धरा जले धारा जले , जले जले जल धारि ।
जलज जले जलगा जले जले जले जलहारि ॥
जलेतन जरेंधन जले जल जल झरे चिँगारी ॥
जरख़र धान जरत करे चहुँ पुर हाहाकारि ।
जलगिरि उपल उपल जले जले जले ररिहारि ।
अम्बरतल पलपल जरत कातर रहे निहारी ॥
द्रु दल जरे द्रुम दल जलत , करे गहन गोहारि ।
धनबन घन स्याम करे बरसो गगन बिहारि ॥
द्रोन कलस साँकल भरे , जर सत सार सँवारि ।
जलधि जरे जलद जल धरे झर झर झर झर झारि ॥
धनबन घन स्याम करे बरसो गगन बिहारि...बहुत बढ़िया दोहा
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteद्रोन कलस साँकल भरे , जर सत सार सँवारि ।
ReplyDeleteजलधि जरे जलद जल धरे झर झर झर झर झारि ॥
..बहुत सुन्दर ...
सुन्दर प्रस्तुति .बहुत खूब,.आपका ब्लॉग देखा मैने कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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