Saturday, 2 August 2025

----- || दोहा -विंशी 21|| ----,

 जीत गए भई जीत गए फिरे बजाते ढोल l

बोल चले बत एकै ही और न दूजे बोल ll१क|| 

:--जीत गए भई जीत गए, जीत का प्रचार करते फिर रहे हैं जीतने वाले की केवलमात्र एक ही रटन है और दूसरी नहीं 

 बिता परब न भाए जेत भावै परब नवान | 

चंद्रोदय सोह न बिहान जेतक दिनावसान ||१ ख||  ----महर्षि वाल्मीकि
:--जिस प्रकार चन्द्रमाका उदय जितना सांयकाल में सुशोभित होता है उतना प्रातकाल में नहीं, उसी प्रकार बिता उत्सव उतना रुचिकर प्रतीत नहीं होता जितना की कोई भावी उत्सव.....विजयादशमी कब की व्यतित हो गई इनके पटाखे अभी तक फूट रहे है.....

देस बिरोधि बचन कहत जोइ होइ बाचाल |
शासन हर काहे नही तिन्हनि देय निकाल ॥२|| 
:- देश विरोधी वक्तव्य का वाचन कर अपनी वाक् पटुता का प्रदर्शन करने वालों को सत्ताधारी देश निकाला क्यों नहीं देते.....

विधि बिधाइ पालन पर देय नहि जब ध्यान ।
देस हुँत होत सकल तब बिरथा विधिक विधान ॥३|| 
:-- विधि की निर्मात्रि संस्थाऐं जब उसके पालन पर ध्यान नहीं देती तब देश हेतु समस्त विधि विधान व्यर्थ सिद्ध होते हैं.....

 हिरन रजत की मुदरिका  चलिं अँग्रेज कालीन | 
 भए सुतंत्र सत्तासीन करियो ताहि अधीन  ||४||               
:--ब्रिटिश कालीन भारत में स्वर्ण रजत मुद्राएं प्रचलित थीं..... कांग्रेस के सत्तासीन होते ही भारत को निर्धन घोषित कर इस मुद्रा को बंधक बना लिया गया.....

मित मिताए खेलिओ मति, कह गए संत सुजान | 
खेला जूं पड़ोस देस आ घुस चढ़ि पितु मान ||५ || 
:-- संत लोग कहते हैं..... फ्रेंड-फ्रेंड मत खेलो..... बांग्लादेसि से खेला..... उन देसि का पता नहीं कहां है किंतु उसके अवैध घुसपैठिए अवश्य डैडी डैडी बोलके भोलेभाले भारत की गोदी में चढ़े जा रहे हैं.....

जगत महिम बैठे तहाँ बैठ पडोसी जाए | 
या तिनको अपनाए सो या हम लोह बजाए ||६|| 
:--भारत जगत पिता तो है नहीं..... वहां जगत डैडी बैठा हुआ है उसकी गोदी में जाओ.....भारत पूछे उस जगत डैडी से..... या तो वह इन घुसपैठियों को अपनाए अन्यथा हमारे परमाणु बम सजाने के लिए नहीं हैं....

ब्रत चरनी को ज्ञान दे पावत पूर पकवान ।
दिगंबर को विधान दे पहिरे पंच परिधान ॥७|| 
:-- पूवे पकवान प्राप्त कर व्रतचारी को ज्ञान नहीं देना चाहिए व उत्तम उत्तम परिधान धारण कर दिगंबर को उसकी विधि का विधान नहीं कहना चाहिए .....

कृत्याकृत्य आपनी, सोचे आप समाज ।
अन्याअन को चाहिये, रहिये अपने काज ॥8|| 
:-- सामाजिक कर्त्तव्यों-अकर्त्तव्यों के विषय का विचार तत्संबंधित समाज का है अन्य जनों चाहिए कि वह अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करें.....

दोष आपुने देस का बिनहि सोच बिचार l
धर्म अनुहरत आपुना कहत लेत चटखार ||९|| 
:-- सोच विचार से राहित्य होकर प्रायः अपने देश के दोषों को अपने ही धर्म का उदाहरण देते हुए हमारे अपने ही लोगों द्वारा अत्यंत ही रुचि पूर्वक कहा जाता है .....

वीर धर्म अनुहार सीँव पर हो सैन खड़े | 
समर सम त्यौहार मान रिपु के संग लड़े ॥१०|| 
:-- वीरता के धर्म का अनुशरण करने वाले सैनिकों को ही सीमा पर नियोजित होना चाहिए,युद्ध को धार्मिक उत्सव के समान मान कर शत्रुओं से लोहा लेना चाहिए.....

वीरता एक धर्म के सम समर सम त्योहार ।
तिन्ह मनावन चाहिये बरस माहि एक बार ॥११|| 
:-- वीरता यदि धर्म है तो युद्ध एक धर्मोत्सव है वीरता का धर्म स्वरूप समरोत्सव का आयोजन वर्ष में किसी एक दिवस अवश्य करना चाहिए.....फिर भारत तो एक उत्सव प्रेमी देश है.....

नहि बीर सो सबद बान जोइ चलावै तीर | 
रन आँगन में बोलता सोइ कहावै बीर ||१२|| 
:-- शब्द बाण चलाने भर से लड़ाई जीती नहीं जाती जो समरांगण में बोलें वीर वही होता है....तीर= खैंच के
:-- युद्धं न वचनबाणप्रहारेन जितं भवति, केवलं रणक्षेत्रे वदन् एव शूरः.....

देस बिरोधि बचन कहत,जोइ होइ बाचाल | 
शासन हर काहे नही, तिन्हनि देय निकाल ॥१३|| 
:- देश विरोधी वक्तव्य का वाचन कर अपनी वाक् पटुता का प्रदर्शन करने वालों को सत्ताधारी देश निकाला क्यों नहीं देते.....क्या कर रहे आपके पारित किए गए विधेयक.....?

विधि बिधाइ पालन पर देय नहि जब ध्यान ।
देस हुँत होत सकल तब बिरथा विधिक विधान ॥१४|| 
:-- विधि की निर्मात्रि संस्थाऐं जब उसके पालन पर ध्यान नहीं देती तब देश हेतु समस्त विधि विधान व्यर्थ सिद्ध होते हैं.....

तीन लोक की संपदा, करतल दियो धराए ।
लाभ लबध के लिप्सु का तापर लोभ न जाए ॥१५||  
:-- तीन लोक की अपार संपदा करतल पर रख दो तथापि लाभ लब्धियों के लिप्सु का लोभ नहीं जाएगा.....

चर्या ऐसी चारिये,जीवन हो सुखदाए ।
लिप्सा हो बस आपने, ताका करो उपाए ॥१६|| 
:-- चर्या ऐसी चलें कि जीवन सुखप्रद हो, लोभ की लिप्सा अपने वश में हो इस हेतु सदैव प्रयासरत रहना चाहिए.....

यह जीवन अनमोल है जान सकै तो जान ।
साजन तब का लाहिआ जब जाए पड़े समसान ॥१७|| 
:-- यह जीवन अनमोल है इसका यथा शीघ्र संज्ञान कर लेना चाहिए हे सज्जनों ! श्मशान में जाकर जीवन का मूल्य समझ आए तब फिर क्या लाभ.....

दारिद अरु धनवान हुँत बिलगित जात्री यान ।
दारिद धनी संग चले किजौ अस प्रावधान ॥१८|| 
:-- दरिद्र और धनी हेतु पृथक पृथक श्रेणी के यात्री यान क्यूँ है दरिद्र धनी एक साथ यात्रा करें ऐसा प्रावधान होना चाहिए.....

लब्धवान धन वंत को दारिद दियो बसाए ।
दरसत दीठि फिराए ले परसत जा असनाए ॥१९|| 
:-- धनवानों व लब्ध प्रतिष्ठितों को देश के दरिद्रों से दुर्गंध आती है दारिद्र दर्शन दे जाए तो ये उसे अपशकुन मानकर दृष्टि फेर लेते है और यदि त्रुटिवस भी इनका स्पर्श हो जाए तो यह जाकर स्नान करते हैं....

संसद में निषेधित है दरिद्रता का प्रवेस । 
यह आसंदी दै तिन्ह,जो को होए धनेस ॥२०|| 
:--विद्यमान संसद में दरिद्रता का प्रवेश निषेध है यह संसद उसे ही अपनी आसंदी प्रदान करती है जो देश मे धनवान व लब्ध प्रतिष्ठित हो.....
































































----- || दोहा -विंशी20 || ----,

 देस आप के बाप का,आपहि नहि परबोधि।

जोय विरोधैं आप को सो तो स्वतो बिरोधि॥१|| 

: - - ये देश किसी का नहीं स्वयं आपके ही बाप का है और आपको ही यह संज्ञात नहीं है जो स्वयं का विरोध करे उसे स्वतो विरोधि कहते हैं वर्तमान बिहार में स्वयं का विरोध हो रहा है... .

देस प्रधान जाए खड़े देस देस के द्वार।
मान सनमान माँग के लाए भरे भंगार॥२|| 
:-- देश के प्रधान मंत्री का विदेश गमन देश देश के द्वार पर सम्मानों की भिक्षा की माँग हेतु प्रतीत हो रहा है , मानों वह भिक्षा में प्राप्त इन सम्मानों का भंगार एकत्र कर रहें हों..... ये उचित नहीं है .

सद्वचन भूषण जाके सत्य सील का भेस l
दानधर्म भूसा जहां सो तो भारत देस ll३|| 
:-- सद्वचन ही जिसके भूषण हैं सत्य शीलता का वेश है जहां दानधर्म ही भूसा स्वरूप है वह देश भारत देश है.....

मिले लौह ते लौह तब होत हथौड़ा रूप l
सुबरन को सो चोट दे भूषन का स्वरूप ॥४|| 
:-- लोहा से लोहा का मेल हथोड़े रूपी गुण प्रकट करता है, हथौड़ा रूपी इस गुण में स्वर्ण को सुधार कर सुन्दर आभूषण की आकृति प्रदान करने का सामर्थ्य होता है.....

जोइ मेल मिलाई के रहे सोन के ओट ।
लोहा निज गुन खोए के कहिलावै फिर खोट॥५|| 
:-- मेल मिश्रित स्वरूप स्वर्ण में छिपकर फिर वही लोहा अपना स्वाभाविक गुण नष्ट कर देता है और अपने अवगुण प्रकट कर दुष्ट कहलाता है....

माया के मंचासीत,न रहे घमंड में चूर l
पत्रकारिता के दुर्दिन,नहीं अधिक अब दूर ll६|| 
: -- माया के मंचासीत होकर पत्रकारिता को अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि अब इसके भी दुर्दिन अधिक दूर नहीं है 

आए सिर पर बिपदा ता, पुरबल किजै उपाए l 
आग लगे फिर कुअँ खने सो पाछे पछिताए ॥७||  
:-- सिर पर कोई विपदा आए इससे पूर्व उसके उपाय कर लेने चाहिए आग लगने पर कुआँ खोदने पर केवल पश्चाताप शेष रह जाता है.....
भोग भूमि भव सूल कर यह भव सिन्धु अपार। 
जो डूबे सो डूब गए जो तीरे सो पार॥८|| 
:--यह संसार अतिशय भोगों ऐश्वर्यों के लौकिक एवं भौतिक सुखों व दुखों का अथाह समुद्र है जो इसमें निमग्न हुआ वह जन्म मरण के चक्र में पड़ा रहा जो तट पर खड़ा रहा उसका उद्धार हो गया । :--यह सद्वचन ब्रह्मस्थ जीवनचर्या हेतु कहे गए हैं.....

भोग भूयस् भू सूल कर यह भव सिन्धु अपार। 
करनधार के कर गहे सो करिये तिन पार ॥९क||  
:-- यह संसार अतिशय भोगों ऐश्वर्यों के लौकिक एवं भौतिक सुखों व दुखों का अथाह समुद्र है जिन्होंने नाविक रूपी ईश्वर का संग किया वह जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो गए..... :-- यह सद्वचन गृहस्थ जीवन चर्या हेतु कहे गए हैं.....
:-- अयं संसार लौकिक-शारीरिक-सुख-दुःख-अति-भोग-विलास-अन्तर-सागरः अस्ति। ये ईश्वरस्य सङ्गमे सम्मिलिताः ये तस्य नौकायानस्य सन्ति, ते जीवनमरणचक्रात् मुक्ताः अभवन्।

को लिख लिख ज्ञानि भए को, पढ़ पढ़ भए विद्वान l 
लिखे पढ़े जो अनुसरे, भए सो महति महान ll९ख||  
:-- कोई लिख लिख कर ज्ञानवान हुए कोई उसे पढ़ पढ़ कर विद्वान हो गए जिन्होंने इस लिखे पढ़े का अनुकरण किया वह परम श्रेष्ठ सिद्ध हुवे.....

ब्रत चरनी को ज्ञान दे पावत पूर पकवान ।
दिगंबर को विधान दे पहिरे पंच परिधान ॥१०|| 
:-- पूवे पकवान प्राप्त कर व्रतचारी को ज्ञान नहीं देना चाहिए तथा उत्तम उत्तम परिधान धारण कर दिगंबर को उसकी विधि नहीं बतानी चाहिए.....

ब्रत चरनी को ज्ञान दे पावत पूर पकवान ।
दिगंबर को विधान दे पहिरे पंच परिधान॥११|| 
:-- पूवे पकवान प्राप्त कर व्रतचारी को ज्ञान नहीं देना चाहिए तथा उत्तम उत्तम परिधान धारण कर दिगंबर को उसकी विधि नहीं बतानी चाहिए.....

कृत्याकृत्य आपनी सोचे आप समाज ।
अन्याअन को चाहिये रहिये अपने काज ॥१२|| 
:-- सामाजिक कर्त्तव्यों- अकर्त्तव्यों के विषय का विचार तत्संबंधित समाज का है अन्य जनों चाहिए कि वह अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करें.....

दोष आपुने देस का बिनहि सोच बिचार l
धर्म अनुहरत आपुना कहत लेत चटखार ||१३||  
:-- सोच विचार से राहित्य होकर प्रायः अपने देश के दोषों को अपने ही धर्म का उदाहरण देते हुए हमारे अपने ही लोगों द्वारा अत्यंत ही रुचि पूर्वक कहा जाता है .....

दोष पराए देस का ताकु ग्रंथ अनुहार l 
कही सके तहँ जाए को सुधिजन कहो विचार ll१४|| 
:-- पराए देशों के दोषों को उनके धार्मिक ग्रंथों का उदाहरण देकर उन्हीं के देश में कहने का साहस है ? सुबुद्ध सुज्ञानि जन यह विचार कर कहें... ..

जगत डैडी को कहिए जाकर :-- आपका भगवान कीलों में क्यूँ लटका हुआ है ये कौन सा वाद है..... मनुवाद है या अमनुवाद... .. ?

एक आध परमाणु पूछने वाले के सिर में अवश्य फूट जाएगा... ..

देस धर्म सद्ग्रंथ की करतब फिरे बुराए ।
सासन हर को चाहिये तापर रोक लगाएँ ॥१५क|| 
:-- हमारे देश में प्रादुर्भूत धर्म व उसके सद्ग्रथों की हमारे अपने ही देश में निंदा करते फिर रहें लोगों के ऐसे निंदनिय कृत्य को शासन कर्त्ताओं द्वारा तत्काल प्रतिबंधित करना चाहिए.....

भारत तिन्हनि कारिआ बड़ा पाल कर पोस।
देय स्वारथ आपने धर्म ग्रंथ को दोष ॥१५ख|| 
:-- वस्तुतः भारत ने ऐसे लोगों को पाल पोश कर बड़ा किया है जो अपना हित साधने हेतु भारत के धर्म ग्रंथों की निंदाभारत में ही करते फिर रहे हैं......

होत सक्ति ते सामरथ करे नहीं उपयोग । 
हे भारत तव लोग सो नहीं सिंहासन जोग ॥१५ग|| 
:-- शक्ति सामर्थ्य होते हुवे भी उसका उपयोग न करते हों तब हे भारत वह सत्ता सूत्र धारी तुम्हारे सिंहासन के योग्य नहीं है.....

देस धर्म निज छाँड़ जो, करत फिरत पाखंड ।
सासन हर दैं ताहि को कठोर बिधि कर दंड ॥१५घ|| 
:--अपने देश के प्रादुर्भूत धर्म का त्यागकर जो धर्म का पाखंड करतेहुवे दूसरों के धर्मग्रंथों की निंदा करने में संलग्न है शासनकर्त्ता को ऐसे पाखंडियों हेतु विधेय रचितकर कठोरतम दंड का प्रावधान करना चाहिए.

वीर धर्म अनुहार,सीँव पर हो सैन खड़े ।
समर सम त्यौहार, मान रिपु के संग लड़े॥१६|| 
:-- वीरता के धर्म का अनुशरण करने वाले सैनिकों को ही सीमा पर नियोजित होना चाहिए,युद्ध को धार्मिक उत्सव के समान मान कर शत्रुओं से लोहा लेना चाहिए.....

वीरता एक धर्म के सम समर सम त्योहार ।
तिन्ह मनावन चाहिये बरस माहि एक बार ॥१७|| 
:-- वीरता यदि धर्म है तो युद्ध एक धर्मोत्सव है वीरता का धर्म स्वरूप समरोत्सव का आयोजन वर्ष में एक बार तो अवश्य करना चाहिए.....

नहि बीर सो सबद बान जोइ चलावै तीर | 
रन आँगन में बोलता सोइ कहावै बीर ||१८|| 
:-- शब्द बाण चलाने भर से लड़ाई जीती नहीं जाती जो समरांगण में बोलें वीर वही होता है....तीर= खैंच के
:-- युद्धं न वचनबाणप्रहारेन जितं भवति, केवलं रणक्षेत्रे वदन् एव शूरः.....

बिता परब न भाए जेत भावै परब नवान |
चंद्रोदय सोह न बिहान जेतक दिनावसान ||१९|| 
----महर्षि वाल्मीकि
:--जिस प्रकार चन्द्रमाका उदय जितना सांयकाल में सुशोभित होता है उतना प्रातकाल में नहीं, उसी प्रकार बिता उत्सव उतना रुचिकर प्रतीत नहीं होता जितना की कोई भावी उत्सव.....

देस बिरोधि बचन कहत जोइ होइ बाचाल ।
शासन हर काहे नही तिन्हनि देय निकाल ॥२०|| 
:- देश विरोधी वक्तव्य का वाचन कर अपनी वाक् पटुता का प्रदर्शन करने वालों को सत्ताधारी देश निकाला क्यों नहीं देते.....