"हमारे पापों के यहां बही नहीं होते,
हम हर बार सही नहीं होते"
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आजादियाँ सातवेँ आसमान चढ़ी..,
जबहे कारी फलके परवान चढ़ी..,
जाता रहा दुन्या वाले का भी खौफ़..,
बदनियति एकऔर पॉयदान चढ़ी.....
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सुन ऐ जुल्मों ज़बह,ये तिरा लब्बोलुआब l
उम्र कैद बा मशक्कत, हाँ तिरा है हिसाब ll ....
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ताउम्र गुज़र गई जुल्मों ज़फ़ह कारी में,
पैमाना भर जाए तो सजा दीजिए,
ग़र यही दस्तूर है इस दुनियाँ का
तो पहले इस दस्तूर को कजा दीजिए....
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जंग लड़ते रहे हम तारीके शब् से,
सजा का वक़्त आया तो सुबहे दम हो गई
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कहीं तबीयत नहीं मिलती,कहीं आदत नहीं मिलती,
सूरते सियासत से अपनी सूरत नहीं मिलती.....
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सुर्खियां कायम हुई के यारों अब हम नहीं रहे,