Tuesday, 14 April 2015

----- ॥ दोहा-पद॥ -----



धरा जले धारा जले , जले जले जल धारि । 

जलज जले जलगा जले जले जले जलहारि ॥ 

जलेतन जरेंधन जले जल जल झरे चिँगारी ॥ 
जरख़र धान जरत करे चहुँ पुर हाहाकारि । 


जलगिरि उपल उपल जले जले जले ररिहारि । 
अम्बरतल पलपल जरत कातर रहे निहारी ॥ 

द्रु दल जरे द्रुम दल जलत , करे गहन गोहारि । 
धनबन घन स्याम करे बरसो गगन बिहारि ॥ 

द्रोन कलस साँकल भरे , जर सत सार सँवारि । 
जलधि जरे जलद जल धरे झर झर झर झर झारि ॥ 

4 comments:

  1. धनबन घन स्याम करे बरसो गगन बिहारि...बहुत बढ़ि‍या दोहा

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  2. अच्छी रचना

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  3. द्रोन कलस साँकल भरे , जर सत सार सँवारि ।
    जलधि जरे जलद जल धरे झर झर झर झर झारि ॥
    ..बहुत सुन्दर ...

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  4. सुन्दर प्रस्तुति .बहुत खूब,.आपका ब्लॉग देखा मैने कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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