Sunday, 16 November 2014

----- ॥ उत्तर-काण्ड २३ ॥ -----

रविवार, १६ नवम्बर, २०१४                                                                                             

सकल जगत जो रखे सुपासे, तहाँ सोए त्रय लोकि निबासे ॥ 
मोर करे सत करम प्रभावा । द्वारवती दरस मैं पावा ॥ 

अबर भगत जो दरसन पावैं । सकल हनन के दोषु दुरावै ॥ 
तहाँ सयमंतु पाँचक नामा । अहहैं एकु अघ हरनै धामा ॥ 

बीर भुइँ कुरु खेह के साथा । देखेहउँ कासी बिसनाथा ॥ 
तहँ सिरु जटिल जटा धर गंगे । तारक ब्रम्हन  नाउ प्रसंगे ॥ 
कासी मुकुति हेतु उपदेसा । पूजिहि जिन नित जपत महेसा ।। 
तासु भूमि जब धरे त्रिसूले । भानुमती निज पथ नहि भूले ॥ 

मनिकर्निका नाउ गहै , पवित तीरथ एकंग । 
लवनाकर मेलन बहे  , उत्तरु बाहिनि गंग ॥ 

सोमवार, १७ नवम्बर, २०१४                                                                                                    

देखा में अस धाम अनेका । सभी अपनपौ परम प्रबेका ॥ 
भुआलू बात कहुँ मैं साँची । घटे मोहि सन जोई काँची ॥ 

होइ रही तहँ जोइ प्रसंगा । हहरि अजहुँ लग मम अंगंगा ॥ 
सब धर्म धूरि जब भमनयऊँ  । काँची के गिरि तब गमनयऊँ ॥ 

तहाँ दीठ  जस दिए देखाईं । अबरु कतहुँ अस दरस न पाईं ॥ 
ते प्रसंग जो सुनिहि सुनाइहि । सनातन ब्रम्ह के पद पाइहि ॥ 

सुर सरिता अँगना  बिस्तारै। सबुइ समउ पद पदुम  पखारें ॥ 
सिखारोपर जब दीठ निपाता । देखा तहँ मैं कोल किराता ॥  

रहि सोइ चतुर्भुज रूप, सिखारोपर धनु धारि । 
बिहरक अरु बिहीन तिलक, फूल मूल फल हारि ॥ 

मंगलवार, १८ नवंबर, २०१४                                                                                                    

भयउ मोहि संदेहू महाना । निरखत तिन्हनि मन महु आना ॥ 
अहो एही धनबिन बन चारी । कैसे भयउ चतुर भुज धारी ॥ 

जोइ बिक्रम बैकुंठ निबासा । दए अभास तिनके संकासा ॥ 
 निगमागम लेखित अबलेखा । जितारि पुरुखिन्हि कू मैं देखा ।। 

प्रभु सरूप किरात कास पाइहिं । जो परिचारक हरि नियराइहि ॥
संख चक्र गदा धरि धनु भाथा । जेहि बिधि सोहहि तासु हाथा ॥ 

कंठ माल बर मुख पर  कांति । दरसि  काहु किरात  हरि भांति ॥ 
भी चिट जब गहनइ संदेहू । पूछ मैं हे सुजन सनेहू ॥ 

कहँ बेहड़ बिपिन गोचर, कहँ यहु रूप अनूप । 
कहु को तुम्ह अरु कैसेउ, पाए चतुर्भुज रूप ॥ 

बुधवार, १९ नवम्बर, २०१४                                                                                                            

सुनि अस तिनके मुख हँसि आनी । दिए उत्तरू पुनि बर मृदु बानी ॥ 
इहँ केर बिसमय पिंडदाना । भयउ ब्रम्हन महिमा न जाना ॥ 

कैसेउ पिंड दायन काऊ । चतुर्भुज धारि रहस बुझाऊ ॥ 
कहत बात जो बचन बखाने । सो बरनइ अरु मैं दिए काना ॥ 

परबत चर एकु जात हमारा । जंबुक तरु फर भखत बिहारा ॥ 
भमनत भमनत निज सख सोही । मंजू अनोहर सिखरु अरोही ॥ 

दीठ दुआरि  दिरिस का देखे । कला कुसल कृत कलस बिसेखे ॥ 
सो अलख अनुपम अद्भुद कृति । मनि रतन जड़ित सुठि सुबरन भिति ॥ 

जासु काँति अस कासि जस कासत कासिक क़ासि । 
प्रकास पुंजी के पालक, अन्धकार के नासि ॥ 

बृहस्पतिवार, २० नवम्बर, २०१४                                                                                    

बालक चित्कृति चितब सकोचा । रह चितबत मन ही मन सोचा ॥ 
यहु कलकृति जस कला सँजोई । निरखे न कतहुँ अस कृति कोई ॥ 

गमन भीत मन कमना जागी । चाप चरन बालक बड़ भागी ॥ 
मंदिरु भीत भवन जब गयऊ । रघुबर  साखी दरसन भयऊ॥ 

मुनि मनीषि रिषि मनु दनु देवा । नारद सारद किए अति सेबा ॥ 
कल कुंतल किरीट केयूरा । कंठ श्री संग बपुधर पूरा ॥ 

कारन मनोहर कुण्डल कासे । जुगल चरण तुलसी पत बासे ॥ 
मंगल परिकर संग अराधे । चतुर भदर बंदइ सुर साधे ॥ 

कतहु कल कुनिक कंठ प्रमादे । नभ गर्जहि नग सिख निहनादे ॥ 
सची नाथ किए सेवा जाकी । दरसत  भगवन के अस झाकी ॥ 

जग बंदित चरन सुरगन, धूप नबैद चढ़ाए। 
अस श्रीनिगरह के निकट, बालक डरपत आए ॥  

शुक्रवार, २१ नवम्बर, २०१४                                                                                                     

सुर हुँत दुर्लभ मनु हुँत अलभा । बालक हेतु भयउ सो सुलभा ॥ 
बिभु श्री बिग्रह प्रीतिबत लाखे। धरे अँजुरी जब तिन्ह भाखे ।। 

सोई भयउ चतुर भुज रूपा । बैकुंठ बसे बिष्नु सरूपा ॥ 
परिकर धर जब गमनु बहोरा । हमहि मनु  अचरजु भय न थोरा ॥ 

पूछि लोगन्हि बारहि बारा । भयऊ अस कस रूप तिहारा ॥ 
बालक बरनन जोइ बखाने । सुनि तिन औरहु बिसमय माने ॥ 

नील नग मूरधन मैं गमना । दरसेउ साखि सहुँ श्री रमना ॥ 
रहे देव सह साखिहि बेदा ।  चढ़ाए चरन ओदन  नबेदा ॥ 

पूजनर्चन पूरन कर बहुरि सकल सुर लोग  । 
सुभागबस ए भगत भयो, तनिक अंस के जोग ॥ 

शनिवार, २२ नवम्बर, २०१४                                                                                                     

मधुर प्रसादु मैं जब भाखा । भयऊँ चतुर भुज रूप साखा ॥ 
होए अचरजु तुम्ह सम मोही । मम रूप ऐसेउ कस होही ॥ 

मुनिबर अस रह हमहि सुभागीं । उर्लभ दरसन के भए भागी । 
अरु अन्नादि प्रसादु जो पाए । भाव पूरनित सबहि मिल खाए ॥ 

रहि ओदन बहु रुचिरु रसारी ।  उतरे सो जब अधर दुआरी ॥ 
प्रबसित रसना देस बिहारे । कंठागत जब उदरु पधारे ॥ 


भगवद कृपा ऐसेउ होई । भगत बछर तन रूप सँजोई ॥ 
कहे लोग मुनि साधु सिधारउ । तुअहि तहाँ  प्रभु दरस निहारौ ॥ 

जग बंदित पद प्रनिधान, ओदन प्रसादु जोहु । 
बिप्रनाथ हम सत्य कहएँ, रूप चतुर भुज होहु ॥   

मुनिवर जोइ  आयसु दिए हम सोइ कहि बुझाए  । 
अनुहारत मति आपनी कहनी सबहि सुनाए ॥ 


रविवार २३ नवंबर, २०१४                                                                                                     
कहि मुनिबर श्रुत  हे जनपाला । किरातिन्हि के बचन रसाला । 
होए तहाँ  अस अचरजु मोही । लोम हरष बहु पुलकित होही ॥ 

चितबत चित भित हरिनै रचिता । लवन लसिता मनि रतन खचिता ॥ 

देवायन  नग सिखर अधारे । साखि रूप रघुनाथ हमारे ॥ 

दरस हेतु  मम चरन अरोही । देइ नयन प्रभु दरसन मोही ॥ 

हस्त परिकर सिरु सूर धूपा । पैं प्रसादु भएँ सोइ सरूपा ॥ 

अजहुँ मोहि प्रभु  गर्भ न घालहि । बपुर्धर गर्भ पीर न पालिहि ॥ 

कहत भूमिसुत हे मह राऊ । सो दुःख हरण तहँ तुअहि जाऊ ॥

मनीषि मुख गिरा श्रुत भए, पुलकित सकल सरीर । 
प्रच्छत तीर्थाटन बिधि, प्रजापत भए अधीर ॥ 

सोमवार, २४ नवम्बर, २०१४                                                                                        

मुनिरु तीर्थाटन बिधि बताए । सुनए सो जग बंदित प्रभु पाए ॥ 
काल पास कंठ सब गहाइहि । कोउ काल सोंह  जित न पाइहि ॥ 

छन भंगूर जग जंजाला । भए अबिनासी जगत भुआला ॥ 
भगवन भव बंधन सन परे । मानत अस तासु  नित भजन करें ॥ 

काम क्रोध मद लोभरि चारा । भय दम्भ चहे केहि प्रकारा ॥ 
भगवन्मय होइहि जो लोगए  । जीवन महु सो दुःख नहि भोगए ॥ 

करे जोई साधु सत्संगा । रहि पलछन सो ज्ञान प्रसंगा ॥ 
साधु सूजन भलमन सोई । जासु कृपा केहु दुःख न होई ॥ 

षट बिकार जित सोए जन दाएँ जोए  उपदेस । 
किए मोचित भव बंधन, रहे न कोउ कलेस ॥ 

मंगलवार, २५ नवम्बर, २०१४                                                                                                    

तीरथ साधु सन हेल मिलाए । तासु दरस घन  पाप दूराए ॥ 
जो जन तीरथ करन  पयाने  । भव भीति सोई करिहि बिहाने ॥ 

जहँ  निसदिन निर्मल जल बासे । साधु सुजन के संग सुबासे ॥ 
तीर्थकर जस बिधि आगाने । मुनिबर पुनि तेसेउ बखाने ॥ 

प्रथमहिं घर सहि कुटुम त्यागिए  । प्रियजन तिय तनुभव बैरागिए ॥ 
राम नाम मुख जपत निरंतर । दत्तचित्त भगवन सुमिरन कर ।। 

एक कोस जोइ होइ पयाना ।  छउर क्रिया कर करें सनाना ॥ 
कारन पाप त केस अधारिहि । जो मनुस  तीरथ पथ चारिहि । 

पाप केस अस देइ त्यागें  । मुंड मस्तक लिए चले आगे ॥ 
काम क्रोध करें न लवलेसा । बर तीर्थोपयोगी भेसा ॥ 

संघाटिका हीन लगुडि  कलित कमण्डलु हाथ । 
चाररि रच्छित ह्रदय लिए चले चरन के साथ ।। 

बुधवार, २६ नवम्बर, २०१४                                                                                             

जो तीरथ पथ बिधिबत जाइहि ।सोए सेवन सकल फल पाइहि ॥ 
मानस मन कर चरन सँहिताए । भिद बिद्या तप कीरत बसाए ॥ 

 जासु निलय श्री हरि धुन लागी ।  होहि  जथारथ फल के भागी ॥ 
हे  भगत बछर हे गोपाला । सरनागत के तुम प्रतिपाला ॥ 

जगत जोग तव सोंह  को नाहि । भव बंधन सन  पाहि मम पाहि ॥ 
जो रसना जे मंत्र उचारे । साधत हित भव सिंधु उतारे ॥ 

जावै साधन सन जो कोई । कर्म परिनाम भाजित होई ॥ 
बाहि भार जिन कंध अधारी । भयउ सोए अध के अधिकारी ॥ 

मारग चरत पयादहि जाईं । भाग फल न त मिलहिं चौथाई ॥ 

बिनु मन ते चहे को के कथन ते अर्धन फल मिलिहि अवसि । 
तीर्थंकर कहत तीर्थगमनत  करे कलुषित करमन बिनसि ॥ 
 पर जब पथ चारे बिधि अनुहारें  तबहि पाइहि फल सही । 
नृप अस तव सौमुख मम लघु मुख बिधि भेद किछु एक ही कही ॥ 

भूपत बिधिबत अजहुँ तुअ तुर तीर्थ पथ जाउ । 

भगवद भगति प्रसादु सह प्रभु दरसन फल पाउ ॥ 

बृहस्पतिवार, २७ नंवम्बर, २०१४                                                                                      

कहत सुमति मोरे गोसाईं । भूपत मुनिरु चरन सिरु नाईं ॥ 
चलि उर बिहबल बायु हिलोले । कपाट उतकरषत हिंडोले । 

नृप पुरबासिन सह परिवारे । अपने सन  ले गवन बिचारे ॥ 
बहुरि सुबुध सचिवन्हि बुलाईं । प्रगस मनोगति आयसु दाईं॥ 

नागर जनिन्हि दैं संदेसा । जोगएँ सो उपजोगी भेसा ॥ 
हरि पौरी दरसन अभिलाहेँ । तीर्थ हुँत जो चलेउ चाहैं ।। 

पुरी पुरउकस बर पुरंजनी । पत्नी पत बालक जनक जनी ॥  
धन धावन साधन अनुरागे । जासु लगन अनीति महि लागे ।।

ऐसेउ पतपानि हीन कुटुम संग का लेन । 
लेन लेन की लाग महुँ जाने ना कछु देन ॥

शुक्रवार, २८ नवम्बर, २०१४                                                                                               

जिनके चित प्रभु सुरत न आना । सोए सौकरिक जूह समाना ॥ 
राम नाम एक मुख जो लीन्हि । अंतर तमस प्रभामय कीन्हि ॥ 

हेरि सरन दुखि मन जो कोई । प्रभो चरन सम कोउ न होई ॥ 
गुंफ मनि गुन गिरा मनोहर । सत्यनाथ महमात श्रवन कर ॥ 

कर्ष मीर मन हरष हिलोरा  । जुगित पुरउकस हनत ढिंढोरा ॥ 
भूपत जेसेउ आयसु दाए । जस के तस जन करन्हि धराए ।। 

पुरबासिन् सादर संबोधे । तीरथ समाचार कह बोधे ॥ 
प्रभो चरन दरसन प्रत्यासी । परबासि हो कि कोउ निबासी ॥ 

पबित परबत रोहन जोग, जोरत रहउ समाज । 
हरि दरसन सँग लए गवन जोग रहे महराज ॥ 

शनिवार, २९ नवम्बर, २०१४                                                                                                  

दरस रघुनाथ चरनारबिंदु । सकल भव सिंधु होहि सम बिंदु ॥ 
करिहौ गउ खुर न्यास समाना । जस निगमागम कहत बखाना ॥ 

परिचारक परिकर भूषित कर ।  होइहु तुअहिहु सरूप श्रीधर ॥ 
एहि  बिधि रघुबर चरन धिआनी । सकल सोक संताप दूरानी ॥ 

सचिउ का पुरी का संकासा । नृप अदेस सर्वत्र उदभासा ॥ 
सचिउ की भाव पूरित भनिता । जन जन हुँत भई अनंदयिता ॥ 

अवसर हुँत  घर धरे सुबेसा । भरे बपुर्धर सुन्दर भेसा ॥ 
निकस समाजत भवन बहारे । भूपति प्रति सब प्रगसि अभारे ॥

ब्रम्हन आनत आसिर दानत धनुधृ छत्रि तिन् संग खड़े । 
साज सँभारे बिबिध प्रकारे बैस सहित अगहुँ बढे ॥ 
भव सिंधु अपारा पावन पारा  उरसति उतकरष भरे 
धर्माचारी सेवा कारी छुद्रहु संग संग चरे ।। 

सूत कृत का सूतक भिद नत केवट का तेलि । 
सूत मगध बंदी बैदु करे सकल हिल मेलि ॥  

रविवार, ३० नवंबर, २०१४                                                                                  

धवल स्याम बरन महुँ पागे । भरी भोर भूपत उठि जागे ॥ 
संधि बंदन कीन्ह अनहाए  । तपस्बी बर  ब्रम्हन बुला पठाए॥ 

तासु आसीर आयसु लीन्हि । तीरथ हेतु निकाससी कीन्हि ॥ 
आगि आगि चलेउ महराई । पिछु पिछु पुरबासिंहि आईं ॥ 

नभ चस जस अनगन नख घेरे । घेरि पुरंजन तस बहुतेरे ॥ 
 कोसांतर भर जब चले आए । सब बिधिबत भद्रा करन कराए ॥ 

कर दंड कमण्डलु कलित करे । तीरथोपजोगी भेस भरे ॥ 
एही बिधि मह तेजस जनपाला । भद्रकरन कृत त्रिपुण्डित भाला ॥ 

काम क्रोध सो रहित मन कर दिए बहुतक दान । 
भगवन सुमिरन लयन किए, बहुरी करे पयान ॥ 


 




















  



























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