मंगलवार, ०२ फरवरी, २०१६
सेंचि अविरल कर्म जल हारी । निस दिन केतु माल कर धारी ॥
रितु बिनु पल्ल्वहिं न नव पाता । करिहु निरंतर भरमनि बाता ॥
ऋतु के बिना नव पल्लव पल्ल्वित नहीं होते
अजहुँ भई बहु करम बड़ाईं । मम पुर सों तुर निकसौ जाईं ॥
सुरपति बिरचि केर करि बचना । बोधिहु मोहि कुटिल कर रचना ॥
रगुनन्दन चरन सेउकाई । सो जन कबहु गहि न अधमाई ॥
भगत सिरोमनि ध्रुव प्रह्लादा । दखु बिभीषन बिनहि प्रमादा ॥
राम भगत अरु अबरु जग माहि । होइँ पद पतित कबहु सो नाहि ॥
जोइ दुषठ निंदहि रघु राजू । करिहि छाए छल और न काजू ॥
बाँध पास तिन्हनि जमदूता । लोहित मुद्गल हतिहि बहूँता ॥
तुम ब्रम्हन तुम रघुबर सेबी । मैं दंड तोहि सकहुँ न देबी ॥
जाहु जाहु चलि जाहु तुम मोरे सौमुख सोहि ।
न ताऊ तुम्हरे प्रति कोउ मो सम बुरा न होहि ॥
सुरथ कहेउ बचन के साथा । तासु अनुचर गहे मुनि हाथा ॥
भए उद्यत देवन निकसावा । तब जग बंदित रूप दिखावा ॥
परिहारत पुनि सकल ब्याजा । बोले मधुर बचन जम राजा ॥
राम भगत नहि तुम सम कोई । मोरे मन प्रसन्न चित होईं ॥
देखि अबिचल भगति तुम्हारी । तुम तें अगम न कछु संसारी ॥
मागउ जो तव मन अभिलाषा । बनाए बहुंत अनर्गल भाषा ॥
तोहि प्रलोभन के प्रत्यासा । तोर बचन झूठहि उपहासा ॥
कूट कपट मुनि भेस बनाईं । सुब्रत कियहुँ मैं बहुँत उपाईं ॥
तथापि रघुपति प्रति तोरि सेवा भई न भंग ।
अरु किन होए करिहहु तुम साधु सील सत्संग ॥
बुधवार, ०३ फरवरी, २०१६
धर्म राज संतोषित लाखे । जोग दुहुकर महिप मृदु भाखे ॥
जो तुम मो पर प्रमुदित होहू । यह उत्तम वार दीजो मोहू ॥
जब लग रघु कुल केतु न मेलहिं । तब लग मोहि काल नहि हेलिहिं ॥
एहि घट जीवन रीस न रीते । तुम्हरे सोहि भय नहि भीते ॥
ऐवमस्तु बोले जमराजा । होंहि सिद्ध तुहरे यह काजा ॥
जगत कृपालु कमल कर सोंहीं । सकल मनोरथ पूरन होंही ॥
हरि भगति परायन नृप के प्रति । कहत प्रसंसित कहनाउत अति ॥
भय जम राउ अन्तरध्याना । गयउ बहुर नज लोक बिहाना ॥
तदनन्तर धर्म पर हरि सेवानुरत नरेस ।
फेराईं संग्राम हुँत दोहाई निज देस ॥
शुक्रवार, ०५ फरवरी, २०१६
परिहरि राम चन्द्र महराया । बाँधेउँ तुरग मैं बरियाया ॥
रहौ सँजोउ समर कर साजू । सबहि जुझावन हेतु समाजू ॥
जानत हूँ यहँ बीर घनेरे । कर्मन कला कुसल बहुतेरे ॥
महाराउ अस यासु दाईं । गयउ अचिरम प्रभा के नाईं ॥
नान सस्त्रास्त्र कर धारे । समर सूर रन साज सँवारे ॥
एकु बिसाल कटकई बनाईं । तुरंगम सम सभा गह आईं ॥
राउ के रहे दस सुत बीरा । सब गुन धाम महा रन धीरा ॥
नाम रिपुंजय चम्पक मोहक । दुर्बार प्रतापी बल मोहक ॥
हरयक्ष सहदेब भूरिदेबा । असुतापन जनाइ रन सेबा ॥
रन रंगन गहि सब मन माही । रणन रनक सो बरनि न जाईं ॥
साज समाजित संकलित संकलपित सहुँ आए ।
खेत गमन अगहुँ त अगहुँ बड़ अभिलाष जताए ॥
रविवार, ०७ फ़रवरी, २०१६
इत रामानुज अतुराई । आगत पूछिहिं अनुचर ताईं ॥
कहौ मेधिअ तुरग कहँ आहिहिं । मोर दीठ कतहुँ न दरसाहिहिं ॥
कछु रन बाँकुर रहि यहँ आहीं । महनुभाव हम परचित नाहीँ ॥
गही तुरग हठि हमहि पराईं । गयउ नगर भित लय बरियाईं ॥
सुन रिपुहन अनुचर कहि बाता । बोलि सुमति सो हे महमाता ॥
श्री मान एहि केहि कर देसू । कहु त बसइ यहँ कवनि नरेसू ॥
गही तुरग काहु सो न डरिहीँ । गयउ नगर लय हठि अपहरिहीं ॥
तब महमंत्री सुबुध सुजाना । सिरोवनत एहि बचन बखाना ॥
परम मनोहर नगर एहि अहहि बिदित जग माहि ।
सकल पुरौकस हँकारत कुण्डलपुर अस ताहि ॥
धर्मधुरंधर नीति निधाना । तेज प्रतापु सील बलवाना ॥
दुःख बरजत जहँ सुख चहुँ पासा । महाबली तहँ सुरथ निबासा ॥
होइहिं राम चरन अनुरागी । मन मति धर्म कर्म महुँ लागी ॥
सोए मन क्रम बचन के ताईं । सेवारत हनुमत के नाई ॥
जो गहि तजित तुरग रघुनाथा । कहत रिपुहंत तिनके साथा ॥
मान्यबर कहु मोहि जनावा । चहिए करिअ का कस बर्तावा ॥
कहहि सुमति पुनि हे महराऊ । बारता कुसल दूत पठाऊ ॥
गवन सो महिपाल के पाहीं । हितकर उपाए बोधिहि ताहीं ॥
यह सुनि अरिहन अंगद तेऊ । बिनयानबत ए बचन कहेऊ ॥
बाता निपुन बालितनय सुनु हे बुधि बल धाम ।
जानत अहहूँ तुम चतुर जाहु तात मम काम ॥
मंगलवार, ०९ फ़रवरी, २०१६
सुनु इहाँ तेउ कछु संकासिहि । सुरथहि बिसाल नगरि बिलासिहि ॥
तात तोहि अनुबोध बहूँता । जाहु तहाँ बनि रघुबर दूता ॥
जानत बूझत कि बिनु जानेउ । नाथ बाजि गहि लेइ आनेउ ॥
महमात सो नाउ लए मोरा । कहहु ताहि करि देउ बहोरा ॥
न तरु जुझावनि साज सँवारहु । बीर माझ रन खेत पधारहु ॥
अंगद एवमस्तु कही पारे । रिपुहन कहि अग्या सौकारे ॥
गयऊ सभा त बीर समाजा । घेर घिरे बैठें महराजा ॥
तुलसी मंजरि गहि सिरु माथा । रसना नाउ लेति रघुनाथा ॥
बरनिहि तिन्हनि के कथा सादर रहैं सुनाए ।
श्रुतिहारु तिमि पुलकिहि जिमि पियास पय पाए ॥
नृपहु बपुर्धर बानर देखे । रिपुहन दूत गयउ सो लेखे ॥
तथापि चितबत बालि कुमारा । पूछिहि तासँग एही प्रकारा ॥
हे रे मनोहर कपि कुल केतु । अहो कहो आयउ केहि हेतु ॥
तव आगत कारन जो जनिहउँ । ताहि अनुसर काज मैं करिहउँ ॥
सुनी नृप निगदन बानर राजा । मन सिँहासन अचरजु बिराजा ॥
रघुबर बंदन लगन रहेऊ । बोले अंगद सो नृप तेऊ ॥
अधिक अरु का कहउँ मैं तोही । समुझु बालि सुत अंगद मोही ॥
बतकही हेतु दूत बनाई । महामहिम तव पाहि पठाईं ॥
तुम्हरे कछु अनुपल्लब रामहि तजित तुरंग ।
अपहर अनाईं तव पहि गही बाहु बल संग ॥
बुधवार, १० फरवरी, २०१६
अनायास तव सेबक ताईं । अनजानिहि भा बड़ अन्याई ॥
अजहुँ जोग कर हे नर नाहू । प्रमुदित मन रिपुहन पहि जाहू ॥
अवनत सीस चरन गहि लीजो । कहिहौ मृदुल छिमा करि दीजो ॥
राजपाट सुत सम्पद संगा । धरिहउ आगे सौंप तुरंगा ॥
न तरु तासु सायक सों घायल । सोहत भूतल होहु मरायल ॥
देहु तुम्ह निज सीस कटाई । जैहु सोइ होत धरासाई ॥
सुनि अंगद मुख बचन अस भाँति । देइ उतरु नृप धरे बहु साँति ॥
कहिहउ कपि तुम सो सब साँचा । तुहरे कोउ कथन नहि काँचा ॥
अरिहनादि के भय सँग आतुर बँधेउ बाजि न छाँड़िहूँ ।
जबलग रघुनन्दन देहि न दरस प्रगसि नहि आन सहूँ ॥
पुनि जुग पानि गवन त्वरित तासु चरन प्रनयन करिहौं ।
राजु कुटुम धन धान सहित यह बृहद सैन आगे धरिहौं ॥
काढ़ि बयरु साईँहु सँग छत्रि धर्महि अस आहि ।
न्याय पूरित युद्ध यह अहहीं तेन्ह माहि ॥
शुक्रवार, १२ फरवरी, २०१६
मैं केवल हरि दरसन कामा । समर खेत करि होहिहुँ बामा ॥
पधारिहि हरि न जो घर मोरे । तेहि अवसर सहित मैं तोरे ॥
अरिहंतादि सबहि दल गंजन । छनहि जीत कै डारिहुं बंधन ॥
जो मंधातारि लवनासुर । खेलहि खेल मारि अति आतुर ॥
जुझत हारि जिनते रन खेता । महमन बलवन केतनि केता ॥
बैठे इच्छाचारि बिमाना बिद्युन्मालीहि जातुधाना ॥
ताहि पलक बध करिअ बिधंसा । बाँधिहु तु अस बीर अवतंसा ॥
अजहुँ मोहि कस लगी जनाई । तुहरी मति गइ कतहुँ पराई ॥
अरिहंत जिनके पितिआ भुज अति बल गहियाइँ ।
सिउ गन प्रमुख बीर भदर जिनते पार न पाइँ ॥
जगनपति जोइ जगद नियंता । तिनके निकट दास हनुमंता ॥
तमीचर निकर तिल तुल जानी । पेरि समर जस घाले घानी ॥
भवन भवन लगि लूम लगारी । पालक सकल लंका दिए जारी ॥
हरिमुख मर्कट धीस कहाहीं । तासु बिक्रम जनिहिहूँ कि नाही ॥
दनुज पतिहि सुत अच्छ कुमारा । देखि बिटप गहि घाट उतारा ॥
निज चमुचर जीवन रखबारी । देऊ सहित द्रोन नाग भारी ॥
लूम सीस सेखर लपटायो । धरि उठाएँ बहु फेरि ल्यायो ॥
जासु नाउ जपि कटिहि बँधावा । तासु दूत को बाँधि न पावा ॥
मरुतिं नंदन हनुमन के चारित बल कस होइ ।
यह बत भगवन जानिहैं जनिहैं अबरु न कोइ ॥
शुक्रवार, १९ फरवरी, २०१६
जिनके चरित जगत सुख देहीं । प्रभु कबहू बिसराए न तेहीं ॥
एहि कारन प्रिय पवन कुमारा । बसिहि सदा हरि हृदयागारा ॥
हरिहि परम प्रिय सखा सुग्रीवा । अबौ नेक बलबन्त अतीवा ॥
भूमिहि भाखनि जो बल जोईं । ता सम जग पाव कोइ कोई ॥
जोर नयन जस अरिहन चरना । जोहि पंथ सो जाइ न बरना ॥
कुसधुजा नील रतन महाना । अस्त्रधर रिपुताप बिद्वाना ॥
प्रतापाग्रय होकि सुबाहू । बिमल सुमद सरिबर जन नाहू ॥
बीर मनि सम सत्यानुरागी । सेवहि अरिहन चरनन लागी ॥
गदित नाउ धरे ते अरु तासु बिलग जनराइ ।
करिहि सेवा गहिहि चरन जब तब अवसर पाइ ॥
एही बीर सम सिंधु अपारा । जे जलबिंदु राम जल धारा ॥
ता सम्मुख तुम मसक समाना । मन बिबस बार आपनि जाना ॥
जेइ बचन जनि चलिहु सँभालू । अरिहन अहहीं बहुँत कृपालू ॥
बिनइत पदतल पलकिन रोपिहु । सुत सहित ताहि हय सौंपिहू ॥
बहोरि कमल नयन पहिं जइहौ । तहँ तासु दरसन करि कहिहौं ॥
हम सब धन्य सहित परिबारा । सफल जनम तब होहि तिहारा ॥
कहत सेष मुनि एहि बिधि दूता । कहिहीं हितकर बचन बहूँता ॥
महीपाल बोले तासंगा । मैं मन बानी करम प्रसंगा ॥
कहिहउँ जो नित हरि गुन गाथा । रहिहउँ नाइ तासु पद माथा ॥
त देहि अवसहि दरसन मोही । तामें कछु संसय नहि होही ॥
न त सकल सूर बीर अरु राम भगत कपिराइ ।
मेधिअ तुरग छड़ाइँ लए बांध मोहि बरियाइ ॥
सोमवार, २२ फरवरी, २०१६
दूत जहँ ते अजहुँ तुम जाहू । रिपुहन ते कहि बात सुनाहू ॥
सकल जुझाउनि साज समाजित । रहिहीं सबहि बीर छत छाजित ॥
करिहि आँगन मोर अगवाईं । अंगद मुख हँसि हंस तराई ॥
चले तहँ ते सेन पहिं आइहि । सुरथ कही सब बात सुनाइहि ॥
समर कला में बहु कुसलाता । सुनि जुधा जब सुरथ कहि बाता ॥
खेतकरन मन भर अति चाऊ । सब रन बीर करम कुसलाऊ ॥
कोप रूप गाजिहि घन घोरा । बरखि बीर रस जस चहुँ ओरा ॥
बाजिहि भेरिहि पनब अपारा । सुनि कादर उर जाहि दरारा ॥
तेहि अवसर बीर सुरथ सुत अरु चमुचर संग ।
आए घन घन नाद करत छाए गहन रन रंग ॥
मंगलवार, २३ फरवरी २०१६
प्रलयकाल जस सिंधु उछाहू । बोहत बारि बोरि सब काहू ॥
लेइ संग धारिहि दल धारा । रथ हय हस्ती तेहि प्रकारा ॥
धार धार धावत बढ़ि आईं । ढाँकत धरनिहि देइ दिखाई ॥
यह जस सैन छन महि पारा । धूरि धूसर करिहि सत्कारा ॥
घटाटोप करि दहुँ दिसि घेरी । बदन घन बजावहि रन भेरी ॥
संखनाद जब बिजय पुकारी । भय नभलग कोलाहल भारी ॥
रन हुँत उद्यत नृप जब देखे । रिपुहन बिकल सुमति पुर पेखे ॥
बोलिहि महमन महिपाला । घार घेर निज कटक बिसाला ॥
आइहि महकाल सरूप भरे अमित बल बाहु ।
अजहुँ जोउ करतब होइँ तासु हमहि समझाहु ॥
सेंचि अविरल कर्म जल हारी । निस दिन केतु माल कर धारी ॥
रितु बिनु पल्ल्वहिं न नव पाता । करिहु निरंतर भरमनि बाता ॥
ऋतु के बिना नव पल्लव पल्ल्वित नहीं होते
अजहुँ भई बहु करम बड़ाईं । मम पुर सों तुर निकसौ जाईं ॥
सुरपति बिरचि केर करि बचना । बोधिहु मोहि कुटिल कर रचना ॥
रगुनन्दन चरन सेउकाई । सो जन कबहु गहि न अधमाई ॥
भगत सिरोमनि ध्रुव प्रह्लादा । दखु बिभीषन बिनहि प्रमादा ॥
राम भगत अरु अबरु जग माहि । होइँ पद पतित कबहु सो नाहि ॥
जोइ दुषठ निंदहि रघु राजू । करिहि छाए छल और न काजू ॥
बाँध पास तिन्हनि जमदूता । लोहित मुद्गल हतिहि बहूँता ॥
तुम ब्रम्हन तुम रघुबर सेबी । मैं दंड तोहि सकहुँ न देबी ॥
जाहु जाहु चलि जाहु तुम मोरे सौमुख सोहि ।
न ताऊ तुम्हरे प्रति कोउ मो सम बुरा न होहि ॥
सुरथ कहेउ बचन के साथा । तासु अनुचर गहे मुनि हाथा ॥
भए उद्यत देवन निकसावा । तब जग बंदित रूप दिखावा ॥
परिहारत पुनि सकल ब्याजा । बोले मधुर बचन जम राजा ॥
राम भगत नहि तुम सम कोई । मोरे मन प्रसन्न चित होईं ॥
देखि अबिचल भगति तुम्हारी । तुम तें अगम न कछु संसारी ॥
मागउ जो तव मन अभिलाषा । बनाए बहुंत अनर्गल भाषा ॥
तोहि प्रलोभन के प्रत्यासा । तोर बचन झूठहि उपहासा ॥
कूट कपट मुनि भेस बनाईं । सुब्रत कियहुँ मैं बहुँत उपाईं ॥
तथापि रघुपति प्रति तोरि सेवा भई न भंग ।
अरु किन होए करिहहु तुम साधु सील सत्संग ॥
बुधवार, ०३ फरवरी, २०१६
धर्म राज संतोषित लाखे । जोग दुहुकर महिप मृदु भाखे ॥
जो तुम मो पर प्रमुदित होहू । यह उत्तम वार दीजो मोहू ॥
जब लग रघु कुल केतु न मेलहिं । तब लग मोहि काल नहि हेलिहिं ॥
एहि घट जीवन रीस न रीते । तुम्हरे सोहि भय नहि भीते ॥
ऐवमस्तु बोले जमराजा । होंहि सिद्ध तुहरे यह काजा ॥
जगत कृपालु कमल कर सोंहीं । सकल मनोरथ पूरन होंही ॥
हरि भगति परायन नृप के प्रति । कहत प्रसंसित कहनाउत अति ॥
भय जम राउ अन्तरध्याना । गयउ बहुर नज लोक बिहाना ॥
तदनन्तर धर्म पर हरि सेवानुरत नरेस ।
फेराईं संग्राम हुँत दोहाई निज देस ॥
शुक्रवार, ०५ फरवरी, २०१६
परिहरि राम चन्द्र महराया । बाँधेउँ तुरग मैं बरियाया ॥
रहौ सँजोउ समर कर साजू । सबहि जुझावन हेतु समाजू ॥
जानत हूँ यहँ बीर घनेरे । कर्मन कला कुसल बहुतेरे ॥
महाराउ अस यासु दाईं । गयउ अचिरम प्रभा के नाईं ॥
नान सस्त्रास्त्र कर धारे । समर सूर रन साज सँवारे ॥
एकु बिसाल कटकई बनाईं । तुरंगम सम सभा गह आईं ॥
राउ के रहे दस सुत बीरा । सब गुन धाम महा रन धीरा ॥
नाम रिपुंजय चम्पक मोहक । दुर्बार प्रतापी बल मोहक ॥
हरयक्ष सहदेब भूरिदेबा । असुतापन जनाइ रन सेबा ॥
रन रंगन गहि सब मन माही । रणन रनक सो बरनि न जाईं ॥
साज समाजित संकलित संकलपित सहुँ आए ।
खेत गमन अगहुँ त अगहुँ बड़ अभिलाष जताए ॥
रविवार, ०७ फ़रवरी, २०१६
इत रामानुज अतुराई । आगत पूछिहिं अनुचर ताईं ॥
कहौ मेधिअ तुरग कहँ आहिहिं । मोर दीठ कतहुँ न दरसाहिहिं ॥
कछु रन बाँकुर रहि यहँ आहीं । महनुभाव हम परचित नाहीँ ॥
गही तुरग हठि हमहि पराईं । गयउ नगर भित लय बरियाईं ॥
सुन रिपुहन अनुचर कहि बाता । बोलि सुमति सो हे महमाता ॥
श्री मान एहि केहि कर देसू । कहु त बसइ यहँ कवनि नरेसू ॥
गही तुरग काहु सो न डरिहीँ । गयउ नगर लय हठि अपहरिहीं ॥
तब महमंत्री सुबुध सुजाना । सिरोवनत एहि बचन बखाना ॥
परम मनोहर नगर एहि अहहि बिदित जग माहि ।
सकल पुरौकस हँकारत कुण्डलपुर अस ताहि ॥
धर्मधुरंधर नीति निधाना । तेज प्रतापु सील बलवाना ॥
दुःख बरजत जहँ सुख चहुँ पासा । महाबली तहँ सुरथ निबासा ॥
होइहिं राम चरन अनुरागी । मन मति धर्म कर्म महुँ लागी ॥
सोए मन क्रम बचन के ताईं । सेवारत हनुमत के नाई ॥
जो गहि तजित तुरग रघुनाथा । कहत रिपुहंत तिनके साथा ॥
मान्यबर कहु मोहि जनावा । चहिए करिअ का कस बर्तावा ॥
कहहि सुमति पुनि हे महराऊ । बारता कुसल दूत पठाऊ ॥
गवन सो महिपाल के पाहीं । हितकर उपाए बोधिहि ताहीं ॥
यह सुनि अरिहन अंगद तेऊ । बिनयानबत ए बचन कहेऊ ॥
बाता निपुन बालितनय सुनु हे बुधि बल धाम ।
जानत अहहूँ तुम चतुर जाहु तात मम काम ॥
मंगलवार, ०९ फ़रवरी, २०१६
सुनु इहाँ तेउ कछु संकासिहि । सुरथहि बिसाल नगरि बिलासिहि ॥
तात तोहि अनुबोध बहूँता । जाहु तहाँ बनि रघुबर दूता ॥
जानत बूझत कि बिनु जानेउ । नाथ बाजि गहि लेइ आनेउ ॥
महमात सो नाउ लए मोरा । कहहु ताहि करि देउ बहोरा ॥
न तरु जुझावनि साज सँवारहु । बीर माझ रन खेत पधारहु ॥
अंगद एवमस्तु कही पारे । रिपुहन कहि अग्या सौकारे ॥
गयऊ सभा त बीर समाजा । घेर घिरे बैठें महराजा ॥
तुलसी मंजरि गहि सिरु माथा । रसना नाउ लेति रघुनाथा ॥
बरनिहि तिन्हनि के कथा सादर रहैं सुनाए ।
श्रुतिहारु तिमि पुलकिहि जिमि पियास पय पाए ॥
नृपहु बपुर्धर बानर देखे । रिपुहन दूत गयउ सो लेखे ॥
तथापि चितबत बालि कुमारा । पूछिहि तासँग एही प्रकारा ॥
हे रे मनोहर कपि कुल केतु । अहो कहो आयउ केहि हेतु ॥
तव आगत कारन जो जनिहउँ । ताहि अनुसर काज मैं करिहउँ ॥
सुनी नृप निगदन बानर राजा । मन सिँहासन अचरजु बिराजा ॥
रघुबर बंदन लगन रहेऊ । बोले अंगद सो नृप तेऊ ॥
अधिक अरु का कहउँ मैं तोही । समुझु बालि सुत अंगद मोही ॥
बतकही हेतु दूत बनाई । महामहिम तव पाहि पठाईं ॥
तुम्हरे कछु अनुपल्लब रामहि तजित तुरंग ।
अपहर अनाईं तव पहि गही बाहु बल संग ॥
बुधवार, १० फरवरी, २०१६
अनायास तव सेबक ताईं । अनजानिहि भा बड़ अन्याई ॥
अजहुँ जोग कर हे नर नाहू । प्रमुदित मन रिपुहन पहि जाहू ॥
अवनत सीस चरन गहि लीजो । कहिहौ मृदुल छिमा करि दीजो ॥
राजपाट सुत सम्पद संगा । धरिहउ आगे सौंप तुरंगा ॥
न तरु तासु सायक सों घायल । सोहत भूतल होहु मरायल ॥
देहु तुम्ह निज सीस कटाई । जैहु सोइ होत धरासाई ॥
सुनि अंगद मुख बचन अस भाँति । देइ उतरु नृप धरे बहु साँति ॥
कहिहउ कपि तुम सो सब साँचा । तुहरे कोउ कथन नहि काँचा ॥
अरिहनादि के भय सँग आतुर बँधेउ बाजि न छाँड़िहूँ ।
जबलग रघुनन्दन देहि न दरस प्रगसि नहि आन सहूँ ॥
पुनि जुग पानि गवन त्वरित तासु चरन प्रनयन करिहौं ।
राजु कुटुम धन धान सहित यह बृहद सैन आगे धरिहौं ॥
काढ़ि बयरु साईँहु सँग छत्रि धर्महि अस आहि ।
न्याय पूरित युद्ध यह अहहीं तेन्ह माहि ॥
शुक्रवार, १२ फरवरी, २०१६
मैं केवल हरि दरसन कामा । समर खेत करि होहिहुँ बामा ॥
पधारिहि हरि न जो घर मोरे । तेहि अवसर सहित मैं तोरे ॥
अरिहंतादि सबहि दल गंजन । छनहि जीत कै डारिहुं बंधन ॥
जो मंधातारि लवनासुर । खेलहि खेल मारि अति आतुर ॥
जुझत हारि जिनते रन खेता । महमन बलवन केतनि केता ॥
बैठे इच्छाचारि बिमाना बिद्युन्मालीहि जातुधाना ॥
ताहि पलक बध करिअ बिधंसा । बाँधिहु तु अस बीर अवतंसा ॥
अजहुँ मोहि कस लगी जनाई । तुहरी मति गइ कतहुँ पराई ॥
अरिहंत जिनके पितिआ भुज अति बल गहियाइँ ।
सिउ गन प्रमुख बीर भदर जिनते पार न पाइँ ॥
जगनपति जोइ जगद नियंता । तिनके निकट दास हनुमंता ॥
तमीचर निकर तिल तुल जानी । पेरि समर जस घाले घानी ॥
भवन भवन लगि लूम लगारी । पालक सकल लंका दिए जारी ॥
हरिमुख मर्कट धीस कहाहीं । तासु बिक्रम जनिहिहूँ कि नाही ॥
दनुज पतिहि सुत अच्छ कुमारा । देखि बिटप गहि घाट उतारा ॥
निज चमुचर जीवन रखबारी । देऊ सहित द्रोन नाग भारी ॥
लूम सीस सेखर लपटायो । धरि उठाएँ बहु फेरि ल्यायो ॥
जासु नाउ जपि कटिहि बँधावा । तासु दूत को बाँधि न पावा ॥
मरुतिं नंदन हनुमन के चारित बल कस होइ ।
यह बत भगवन जानिहैं जनिहैं अबरु न कोइ ॥
शुक्रवार, १९ फरवरी, २०१६
जिनके चरित जगत सुख देहीं । प्रभु कबहू बिसराए न तेहीं ॥
एहि कारन प्रिय पवन कुमारा । बसिहि सदा हरि हृदयागारा ॥
हरिहि परम प्रिय सखा सुग्रीवा । अबौ नेक बलबन्त अतीवा ॥
भूमिहि भाखनि जो बल जोईं । ता सम जग पाव कोइ कोई ॥
जोर नयन जस अरिहन चरना । जोहि पंथ सो जाइ न बरना ॥
कुसधुजा नील रतन महाना । अस्त्रधर रिपुताप बिद्वाना ॥
प्रतापाग्रय होकि सुबाहू । बिमल सुमद सरिबर जन नाहू ॥
बीर मनि सम सत्यानुरागी । सेवहि अरिहन चरनन लागी ॥
गदित नाउ धरे ते अरु तासु बिलग जनराइ ।
करिहि सेवा गहिहि चरन जब तब अवसर पाइ ॥
एही बीर सम सिंधु अपारा । जे जलबिंदु राम जल धारा ॥
ता सम्मुख तुम मसक समाना । मन बिबस बार आपनि जाना ॥
जेइ बचन जनि चलिहु सँभालू । अरिहन अहहीं बहुँत कृपालू ॥
बिनइत पदतल पलकिन रोपिहु । सुत सहित ताहि हय सौंपिहू ॥
बहोरि कमल नयन पहिं जइहौ । तहँ तासु दरसन करि कहिहौं ॥
हम सब धन्य सहित परिबारा । सफल जनम तब होहि तिहारा ॥
कहत सेष मुनि एहि बिधि दूता । कहिहीं हितकर बचन बहूँता ॥
महीपाल बोले तासंगा । मैं मन बानी करम प्रसंगा ॥
कहिहउँ जो नित हरि गुन गाथा । रहिहउँ नाइ तासु पद माथा ॥
त देहि अवसहि दरसन मोही । तामें कछु संसय नहि होही ॥
न त सकल सूर बीर अरु राम भगत कपिराइ ।
मेधिअ तुरग छड़ाइँ लए बांध मोहि बरियाइ ॥
सोमवार, २२ फरवरी, २०१६
दूत जहँ ते अजहुँ तुम जाहू । रिपुहन ते कहि बात सुनाहू ॥
सकल जुझाउनि साज समाजित । रहिहीं सबहि बीर छत छाजित ॥
करिहि आँगन मोर अगवाईं । अंगद मुख हँसि हंस तराई ॥
चले तहँ ते सेन पहिं आइहि । सुरथ कही सब बात सुनाइहि ॥
समर कला में बहु कुसलाता । सुनि जुधा जब सुरथ कहि बाता ॥
खेतकरन मन भर अति चाऊ । सब रन बीर करम कुसलाऊ ॥
कोप रूप गाजिहि घन घोरा । बरखि बीर रस जस चहुँ ओरा ॥
बाजिहि भेरिहि पनब अपारा । सुनि कादर उर जाहि दरारा ॥
तेहि अवसर बीर सुरथ सुत अरु चमुचर संग ।
आए घन घन नाद करत छाए गहन रन रंग ॥
मंगलवार, २३ फरवरी २०१६
प्रलयकाल जस सिंधु उछाहू । बोहत बारि बोरि सब काहू ॥
लेइ संग धारिहि दल धारा । रथ हय हस्ती तेहि प्रकारा ॥
धार धार धावत बढ़ि आईं । ढाँकत धरनिहि देइ दिखाई ॥
यह जस सैन छन महि पारा । धूरि धूसर करिहि सत्कारा ॥
घटाटोप करि दहुँ दिसि घेरी । बदन घन बजावहि रन भेरी ॥
संखनाद जब बिजय पुकारी । भय नभलग कोलाहल भारी ॥
रन हुँत उद्यत नृप जब देखे । रिपुहन बिकल सुमति पुर पेखे ॥
बोलिहि महमन महिपाला । घार घेर निज कटक बिसाला ॥
आइहि महकाल सरूप भरे अमित बल बाहु ।
अजहुँ जोउ करतब होइँ तासु हमहि समझाहु ॥
No comments:
Post a Comment