----- || राग -बसंत || -----
पूस रथ हेमन हिमबर, बिदा कियो हेमंत ॥
आयो राज बसंत सखि, छायो राज बसंत ।।
नौ पत फल नवल द्रुमदल भइ रितु अति रतिबंत ।
आयो राज बसंत सखि, छायो राज बसंत ।।
पील नील नव नारंजी , केसरियो हरि कंत ।
आयो राज बसंत मन भायो राज बसंत ॥
गाजत घन गगन महि घन रागए राग दिगंत |
आयो राज बसंत मन भायो राज बसंत ॥
नारद सारद सेष श्रुति सुर मुनि संत महंत ।
गायो राग बसंत सखि आयो राज बसंत ।।
सारंगी संग सिंगार, रुर सुर सात सुबंत ।
गायो राग बसंत सखि छायो राग बसंत ॥
कास कोनिका कैसिका , कल बीना के तंत ।
गायो राग बसंत सखि छायो राग बसंत ॥
बृंदाबन बेनु बोलत , बादहि बादन यंत ।
गायो राग बसंत सखि छायो राग बसंत ॥
जल नुपूर रुर फुर संग, रकत कंठ अलि रंत ।
गायो राग बसंत मन भायो राग बसंत ॥
शोख शिफक अबीर अबलक, चिरक फ़लक (तलक )पर्यन्त ।
खेलए फाग बसंत आ हेलए फाग बसंत ॥
राग ललित परिपाटलित, छिरक गगन परजंत ।
खेललि फाग बसंत हेललि फाग बसंत ॥
लाल ललितक गाल ललित, लै रस लस रसवंत ।
खेलए फाग बसंत सखि मेलए फाग बसंत ॥
पूस रथ हेमन हिमबर, बिदा कियो हेमंत ॥
आयो राज बसंत सखि, छायो राज बसंत ।।
भाल ललामिक लाल ललामिक लसत मुख रजत जयंत ।
लायो सौहाग बसंत मन भायो सौहाग बसंत ॥
क्रमश:
पूस रथ हेमन हिमबर, बिदा कियो हेमंत ॥
आयो राज बसंत सखि, छायो राज बसंत ।।
नौ पत फल नवल द्रुमदल भइ रितु अति रतिबंत ।
आयो राज बसंत सखि, छायो राज बसंत ।।
पील नील नव नारंजी , केसरियो हरि कंत ।
आयो राज बसंत मन भायो राज बसंत ॥
गाजत घन गगन महि घन रागए राग दिगंत |
आयो राज बसंत मन भायो राज बसंत ॥
नारद सारद सेष श्रुति सुर मुनि संत महंत ।
गायो राग बसंत सखि आयो राज बसंत ।।
सारंगी संग सिंगार, रुर सुर सात सुबंत ।
गायो राग बसंत सखि छायो राग बसंत ॥
कास कोनिका कैसिका , कल बीना के तंत ।
गायो राग बसंत सखि छायो राग बसंत ॥
बृंदाबन बेनु बोलत , बादहि बादन यंत ।
गायो राग बसंत सखि छायो राग बसंत ॥
जल नुपूर रुर फुर संग, रकत कंठ अलि रंत ।
गायो राग बसंत मन भायो राग बसंत ॥
शोख शिफक अबीर अबलक, चिरक फ़लक (तलक )पर्यन्त ।
खेलए फाग बसंत आ हेलए फाग बसंत ॥
राग ललित परिपाटलित, छिरक गगन परजंत ।
खेललि फाग बसंत हेललि फाग बसंत ॥
लाल ललितक गाल ललित, लै रस लस रसवंत ।
खेलए फाग बसंत सखि मेलए फाग बसंत ॥
पूस रथ हेमन हिमबर, बिदा कियो हेमंत ॥
आयो राज बसंत सखि, छायो राज बसंत ।।
भाल ललामिक लाल ललामिक लसत मुख रजत जयंत ।
लायो सौहाग बसंत मन भायो सौहाग बसंत ॥
क्रमश:
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....
ReplyDelete:-)
पील नील नव नारंजी , केसरियो हरि कंत ।
ReplyDeleteआयो राज बसंत मन भायो राज बसंत ..
बहुत ही सुन्दर ... बहुत समय बाद इतने भावमय दोहे पढ़ने को मिले हैं ... लाजवाब ...
अभिनव शब्द, अप्रतिम लेखनी, उत्कृष्ट दोहे... बधाई स्वीकारें...इन वासन्ती दोहों को पढ़ कर मन आनंदित और प्रफ्फुलित हो गया...
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