गठ गढ़ो बड़ो सोहनों हार, प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ।
पइयाँ धरूँ थारी बिनति करूँ । प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥
मारो धरन करो स्वीकार । प्रभो जी थारी पइयाँ धरूँ ॥
पाँच सबद धुनि मंगल गावै । सुहा सुभग सुभ सगुन सुहावै ॥
कहै जनक जनेत जै जुहार । प्रभू जी थारी पइयाँ धरूँ ॥
चुन चुन पतियाँ सकल सँजोई । लग दिनु रतियाँ सूत पिरोई ॥
गुंफ गुंफ गच गाँठी सँवार । प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥
हाथ कंगनियाँ, करनन फूले । पाँउ पजनियाँ रुर रमझूले ॥
सजी सिय सोलहो सिंगार । प्रभू जी थारी पइयाँ धरूँ ॥
रुचि रुचि छापन भोग बनायो । पयसन सोरन संग सजायो ॥
रची रुचि रसबती जेवनार। प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥
पइयाँ धरूँ थारी बिनति करूँ । प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥
मारो धरन करो स्वीकार । प्रभो जी थारी पइयाँ धरूँ ॥
पाँच सबद धुनि मंगल गावै । सुहा सुभग सुभ सगुन सुहावै ॥
कहै जनक जनेत जै जुहार । प्रभू जी थारी पइयाँ धरूँ ॥
चुन चुन पतियाँ सकल सँजोई । लग दिनु रतियाँ सूत पिरोई ॥
गुंफ गुंफ गच गाँठी सँवार । प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥
हाथ कंगनियाँ, करनन फूले । पाँउ पजनियाँ रुर रमझूले ॥
सजी सिय सोलहो सिंगार । प्रभू जी थारी पइयाँ धरूँ ॥
रुचि रुचि छापन भोग बनायो । पयसन सोरन संग सजायो ॥
रची रुचि रसबती जेवनार। प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥
प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ
ReplyDeleteआशीष और शुभकामनाएं
ReplyDelete9350031212
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