोधी वक्तव्य का वाचन कर अपनी वाक् पटुता का प्रदर्शन करने वालों को सत्ताधारी देश निकाला क्यों नहीं देते.....
विधि बिधाइ पालन पर देय नहि जब ध्यान ।
देस हुँत होत सकल तब बिरथा विधिक विधान ॥३||
:-- विधि की निर्मात्रि संस्थाऐं जब उसके पालन पर ध्यान नहीं देती तब देश हेतु समस्त विधि विधान व्यर्थ सिद्ध होते हैं.....
हिरन रजत की मुदरिका चलिं अँग्रेज कालीन |
भए सुतंत्र सत्तासीन करियो ताहि अधीन ||४||
:--ब्रिटिश कालीन भारत में स्वर्ण रजत मुद्राएं प्रचलित थीं..... कांग्रेस के सत्तासीन होते ही भारत को निर्धन घोषित कर इस मुद्रा को बंधक बना लिया गया.....
मित मिताए खेलिओ मति, कह गए संत सुजान |
खेला जूं पड़ोस देस आ घुस चढ़ि पितु मान ||५ ||
:-- संत लोग कहते हैं..... फ्रेंड-फ्रेंड मत खेलो..... बांग्लादेसि से खेला..... उन देसि का पता नहीं कहां है किंतु उसके अवैध घुसपैठिए अवश्य डैडी डैडी बोलके भोलेभाले भारत की गोदी में चढ़े जा रहे हैं.....
जगत महिम बैठे तहाँ बैठ पडोसी जाए |
या तिनको अपनाए सो या हम लोह बजाए ||६||
:--भारत जगत पिता तो है नहीं..... वहां जगत डैडी बैठा हुआ है उसकी गोदी में जाओ.....भारत पूछे उस जगत डैडी से..... या तो वह इन घुसपैठियों को अपनाए अन्यथा हमारे परमाणु बम सजाने के लिए नहीं हैं....
ब्रत चरनी को ज्ञान दे पावत पूर पकवान ।
दिगंबर को विधान दे पहिरे पंच परिधान ॥७||
:-- पूवे पकवान प्राप्त कर व्रतचारी को ज्ञान नहीं देना चाहिए व उत्तम उत्तम परिधान धारण कर दिगंबर को उसकी विधि का विधान नहीं कहना चाहिए .....
कृत्याकृत्य आपनी, सोचे आप समाज ।
अन्याअन को चाहिये, रहिये अपने काज ॥8||
:-- सामाजिक कर्त्तव्यों-अकर्त्तव्यों के विषय का विचार तत्संबंधित समाज का है अन्य जनों चाहिए कि वह अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करें.....
दोष आपुने देस का बिनहि सोच बिचार l
धर्म अनुहरत आपुना कहत लेत चटखार ||९||
:-- सोच विचार से राहित्य होकर प्रायः अपने देश के दोषों को अपने ही धर्म का उदाहरण देते हुए हमारे अपने ही लोगों द्वारा अत्यंत ही रुचि पूर्वक कहा जाता है .....
वीर धर्म अनुहार सीँव पर हो सैन खड़े |
समर सम त्यौहार मान रिपु के संग लड़े ॥१०||
:-- वीरता के धर्म का अनुशरण करने वाले सैनिकों को ही सीमा पर नियोजित होना चाहिए,युद्ध को धार्मिक उत्सव के समान मान कर शत्रुओं से लोहा लेना चाहिए.....
वीरता एक धर्म के सम समर सम त्योहार ।
तिन्ह मनावन चाहिये बरस माहि एक बार ॥११||
:-- वीरता यदि धर्म है तो युद्ध एक धर्मोत्सव है वीरता का धर्म स्वरूप समरोत्सव का आयोजन वर्ष में किसी एक दिवस अवश्य करना चाहिए.....फिर भारत तो एक उत्सव प्रेमी देश है.....
नहि बीर सो सबद बान जोइ चलावै तीर |
रन आँगन में बोलता सोइ कहावै बीर ||१२||
:-- शब्द बाण चलाने भर से लड़ाई जीती नहीं जाती जो समरांगण में बोलें वीर वही होता है....तीर= खैंच के
:-- युद्धं न वचनबाणप्रहारेन जितं भवति, केवलं रणक्षेत्रे वदन् एव शूरः.....
देस बिरोधि बचन कहत,जोइ होइ बाचाल |
शासन हर काहे नही, तिन्हनि देय निकाल ॥१३||
:- देश विरोधी वक्तव्य का वाचन कर अपनी वाक् पटुता का प्रदर्शन करने वालों को सत्ताधारी देश निकाला क्यों नहीं देते.....क्या कर रहे आपके पारित किए गए विधेयक.....?
विधि बिधाइ पालन पर देय नहि जब ध्यान ।
देस हुँत होत सकल तब बिरथा विधिक विधान ॥१४||
:-- विधि की निर्मात्रि संस्थाऐं जब उसके पालन पर ध्यान नहीं देती तब देश हेतु समस्त विधि विधान व्यर्थ सिद्ध होते हैं.....
तीन लोक की संपदा, करतल दियो धराए ।
लाभ लबध के लिप्सु का तापर लोभ न जाए ॥१५||
:-- तीन लोक की अपार संपदा करतल पर रख दो तथापि लाभ लब्धियों के लिप्सु का लोभ नहीं जाएगा.....
चर्या ऐसी चारिये,जीवन हो सुखदाए ।
लिप्सा हो बस आपने, ताका करो उपाए ॥१६||
:-- चर्या ऐसी चलें कि जीवन सुखप्रद हो, लोभ की लिप्सा अपने वश में हो इस हेतु सदैव प्रयासरत रहना चाहिए.....
यह जीवन अनमोल है जान सकै तो जान ।
साजन तब का लाहिआ जब जाए पड़े समसान ॥१७||
:-- यह जीवन अनमोल है इसका यथा शीघ्र संज्ञान कर लेना चाहिए हे सज्जनों ! श्मशान में जाकर जीवन का मूल्य समझ आए तब फिर क्या लाभ.....
दारिद अरु धनवान हुँत बिलगित जात्री यान ।
दारिद धनी संग चले किजौ अस प्रावधान ॥१८||
:-- दरिद्र और धनी हेतु पृथक पृथक श्रेणी के यात्री यान क्यूँ है दरिद्र धनी एक साथ यात्रा करें ऐसा प्रावधान होना चाहिए.....
लब्धवान धन वंत को दारिद दियो बसाए ।
दरसत दीठि फिराए ले परसत जा असनाए ॥१९||
:-- धनवानों व लब्ध प्रतिष्ठितों को देश के दरिद्रों से दुर्गंध आती है दारिद्र दर्शन दे जाए तो ये उसे अपशकुन मानकर दृष्टि फेर लेते है और यदि त्रुटिवस भी इनका स्पर्श हो जाए तो यह जाकर स्नान करते हैं....
संसद में निषेधित है दरिद्रता का प्रवेस ।
यह आसंदी दै तिन्ह,जो को होए धनेस ॥२०||
:--विद्यमान संसद में दरिद्रता का प्रवेश निषेध है यह संसद उसे ही अपनी आसंदी प्रदान करती है जो देश मे धनवान व लब्ध प्रतिष्ठित हो.....