Thursday, 6 February 2014

----- ॥ दोहा-पद॥ -----

गठ गढ़ो बड़ो सोहनों हार, प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ । 

पइयाँ धरूँ थारी बिनति करूँ । प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥ 
मारो धरन करो स्वीकार । प्रभो जी थारी पइयाँ धरूँ ॥ 

पाँच सबद धुनि मंगल गावै । सुहा सुभग सुभ सगुन सुहावै ॥ 
कहै जनक जनेत जै जुहार । प्रभू जी थारी पइयाँ धरूँ  ॥ 

चुन चुन पतियाँ सकल सँजोई । लग दिनु रतियाँ सूत पिरोई ॥ 
गुंफ गुंफ गच गाँठी सँवार । प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥ 


हाथ कंगनियाँ, करनन फूले । पाँउ पजनियाँ रुर रमझूले ॥ 
सजी सिय सोलहो सिंगार । प्रभू जी थारी पइयाँ धरूँ ॥ 

रुचि रुचि छापन भोग बनायो । पयसन सोरन संग सजायो ॥ 
रची रुचि रसबती जेवनार। प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ ॥ 

3 comments:

  1. प्रभो जी थारो पइयाँ धरूँ

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  2. आशीष और शुभकामनाएं

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