Wednesday 28 November 2018

----- ॥ टिप्पणी १६ ॥ -----

>> और अब ये दासता की कलुषता जम्मू, कश्मीर यहाँ तक की अयोध्या में भी इस्लाम लिखने पर तुली है जो एक किरण की आशा थी वह भी निराशा में परिवर्तित होती जा रही है.....

>> गठबंधन.....वो भी ''बहनजी'' के साथ.....कोई इसके घर की बहन बेटियों को बचाओ.....
क्या प्रधान मंत्री बचाएंगे.....? लो एक जसोदा बेन ने पैले ही लुगाया बना कर छोड़ रखा है.....

>. वर्ण व्यवस्था वैदिक धर्म की व्यवस्था है ये अन्य के लिए कैसे हो सकती है.....?

>> और पाकिस्तान,अफगानिस्तान और भी देश हैं वे तुम्हारे क्या हैं .....? कभी कुरआन पढ़ी है कि नहीं.....३० खंड होते हैं कुरआन में.....सीपारा किसे कहते हैं.....?

>> कोई प्रधानमंत्री की उर्दू ठीक कर दे या हिंदी ठीक कर दे.....

>> हमारे यहाँ से काहे नहीं ले जाते.....यहाँ के प्रवासी जो अधिवासी बनकर मूल निवासी के अधिकार को प्राप्त हो गए हैं उन्होंने बहुंत सारी बना रखी हैं.....

मिरा माज़ी तंगे-हाल किए..,
खुद को मलिको-मालामाल किए..,
रहते है उस पार औ इस पार भी..,
मिरे दर पे वो सौ दीवाल किए.....
माज़ी = अतीत
सद्दे -रोई या सद्दे सिकंदर माना जाता है कि यह कांसे की दीवार सिकंदर ने तातार देश व् चीन के मध्य बनवाई थी ये दीवार वाली मानसिकता इस्लामवादी मानसिकता है लोकतंत्र में इसका कोई उपयोग नहीं है राज तंत्र में ये राजाओं की सुरक्षा करती थी.....

>> अर्थात अब धार्मिक अनुष्ठानों में हो रहे धन के अपव्यय और आडम्बरों को और अधिक बढ़ावा मिलेगा.....
     बुफे सिस्टम वाले भंडारे हो रहें हैं यहाँ पे

किसी की मरनी पे जाओ तो ऐसा आडम्बर की समझ नहीं आता वहां हंसना है या रोना है.....

>.> इन्हें भुगत तो हम भारतीय रहें हैं जो देश पर देश मिलने के पश्चात भी ये हमारे शेष के स्वामित्व, हमारी  आजीविका पर अधिकार किए बैठे हैं.....

>.> राजू : - हाँ ! यदि ये आरक्षण निजीसंस्थाओं में लागू हो गया तो उद्योगधंधे कैसे चलेंगे ? ऐसे वैसे चलेंगे तो टोटो पड़ोगो,
पड़ोगो तो भरपाई कौन करेगा प्रधानमंत्री का बापू.....?

>> राजू : -मास्टर जी मास्टर जी मेरे एक गधे मित्र को आरक्षण चाहिए किन्तु उसका घर १०५० फीट का है
मास्टर जी : - उसको बोल वो अपना घर ५० फीट तोड़ दे
राजू : -मास्टर जी किन्तु पंजिका में १०५० फीट ही है न
मास्टर जी : - बेच दे

>> राजू : - मास्टर जी मेरे योग्य मित्र की वार्षिक आय नौ लाख है और आठ वाले को आरक्षण....?
मास्टर जी : - उसको बोल पंखे से लटक जाए.....
राजू : - किन्तु मास्टर जी उसके घर में तो ए सी है
मास्टर जी : - मेरे पंखे से आ के लटक जाए.....

>> राजू : - मेरे को इन डिग्रीधारी नीम हकीमों से बचा लो.....ये मुझ जैसे योग्यों को पीछड़ा के दरिद्र रेखा के नीचे ला देंगे और पद में दलित करके मार देंगे.....

>> इन अधर्मियों का जाति धर्म क्या है ? इनसे तो पाषाण युग के मानव अधिक सभ्य थे.....

>> लोकतंत्र में एक मुखिया रूपी मुख को ही यह निर्णय करने का अधिकार प्रदत्त है कि उसके किसी अंग को कितने भोजन की आवश्यकता है मुखिया बनने की अभिलाषा रखने वाला दुखिया इसपर आपत्ति नहीं कर सकता..... उदा : - सम्मुख शत्रु है वीरता करने के लिए तब हाथ तो बोलेगा ही मुझे तोप चाहिए शत्रु के बल का अनुमान कर यहाँ मुखिया का विवेक इसका निर्णय करेगा कि वह उसे तोप दे अथवा लघु तुपक दे हाँ इस यत किंचित कृपणता से अंग भंग अथवा चोटिल हो जाए तब फिर विपक्ष दुखिया इसपर प्रश्न करने का अधिकारी है.....

>> चरित्रहीनों को देश में कोई चरित्रवान जा बसे तो उस देश में निवासित समुदाय यह सुप्रथा चलाए कि हमें ऐसे रहना चाहिए....कारण ऐसे रहने से देश की महिलाएं सुरक्षित रहेंगी.....
और देश का बचपन परिजनों की छाया में पलेगा इससे देश पर उसकी सुरक्षा का भार न्यूनतम होगा.....
>> 'चार बीबी चालीस बच्चे'' ''ये बिना बीबी चार सौ बच्चे.....

''ऐसे संबंधों से व्युत्पन्न संतति का उत्तरदायी कौन होगा.....


पुरुख नारि बिहीन जने संतति जब सतचार |
पच्छिम तेरी चलनि की महिमा अपरम्पार ||
भावार्थ : -अरे पाश्चात्य संस्कृति तेरी महिमा तो सबसे अपरम्पार है तुम्हारे यहाँ बिना बीबी के चार सौ बच्चे जनम ले रहे है तुमसे तो ''चार बीबी चालीस बच्चे'' इस पार हैं |



>> राज (सत्ता) नीति के लिए इस्लाम की एक मान्यता का दुरूपयोग न करें किन्तु इस हेतु हिन्दू धर्म की आस्था के केंद्र बिंदु का भरपूर दुरूपयोग करें..... सत्ताधारी दल का विचार है.....

>> नियमों के अभाव में देश अंधेर नगरी हो चला है.....

या देश के लोकतंत्र में सत्तावाद अथवा अधिकार वाद ( जो कार्यपालिका अथवा न्यायपालिका कहे उसे चुपचाप मान लो )का बोलबाला है

अधिकार वाद : - अब इस पद पर मेरा अधिकार है में जो कहूं वह मानना पडेगा.....



नियमों व् न्यायनिर्णयों से लोकमार्ग (लोकप्रचलित प्रथाएं धारणाएं,मान्यताएं )अवरुद्ध नहीं होना चाहिए |

अब दलगत लोकतंत्र व् तुगलकी शासन में कोई अंतर नहीं रहा....

>>  ईसवी संवत मानवीय क्रियाकलापों पर आधारित होकर यत्किंचित पृथ्वी के चाल की गणना करने में सक्षम है जबकि विक्रम संवत नक्षत्रों की गति पर आधरित होकर सम्पूर्ण आकाश गंगा की घूर्णन गति का भी आकलन करने में सक्षम है जिस दिन मानव शौर्य मंडल की परिधि के पार होगा ईसवी संवत असफल व् विक्रम सफल सिद्ध होगा.....

>> कोई जिए या मरे बस मुसलमान सुखी रहे क्या भारत-शासन इस हेतु है.....?

>> तीन पत्थर कैंच हुवे अब जो पड़े नक़ाब |
      उसपे भी दफ़ा मुकर्रर होगी क्या ज़नाब ||

>> गौमाता के नाम पर सिंहासन चढ़ने वाले इन प्रधानमंत्रियों को खटिया तो भुगतनी ही पड़ेगी.....

>> ऐसे भद्दे चित्रों वाली पत्रकारिता ! ये अवश्य  किसी झोला छाप पत्रकार की करतूत है.....

>> चोर चोर मौसेरे भाई | ता सोंही जनता उकताई || 

>>  को करतब बलिदान को सेवा सुश्रता कोइ |
साँची तब कहिलाइ जब परमार्थ हुँत होइ ||
भावार्थ : - कोई कर्तव्य कोई बलिदान अथवा कोई सेवा शुश्रुता तभी सत्य कहलाती है जब वह परमार्थ हेतु हो स्वार्थ हेतु हो तो वह ढोंग है |


>> हमारे पूर्वज ऋषिमुनियों ने भी पत्ते खा कर भारत को उदयित किया था अब विदेशियों की संतान उस पर शासन करने को तैयार हैं.....

>> हमारे पूर्वजों और गौवंश के परिश्रम जनित अन्न ने इस देश को परिपोषित किया अब विदेशी की संतान उसपर शासन करेंगी.....

>> हमरे पुरइन बन कुटि बसाए | पावत पत एहि देस निर्माए || 
गौ बंस श्रम जासु परिपोसे भए सो पराए बंस भरोसे || 
भावार्थ : -  हमारे पूर्वजों ने घने वनों  में कुटिया बसाकर  पत्तों का भोजन करते हुवे इस भारत देश को निर्मित किया  जिसे गौवंश के श्रम ने परिपोषित किया अब विदेशियों की संताने उसपर शासन करने हेतु उद्यत हैं  | 

>> बिद्या लाह होत नहि धन ते | बिद्यामनि लहे अध्ययन ते ||
भावार्थ :- विद्या धन से प्राप्त नहीं होती | विद्याधन की प्राप्ति अध्ययन से ही सम्भव है ||

>> भारत भूमि में मुसलमानों और अंग्रेजों ने अपने बच्चों के बच्चों के बच्चों के बच्चों को जन्मा उसके पैसे भी खाए और उसका रक्त भी पिया..... 

>> को नृप होए हमहि का लाहा | लाह लहे मन करिअब काहा || 

>> क्या किसी के पालतू की ह्त्या अपराध नहीं होना चाहिए ..?

और जब वह पालतू पूज्यनीय भी हो तो वह अपराध जघन्य नहीं होना चाहिए.....? सभ्यता कहती है कि होना चाहिए.....कोई तुम्हारे कुत्ते को मार दे तो कितना दुःख होगा ये देश हमारे घर के समान है इस गौवंश ने हमें पाला है पोषा है कोई इसकी ह्त्या करेगा तो घर के सदस्य की ह्त्या जितना ही दुःख होगा..... हम केंद्र से पालतू पशु अधिनियम की मांग करते हैं

एक बारी पूर्व प्रधानमंत्री के कुत्ते को कुत्ता बोल के देखे वो स्वयं भूँकते हुवे काट खाने को दौड़ेंगे |
राष्ट्रपति तो अपने घोड़ों को छूने भी नहीं देते और तुम उस गौ की ह्त्या कर रहे हो जिसे हम माता कहते हैं..... चूँकि वह माता गरीब की है इसहेतु उसके लिए कोई सुरक्षा नहीं है.....

>> शिक्षा के लिए धन की नहीं अध्ययन की आवश्यकता होती है


>>  सहस्त्र वर्ष से अधिक अवधि तक इन मुसलमानों की टट्टियाँ उठाई हैं भारत ने 
                    और अब तक उठा रहा है.....
>>  गांधी के महात्मा होने वाले प्रश्न पर : - "कलंदर संगमरमर के मकान में नहीं मिलता....."
                                                 ----- || अज्ञात || ---

>>  कितने सड़े सड़े पत्रकार है.....बांस आती है इनके लिखे हुवे में.....अच्छे वाले मिल नहीं रहे या तुम उन्हें अच्छा पैसा नहीं देते.....

>> ऐ प्रधानमंत्री तुमको भीड़ पर गोलियां चलवाने का रोग है क्या ? है तो शीघ्र उपचार कर लो अन्यथा यही भीड़ वापस से चाय की केतली थमा देगी.....फिर फोकटिया दसलखटकिया परिधान स्वपन में भी नहीं दिखेगा.....

>> परिवर्तन वही उत्तम है जो विश्व के लिए कल्याणकारी हो..... 

>> क्या गौमाँस भक्षण करने वाले अध्यक्ष का दल बनाएगा मंदिर.....? 

>> भारतीय संस्कृति की प्रतीक यह महिलाएं अभारतीय व् असंस्कृत लोगों का चयन करने जा रही है..... 

>> धर्म संकर से व्युत्पन्न संतान को अपनी मौलिकता ढूंढने के लिए जाने क्या क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं..... 

>> संकरता का परिणाम अंतत: दुखद ही होता है एतएव नौयुवान पीढ़ी इस दुःख से बचे.....
और अपना धर्म अपनी जाति अपनी भारतीयता को अपने लिए न सही भारत के लिए बचा कर रखें.....

>> संतोष सुख का मूल है.....

>> अरे मूरख मीडिया/नेता यहाँ घर देश और उसकी अस्मिता पर शह पड़ी हुई है उसे बचाओ, पीछे विकास और रोजगार के प्यादे दौड़ना.....

>> यदि कोई चीनी जर्मनी इटालियन दो दिन में भारत की नागरिकता लेकर कहेगा कि मेरा धर्म मेरी जाति-गोत्र तिरंगा है मुझे प्रधानमन्त्री बना दो..... आप बना दोगे.....?

>> बिना वीजा का पड़ोस : - अर्थात घुसपैठ के लिए अब देश का द्वार चौपट कर दिया जाएगा.....


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