पसरा ब्यभिचार जबहि हिंसक भया अहार |
मानस निपजे रोग अस जाका नहि उपचार॥१ ||
मानस निपजे रोग अस जाका नहि उपचार॥१ ||
भावार्थ:-- जब व्यभिचार अर्थात अनुचित यौन-संबंध ने पैर पसारे और आहार हिंसा जनित हो गया मानव ने ऐसे ऐसे रोगों को जन्म दिया जिसका वर्तमान में कोई उपचार नहीं है |
जनमानस मूषक सरिस डरपत गह भितराए ||२||
भावार्थ: - कुपथ्य के कारणवश उपजा कोरोना नामक विषाणु बिलाऊ हो गया है और मानव जाति मूषक के जैसे भय के मारे घरों में दुबकी पड़ी है
भया देस महँ महबंध, कारन रोग प्रसार |
सासन हर को चाहिये, खोलए अन भंडार॥३||
सासन हर को चाहिये, खोलए अन भंडार॥३||
भावार्थ: - रोग प्रसारण के कारण देश में 'महाबंध’ घोषित हो गया अब सत्ता धारियों को चाहिए कि वह अन्न के भंडार खोल दे अन्यथा निर्धन जन मानस कोरोना से अधिक भूख के विषाणु(वायरस )से मर जाएगा |
उड़ि उड़ि के धनी मानी लैहेंगे नव रोग |
गह कहुँ बँधना गार किए, बँधे रहेंगें लोग॥४||
गह कहुँ बँधना गार किए, बँधे रहेंगें लोग॥४||
भावार्थ:- घनाड्य व लब्ध प्रतिष्ठित वर्ग उड़ उड़ कर विदेश से नए नए रोग लाता रहेगा और सामान्य लोग इसके बचाव हेतु अपने घरों को कारावास किए बंधे पड़े रहेंगे क्यों-- ये लोकतंत्र है या बंधतंत्र ..... ?
मेढक स्वान सर्प सहुँ भाखो मछरी माँस l
रोग ब्यापौ जगत महँ ,ताका नाउ बिकास ॥५||
रोग ब्यापौ जगत महँ ,ताका नाउ बिकास ॥५||
भावार्थ :- कुत्ता बिल्ली सर्प मेढक मछली का माँस खाओ और समूचे जगत को रोगों से व्याप्त करो इसी को आधुनिक युग में विकास कहा गया - ----
साधौ रोगानु केरे, बिकसत नाही पंख ||६||
भावार्थ : - सज्जनों ! हिन्दू धर्म के अनुयायियों की उपासना पद्धति में शंख ताल थाल व् घंटिका के प्रयोग का एक वैज्ञानिक कारण है जब ये धातुमय वस्तुएँ निह्नादित होती है तब इनकी ध्वनि तरंगों से आसपास के अदृश्य रोगाणु विकसित न होकर नष्ट हो जाते हैं |
चारि चरन पै धर्म जहँ धर्म रता जहँ लोगן
तहँ सब प्रानि सुखिहि रहैं तहँ न ब्यापत रोग ||७||
भावार्थ:- जहाँ धर्म अपने चार चरणों( सत्य,दया, दान, त्याग) पर स्थित होता है,जहाँ लोग धर्म निष्ठ होते है वहाँ सभी प्राणी सुख पूर्वक निवास करते है वहाँ कोई रोग व्याप्त नही होता-----
भगवन केरि भारत पै किरपा भई अपार।
दुरदिन महँ धन धान ते भरे पुरे भंडार ll८||
भावार्थ:- ईश्वर ने भारत पर असीम कृपा की दुर्दिनों में उसके भंडार को धन धान्य से परिपूर्ण किया हुआ है |
पथ पथ जन ते सून भए, छाइ चहुँपुर साँति |
बाकी गति बिधि के सँगत सकल कलेष क्लाँति ||९||
भावार्थ : - पंथ पंथ निर्जन हो गए चारों ओर शांति व्याप्त हो गई है सिद्ध हुवा कि संसार की समस्त क्लेश क्लांति का कारण मानव व् उसकी गतिविधि ही है |
जागा बहुरी जगत में छुआछूत का श्राप ।
आप करे तो धर्म है, आन करे तौ पाप॥१०||
आप करे तो धर्म है, आन करे तौ पाप॥१०||
भावार्थ:- संसार में छूआ छूत का श्राप पुनश्च जागृत हो चला है,यह छुआछूत यदि गणमान्य करें तो उत्तम जीवन चर्या है और अन्य कोई करे तो बुराई है |
नेम किए जौ सुचिता हुँत साधु संत अवधूत ।
अजहुँ जग अपनाए रहा सोई छूआ छूत॥११||
अजहुँ जग अपनाए रहा सोई छूआ छूत॥११||
भावार्थ:- वेदिक काल में ऋषि मुनियों ने स्वच्छता की अवधारणा कर जिस अस्पृश्यता के नियम का प्रादुर्भाव किया था, वर्तमान में वही नियम विश्व में जन - जन द्वारा अपनाया जा रहा है.....
मतिहीन को दे मति प्रभु, मौन मुखी को बानि ||१२||
भावार्थ : - हे प्रभु ! तू भूखे को भोजन दे प्यासे को पानी दे, मूर्खजनों को बुद्धि दे और मौन मुखी को वाणी दे। ..... नीतुसिंघल
''क्षुधाप्राणवान का प्रथम रोग है भोजन उसकी औषधि है.....
महबँध कै नेम निबंध लखित नहि संविधान |
तापर देस माही कस लागे ए बिधि बिधान ||१३||
भावार्थ : - महाबन्ध अथवा लॉकडाउन का नियम निबंध भारत के संविधान की किसी धारा किसी अनुच्छेद में उल्लखित नहीं है तथापि यह विधान देश कैसे लागू हो गया ?मानस तोरी क्रूरता तोरे अत्याचार |
दरसत तव हुँत आपने भगवन दिए पट ढार ||१४||
भावार्थ : - हे मानव ! पशुओं पर तेरा अत्याचार, पाश्विकता की परकाष्ठा को पार करने वाली तेरी क्रूरता को देखकर तेरे लिए ईश्वर ने अपने द्वार बंद कर दिए |
तूलिका तुला माहि लिए सबद कछु साति ग्राम |
सेर भर की रचना रचि,ले लिज्यो बिनु दाम || १ ५||
भावार्थ :- तूलिका रूपी तुला में कुछ सात ग्राम शब्द लिए तत्पश्चात उससे सेर भर की रचना रची इसका मूल्य नहीं है यह अमूल्य जिसेचाहिए
वह मूल्य दिए बिना इसे ले ले | आस्था चारि धरम भृत नहीं पड़ौसी लोग |
एही कारन निपजायउ इहाँ छूत कर रोग || १६ ||
भावार्थ :--पड़ौसी देश चीन के लोग आस्था का आचरण करने वाले धर्म परायण नहीं हैं यही कारण है की वहां संक्रामक रोग व्युत्पन्न हुवा |
त्राहि त्राहि पुकारि मरत जन जन रोग अधीन |
हाथ ऊपर हाथ धरे बैसे सत्तासीन || १७ ||
त्राहि त्राहि कर रोग सों जोए लोग दुहु हाथ |
प्रभु सन्मुख बिनती करै पीर हरौ जगनाथ || १८ ||
बजै अतिगहन रन भेरि अदिरिस रिपुहु समूह |
संहारत अति घनहि घन हारि जात जन जूह || १९ ||
रोग कारी बिषानु अह धरे रूप बिकराल |
तासु पीरिता होइ कै जन जन मरत अकाल || २० ||
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteमाँ जगदम्बा की कृपा आप पर बनी रहे।।
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घर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
कोरोना से बचें
सादर नमस्कार
ReplyDeleteआशा है आप स्वस्थ और सानंद
क्षेत्रपाल शर्मा 29.05.2020 , 06:15 pm