Wednesday, 11 September 2013

----- ।। गुजरे-लम्हे ॥ -----

काफ़ तलक दुन्या है खुदा बंद का कारख़ाना है.., 
जिस्मों की ज़र निगारी है रूहों का तानाबाना है..,


निंदों का आसमाँ है और ख़्वाबों के परिंदे हैं..,
पलकों की बंदिशे में कैदे-उल्फत का जमाना है..,

खलाओं की रिंद राहें हैं बादे-सबा रहबर है..,
मौसम के बाग़बानों में बहारे-गुल बदाना है..,

शब् के शोख पंखों पर जहां सितारे खिलते हैं..,
रोज़े-अलस्सबाह की नर्म बाहों में समाना है..,

दीवारे-दर पे दस्ती की रौगने ताब सियाही है..,
बादलों की बस्ती में बारिशों का आशियाना है..,

बर्के दानी रौशन है दिलकश खुद आसाई है.., 
कतरों की शक्ल सूरत,दरिया का आनाजाना है..,

गर्दिशों के पेशे-दर गर्दूँ  की गुज़र बानी है..,
खलक के ख़ान काहों में आबोदाँ का खज़ाना है  

 सदीयों के जुज बंदी पर काबा-ओ-कलीसा है.., 
रोज़े-दर के ज़ीने चढ़ बरसों का आस्ताना है..... 

खुदा बंद का कारख़ाना = ईश्वर का इंद्रजाल 
अलस्सबाह = तड़के 
दस्ती की = हाथ की 
रौगने ताब सियाही= चमकते  हुए काले रंग की पुताई 
खुद आसाई =बनाव-श्रृंगार 
गर्दूँ = आसमान 
खलक =जीव जगत 
ख़ान काहों = दरगाह 
जुज बंदी=क्रमबद्ध 
काबा-ओ-कलीसा = मस्जिद और मंदिर 
आस्ताना = सजदा का पत्थर 

No comments:

Post a Comment