Wednesday 14 November 2018

----- ॥ टिप्पणी १५ ॥ -----,


>> अरे मूरख मीडिया/नेता यहाँ घर पर देश पर, उसकी अस्मिता शह पड़ी हुई है उसे बचाओ, पीछे विकास और रोजगार के प्यादे दौड़ना.....

>> यदि कोई चीनी जर्मनी इटालियन दो दिन में भारत की नागरिकता लेकर कहेगा कि मेरा धर्म मेरी जाति-गोत्र तिरंगा है मुझे प्रधानमन्त्री बना दो..... आप बना दोगे.....?

>> जिनके हाथों के लोहामयी हल पर
       चमकते प्रस्वेद कणों के बलपर
        दसों दिशाएं ज्योतिर होती थी
         वह किसान कहो कौन थे.....

यह देश सोने की चिड़िया कहलाया

>> यदि ये भारत भूमि हमारे पूर्वजों की जन्म व् कर्म भूमि है तो हम भारतीय है..

>> सत्ता लौलुपी रथ की चाल चले.., 
        लक्ष्य इनके समक्ष कुछ और था.., 
         पक्ष कुछ और था तो विपक्ष कुछ और था.., 
          सत्ता मिलते दोनों एक हुवे.., 
           अब इनका लक्ष्य कुछ और था..... 

>> उद्योगजगत की दासी पत्रकारिता कहती है 'भीड़ बनाएगी क्या मंदिर ?' ये भीड़ भक्तों की है यदि भक्त मंदिर नहीं बनाएंगे तो क्या गौमांस भक्षण करने वाले अध्यक्ष का चुनावी दल मंदिर बनाएगा.....?

>> इंसानी तरक्क़ी में जिंदगी फ़ना हो गई..,
        रह गए चंद महलो-दीवारें बेजान.....

>> सिद्ध कीजिए कि भारत की वैदिक या ब्राह्मणवादी पितृ सत्त्तात्मक व्यवस्था दोषपूर्ण हैं और पाश्चात्यवादी मातृसत्तामक व्यवस्था एक उत्तम सामाजिक व्यवस्था है.....

राजू : - इनकी वाली में व्यवस्था में तो संतान को अपने पिता का नाम ही ज्ञात नहीं होता
 हमारे में माता-पिता के वंशजों के नाम का वंशवृक्ष निर्मित किया जाता है..,

इनकी वाली में केवल पुत्री को माता की सम्पति प्राप्त होती पुत्र को कुछ नहीं मिलता
हमारी वाली में पुत्र को माता-पिता दोनों की और पुत्री को सास-श्वसुर की सम्पति प्राप्त होती है.....


>> पितृ सत्तात्मक व्यवस्था  भारत की अपनी अबाध्य आतंरिक सामाजिक व्यवस्था है यह कोई वैश्विक व्यवस्था नहीं है इसमें अन्यान्य का हस्तक्षेप निंदनीय है.....



>>  अभिनेता भारतीय सामाजिक व्यवस्था को दूषित करने में लगे हैं और नेता उसे विकृत करने में लगे हैं, यदि ऐसा ही चलता रहा तो भारतीयता शेष से अवशेष मात्र रह जाएगी.....



>> जिन्हें स्वयं के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता.., ऐसे लोग अब हमारे देश की दशा व् दिशा के प्रदर्शक बने हुवे हैं.....
बहिरा बैसा कान दे गूंगा राग सुनाए |
अँधा पथ प्रबोधिआ कुचरित चरित बताए ||

>> आस्था के नाम पर चुनावी दल अपना उल्लू सीधा करते रहें क्या इसलिए हमें मतदान करना चाहिए.....?

>> साँच तप अरु दान दया जे कुल चारी मर्म |
    कहत गोसाईं तुलसी होतब सोई धर्म ||
भावार्थ : - गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं सत्य,तप, दया और दान इन चार मर्म ही धर्म है |

>> जो परस्वामित्व के विकारों को सुधार कर उन्हें यथावत नहीं करते उनको दासत्व स्वीकार्य होता   है..यदि भारत वास्तव में स्वतन्त्र हुवा था तो यह कार्य अंग्रेजों के भारत छोड़ने के पश्चात ही हो जाना चाहिए था.....

>> खेद का विषय है कि सत्तर वर्ष व्यतीत होने के पश्चात भी गांधी-नेहरू से किसी विपक्ष नहीं पूछा कि भारत विभाजन का उद्देश्य क्या था.....

>> सत्तर वर्ष व्यतीत हो गए किन्तु गांधी-नेहरू से किसी विपक्ष ने प्रश्न किया कि यदि अभारतीय मुसलमानों को ही राज देना था तो अंग्रेज क्या बुरे थे.....

>> अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश बनने के पश्चात भी ये मुसलमान भारत की छाँती पर मूंग दलते रहे इन मुसलमानों के लिए इस देस के और कितने टुकड़े होंगे.....


  अभी तक जिन दलों ने इस देश पर शासन किया उन्होंने कांग्रेस के विचारों का ही अनुकरण किया एतएव उनके विचार भी कांग्रेस से पृथक नहीं है इस कांग्रेसी रावण का नाभि कुंड भारत का संविधान है इस देश को प्रतीक्षा है तो केवल एक राम की.....               





1 comment:

  1. सचमुच ये भारत में रहने वाले मुसलमान ज़रूर हैं लेकिन खुद को मुस्लिम फस्टर्स कहलवाने में बड़े गौरवान्वित होते हैं। हैं ये मुस्लिम।
    वीरुभाई
    veerujan.blogspot.com

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