Wednesday, 5 March 2014

----- ॥ मैं दानी हूँ,ज्ञानी नहीं हूँ ॥ -----

                          ----- ॥ मैं दानी हूँ,ज्ञानी नहीं हूँ ॥ -----

क्रुद्धहृष्टभीतार्तुलुब्धबालस्थविरमूढमत्तोन्मत्तवाक्यान्यनृतान्यपातकानि | 
            ( एक शब्द में कितना बोलती है ये संस्कृत भाषा )  
----- ॥ गौतमधर्मसूत्र ५ /२ ॥ -----

भावार्थ : -- दान तभी करना यथेष्ट है जब उसका अधिकार प्राप्त हो : -- भावावेश में, भयभीत होकर, रुग्णावस्था में, अल्पावस्था में, मदोन्मत्त अवस्था में, विक्षिप्त, अर्ध विक्षिप्त अथवा अमूढ़ अवस्था में दान देना निषेध है ॥ 

 दान देवन जोग कौन, आप धातृ संधानि । 
मात,पिता पालक अन्य, देवन अनुमति दानि ।१३११। 
भावार्थ : -- दान देने का अधिकारी कौन हो जो अपना पालन पोषण करने में आपही सक्षम हो । एवं जो मात-पिता पालक अभिभावक अथवा अन्य द्वारा देने हेतु अनुमति दी गई हो ॥ 

टीका : -- भारतीय संविधान के वयस्कता अधिनियम के अनुसार जो अवयस्क है किन्तु अपना पालन-पोषण करने में सक्षम है वह अपने पालक/अभिभावक की अनुमति से ही दान करना चाहिए । जो वयस्क हैं किन्तु अपना पालन-पोषण करने में असमर्थ हैं क्या उन्हें दान करना चाहिए ? (जब दान शब्द ही सम्मिलित हो उसका तात्पर्य है कोई भी दान ) क्या इन्हें संज्ञान है कि धन कैसे अर्जित किया जाता है ? 

1 comment:

  1. दान में फल प्राप्ति की भावना नहीं होनी चाहिए. बिना किसी प्रयोजन के दिया गया दान आदमी को पूज्य बनाता है.
    अब सार्थक महिला दिवस मनाएँ, महिला दिवस की शुभकामनाएँ …

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