बजइहि बजौनि बिबिध बजाने । भेरी तुरही पनब निसाने ।।
गहगह गगन धुनी घन होई । ब्रम्हानंद मगन सब कोई ॥
बजे संख कतहुँ कल कूनिका । मिलि मंगल तान सुर धूनिका ॥
भयउ भृंग बहु रंग बिहंगे । गूँजत कूँजत चले प्रसंगे ॥
राग सहित छहु रागिनि जागे । सबहि पथिक ए कहत चले आगे ॥
दीनदया मय हे दुखहारी । ताप सोक भय भंजन कारी ॥
पुरुषोत्तम नाउ बिख्याता । कृपा सील सुख सम्पद दाता ॥
मनिक रतन धन चाहिए नाही । हम तव श्री दरसन के लाही ॥
जयकार करत बढ़ चले, तीर्थ हेतु बटोहि ।
सुन्दर सैल सरि सर धर मग छबि अतिसय सोहि ॥
मंगलवार ०२ दिसंबर, २०१४
ठाउँ ठाउँ दै भजन सुनाईं । परम सुभग बिसनौ मुख गाईं ॥
कतहूँ भाव भगति रस साने । होइहीं गोविन्द गुन गाना ॥
करिहि गान बहु तान तरंगे ।बादन मंडलि मिल एक संगा ॥
होत राउ रंजन बहु भाँती । परे अयासी मन सुख साँती ॥
करिहि आपहू हरिगुन गाना । होर छिनभर कीन्ह पयाना ॥
आए पथ जब काँजी नरेसा । दरसे तीर तीरथ बिसेसा ॥
होइहि सकल अभ्युदय कारी । अभ्युदर्थि भए सेवनहारी ॥
तासु महिमा ब्रम्हंजन गावैं । श्रुत श्रवण सुख पवत जावैं ॥
जितारि श्रमजित महराउ, रहेउ कृपा निधान ।
दरसे जहाँ दीन दुखी, देइ अनुकूल दान ॥
बुधवार, ०३ दिसंबर, २०१४
पुरंजन राउ सन जो आने । किए अनेक तीर्थ अस्नाने ॥
अभरे तन निर्मल जल चीरा । भयउ पबित अति भब्य सरीरा ॥
दिखे नदी एक आगिन बाढ़े । लिखे चित्र सोंह जहँ तहँ ठाढ़े ॥
कलिकल सकल पाप दूरानी । बहि कलकल गहि सीतल पानी ॥
सालग्राम हिय अंतर धारी । करे चकित बहु चक चिन्हारी ॥
बैठे पंगत मुनि समुदाई । तीर तरंगित माल सुहाई ॥
भूपत चतबन सुखु न समावै । मुनि सन परिचय पूछ बुझावै ॥
तपों निधि मुनि संग सोइहि । पावन नदी नाउ को होइहि ॥
जल दर्पन नभ छाए छबि, किए तिसय अल्हाद ।
जहँ धरती गगन उपबन, मेल करें संवाद ॥
बृहस्पतिवार, ०४ दिसंबर, २०१४
मंगल गिरा मुनिरु बिद्बाने । अद्भुद तीरथ महत बखाने ॥
तासु नाउ गण्डकी तटिनी । सालीगाउँ अरु नारायनी ॥
अवस्थित पबित परबत पासू । देवासुर दुहु सेविन जासू ॥
निर्मल जल उत्ताल तरंगा । करिअहि पातक जूह बिभंगा ॥
डीआरएस प्रस मन मानस संगे । कर्म जनित जल पान प्रसंगे ॥
जलधृत उद्धृत बानी ताईं । दहे अखिल पातक समुदाईं ॥
सनातन समउ पाप बिसेखे । लिपत प्रजा जब बिरंचि देखे ॥
गंड अस्थल जल कन ढुलिकाए । सो कन अघहन धेना जनाए ॥
कंठ कलित श्रीमाल तरंगाई तुलित तीर ।
सूर किरन कर भाल उज्जबल मुख लिए उतरी ॥
शुकवार, ०५ दिसंबर, २०१४
परसत पौर जो पबित सलिला । किए चूरन घन पातक सिला ॥
अस पूण जल परसे जो कोई । तासु गर्भ गह पीर न होई ॥
भित चक चित पाहन परगासे । जिमि रतनन सन नद तन लासे ॥
चक लखनक जस लक लाखी । सोए भगवन श्री बिग्रह साखी ॥
पूज्य परम हित हरि प्रभूता । तासु माहि भए प्रादुर भूता ॥
लिए सालगांव चक चिन्हारे । जो भगता नित पूजन कारें ॥
सो सद अचारी अभरन भरें । लोभ लब्धन लालस न करें ॥
होत बिमुख परधान परदारा । किए पूजन सो परम पुजारा ॥
गण्डकी सालि गाँउ एक दुअरिका चक चीन्ह ।
यहु दोउ सौक जनम के, पातक हरन कीन्ह ॥
शनिवार, ०६ दिसंबर, २०१४
हो चहे सहस पापाचारहि । साल गाँउ जो चरन पखारिहि ॥
आचमन पयस उदर गहाइहि । पातक समूह पार लगाइहि ॥
चतुर बरन मग बेद बताइहि । सूद्रहु पदरचत मुकुति पाइहि ॥
महामुनि कथनत पुनि कल कूजे । सलगांव पद तिया न पूजे ॥
जो को तिय कल्यान चहइहौ । साल गाउँ के पद न पुजइहौ ॥
बैदभ हो चाहे हो सिँधुरी । सील परस सों रखिहौ दूरी ॥
परिसिहि जोउ मोह के पासा । होही सकल सदकृत के नासा ॥
तासु सीस गहि पातक भारी । तुरतै मिलिहीं नरक दुआरी ॥
ब्रम्ह बधिक होए चाहे, केतक पापाचारि ।
अस्नान पयस पान होहि , परम पदक अधिकारि ॥
रविवार, ०७ दिसंबर, २०१४
संख सलिल खँखन चक चंदन । ताम पत्र पखारित पद पयसन ॥
निबेदित तुलसी हरि नाउ सन । साल गाँउ के सील संकलन ॥
जोग पदारथ नवल समूहा । दहन समरथ अखिल अघ जूहा ॥
रतन गींउँ नाऊ नर नाहा । मन्मनस् अतुलित मति लाहा ॥
मुनि माह रिषि गन अस्थिर चेता । श्रुति बित्त सिद्ध साँति निकेता ॥
वेद सार के जाननहारे । करत नाद संसूचन कारे ॥
जो कोई तीरथ अस्नानए । पूजत भगवन पद पय पानए ॥
किए भगतिहि सब बिधि मख ताईं । होत धर्म सो बरनि न जाई ॥
भगति जोग संग पाइहि एक एक अमरित बूँद ।
बूंद बूंद भीत होइहि षडभग जुगित समूंद ॥
सोमवार, ०८ दिसम्बर, २०१४
प्रभु मूर्त सम सँख्या पूजैं । सँख्या माहि त्याजत दूजै ॥
अस दुइ सील पूजे न कोई । चौ छ आठहि अरचनि होई ॥
बिषम सँख्याहु पूजित होई । एकम पंच सत नवल सँजोई ॥
बिषम अंक महु बिषमक तीना । होइहि पूजन जोग बिहीना ॥
एकु प्रभो दुआरका पुरी के । लिए दूजन गण्डकी नदी के ॥
जहँ दोनउ एकु संगत होई । तहँ सिंधुग सुरसरि थित होई ॥
संकलित सिला हो जो रूखी । होत बयस सह लखी बिमूखी ॥
अल्पक आयु करत कुल दीना । ता सह होत कीरत बिहीना ।।
अर्चक आयु बर्धन कर, लखीवान किए सोए ।
जोइ मनोहर चिकनहर चित्ताकर्षक होए ।
मंगलवार, ०९ दिसंबर, २०१४
किए जो मनोकामना धन की । कुल कीरत सन बय बर्धन की ॥
सालगाँउ सो गेह अधारएँ । अर्घ चरन धर पूजन कारएँ ॥
एहि लोक हो चहे परलोका । पूरन काम सरूप बिलोका ॥
जो मन मानस होए सुभागा । जासु चित हरि चरनन्हि लागा ॥
नत समउ नत करत प्रनामा । लिए रसन श्री हरिहि के नामा ॥
पास चाहे रहे थित छाँती । धरे सिला निअरउ किमि भाँती ॥
प्रान लहन जब काल पथ जोए । मरनासन मुख अस्फुरित होए ॥
सालगाउँ के जो सुभ नामा । गवने प्रानक सो हरि धामा ॥
प्राग काल एहि सुठि बचन कहे रहे अमरीस ।
ए तीनउ भूमण्डल पर, मोरे साखि सरूप ॥
बुधवार, १० दिसम्बर,२०१४
सालगाउँ ब्रम्हन अवधूता । होत अस्थित जहँ एक सँजूता ॥
अघ हरन अस रूप मैं धारा । पातक जन करतन उद्धारा ॥
जो निज परिगह के हित चहहीं । साल गाँउ पद पूजन कहहीं ॥
होए आपहु कृतारथ सोहीं । तासु पितुजन परम पद जोहीं ॥
बीतकाम मद मतसर रागी । जसु रति प्रभु चरनिन्हि लागी ॥
तिन तैं कथा कथत बिभासे । दिए उद्धरन प्रागितिहासे ॥
रहे मगध नाऊ एक देसा । धर्म निरंक कर्म अवसेसा ॥
तहँ एक पुलकस जाति निबासिहि । सबर कहत जन जन संभासिहि ॥
करत उत्पात बाध बधत जंतु अनेकानेक ।
पर धन डीठि धरत करें अपकृति एक ते ऐक ॥
पुल्कस = एक कलुष-योनि जिसकी व्युत्पत्ती ब्राम्हण व् क्षत्राणी से मानी जाती है
बृहस्पतिवार, ११ दिसम्बर, २०१४
काम क्रोध सहुँ होत प्रमादा । फिरै बन बन बितथ मर्यादा ।।
एकु समउ सोए मनुज ब्याधा । भँवरत किए बन जीवन बाधा॥
जान बिनु बध मोह के पासा । तासु मरनि आनइ संकासा ॥
धरे दंड कर जम के दूता । दरसिहि अस जस को भूता ॥
गालु असिक लहि लमनिहि दाढ़े । ताम केस नख नासिक बाढ़े ॥
लौहु पास लिए दूतक कोई । दरसिहि जो को हत चित होई ॥
लोहित लोचन काल कलूटे । चाप चरन बाढ़त चहुँ खूँटे ॥
बधिक मनुज मन ही मन काँपे । जान मुख संग को प्रभु जापे ॥
बन जीवन भयभीत पापी अस करे करतब ।
तेहि प्रान लो जीत,पैठत निकट दूत कहे ॥
शुक्रवार, १२ दिसंबर, २०१४
बन जन जीवन के हत्यारे । कबहुँ कोउ सद करम न कारे ।।
भाव न माने भगति न माने । तुहरे मुख हरि भजन न जाने ॥
सदकृत जग हित करे न काही । श्री नारायन सुमिरैं नाही ॥
छुभित दूत ब्याध सो बोले । हरिअर हरिदै भवन हिलोले ॥
एहि हुँत तुअ तैं अग्या होहिहिं। सदन राज जम पथ जोहिहिं ॥
गहगह गगन धुनी घन होई । ब्रम्हानंद मगन सब कोई ॥
बजे संख कतहुँ कल कूनिका । मिलि मंगल तान सुर धूनिका ॥
भयउ भृंग बहु रंग बिहंगे । गूँजत कूँजत चले प्रसंगे ॥
राग सहित छहु रागिनि जागे । सबहि पथिक ए कहत चले आगे ॥
दीनदया मय हे दुखहारी । ताप सोक भय भंजन कारी ॥
पुरुषोत्तम नाउ बिख्याता । कृपा सील सुख सम्पद दाता ॥
मनिक रतन धन चाहिए नाही । हम तव श्री दरसन के लाही ॥
जयकार करत बढ़ चले, तीर्थ हेतु बटोहि ।
सुन्दर सैल सरि सर धर मग छबि अतिसय सोहि ॥
मंगलवार ०२ दिसंबर, २०१४
ठाउँ ठाउँ दै भजन सुनाईं । परम सुभग बिसनौ मुख गाईं ॥
कतहूँ भाव भगति रस साने । होइहीं गोविन्द गुन गाना ॥
करिहि गान बहु तान तरंगे ।बादन मंडलि मिल एक संगा ॥
होत राउ रंजन बहु भाँती । परे अयासी मन सुख साँती ॥
करिहि आपहू हरिगुन गाना । होर छिनभर कीन्ह पयाना ॥
आए पथ जब काँजी नरेसा । दरसे तीर तीरथ बिसेसा ॥
होइहि सकल अभ्युदय कारी । अभ्युदर्थि भए सेवनहारी ॥
तासु महिमा ब्रम्हंजन गावैं । श्रुत श्रवण सुख पवत जावैं ॥
जितारि श्रमजित महराउ, रहेउ कृपा निधान ।
दरसे जहाँ दीन दुखी, देइ अनुकूल दान ॥
बुधवार, ०३ दिसंबर, २०१४
पुरंजन राउ सन जो आने । किए अनेक तीर्थ अस्नाने ॥
अभरे तन निर्मल जल चीरा । भयउ पबित अति भब्य सरीरा ॥
दिखे नदी एक आगिन बाढ़े । लिखे चित्र सोंह जहँ तहँ ठाढ़े ॥
कलिकल सकल पाप दूरानी । बहि कलकल गहि सीतल पानी ॥
सालग्राम हिय अंतर धारी । करे चकित बहु चक चिन्हारी ॥
बैठे पंगत मुनि समुदाई । तीर तरंगित माल सुहाई ॥
भूपत चतबन सुखु न समावै । मुनि सन परिचय पूछ बुझावै ॥
तपों निधि मुनि संग सोइहि । पावन नदी नाउ को होइहि ॥
जल दर्पन नभ छाए छबि, किए तिसय अल्हाद ।
जहँ धरती गगन उपबन, मेल करें संवाद ॥
बृहस्पतिवार, ०४ दिसंबर, २०१४
मंगल गिरा मुनिरु बिद्बाने । अद्भुद तीरथ महत बखाने ॥
तासु नाउ गण्डकी तटिनी । सालीगाउँ अरु नारायनी ॥
अवस्थित पबित परबत पासू । देवासुर दुहु सेविन जासू ॥
निर्मल जल उत्ताल तरंगा । करिअहि पातक जूह बिभंगा ॥
डीआरएस प्रस मन मानस संगे । कर्म जनित जल पान प्रसंगे ॥
जलधृत उद्धृत बानी ताईं । दहे अखिल पातक समुदाईं ॥
सनातन समउ पाप बिसेखे । लिपत प्रजा जब बिरंचि देखे ॥
गंड अस्थल जल कन ढुलिकाए । सो कन अघहन धेना जनाए ॥
कंठ कलित श्रीमाल तरंगाई तुलित तीर ।
सूर किरन कर भाल उज्जबल मुख लिए उतरी ॥
शुकवार, ०५ दिसंबर, २०१४
परसत पौर जो पबित सलिला । किए चूरन घन पातक सिला ॥
अस पूण जल परसे जो कोई । तासु गर्भ गह पीर न होई ॥
भित चक चित पाहन परगासे । जिमि रतनन सन नद तन लासे ॥
चक लखनक जस लक लाखी । सोए भगवन श्री बिग्रह साखी ॥
पूज्य परम हित हरि प्रभूता । तासु माहि भए प्रादुर भूता ॥
लिए सालगांव चक चिन्हारे । जो भगता नित पूजन कारें ॥
सो सद अचारी अभरन भरें । लोभ लब्धन लालस न करें ॥
होत बिमुख परधान परदारा । किए पूजन सो परम पुजारा ॥
गण्डकी सालि गाँउ एक दुअरिका चक चीन्ह ।
यहु दोउ सौक जनम के, पातक हरन कीन्ह ॥
शनिवार, ०६ दिसंबर, २०१४
हो चहे सहस पापाचारहि । साल गाँउ जो चरन पखारिहि ॥
आचमन पयस उदर गहाइहि । पातक समूह पार लगाइहि ॥
चतुर बरन मग बेद बताइहि । सूद्रहु पदरचत मुकुति पाइहि ॥
महामुनि कथनत पुनि कल कूजे । सलगांव पद तिया न पूजे ॥
जो को तिय कल्यान चहइहौ । साल गाउँ के पद न पुजइहौ ॥
बैदभ हो चाहे हो सिँधुरी । सील परस सों रखिहौ दूरी ॥
परिसिहि जोउ मोह के पासा । होही सकल सदकृत के नासा ॥
तासु सीस गहि पातक भारी । तुरतै मिलिहीं नरक दुआरी ॥
ब्रम्ह बधिक होए चाहे, केतक पापाचारि ।
अस्नान पयस पान होहि , परम पदक अधिकारि ॥
रविवार, ०७ दिसंबर, २०१४
संख सलिल खँखन चक चंदन । ताम पत्र पखारित पद पयसन ॥
निबेदित तुलसी हरि नाउ सन । साल गाँउ के सील संकलन ॥
जोग पदारथ नवल समूहा । दहन समरथ अखिल अघ जूहा ॥
रतन गींउँ नाऊ नर नाहा । मन्मनस् अतुलित मति लाहा ॥
मुनि माह रिषि गन अस्थिर चेता । श्रुति बित्त सिद्ध साँति निकेता ॥
वेद सार के जाननहारे । करत नाद संसूचन कारे ॥
जो कोई तीरथ अस्नानए । पूजत भगवन पद पय पानए ॥
किए भगतिहि सब बिधि मख ताईं । होत धर्म सो बरनि न जाई ॥
भगति जोग संग पाइहि एक एक अमरित बूँद ।
बूंद बूंद भीत होइहि षडभग जुगित समूंद ॥
सोमवार, ०८ दिसम्बर, २०१४
प्रभु मूर्त सम सँख्या पूजैं । सँख्या माहि त्याजत दूजै ॥
अस दुइ सील पूजे न कोई । चौ छ आठहि अरचनि होई ॥
बिषम सँख्याहु पूजित होई । एकम पंच सत नवल सँजोई ॥
बिषम अंक महु बिषमक तीना । होइहि पूजन जोग बिहीना ॥
एकु प्रभो दुआरका पुरी के । लिए दूजन गण्डकी नदी के ॥
जहँ दोनउ एकु संगत होई । तहँ सिंधुग सुरसरि थित होई ॥
संकलित सिला हो जो रूखी । होत बयस सह लखी बिमूखी ॥
अल्पक आयु करत कुल दीना । ता सह होत कीरत बिहीना ।।
अर्चक आयु बर्धन कर, लखीवान किए सोए ।
जोइ मनोहर चिकनहर चित्ताकर्षक होए ।
मंगलवार, ०९ दिसंबर, २०१४
किए जो मनोकामना धन की । कुल कीरत सन बय बर्धन की ॥
सालगाँउ सो गेह अधारएँ । अर्घ चरन धर पूजन कारएँ ॥
एहि लोक हो चहे परलोका । पूरन काम सरूप बिलोका ॥
जो मन मानस होए सुभागा । जासु चित हरि चरनन्हि लागा ॥
नत समउ नत करत प्रनामा । लिए रसन श्री हरिहि के नामा ॥
पास चाहे रहे थित छाँती । धरे सिला निअरउ किमि भाँती ॥
प्रान लहन जब काल पथ जोए । मरनासन मुख अस्फुरित होए ॥
सालगाउँ के जो सुभ नामा । गवने प्रानक सो हरि धामा ॥
प्राग काल एहि सुठि बचन कहे रहे अमरीस ।
ए तीनउ भूमण्डल पर, मोरे साखि सरूप ॥
बुधवार, १० दिसम्बर,२०१४
सालगाउँ ब्रम्हन अवधूता । होत अस्थित जहँ एक सँजूता ॥
अघ हरन अस रूप मैं धारा । पातक जन करतन उद्धारा ॥
जो निज परिगह के हित चहहीं । साल गाँउ पद पूजन कहहीं ॥
होए आपहु कृतारथ सोहीं । तासु पितुजन परम पद जोहीं ॥
बीतकाम मद मतसर रागी । जसु रति प्रभु चरनिन्हि लागी ॥
तिन तैं कथा कथत बिभासे । दिए उद्धरन प्रागितिहासे ॥
रहे मगध नाऊ एक देसा । धर्म निरंक कर्म अवसेसा ॥
तहँ एक पुलकस जाति निबासिहि । सबर कहत जन जन संभासिहि ॥
करत उत्पात बाध बधत जंतु अनेकानेक ।
पर धन डीठि धरत करें अपकृति एक ते ऐक ॥
पुल्कस = एक कलुष-योनि जिसकी व्युत्पत्ती ब्राम्हण व् क्षत्राणी से मानी जाती है
बृहस्पतिवार, ११ दिसम्बर, २०१४
काम क्रोध सहुँ होत प्रमादा । फिरै बन बन बितथ मर्यादा ।।
एकु समउ सोए मनुज ब्याधा । भँवरत किए बन जीवन बाधा॥
जान बिनु बध मोह के पासा । तासु मरनि आनइ संकासा ॥
धरे दंड कर जम के दूता । दरसिहि अस जस को भूता ॥
गालु असिक लहि लमनिहि दाढ़े । ताम केस नख नासिक बाढ़े ॥
लौहु पास लिए दूतक कोई । दरसिहि जो को हत चित होई ॥
लोहित लोचन काल कलूटे । चाप चरन बाढ़त चहुँ खूँटे ॥
बधिक मनुज मन ही मन काँपे । जान मुख संग को प्रभु जापे ॥
बन जीवन भयभीत पापी अस करे करतब ।
तेहि प्रान लो जीत,पैठत निकट दूत कहे ॥
शुक्रवार, १२ दिसंबर, २०१४
बन जन जीवन के हत्यारे । कबहुँ कोउ सद करम न कारे ।।
भाव न माने भगति न माने । तुहरे मुख हरि भजन न जाने ॥
सदकृत जग हित करे न काही । श्री नारायन सुमिरैं नाही ॥
छुभित दूत ब्याध सो बोले । हरिअर हरिदै भवन हिलोले ॥
एहि हुँत तुअ तैं अग्या होहिहिं। सदन राज जम पथ जोहिहिं ॥
देइ संकु कर हमहि अहोरे । करत घात घन लेइ बहोरे ॥
तुअ कहुँ कुम्भी पाक दीठाहि । रौरव नरक द्वार पैठाहि ॥
अस कह संकु गहै कर दूता । लिए गत उद्यत बढे अगूता ॥
तबहि एकु हरिचरननुचर, महात्मन तहँ आए ।
जब जम दूत कर मुद्गर, दंड पास दरसाए ॥
पुलकस अस्थिति देख, दयाबंत भगवन भगत ।
करुना भाव बिसेख, बन जल निलयन निधि भरे ॥
शनिवार, १३ दिसंबर, २०१४
जब पुलकस हे नाथ पुकारा । नीर भरे मन मनस बिचारा ॥
मोर होत अपबृत्त अभागी । होए न कठिन दंड के भागी ॥
जम दूतक त बढ़े चहुँ खूँटे । तिन सों कोउ जुगत कर छूटें ।।
कृपालु मुनिस्वर ए बिचार कर । दाहिन कर तल बिष्नु सिला धर ॥
पद परछाल पुलकस नियराए । तुलसी दल जुगित पयस पयाए ॥
राम नाउ गन गान बखाने । मस्तक बिष्नु बल्लभा दाने ॥
अरु हृदय भवन हरि सिला धरे । जम दूत बहुर न गुहार करे ॥
पटक प्रस्तर बत पथ जोही । सिला परस पिस पिष्टक होही ॥
संख चक गदा पदम हरि , अनुचर धरे अगोए ।
धर्मराज के दंड सों, पुलकस मोचित होए ॥
रविवार, १४ दिसंबर, २०१४
पापक हिआ जब निर्भय कृते । बोलि सभोचित बिनई सहिते ॥
कहु तुअँ केहि अग्या अधीना । अधर्म कृत बस भए दय हीना ॥
ए मरनासन त बिष्नउचारी । पूजनीअ पुनि बपुधर धारी ॥
कवन हेतु किमि हे रे आँधे । धरे दंड कर पाँसुल बाँधे ॥
सुनि मुनि गिरा कहे जम दूता । किए एहि पापक पाप बहूता ॥
धर्म राज अग्या अनुहारी ॥ धर्म राज सठ पंथ जुहारी ॥
उन्मग किए न केहि उपकारा । हिंसालु बन जीउ पिरारा ॥
तिन ते महतम दूषन होई । प्रानथ पथ गत हो जो कोई ॥
महा बधिक तिन्ह बाधित करे अनेको बार ।
पर सम्पद कर आपुना, दीठ धरे परदार ॥
सोमवार, १५ दिसंबर, २०१४
करे दोष खल सबहि प्रकारा । नत समु दिस नाथ गुहारा ।।
दिए धरनि दुःख सकल सुख भोगे । एहि सठ अहहि न मोचन जोगे ॥
तब बिष्नु दूत भए अभिभूता । बोले सप्रेम हे जमदूता ॥
होए चहे को केत पिरारे । सिला परस मह पातक जारे ॥
लगे ज्वाल कनक समतूला । दहे तासु सकलित अघ पूला ॥
रम नाम कहि कानन जासू । नेसए पाप तेहि बिधि तासू ।।
जान बिनु तुम्ह भयउ अधीरा । अजहुँ पबित भए तासु सरीरा ।
तासु परस को सुभगहि पावा । ए पारस मनि पाप दूरावा ॥
ऐतक कहत बिष्नु दूत, अधर दुआरि लगाए ।
जम दूत फिरै जम सदन, सकल प्रसंग सुनाए ॥
पुलकस अस्थिति देख, दयाबंत भगवन भगत ।
करुना भाव बिसेख, बन जल निलयन निधि भरे ॥
शनिवार, १३ दिसंबर, २०१४
जब पुलकस हे नाथ पुकारा । नीर भरे मन मनस बिचारा ॥
मोर होत अपबृत्त अभागी । होए न कठिन दंड के भागी ॥
जम दूतक त बढ़े चहुँ खूँटे । तिन सों कोउ जुगत कर छूटें ।।
कृपालु मुनिस्वर ए बिचार कर । दाहिन कर तल बिष्नु सिला धर ॥
पद परछाल पुलकस नियराए । तुलसी दल जुगित पयस पयाए ॥
राम नाउ गन गान बखाने । मस्तक बिष्नु बल्लभा दाने ॥
अरु हृदय भवन हरि सिला धरे । जम दूत बहुर न गुहार करे ॥
पटक प्रस्तर बत पथ जोही । सिला परस पिस पिष्टक होही ॥
संख चक गदा पदम हरि , अनुचर धरे अगोए ।
धर्मराज के दंड सों, पुलकस मोचित होए ॥
रविवार, १४ दिसंबर, २०१४
पापक हिआ जब निर्भय कृते । बोलि सभोचित बिनई सहिते ॥
कहु तुअँ केहि अग्या अधीना । अधर्म कृत बस भए दय हीना ॥
ए मरनासन त बिष्नउचारी । पूजनीअ पुनि बपुधर धारी ॥
कवन हेतु किमि हे रे आँधे । धरे दंड कर पाँसुल बाँधे ॥
सुनि मुनि गिरा कहे जम दूता । किए एहि पापक पाप बहूता ॥
धर्म राज अग्या अनुहारी ॥ धर्म राज सठ पंथ जुहारी ॥
उन्मग किए न केहि उपकारा । हिंसालु बन जीउ पिरारा ॥
तिन ते महतम दूषन होई । प्रानथ पथ गत हो जो कोई ॥
महा बधिक तिन्ह बाधित करे अनेको बार ।
पर सम्पद कर आपुना, दीठ धरे परदार ॥
सोमवार, १५ दिसंबर, २०१४
करे दोष खल सबहि प्रकारा । नत समु दिस नाथ गुहारा ।।
दिए धरनि दुःख सकल सुख भोगे । एहि सठ अहहि न मोचन जोगे ॥
तब बिष्नु दूत भए अभिभूता । बोले सप्रेम हे जमदूता ॥
होए चहे को केत पिरारे । सिला परस मह पातक जारे ॥
लगे ज्वाल कनक समतूला । दहे तासु सकलित अघ पूला ॥
रम नाम कहि कानन जासू । नेसए पाप तेहि बिधि तासू ।।
जान बिनु तुम्ह भयउ अधीरा । अजहुँ पबित भए तासु सरीरा ।
तासु परस को सुभगहि पावा । ए पारस मनि पाप दूरावा ॥
ऐतक कहत बिष्नु दूत, अधर दुआरि लगाए ।
जम दूत फिरै जम सदन, सकल प्रसंग सुनाए ॥
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