Wednesday, 23 December 2015

----- ॥ टिप्पणी ९ ॥ -----

>> राजू : -- हगने की कहीं प्रतियोगिता हो तो ये हगरू प्रथम स्थान प्राप्त  करेगा.....

>> ग़रज़ी गराँ कीमती उस चीज का क्या कीजिये,
        मिले जो गरीबे-ग़म से गुज़रने के बाद ही.....

>>  अधिकोषों ( बैंक ) में संचित हमारा धन लेकर भगोड़े उद्योगपति  नहीं भागेंगे इसकी क्या गारंटी है ?
धनादेश से भुगतान की अनिवार्यता समाप्त की जाए.....

कर चोरों और ऋण खोरों को विदेश भगाने में सभी सत्ताधारी मास्टर हैं.....जहाँ  सांसद ही देश का धन लेकर विदेश भाग रहे हों वहां कौन सा तंत्र होगा.....?

>> राष्ट्र-पुत्र बना देना चाहिए इस कार्टूनिष्ट को, जिन्हें माता से भय लगता हो आजकल ऐसे सपूत मिलते कहाँ हैं.....
>> पर्यावरण असंतुलन व् बढ़ते प्रदूषण के धक्के से ही विगत कई पी- एम. असाध्य रोगों से पीड़ित होकर गिरे और खटिया पकड़ के उठे, एक तो अब तक नहीं उठे हैं ।  ये भी चुन ले कि किस खटिया में गिरना है.....

>> आओ हम देसी गायों का पालन पोषण कर उसे किसी निर्धन निर्व्यसनी गोपाल को प्रदान करें,स्वयं के सह  देश को स्वस्थ् व् सुपोषित करने का संकल्प लें.....

राजू : -- और संसद के भोजन का क्या ? बनाने वाले जाने उसमें क्या क्या करते होंगे.....


>> मैने एक दूधवाली वाली से बोला संसद में बैठकर दही खाना कितना सरल है और गांय पालना कितना कठीन है, तो उसने कहा सरलता से प्राप्त हुवा दूध असली नहीं होता, होगी वो कुत्ते- बिल्लियों के दूध की दही.....

>> जनादेश की धज्जियाँ उड़ाती हुई संसद है ये.....

>> किसी चिटफंड कम्पनी के जैसे काम करती हुई सरकार,
     जन- साधारण का पैसा सकेल कर पांच साल में चम्पत होने वाली सरकार,
     यदि संसद में बैठकर उद्योग पतियों के हित में नियम बनाकर नीतियां निर्धारित करेगी तो कोई मानेगा.....? 

राजू : -- हाँ बजट भी यद्योगपतियों के हित में ही बनाएगी और किसानों के हित में दिखाएगी, चिटफंड के पैसे कोई उद्योग पति ही बनता है किसान नहीं इसीलिए.....  

>> मुल्क रियाज़त से बना करते हैं सियासत से नहीं..... सियासत बने मुल्क मुल्क नहीं होते..... 

>> राजू : - हाँ तो ! सत्ता के लालचियों द्वारा खेंची गई सीमा रेखाओं को कौन मानता है..... 

>> मिनिस्टर राजू : -- खोली है जो खाली हो जाएगी.....? 

 " उधर देख " 

मिनिस्टर राजू : -- किधर ? 

" उत्त्तर भारत की ओर.....देख खोली कैसे खाली हो रही है म्लेच्छ की नहीं.....भारत की 
क्यों ? क्योंकि सेना भारतीय नहीं है...... 

>> यदि सैन्यायुध कबाड़ न होते सैनिक कबाड़ी न होते, सेना भारतीय होती तब न केवल विभाजित भारत प्रत्युत शेष भारत भी म्लेच्छों से मुक्त हो गया होता..... 

>> गोरे नील की खेती को विवश करते थे, काले बिजली की खेती को विवश करते हैं और किसानों से खेत छीन कर उन्हें उद्योगों के बंधुआ श्रमिक होने पर विवश करते हैं, आज साप्ताहिक हाट में एक नई साड़ी मात्र इकत्तीस रूपए में उपलब्ध है और दाल डेड सौ रूपए प्रति किलो में, क्यों? क्योंकि उद्योगों को बिजली रेवड़ी जैसे बाँटी जा रही है , चोरी से दी जा रही है, श्रमिकों का शोषण  हो रहां है उद्योगों के टैक्स का अता-पता नहीं..... 

>> तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा, तुम मुझे बड़ा हाऊस दो मैं तुम्हें धंधा दूँगा, तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें ढेंगा दूगा..... 

इस लेन-देन की कुत्सित मानसिकता ने भारत को सवतंत्र होने ही नहीं दिया, पंद्रह अगस्त ने जहां  जनांदोलन का  दमन कर दिया वहीँ छब्बीस जनवरी ने भारत को दास बनाए रखा । 


>> राजू : -- हाँ ! इसके जैसे तो कुत्ते-बिल्ली भी नहीं लड़ते 
             कल मटर के छिलके से झाँक के टर्र टर्र करता बोला मेरी पुनर्जन्म की कहानी सुनाओ न.....

मैं बोला पहले ये बता तू इस ग्रीन हाऊस में कैसे पहुँचा.....वो बोला यही तो कहानी है.....


>>  राजू : - मास्टर जी ! आप महात्मा काहे नहीं बन जाते..... ? 

" बन तो जाऊँ पर बड़ा हाऊस कौन देगा.....? 

राजू : -- मास्टर जी ! इंटरनेट में सेयर कीजिए न वहाँ देने वाले बहुंत हैं..... 
>> तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा, तुम मुझे बड़ा हाऊस दो मैं तुम्हें धंधा दूँगा, तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें ढेंगा दूगा..... 

इस लेन-देन की कुत्सित मानसिकता ने भारत को सवतंत्र होने ही नहीं दिया, पंद्रह अगस्त ने जहां  जनांदोलन का  दमन कर दिया वहीँ छब्बीस जनवरी ने भारत को दास बनाए रखा । 
>> बहुत से फूल वाले ने यो भी बेरो कोणी कि उनको रतन जीवित भी सै की नहीं, समृति में कार्यक्रम आयोजित हो रिया था । भई दो चार फोटो सोटो दिखाओ और वस्तु स्थिति से अवगत कराओ..... 

औरों को लकवा आ आ कर मारता है, ये 'फूल' वाले लकवे को जा जा के मारते हैं , लगे तो गी ही.....

>> जाति क्या है इस भू. पू. प्रधानमंत्री की.....?

लड़का जब " आवारा गेंद" हो जाए तो वो मोटरसाइकिल उठाए फिरता है,
और कोई प्रधानमंत्री जब " आवारा गेंद" हो जाए तो वह हवाई जहाज उठाए फिरता है.....

हत्यारा डाकू धरे डाकू पकड़े चोर । 
पकड़ो पकड़ो चोर कह चोर मचावै सोर ॥ 

राजू : - सोर नहीं बाबा श्योर श्योर,

" ये शोर वाला शोर है "
राजू : - ये श्योर है
,तेरे को ज्यास्ती आता है

नई तेरे को आता है

पंजे छक्के कहीं के

चुप बे फूल

" बैठ जाओ.....बैठ जाओ.....
हराम खोर सहिंष्णु बन.....
अच्छा तू बना दे.....
ये भी कोई तरीका है.....
ये हमारी राष्टीय माँ  है.....
अच्छा फिर दादा कौन है.....
ये ले कुर्सी.....
ये ले अंडे.....
ये ले ये ले.....

सेवक स्वामि सबहि कू, पेट भरन सो काज । 
घुप अँधेरी नगरी में अनजाने करि राज ॥  
भावार्थ : - जहां सेवक हो अथवा स्वामी सभी स्वार्थ के परायण होकर अपने पेट की चिंता में ही लगे रहते हैं वहां नीति व् नियमों के अभाव में फिर पराए का शासन हो जाता है ॥ 













1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 25 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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