Friday, 31 July 2015

----- ॥ स्वातंत्रता का मर्म । -----

चारि चरण जो चारिहैं सो तो धर्मी आहि । 
धरम धरम पुकार करे सेष सकल भरमाहि ।२८३६। 


भावार्थ : -- जो सत्य तप  दया व् दान का आचरण करता है वस्तुत: वही धर्मात्मा है धर्म धर्म की रट लगाए शेष सभी भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं ॥

दया धर्म का मूल है । जिसके अंत:करण में प्राणी मात्र के लिए दया हो, जिसे अपने किए पर पश्चाताप हो जिसके पूर्व के क्रियाकलापों से यह प्रतीत होता हो की अमुक अपराधी  भविष्य में  समाज, देश अथवा विश्व के लिए  उपयोगी हो सकता है  वह आतंकवादी ही क्यों न हो, दया का पात्र है ॥


>> हत्या  व्यक्तिगत उदेश्यों की पूर्ति हेतु व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की की जाती है..,

>> आतंक जन समूह की  हत्या के सह समाज देश व् विश्व में भयकारी वातावरण  निर्मित करने के लिए होता है यह विचारपूर्वक  किया जाने वाला अपराध है..,



इच्छाचारी ने लगाए जब ते आपद काल ।
उत्पाती उद्यम संग उपजे सकल ब्याल ।। 

इ बिकराल काल ब्याल अग जग रहे ब्याप । 
 एक भयकारी हेतु किए , देवे दुःख संताप ॥ 

भावार्थ : -- भारत तथा भारतीयों पर दमनकारी चक्र चलाते हुवे  जबसे इंडियन गवर्नमेंट ने आपात काल  लगाया तबसे यहाँ  उन्मत्त व् उन्मुक्त उद्योग विकसित होने लगे जिनसे अर्थ पिशाच व् आतंक वाद भी उत्पादित होने लगा । इन उत्पादों को प्रदर्शनीय प्रतिष्ठानों अर्थात शो रूम  में रखा जाने लगा ये शो रूम भारत को दास बनाने वालों के यहाँ ही खुलने लगे और इनकी शक्ति व् सम्पन्नता में वृद्धि होने लगी । एक भयकारी उद्देश्य के साथ ये उत्पाद विश्व  में व्याप्त होकर जन जन को संताप देने  लगे,  इस प्रकार भारत एक अघोषित अर्ध इस्लामिक राष्ट्र के रूपमें स्पष्ट होने लगा  ॥   

    

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