Thursday 8 November 2018

----- ॥पद्म-पद २४ ॥ -----,

करतालि अस्थाल धरे  दीपन केरी मालि |
धन लखी का रूप बरे आई सुभ देवालि || 

हिरन सकासि साँझि करत करत रूपहरि भोर |
रिद्धि सिद्धि, समृद्धि संग चली गाँउ कहुँ ओर ||

पहिरी ससि कर मंजरी धरनि करी श्रृंगार |
धामधाम धन धान ते भरे पुरे भंडार ||

संपन्न सबहि काल भए भयो दारिदर दूर |
गह गह सुख सौभाग की भइ सम्पद भर पूर ||

धवल भीति पट पहिर के पहिरे मनिमय जाल |
पुरट छटा छन छबि धरत छहरत कमलिनि ताल ||

भाँति भाँति कर बस्तु लिए बैसि हाट बनिहारु |
भइ सुंदर सब गलीं भए चारु चौंक चौबारु ||

हरितक गौमय घोरि के, गह आँगन कहुँ लीप |
नव पट पहिरें गेहनी गेहि सजावहिं दीप ||

चारु चौंक पुराई के बाँधे बंदनिवार |
पुहुप भूषित भइ देहरि कंदिल देइ द्वार ||

पीत लाल हरि केसरी रंगोरी के रंग |
चित्रित कीन्हि गंगोत्री निकसत पावनि गंग ||

पाक बनाई रसवती बिंजन बहु पकवान |
मधुराई मुख घोरते मधुर मधुर मिष्ठान ||

भरे भेस मनभावते साजत सबहि सुसाज |
बहुरि पुरजन करन लगे पूजन केर समाज ||

उदये मंगल काल जब दीपक भरे अलोक |
भूति मई भू करत भए ज्योतिर्मय त्रिलोक ||

सुभ महूरत अगन धरत उजयारत चहुँ कोत |
जगमग जगमग जग करत जागिहि जगती जोत ||

जगजननि जग मंगल कर भूषन भेस सुसाजि |
कुमकुम चरनन धरत पुनि  अम्बुजासन बिराजि ||

परन बेलि के गंठि ते गुम्फित नलिन मृनाल |
ललित माल सों कलित कर किए अर्पित निर्माल |

भूषन भूषित श्री भई बसा अरुनमय भेस  |
दाहिन बाम बिराजते सोहत गिरा गनेस ||

लछित सिंदूरि साथिआ बहियन गयो लिखाए |
जगद बिभूति संग रहें गनपति सदा सहाए |

मंगल मौलि बँधेउ कर तिलक रेख दए भाल |
अक्षत कर्पूर गहे  पुनि सजी आरती थाल ||

किए नाद मुख संख पुरे बाजहिं पनव  मृदंग |
गावहिं सुमधुर बंदना पेम मुदित सब संग ||

पंचगव के चरनोदक पंच पात्र कर योग |
गहत पंचोपचार पुनि जगज्जननि गहि भोग ||

फुरझरी नभ छूटती ए सनेसा दए सुहाए |
दुख दारिद दुराई के सुख सम्पद नियराए ||

करतलों के थाल ने दीपकमाला को धारण कर लिया है, धन लक्ष्मी का रूप वरण किए शुभ-दीपावली के उत्सव का आगमन हो गया है | संध्या को स्वर्णमयी व् भोर को रजतमयी करते हुवे रीढ़ी सीधी के संग समृद्धि अब गांव की ओर चल पड़ी | अनाज की बालियों को अभरित कर धरती ने श्रृंगार किया तो अब प्रत्येक भवन धन-धान्य के भण्डार से भर गए | अब कहीं विपन्नता नहीं रही दरिद्रता को दूर करते सभी काल संपन्न काल हो गए, घर-घर सुख सौभाग्य की सम्पदा से परिपूर्ण हो गए  | इस सम्पदा को प्रकाशित करते चूने से लेपित भित्तियों में मणिमय झालरें आभारित की हुई हैं इन मणिमय झालरों की स्वर्णिम आभा विधुत की सी क्षणिक प्रभा धारण किए कमलिनी से युक्त सरोवर में बिखर रही है | विभिन्न प्रकार की वस्तुएं लेकर वणिक पणग्रंथि में विराजित  हैं | सभी गलियां और सभी चौंक-चौपंथ अत्यंत सुहावने व् शोभान्वित प्रतीत हो रही है | गायों के तत्कालोत्सर्जित हरित गोमय से घर-आँगन को लीपित कर नवल-नवल परिधानों को धारण किए गृहणियां व् गृहस्वामी दीपकों की सुसज्जा में व्यस्त हैं | द्वारों पर केला की शाखऐं प्रदानकर देहली को पुष्पाभूषणों से विभूषित किया तदनन्तर सुन्दर चौंक (आते से रचित आयाताकार चौकोण ) रचना से परिपूरित कर बंधनवार विबन्धित किए गए | पीतम, लाल हरी केसर आदि रंगों से रंगोली से गंगोत्री चित्रित की गई जहाँ से परम पावनि गंगा का उद्गम  हो रहा था| रसोई ने मुख में मधुरता घोलते मधुर-मधुर मिष्ठान के सह
अनेक प्रकार के व्यंजन व् पकवान रचित किए| मन को लुभाने वाले वेशभूषा व् सभी साज-सामग्रियों से सुसज्जित पुरजन ततपश्चात जगद-विभूति के नीराजन की तैयारी में जूट गए | मंगल बेला के उदयित होने पर दीपकों में आलोक प्रतिष्ठित हुवा,भूमि को ऐश्वर्य से युक्त करते हुवे तीनों लोक उद्दीप्त हो उठे | दिशा-दिशा को उज्जवलित कर जगताजगत को जगमग करते हुवे शभु मुहूर्त में अग्निधारण किए अखंड ज्योत जागृत हुई | जगज्जननी ने जग हेतु मंगलकर वेशाभूषणों से सुसज्जित हुईं ततपश्चात कुंकुंमाय चरणों को न्यासित करते अम्बुजासन में विराजित हुईं| पर्ण बेलों की ग्रंथियों से गूँथी नलिन मृणाल की सुन्दर मालिका कलित कर जगज्जननी को निर्माल्य अर्पित किए गए |जगद विभूति अरुणमयी वस्त्र धारणकर भूषणों से विभूषित हुईं जिनके दाहिन-वाम में माता सरस्वती व् भगवान गणेश जी विराजते सुशोभित हो रहे हैं| सैन्दूरी स्वास्तिक से लक्षित कर बही खातों में उल्लेखित किया गया 'जगद्विभूति के संगत श्री गणपति सदा सहाए रहें'|हस्त में मंगल मौली बांधकर श्री के भालपर तिलक लक्षित किया गया अक्षत व् कर्पूर ग्रहण किए तत्पश्चात आरती थाल सुसज्जित हुई |मुखापुरित शंख निह्नादित हो उठे पणव व् मृदंग आदि बजने लगे प्रेममुदित होते हुवे सभी एक साथ श्री की आरती-वंदना का गान करने लगे | पंचगव्य का चरणामृत व् पञ्च-पात्र में संयोजित पंचोपचार ग्राह्य कर नैवेद्य ग्रहण किया | नभ में छूटती फूलझड़ियां यह सन्देश देते सुशोभित हो रही हैं कि दुख-दरिद्रता दूर करते हुवे सुख-समृद्धि निकट आए | 

अस्थाल = थाल
सकासि =समरूप, जैसी
ससि मंजरी =अन्न कीबालियाँ
बनिहारु =वाणिज्यक 
चारु =सुन्दर 
हरितक गौमय =तुरंत का हरा गोवर
पट=वस्त्र 
कंदिल=केले की शाखें 
रसवती =रसोई 
बिंजन =व्यञ्जन 
समाज =तैयारी
गिरा =सरस्वती 
बहियन =बही -खाता 
परन बेलि =पान की बेले 
भाल =मस्तक 
पनव  =पणव,एक प्रकार ढोलक
पंचगव्य =देशी गाय के गोमय,मूत्र,दुग्ध,दधी,घृत का मेल
पंचोपचार =धूप,दीप,गंध,पुष्प,नैवेद्य इन पांच द्रव्यों से किया गया पूजन 
नियराना =निकट आना
सनेसा =सन्देश
आई सुभदीपावली गहे दीप कर माल |
धन लखिहि के रूप धरे कृत सम्पन सब काल ||

क्षीरोदधि केरि धिअदा सुख सम्पद करि दात |
अगजग सिस नवाए तिन्ह कहत आपुनी मात ||

रजत मई सांझी संग करत सुनहरी भोर |
अँधियारा समिटाए के चहुँ पुर भरत अँजोर ||



नन्हे नन्हे दीप
अगनि संगत सार गहे करत जगत उद्दीप 

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