Saturday, 12 July 2025

----- || दोहा -विंशी १७ || ----

अधिकाधिक संचाए धन तैसे बिरथा जाए l  
जैसे मधुकर कोष कृत माधुर दूजा पाए ll१|| 
 :-- अधिकाधिक संचित धन उसी प्रकार व्यर्थ जाता है जिस प्रकार मधुकर द्वारा कोष कृत माधुर्य अन्यान्य प्राप्त करता है..... 

अधुनातन जुबा संगति औगुन का भंडार l 
ता भंडारा भोगये सद्गुन भोज बिसार ll२||  
:--आधुनिक युवाओं की संगति अवगुणों का भंडार है सत्गुण के भोज का तिरष्कार कर ये अवगुणों के भंडारे का ही भोग करते हैं..... 

चालीस पंच पचासिए भए गदहे पच्चीस l 
जोय गदहे पच्चीसे ताकि नही बत्तीस ll३||  
:-- चालीस पांच पचास के भी गधे पच्चीसे अर्थात 16से पच्चीस की अवस्था के बुद्धि हीन व प्रज्ञारहित वाले हो गए हैं जो गधे पच्चीस हैं उनके तो अभी बत्तीसी ही नहीं उगी है..... 

छेना छाछी छहो रस, छन छिन छिन कै खाएँ l 
मुख सौंह एकहु बार परि, निकसत नाहि न गाए ll४||  
:-- छेना छाछ जैसे दुग्ध जनित छहों रसों को यह क्षण में छिन छिन कर पा लेते हैं किंतु इनकी जनिति गौ माता का नाम तक इनके मुख से नहीं निकलता..... 

छेना छाछ माखन घिउ चाहे सबही पाए l 
ताकी जनिती गौ मात चाहिब कोई नाए ll५||  
:-- छेना छाछी माखन घिव तो सभी को चाहिए किंतु उसे व्युत्पन्न करने वाली गौमाता किसी को नहीं चाहिए.....

सुभाउतस नियत सरूप,तुअ कृतु करतब कारि । 
अकरमन ते करम परम, सुनहु गाँडीउ धारि ॥६||  
:-- हे गांडीव धारी अर्जुन सुनो ! तुम स्वभावतस् नियत स्वरूप कर्त्तव्य कर्म करो क्योंकि अकर्मण्य से कर्मण्य श्रेष्ठ होता है..... 

पाञ्चजन्यधारि कहत होतब सिद्धहु नाह । 
कृत कारज अकारज ते तव बिगरह निरबाह ॥७|| 
 :--पाञ्चजन्य धारी श्री कृष्ण कहते हैं कर्तव्य कर्म न करने से तुम्हारी शरीर यात्रा भी सिद्ध नहीं होगी..... 

धनु धुरंधर धर्म राज धीरज धर्म धुरीन l 
तेऊ काल कबलित भए जाके तात ए तीन ll८|| 
 :-- धनुर्धुरंधर अर्जुन धर्मराज युधिष्ठिर व धैर्य धर्म के धुरी को धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण जिनके पितृ पुरुष थे उन्हें भी काल कवलित हुवे फिर साधारण का तो कहना ही क्या है..... 

लोभ लाभ अरु परिलबध लाखे ऊंच न नीच l 
लाखी गहे गौमल ते गहे कमल कर कीच ll९||  
:-- लोभ लाभ और परिलब्धियाँ ऊँच- नीच का विचार नहीं करते, ये गौमय जैसे उच्च स्थान से लक्ष्मी तो कीचड़ जैसे निम्न स्थान से कमल प्राप्त कर लेते हैं । 

गरल रिपु कि बाल बयस कि अपावनी अस्थान l 
सदगुन सद्गुरु सदधर्म सुरसरि सरिस समान ll१०||  
:-- विष हो कि शत्रु हो या बाल्यवय हो अथवा कोई अपावन स्थान ही क्यों न हो, सद्गुरु,सद्वचन या उत्तम नियम व न्याय गंगा के सदृश्य सभी स्थानों पर समान महत्वता धारण करते हैं 
सद्‌धर्म= उत्तम नियम व न्याय 

भावाभावा भलाभल दुख सुख भोगाभोग l 
ते सरिस सब काल जिन्ह, धीमन कहाए जोग ll११||  
:-- वह व्यक्ति प्रज्ञावान कहलाने के योग्य है जिसे भोग-अभोग, भाव-अभाव, भल-अनभल,sुख-दुःख जैसे कारक सभी काल में तुल्य प्रतीत होते हों.....

देख ऊँची उड़ान, आशा के पतंगों की |
ये मन में ले ठान, तपेदिक हार मानेगा || 
सही हो खान पान, सही जीवन चर्या हो|
ये मन में ले ठान,तपेदिक हार मानेगा ll१२|| 


माणिक मुक्ता रतन जड़ि स्वर्णमई द्वारि l
पचि कोरि कुसुम अहिबेलि,बँधेउ बँदनबारि ll१३|| 
:--मुक्तामणियों जैसे रत्नों से जड़ित भगवान की हिरण्यमई द्वार है जिसपर पच्चीकारी किए हुए पुष्प एवं पान की बेलों का बँदनवार बँधाहै ...

नेता मंत्री के संग लब्धनाम  के ठाट | 
चहुँपुर अँधेरिआ,चौपट भयो कपाट ||१४||  
:-- नेता मंत्रियों के साथ ख्यातिलब्धों के ठाट बाट देखते ही बनते हैं देश में नीति नियमों का अभावतस स्वेच्छाचारिता चरम पर है  सीमाएं द्वार हीन होकर चौपट हो गईं हैं यही लोकतंत्र है तो नहीं चाहिए ऐसा लोकतंत्र  

फिरत प्रधान देस देस बहुर देस तस आए | 
प्रात के भूरे पाँखिन जैसे साँझि बहुराए ||१५|| 
:-- दिनों का अवसान होते देख कर जन जन की दृष्टियां प्रतीक्षा में हैं कि अब यह दिन कब फिरेंगे, किन्तु विमान में बैठे फिर रहे देश के प्रधानमन्त्री लौटते ही नहीं| 

दरस होतअवसान दिग दरसे कब दिन फिरै |
बैसे फिरत बिमान देस प्रधान फिरै नहीं ||१६|| 
: -- नित्य नई नवल भोर हो कर दिवसों का अवसान हो रहा है अर्थात समय व्यतित होता जा रहा है किन्तु देश के प्रधान मंत्री विमान में ही बैठे है वह लौट नहीं रहे |

दरसत धुँधरा दरसनी दरसन को दे दोष | 
दरसत धुँधरा दरसनी दरसन का का दोष ||१६|| 
दरसनी = दर्पण, दर्शक 
दरसन = दृश्य 
: -- कहीं दर्पण धुंधला दर्शित हो रहा है दृश्यों को दोष दिया जा रहा है कहीं दर्शक को ही धुंधला दर्श रहा है दृश्यों को दोष दिया जा रहा है....  
गीता में उपदेश यह देय रहे भगवान | 
जीवन ज्ञानोपासना करतब कर्म प्रधान ||१७|| 
: -- श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण वह उपदेश कर रहे हैं कि जीवन की यात्रा त्रिकांड की प्रधानता पर आधारित है ज्ञान कर्म उपासना, ज्ञान व् उपासना में कर्म तिरोहित न हों | 

बेध बितनु अनु परमानु बैसा जग करि ढेरि | 
चहे सब तब चाहे जब बाज उठे रन भेरि ||१८|| 
:-- विश्व देहविहीन भेद्य आयुधों अणुओं परमाणुओं के पुंज पर पदासित है जब इच्छा हो तब विश्व युद्ध का आह्वान   किया जाए विश्वजनों की भी मनोवांछा है.....  

अजहुँ जगद परम पद पर बिरधा बय आसीन | 
आगे जग का होएगा सो तो काल आधीन ||१९||  
:-- वर्तमान में विश्व के सर्वोच्च पदों पर वृद्धावस्था आसीन है जो धैर्य धर्म की अपनी धुरियां धारण किए हुवे हैं आगे इस विश्व का क्या होगा यह समय निश्चित करेगा.....   

पारावार पदा पयित बैसे जहाँ जुबान | 
दरसे तहँ संसार में होत घोर घमसान ||२०|| 
पारावार = इस छोर से उस छोर तक 
पदापयित =  पदों को प्राप्त 
:--  विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक सर्वोच्च पदों को प्राप्त किए जहाँ युवावस्था आसीन है वहां युद्ध सघन  स्वरूप में संकुलित है.....  
 
सेय लख लख नेय अलख मूरख देय अजान | 
परमाणु परमेय निरख परख लेय परिमान ||२१||  
सेय=सैयद,इमाम 
:--  एक छोर में अपनी नींव को अलक्षित करके धर्म के नाम पर लाखों लाख का नेतृत्व स्वरूप मूर्खता अज़ान दे रही है वह परिणाम से अनभिज्ञ परमाणु के परिमाण का निरीक्षण कर उसके मान की परीक्षा लेने को आतुर है | 

ध्वंस गति निरमान की सिरजन की साकार | 
 जुग जुगत जिग्यास जगे जगत लेय आकार ||२२|| 
: -- निर्माण की अंतिम परिणिति विध्वंश है साकार सृजन का अंतिम परिणाम है युग युक्तियों की जिज्ञासाएं जब जागृत होती है तब यह संसार आकार लेता है.....  

सारांश = यह युग सृजन का है निर्माण का नहीं 

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