रविवार, १६ नवम्बर, २०१४
सकल जगत जो रखे सुपासे, तहाँ सोए त्रय लोकि निबासे ॥
मोर करे सत करम प्रभावा । द्वारवती दरस मैं पावा ॥
अबर भगत जो दरसन पावैं । सकल हनन के दोषु दुरावै ॥
तहाँ सयमंतु पाँचक नामा । अहहैं एकु अघ हरनै धामा ॥
बीर भुइँ कुरु खेह के साथा । देखेहउँ कासी बिसनाथा ॥
तहँ सिरु जटिल जटा धर गंगे । तारक ब्रम्हन नाउ प्रसंगे ॥
कासी मुकुति हेतु उपदेसा । पूजिहि जिन नित जपत महेसा ।।
तासु भूमि जब धरे त्रिसूले । भानुमती निज पथ नहि भूले ॥
मनिकर्निका नाउ गहै , पवित तीरथ एकंग ।
लवनाकर मेलन बहे , उत्तरु बाहिनि गंग ॥
सोमवार, १७ नवम्बर, २०१४
देखा में अस धाम अनेका । सभी अपनपौ परम प्रबेका ॥
भुआलू बात कहुँ मैं साँची । घटे मोहि सन जोई काँची ॥
होइ रही तहँ जोइ प्रसंगा । हहरि अजहुँ लग मम अंगंगा ॥
सब धर्म धूरि जब भमनयऊँ । काँची के गिरि तब गमनयऊँ ॥
तहाँ दीठ जस दिए देखाईं । अबरु कतहुँ अस दरस न पाईं ॥
ते प्रसंग जो सुनिहि सुनाइहि । सनातन ब्रम्ह के पद पाइहि ॥
सुर सरिता अँगना बिस्तारै। सबुइ समउ पद पदुम पखारें ॥
सिखारोपर जब दीठ निपाता । देखा तहँ मैं कोल किराता ॥
रहि सोइ चतुर्भुज रूप, सिखारोपर धनु धारि ।
बिहरक अरु बिहीन तिलक, फूल मूल फल हारि ॥
मंगलवार, १८ नवंबर, २०१४
भयउ मोहि संदेहू महाना । निरखत तिन्हनि मन महु आना ॥
अहो एही धनबिन बन चारी । कैसे भयउ चतुर भुज धारी ॥
जोइ बिक्रम बैकुंठ निबासा । दए अभास तिनके संकासा ॥
निगमागम लेखित अबलेखा । जितारि पुरुखिन्हि कू मैं देखा ।।
प्रभु सरूप किरात कास पाइहिं । जो परिचारक हरि नियराइहि ॥
संख चक्र गदा धरि धनु भाथा । जेहि बिधि सोहहि तासु हाथा ॥
कंठ माल बर मुख पर कांति । दरसि काहु किरात हरि भांति ॥
भी चिट जब गहनइ संदेहू । पूछ मैं हे सुजन सनेहू ॥
कहँ बेहड़ बिपिन गोचर, कहँ यहु रूप अनूप ।
कहु को तुम्ह अरु कैसेउ, पाए चतुर्भुज रूप ॥
बुधवार, १९ नवम्बर, २०१४
सुनि अस तिनके मुख हँसि आनी । दिए उत्तरू पुनि बर मृदु बानी ॥
इहँ केर बिसमय पिंडदाना । भयउ ब्रम्हन महिमा न जाना ॥
कैसेउ पिंड दायन काऊ । चतुर्भुज धारि रहस बुझाऊ ॥
कहत बात जो बचन बखाने । सो बरनइ अरु मैं दिए काना ॥
परबत चर एकु जात हमारा । जंबुक तरु फर भखत बिहारा ॥
भमनत भमनत निज सख सोही । मंजू अनोहर सिखरु अरोही ॥
दीठ दुआरि दिरिस का देखे । कला कुसल कृत कलस बिसेखे ॥
सो अलख अनुपम अद्भुद कृति । मनि रतन जड़ित सुठि सुबरन भिति ॥
जासु काँति अस कासि जस कासत कासिक क़ासि ।
प्रकास पुंजी के पालक, अन्धकार के नासि ॥
बृहस्पतिवार, २० नवम्बर, २०१४
बालक चित्कृति चितब सकोचा । रह चितबत मन ही मन सोचा ॥
यहु कलकृति जस कला सँजोई । निरखे न कतहुँ अस कृति कोई ॥
गमन भीत मन कमना जागी । चाप चरन बालक बड़ भागी ॥
मंदिरु भीत भवन जब गयऊ । रघुबर साखी दरसन भयऊ॥
मुनि मनीषि रिषि मनु दनु देवा । नारद सारद किए अति सेबा ॥
कल कुंतल किरीट केयूरा । कंठ श्री संग बपुधर पूरा ॥
कारन मनोहर कुण्डल कासे । जुगल चरण तुलसी पत बासे ॥
मंगल परिकर संग अराधे । चतुर भदर बंदइ सुर साधे ॥
कतहु कल कुनिक कंठ प्रमादे । नभ गर्जहि नग सिख निहनादे ॥
सची नाथ किए सेवा जाकी । दरसत भगवन के अस झाकी ॥
जग बंदित चरन सुरगन, धूप नबैद चढ़ाए।
अस श्रीनिगरह के निकट, बालक डरपत आए ॥
शुक्रवार, २१ नवम्बर, २०१४
सुर हुँत दुर्लभ मनु हुँत अलभा । बालक हेतु भयउ सो सुलभा ॥
बिभु श्री बिग्रह प्रीतिबत लाखे। धरे अँजुरी जब तिन्ह भाखे ।।
सोई भयउ चतुर भुज रूपा । बैकुंठ बसे बिष्नु सरूपा ॥
परिकर धर जब गमनु बहोरा । हमहि मनु अचरजु भय न थोरा ॥
पूछि लोगन्हि बारहि बारा । भयऊ अस कस रूप तिहारा ॥
बालक बरनन जोइ बखाने । सुनि तिन औरहु बिसमय माने ॥
नील नग मूरधन मैं गमना । दरसेउ साखि सहुँ श्री रमना ॥
रहे देव सह साखिहि बेदा । चढ़ाए चरन ओदन नबेदा ॥
पूजनर्चन पूरन कर बहुरि सकल सुर लोग ।
सुभागबस ए भगत भयो, तनिक अंस के जोग ॥
शनिवार, २२ नवम्बर, २०१४
मधुर प्रसादु मैं जब भाखा । भयऊँ चतुर भुज रूप साखा ॥
होए अचरजु तुम्ह सम मोही । मम रूप ऐसेउ कस होही ॥
मुनिबर अस रह हमहि सुभागीं । उर्लभ दरसन के भए भागी ।
अरु अन्नादि प्रसादु जो पाए । भाव पूरनित सबहि मिल खाए ॥
रहि ओदन बहु रुचिरु रसारी । उतरे सो जब अधर दुआरी ॥
प्रबसित रसना देस बिहारे । कंठागत जब उदरु पधारे ॥
भगवद कृपा ऐसेउ होई । भगत बछर तन रूप सँजोई ॥
कहे लोग मुनि साधु सिधारउ । तुअहि तहाँ प्रभु दरस निहारौ ॥
जग बंदित पद प्रनिधान, ओदन प्रसादु जोहु ।
बिप्रनाथ हम सत्य कहएँ, रूप चतुर भुज होहु ॥
मुनिवर जोइ आयसु दिए हम सोइ कहि बुझाए ।
अनुहारत मति आपनी कहनी सबहि सुनाए ॥
रविवार २३ नवंबर, २०१४
कहि मुनिबर श्रुत हे जनपाला । किरातिन्हि के बचन रसाला ।
होए तहाँ अस अचरजु मोही । लोम हरष बहु पुलकित होही ॥
चितबत चित भित हरिनै रचिता । लवन लसिता मनि रतन खचिता ॥
देवायन नग सिखर अधारे । साखि रूप रघुनाथ हमारे ॥
दरस हेतु मम चरन अरोही । देइ नयन प्रभु दरसन मोही ॥
हस्त परिकर सिरु सूर धूपा । पैं प्रसादु भएँ सोइ सरूपा ॥
अजहुँ मोहि प्रभु गर्भ न घालहि । बपुर्धर गर्भ पीर न पालिहि ॥
कहत भूमिसुत हे मह राऊ । सो दुःख हरण तहँ तुअहि जाऊ ॥
मनीषि मुख गिरा श्रुत भए, पुलकित सकल सरीर ।
प्रच्छत तीर्थाटन बिधि, प्रजापत भए अधीर ॥
सोमवार, २४ नवम्बर, २०१४
मुनिरु तीर्थाटन बिधि बताए । सुनए सो जग बंदित प्रभु पाए ॥
काल पास कंठ सब गहाइहि । कोउ काल सोंह जित न पाइहि ॥
छन भंगूर जग जंजाला । भए अबिनासी जगत भुआला ॥
भगवन भव बंधन सन परे । मानत अस तासु नित भजन करें ॥
काम क्रोध मद लोभरि चारा । भय दम्भ चहे केहि प्रकारा ॥
भगवन्मय होइहि जो लोगए । जीवन महु सो दुःख नहि भोगए ॥
करे जोई साधु सत्संगा । रहि पलछन सो ज्ञान प्रसंगा ॥
साधु सूजन भलमन सोई । जासु कृपा केहु दुःख न होई ॥
षट बिकार जित सोए जन दाएँ जोए उपदेस ।
किए मोचित भव बंधन, रहे न कोउ कलेस ॥
मंगलवार, २५ नवम्बर, २०१४
तीरथ साधु सन हेल मिलाए । तासु दरस घन पाप दूराए ॥
जो जन तीरथ करन पयाने । भव भीति सोई करिहि बिहाने ॥
जहँ निसदिन निर्मल जल बासे । साधु सुजन के संग सुबासे ॥
तीर्थकर जस बिधि आगाने । मुनिबर पुनि तेसेउ बखाने ॥
प्रथमहिं घर सहि कुटुम त्यागिए । प्रियजन तिय तनुभव बैरागिए ॥
राम नाम मुख जपत निरंतर । दत्तचित्त भगवन सुमिरन कर ।।
एक कोस जोइ होइ पयाना । छउर क्रिया कर करें सनाना ॥
कारन पाप त केस अधारिहि । जो मनुस तीरथ पथ चारिहि ।
पाप केस अस देइ त्यागें । मुंड मस्तक लिए चले आगे ॥
काम क्रोध करें न लवलेसा । बर तीर्थोपयोगी भेसा ॥
संघाटिका हीन लगुडि कलित कमण्डलु हाथ ।
चाररि रच्छित ह्रदय लिए चले चरन के साथ ।।
बुधवार, २६ नवम्बर, २०१४
जो तीरथ पथ बिधिबत जाइहि ।सोए सेवन सकल फल पाइहि ॥
मानस मन कर चरन सँहिताए । भिद बिद्या तप कीरत बसाए ॥
जासु निलय श्री हरि धुन लागी । होहि जथारथ फल के भागी ॥
हे भगत बछर हे गोपाला । सरनागत के तुम प्रतिपाला ॥
जगत जोग तव सोंह को नाहि । भव बंधन सन पाहि मम पाहि ॥
जो रसना जे मंत्र उचारे । साधत हित भव सिंधु उतारे ॥
जावै साधन सन जो कोई । कर्म परिनाम भाजित होई ॥
बाहि भार जिन कंध अधारी । भयउ सोए अध के अधिकारी ॥
मारग चरत पयादहि जाईं । भाग फल न त मिलहिं चौथाई ॥
बिनु मन ते चहे को के कथन ते अर्धन फल मिलिहि अवसि ।
तीर्थंकर कहत तीर्थगमनत करे कलुषित करमन बिनसि ॥
पर जब पथ चारे बिधि अनुहारें तबहि पाइहि फल सही ।
नृप अस तव सौमुख मम लघु मुख बिधि भेद किछु एक ही कही ॥
भूपत बिधिबत अजहुँ तुअ तुर तीर्थ पथ जाउ ।
भगवद भगति प्रसादु सह प्रभु दरसन फल पाउ ॥
बृहस्पतिवार, २७ नंवम्बर, २०१४
कहत सुमति मोरे गोसाईं । भूपत मुनिरु चरन सिरु नाईं ॥
चलि उर बिहबल बायु हिलोले । कपाट उतकरषत हिंडोले ।
नृप पुरबासिन सह परिवारे । अपने सन ले गवन बिचारे ॥
बहुरि सुबुध सचिवन्हि बुलाईं । प्रगस मनोगति आयसु दाईं॥
नागर जनिन्हि दैं संदेसा । जोगएँ सो उपजोगी भेसा ॥
हरि पौरी दरसन अभिलाहेँ । तीर्थ हुँत जो चलेउ चाहैं ।।
पुरी पुरउकस बर पुरंजनी । पत्नी पत बालक जनक जनी ॥
धन धावन साधन अनुरागे । जासु लगन अनीति महि लागे ।।
ऐसेउ पतपानि हीन कुटुम संग का लेन ।
लेन लेन की लाग महुँ जाने ना कछु देन ॥
शुक्रवार, २८ नवम्बर, २०१४
जिनके चित प्रभु सुरत न आना । सोए सौकरिक जूह समाना ॥
राम नाम एक मुख जो लीन्हि । अंतर तमस प्रभामय कीन्हि ॥
हेरि सरन दुखि मन जो कोई । प्रभो चरन सम कोउ न होई ॥
गुंफ मनि गुन गिरा मनोहर । सत्यनाथ महमात श्रवन कर ॥
कर्ष मीर मन हरष हिलोरा । जुगित पुरउकस हनत ढिंढोरा ॥
भूपत जेसेउ आयसु दाए । जस के तस जन करन्हि धराए ।।
पुरबासिन् सादर संबोधे । तीरथ समाचार कह बोधे ॥
प्रभो चरन दरसन प्रत्यासी । परबासि हो कि कोउ निबासी ॥
पबित परबत रोहन जोग, जोरत रहउ समाज ।
हरि दरसन सँग लए गवन जोग रहे महराज ॥
शनिवार, २९ नवम्बर, २०१४
दरस रघुनाथ चरनारबिंदु । सकल भव सिंधु होहि सम बिंदु ॥
करिहौ गउ खुर न्यास समाना । जस निगमागम कहत बखाना ॥
परिचारक परिकर भूषित कर । होइहु तुअहिहु सरूप श्रीधर ॥
एहि बिधि रघुबर चरन धिआनी । सकल सोक संताप दूरानी ॥
सचिउ का पुरी का संकासा । नृप अदेस सर्वत्र उदभासा ॥
सचिउ की भाव पूरित भनिता । जन जन हुँत भई अनंदयिता ॥
अवसर हुँत घर धरे सुबेसा । भरे बपुर्धर सुन्दर भेसा ॥
निकस समाजत भवन बहारे । भूपति प्रति सब प्रगसि अभारे ॥
ब्रम्हन आनत आसिर दानत धनुधृ छत्रि तिन् संग खड़े ।
साज सँभारे बिबिध प्रकारे बैस सहित अगहुँ बढे ॥
भव सिंधु अपारा पावन पारा उरसति उतकरष भरे
धर्माचारी सेवा कारी छुद्रहु संग संग चरे ।।
सूत कृत का सूतक भिद नत केवट का तेलि ।
सूत मगध बंदी बैदु करे सकल हिल मेलि ॥
रविवार, ३० नवंबर, २०१४
धवल स्याम बरन महुँ पागे । भरी भोर भूपत उठि जागे ॥
संधि बंदन कीन्ह अनहाए । तपस्बी बर ब्रम्हन बुला पठाए॥
तासु आसीर आयसु लीन्हि । तीरथ हेतु निकाससी कीन्हि ॥
आगि आगि चलेउ महराई । पिछु पिछु पुरबासिंहि आईं ॥
नभ चस जस अनगन नख घेरे । घेरि पुरंजन तस बहुतेरे ॥
कोसांतर भर जब चले आए । सब बिधिबत भद्रा करन कराए ॥
कर दंड कमण्डलु कलित करे । तीरथोपजोगी भेस भरे ॥
एही बिधि मह तेजस जनपाला । भद्रकरन कृत त्रिपुण्डित भाला ॥
काम क्रोध सो रहित मन कर दिए बहुतक दान ।
भगवन सुमिरन लयन किए, बहुरी करे पयान ॥
सकल जगत जो रखे सुपासे, तहाँ सोए त्रय लोकि निबासे ॥
मोर करे सत करम प्रभावा । द्वारवती दरस मैं पावा ॥
अबर भगत जो दरसन पावैं । सकल हनन के दोषु दुरावै ॥
तहाँ सयमंतु पाँचक नामा । अहहैं एकु अघ हरनै धामा ॥
बीर भुइँ कुरु खेह के साथा । देखेहउँ कासी बिसनाथा ॥
तहँ सिरु जटिल जटा धर गंगे । तारक ब्रम्हन नाउ प्रसंगे ॥
कासी मुकुति हेतु उपदेसा । पूजिहि जिन नित जपत महेसा ।।
तासु भूमि जब धरे त्रिसूले । भानुमती निज पथ नहि भूले ॥
मनिकर्निका नाउ गहै , पवित तीरथ एकंग ।
लवनाकर मेलन बहे , उत्तरु बाहिनि गंग ॥
सोमवार, १७ नवम्बर, २०१४
देखा में अस धाम अनेका । सभी अपनपौ परम प्रबेका ॥
भुआलू बात कहुँ मैं साँची । घटे मोहि सन जोई काँची ॥
होइ रही तहँ जोइ प्रसंगा । हहरि अजहुँ लग मम अंगंगा ॥
सब धर्म धूरि जब भमनयऊँ । काँची के गिरि तब गमनयऊँ ॥
तहाँ दीठ जस दिए देखाईं । अबरु कतहुँ अस दरस न पाईं ॥
ते प्रसंग जो सुनिहि सुनाइहि । सनातन ब्रम्ह के पद पाइहि ॥
सुर सरिता अँगना बिस्तारै। सबुइ समउ पद पदुम पखारें ॥
सिखारोपर जब दीठ निपाता । देखा तहँ मैं कोल किराता ॥
रहि सोइ चतुर्भुज रूप, सिखारोपर धनु धारि ।
बिहरक अरु बिहीन तिलक, फूल मूल फल हारि ॥
मंगलवार, १८ नवंबर, २०१४
भयउ मोहि संदेहू महाना । निरखत तिन्हनि मन महु आना ॥
अहो एही धनबिन बन चारी । कैसे भयउ चतुर भुज धारी ॥
जोइ बिक्रम बैकुंठ निबासा । दए अभास तिनके संकासा ॥
निगमागम लेखित अबलेखा । जितारि पुरुखिन्हि कू मैं देखा ।।
प्रभु सरूप किरात कास पाइहिं । जो परिचारक हरि नियराइहि ॥
संख चक्र गदा धरि धनु भाथा । जेहि बिधि सोहहि तासु हाथा ॥
कंठ माल बर मुख पर कांति । दरसि काहु किरात हरि भांति ॥
भी चिट जब गहनइ संदेहू । पूछ मैं हे सुजन सनेहू ॥
कहँ बेहड़ बिपिन गोचर, कहँ यहु रूप अनूप ।
कहु को तुम्ह अरु कैसेउ, पाए चतुर्भुज रूप ॥
बुधवार, १९ नवम्बर, २०१४
सुनि अस तिनके मुख हँसि आनी । दिए उत्तरू पुनि बर मृदु बानी ॥
इहँ केर बिसमय पिंडदाना । भयउ ब्रम्हन महिमा न जाना ॥
कैसेउ पिंड दायन काऊ । चतुर्भुज धारि रहस बुझाऊ ॥
कहत बात जो बचन बखाने । सो बरनइ अरु मैं दिए काना ॥
परबत चर एकु जात हमारा । जंबुक तरु फर भखत बिहारा ॥
भमनत भमनत निज सख सोही । मंजू अनोहर सिखरु अरोही ॥
दीठ दुआरि दिरिस का देखे । कला कुसल कृत कलस बिसेखे ॥
सो अलख अनुपम अद्भुद कृति । मनि रतन जड़ित सुठि सुबरन भिति ॥
जासु काँति अस कासि जस कासत कासिक क़ासि ।
प्रकास पुंजी के पालक, अन्धकार के नासि ॥
बृहस्पतिवार, २० नवम्बर, २०१४
बालक चित्कृति चितब सकोचा । रह चितबत मन ही मन सोचा ॥
यहु कलकृति जस कला सँजोई । निरखे न कतहुँ अस कृति कोई ॥
गमन भीत मन कमना जागी । चाप चरन बालक बड़ भागी ॥
मंदिरु भीत भवन जब गयऊ । रघुबर साखी दरसन भयऊ॥
मुनि मनीषि रिषि मनु दनु देवा । नारद सारद किए अति सेबा ॥
कल कुंतल किरीट केयूरा । कंठ श्री संग बपुधर पूरा ॥
कारन मनोहर कुण्डल कासे । जुगल चरण तुलसी पत बासे ॥
मंगल परिकर संग अराधे । चतुर भदर बंदइ सुर साधे ॥
कतहु कल कुनिक कंठ प्रमादे । नभ गर्जहि नग सिख निहनादे ॥
सची नाथ किए सेवा जाकी । दरसत भगवन के अस झाकी ॥
जग बंदित चरन सुरगन, धूप नबैद चढ़ाए।
अस श्रीनिगरह के निकट, बालक डरपत आए ॥
शुक्रवार, २१ नवम्बर, २०१४
सुर हुँत दुर्लभ मनु हुँत अलभा । बालक हेतु भयउ सो सुलभा ॥
बिभु श्री बिग्रह प्रीतिबत लाखे। धरे अँजुरी जब तिन्ह भाखे ।।
सोई भयउ चतुर भुज रूपा । बैकुंठ बसे बिष्नु सरूपा ॥
परिकर धर जब गमनु बहोरा । हमहि मनु अचरजु भय न थोरा ॥
पूछि लोगन्हि बारहि बारा । भयऊ अस कस रूप तिहारा ॥
बालक बरनन जोइ बखाने । सुनि तिन औरहु बिसमय माने ॥
नील नग मूरधन मैं गमना । दरसेउ साखि सहुँ श्री रमना ॥
रहे देव सह साखिहि बेदा । चढ़ाए चरन ओदन नबेदा ॥
पूजनर्चन पूरन कर बहुरि सकल सुर लोग ।
सुभागबस ए भगत भयो, तनिक अंस के जोग ॥
शनिवार, २२ नवम्बर, २०१४
मधुर प्रसादु मैं जब भाखा । भयऊँ चतुर भुज रूप साखा ॥
होए अचरजु तुम्ह सम मोही । मम रूप ऐसेउ कस होही ॥
मुनिबर अस रह हमहि सुभागीं । उर्लभ दरसन के भए भागी ।
अरु अन्नादि प्रसादु जो पाए । भाव पूरनित सबहि मिल खाए ॥
रहि ओदन बहु रुचिरु रसारी । उतरे सो जब अधर दुआरी ॥
प्रबसित रसना देस बिहारे । कंठागत जब उदरु पधारे ॥
भगवद कृपा ऐसेउ होई । भगत बछर तन रूप सँजोई ॥
कहे लोग मुनि साधु सिधारउ । तुअहि तहाँ प्रभु दरस निहारौ ॥
जग बंदित पद प्रनिधान, ओदन प्रसादु जोहु ।
बिप्रनाथ हम सत्य कहएँ, रूप चतुर भुज होहु ॥
मुनिवर जोइ आयसु दिए हम सोइ कहि बुझाए ।
अनुहारत मति आपनी कहनी सबहि सुनाए ॥
रविवार २३ नवंबर, २०१४
कहि मुनिबर श्रुत हे जनपाला । किरातिन्हि के बचन रसाला ।
होए तहाँ अस अचरजु मोही । लोम हरष बहु पुलकित होही ॥
चितबत चित भित हरिनै रचिता । लवन लसिता मनि रतन खचिता ॥
देवायन नग सिखर अधारे । साखि रूप रघुनाथ हमारे ॥
दरस हेतु मम चरन अरोही । देइ नयन प्रभु दरसन मोही ॥
हस्त परिकर सिरु सूर धूपा । पैं प्रसादु भएँ सोइ सरूपा ॥
अजहुँ मोहि प्रभु गर्भ न घालहि । बपुर्धर गर्भ पीर न पालिहि ॥
कहत भूमिसुत हे मह राऊ । सो दुःख हरण तहँ तुअहि जाऊ ॥
मनीषि मुख गिरा श्रुत भए, पुलकित सकल सरीर ।
प्रच्छत तीर्थाटन बिधि, प्रजापत भए अधीर ॥
सोमवार, २४ नवम्बर, २०१४
मुनिरु तीर्थाटन बिधि बताए । सुनए सो जग बंदित प्रभु पाए ॥
काल पास कंठ सब गहाइहि । कोउ काल सोंह जित न पाइहि ॥
छन भंगूर जग जंजाला । भए अबिनासी जगत भुआला ॥
भगवन भव बंधन सन परे । मानत अस तासु नित भजन करें ॥
काम क्रोध मद लोभरि चारा । भय दम्भ चहे केहि प्रकारा ॥
भगवन्मय होइहि जो लोगए । जीवन महु सो दुःख नहि भोगए ॥
करे जोई साधु सत्संगा । रहि पलछन सो ज्ञान प्रसंगा ॥
साधु सूजन भलमन सोई । जासु कृपा केहु दुःख न होई ॥
षट बिकार जित सोए जन दाएँ जोए उपदेस ।
किए मोचित भव बंधन, रहे न कोउ कलेस ॥
मंगलवार, २५ नवम्बर, २०१४
तीरथ साधु सन हेल मिलाए । तासु दरस घन पाप दूराए ॥
जो जन तीरथ करन पयाने । भव भीति सोई करिहि बिहाने ॥
जहँ निसदिन निर्मल जल बासे । साधु सुजन के संग सुबासे ॥
तीर्थकर जस बिधि आगाने । मुनिबर पुनि तेसेउ बखाने ॥
प्रथमहिं घर सहि कुटुम त्यागिए । प्रियजन तिय तनुभव बैरागिए ॥
राम नाम मुख जपत निरंतर । दत्तचित्त भगवन सुमिरन कर ।।
एक कोस जोइ होइ पयाना । छउर क्रिया कर करें सनाना ॥
कारन पाप त केस अधारिहि । जो मनुस तीरथ पथ चारिहि ।
पाप केस अस देइ त्यागें । मुंड मस्तक लिए चले आगे ॥
काम क्रोध करें न लवलेसा । बर तीर्थोपयोगी भेसा ॥
संघाटिका हीन लगुडि कलित कमण्डलु हाथ ।
चाररि रच्छित ह्रदय लिए चले चरन के साथ ।।
बुधवार, २६ नवम्बर, २०१४
जो तीरथ पथ बिधिबत जाइहि ।सोए सेवन सकल फल पाइहि ॥
मानस मन कर चरन सँहिताए । भिद बिद्या तप कीरत बसाए ॥
जासु निलय श्री हरि धुन लागी । होहि जथारथ फल के भागी ॥
हे भगत बछर हे गोपाला । सरनागत के तुम प्रतिपाला ॥
जगत जोग तव सोंह को नाहि । भव बंधन सन पाहि मम पाहि ॥
जो रसना जे मंत्र उचारे । साधत हित भव सिंधु उतारे ॥
जावै साधन सन जो कोई । कर्म परिनाम भाजित होई ॥
बाहि भार जिन कंध अधारी । भयउ सोए अध के अधिकारी ॥
मारग चरत पयादहि जाईं । भाग फल न त मिलहिं चौथाई ॥
बिनु मन ते चहे को के कथन ते अर्धन फल मिलिहि अवसि ।
तीर्थंकर कहत तीर्थगमनत करे कलुषित करमन बिनसि ॥
पर जब पथ चारे बिधि अनुहारें तबहि पाइहि फल सही ।
नृप अस तव सौमुख मम लघु मुख बिधि भेद किछु एक ही कही ॥
भूपत बिधिबत अजहुँ तुअ तुर तीर्थ पथ जाउ ।
भगवद भगति प्रसादु सह प्रभु दरसन फल पाउ ॥
बृहस्पतिवार, २७ नंवम्बर, २०१४
कहत सुमति मोरे गोसाईं । भूपत मुनिरु चरन सिरु नाईं ॥
चलि उर बिहबल बायु हिलोले । कपाट उतकरषत हिंडोले ।
नृप पुरबासिन सह परिवारे । अपने सन ले गवन बिचारे ॥
बहुरि सुबुध सचिवन्हि बुलाईं । प्रगस मनोगति आयसु दाईं॥
नागर जनिन्हि दैं संदेसा । जोगएँ सो उपजोगी भेसा ॥
हरि पौरी दरसन अभिलाहेँ । तीर्थ हुँत जो चलेउ चाहैं ।।
पुरी पुरउकस बर पुरंजनी । पत्नी पत बालक जनक जनी ॥
धन धावन साधन अनुरागे । जासु लगन अनीति महि लागे ।।
ऐसेउ पतपानि हीन कुटुम संग का लेन ।
लेन लेन की लाग महुँ जाने ना कछु देन ॥
शुक्रवार, २८ नवम्बर, २०१४
जिनके चित प्रभु सुरत न आना । सोए सौकरिक जूह समाना ॥
राम नाम एक मुख जो लीन्हि । अंतर तमस प्रभामय कीन्हि ॥
हेरि सरन दुखि मन जो कोई । प्रभो चरन सम कोउ न होई ॥
गुंफ मनि गुन गिरा मनोहर । सत्यनाथ महमात श्रवन कर ॥
कर्ष मीर मन हरष हिलोरा । जुगित पुरउकस हनत ढिंढोरा ॥
भूपत जेसेउ आयसु दाए । जस के तस जन करन्हि धराए ।।
पुरबासिन् सादर संबोधे । तीरथ समाचार कह बोधे ॥
प्रभो चरन दरसन प्रत्यासी । परबासि हो कि कोउ निबासी ॥
पबित परबत रोहन जोग, जोरत रहउ समाज ।
हरि दरसन सँग लए गवन जोग रहे महराज ॥
शनिवार, २९ नवम्बर, २०१४
दरस रघुनाथ चरनारबिंदु । सकल भव सिंधु होहि सम बिंदु ॥
करिहौ गउ खुर न्यास समाना । जस निगमागम कहत बखाना ॥
परिचारक परिकर भूषित कर । होइहु तुअहिहु सरूप श्रीधर ॥
एहि बिधि रघुबर चरन धिआनी । सकल सोक संताप दूरानी ॥
सचिउ का पुरी का संकासा । नृप अदेस सर्वत्र उदभासा ॥
सचिउ की भाव पूरित भनिता । जन जन हुँत भई अनंदयिता ॥
अवसर हुँत घर धरे सुबेसा । भरे बपुर्धर सुन्दर भेसा ॥
निकस समाजत भवन बहारे । भूपति प्रति सब प्रगसि अभारे ॥
ब्रम्हन आनत आसिर दानत धनुधृ छत्रि तिन् संग खड़े ।
साज सँभारे बिबिध प्रकारे बैस सहित अगहुँ बढे ॥
भव सिंधु अपारा पावन पारा उरसति उतकरष भरे
धर्माचारी सेवा कारी छुद्रहु संग संग चरे ।।
सूत कृत का सूतक भिद नत केवट का तेलि ।
सूत मगध बंदी बैदु करे सकल हिल मेलि ॥
रविवार, ३० नवंबर, २०१४
धवल स्याम बरन महुँ पागे । भरी भोर भूपत उठि जागे ॥
संधि बंदन कीन्ह अनहाए । तपस्बी बर ब्रम्हन बुला पठाए॥
तासु आसीर आयसु लीन्हि । तीरथ हेतु निकाससी कीन्हि ॥
आगि आगि चलेउ महराई । पिछु पिछु पुरबासिंहि आईं ॥
नभ चस जस अनगन नख घेरे । घेरि पुरंजन तस बहुतेरे ॥
कोसांतर भर जब चले आए । सब बिधिबत भद्रा करन कराए ॥
कर दंड कमण्डलु कलित करे । तीरथोपजोगी भेस भरे ॥
एही बिधि मह तेजस जनपाला । भद्रकरन कृत त्रिपुण्डित भाला ॥
काम क्रोध सो रहित मन कर दिए बहुतक दान ।
भगवन सुमिरन लयन किए, बहुरी करे पयान ॥
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