Monday 14 January 2019

----- ॥ टिप्पणी १७ ॥ -----,

>> रेवड़ी के जैसे बंटने वाली नागरिकता का भी अंतत:यही परिणाम होना है.....ये नागरिकता या तो हमारा सब कुछ लूट कर ले जाएगी या हमें घर से ही निकाल देगी.....

>> यदि किसी अन्य दल ने चुनाव जीत कर मंदिर बना दिया तो देश हो न हो संसद अवश्य बीजेपी मुक्त हो जाएगी.....

>. ये देश है कि कोई धर्मशाला है जिस धर्म को देखो यहीं आ जाता है..... सारे जगत को भारतीय का ठप्पा लगा के यहीं काहे नहीं बसा लेते.....हमें जगत में भेज दो..... वहां भी हमने एक गंगा न निकाल दी तो फिर चन्द्रमा में भेज देना.....

इस देश को बहु बेटियों के रहने योग्य छोड़ेंगे कि नहीं ये न्यायाधीश बने नेता.....ये लोकतंत्र का नाटक क्यों कर रहे हैं..... स्पष्ट कहते क्यों नहीं कि ये अधिनायक तंत्र है.....

राजू ; -- में कहता हूँ इस न्यायालय की अंग्रेजी बंद कर दो तब इसकी बुद्धि ठिकाने आएगी.....


>> न्हाए धोए क्या हुवा मन का मैल न जाए |
मीन सदा जल में रहे तापर देइ बसाए ||
भावार्थ : - कबीर दास जी कहते हैं स्नान का महत्व तभी है जब मन में कोई मलिनता न हो | स्नान से पाप नहीं धुलते यदि धुलते तो मीन मलीन न होकर पावन पवित्र होती |

>.> ''अहिंसा परमो धर्म :'' का सूत्रपात कर हिन्दू धर्म में मांसाहार वर्जित किया गया देह की लाभहानि हेतु नहीं.....और फिर गांय तो एक पालतू अहिंसक और ममतामई प्राणी है इसका वध तो परम दोष है.....

>> मुंह टेड़ा हो जाएगा, टाँगे दो से एक रह जाएगी, चल नहीं पाएंगे.....तथापि भगवद रटन के स्थान पर ये नेता सत्ता सत्ता रटते हुवे ही मरेंगे.....

>> भगवान का कारावास में जन्म निर्दोष को दंड का प्रतीक है.....

>> जैसे ईश्वर को अर्पित किया गया भोजन पवित्र होकर प्रसाद हो जाता ,है वैसे ही ईश्वर के निमित्त किए गए स्नान से हमारी देह पवित्र होकर पापमुक्त हो जाता है.....

>> यूरोप अमेरिका के अल्पसंख्यक हैं किस धर्म के.....? यदि ये हिन्दू हैं तो फिर इस धर्म के अस्तित्व पर ही भारी संकट आन पड़ा है.....
आप संसद में हैं इसे उसे कोसने से अच्छा होगा की आप इस हेतु नियम बनाएं.....

>> बात तो सही है किन्तु आपकी कौन मानेगा.....? आजकल सत्ताधारी और उनके चाटुकारों की मनती है.....

>> ये शरणार्थी होकर ही जागेंगे.....इन्हें देश नहीं केवल नौकरी चाहिए.....बिजली पानी चाहिए..... वो अंग्रेज दे दे या मुसलमान.....
>> धाम धनु घरहि अरु बंधु मरघट छुटिहि जाए |
सुभासुभ करतब करमहि पाछहि पाछे आए ||
----- || गरुड़ पुराण || -----
भावार्थ : -धन-सम्पदा घर में छूट जाती है बंधु बांधव्य श्मशान में छूट जाते हैं | किए गए शुभाशुभ कर्म ही मृतक के पीछे पीछे जाते हैं |

>> भाव भगति रामजी सी लंका पति सा साज |
राम का मंदिर अहहैं कहु कहँ वाका राज ||

>> विवाह स्त्री पुरुष के पारस्परिक सम्बन्ध की अनुमति मात्र है, इस अनुमति से रहित संबंधों में भी वही दोष दर्शित हो रहा है जो ''बाल विवाह'' अथवा ''किशोर वृद्ध विवाह'' अथवा ''अधिवेत्ता विवाह'' (एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करने वाला पुरुष )में दृष्टिगत होता था ऐसी अनुमति विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था या न्यायपालिका प्रदान कर रही हैं मायानगरी में यह रूढ़िवादिता सर्वाधिक देखने को मिल रही है.....वर्तमान में निर्धन अश्पृश्य हो गया है, मालों (मंडियों ) में संसद सभा में ऊंची अट्टालिकाओं में उसका प्रवेश निषेध हो गया है अर्थात : -

''राहे-रवां वही रही राही बदल गए.....''

>> पाखंड रहित नग्न साधुत्व हमें त्याग की शिक्षा देता हैं,

एक त्यागा हुवा वस्त्र किसी अभावग्रस्त के देह को ढांक सकता है..,

हम वस्त्रों का उपयोग करें उपभोग नहीं.....


>> एक आरक्षित अवसर १० को पिछड़ा, पददलित व् निर्धन बना देता है.....

>> डेढ़ सहस्त्र वर्ष हो गए, ये सत्ताधारी अब भी हमसे इन मुसलमानों की टट्टियाँ ही उठवाते रहेंगे क्या.....?

>> एक धर्म में कोई वर्ग उपेक्षित हो तो आवश्यक नहीं वह दूसरे धर्म में भी उपेक्षित हो..... पर नहीं : - खाता न बही - जो सत्ताधारी कहें वो सही.....

>> पाखण्ड रहित नग्नसाधुत्व प्रकृति के आतप्त के प्रति सहिष्णुता की शिक्षा देता है..... प्रलयकाल में ऐसे सहिंष्णु ही मनुष्य जाति को बचा रखेंगे.....

>> राजा होकर भी जब भगवान ने राजसी स्नान नहीं किया तो हम क्यूँ करें.....?

>> हिन्दू धर्म में भी स्त्रियों की दशा दयनीय थी कालान्तर में इस धर्म ने सुधारवादी विचारों को स्थान दिया।....भय है की इस प्रकार के अधिनियमों से वह स्थान लुप्त न हो जाए.....

>> हिन्दू विवाह सचमुच में एक अटूट बंधन ही था, इस बंधन में तलाक व् डाइवोर्स जैसे शब्द ही नहीं थे.....इस बंधन में इन शब्दों का विष भी इन सत्ता के लालचियों का ही घोला हुवा है.....

>> विभाजन में आपको अवसर दिया गया था ''इस्लामावाद'' अपनाने का.....ये एक धर्म विशेष की सामाजिक व्यवस्था है यदि ये बुराई हैं तो भी आपको अधिकार नहीं है इनपर टिका टिपण्णी करने का....आप अपने धर्म की बुराइयों को देखिए.....


>> किसी संविधान का विरोध देशद्रोह है.....? वह संविधान जो अपनी मौलिकता को विस्मृत कर अपने ही राष्ट्र के दासकर्ता को अधिकारों से संपन्न करता हो.....?

गए.....देश द्रोह में कितना दंड है.....बापरे ! फांसी.....

 ----- ॥ धर्मो रक्षति रक्षित: ॥  ----- 

>> कांग्रेस प्रोसेस से ऋण लो और भाजपा प्रोसेस से ऋणमुक्त हो जाओ.....देश का बंटाधार कर देंगे ये एक थैली के चट्टे-बट्टे.....

>> औरन की देहरि पड़ा भुल्या अपना मूर |
धन धरती कइ लाहु मैँ मातुपिता गै भूर || ५ ||

भावार्थ : -दूसरों की देहली में पड़ के अपनी जड़ें भूल गए धन और धरती का इतना लोभ हुवा कि अपने मातापिता, अपने पूर्वज तो क्या उनकी कब्रें भी याद नहीं रही |

>> अपने सम्मुख बैठे विपक्ष से प्रधानमंत्री ने कभी इस सम्बन्ध में प्रश्न किया कि यह स्वतंत्रता देश की थी या कांग्रेस की.....

>> हिन्दू विवाह अधिनियम है भाई.....

>. जिस देश में चरित्रहीनता का वास होता है, वहां नारी असुरक्षित रहती है.....

>> सेवा व् उपासना दोनों शब्द एक ही भाव से व्युत्पन्न हुवे हैं एतएव दोनों का धर्म भी एक ही होना चाहिए वह है लोकोपकार.....

>> पच्चीस तीस लाख पैकेज वाली दासी आई 'आई टियर्स' से एक करोड़ लाभांश वाली पकोड़ा मुस्कान का समाज में अधिक सम्मान है.....










2 comments:

  1. मकर संक्रान्ति की सादर शुभ कामनाऐ ।

    ____ क्षेत्रपाल शर्मा

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