Saturday, 15 March 2014

----- ॥ दोहा-पद॥ -----

जँह सुमिरन मैं हो मगन, भजमन भगवन नाम । 
भाब भगति में हो लगन, तँह धन के काम ।। 

रचे पद पत पदासीन, सुन्दर सुन्दर ठाम । 
जन जन हो जँह अधिपते, तँह तिनके का काम ।। 

हार अरथ हिय हार, जीतार्थ जन मन जीत ( 'मत' मत जीत)  । 
जग कल्यान अधार, हो जनहित में सब रीत ॥ 
करन जगन उद्धार, सेवापन के कर थाम । 
जँह सुमिरन में हो लगन, भजमन भगवन नाम ॥ 

बर बरासन स्थाप, बिराजे नयन सों दूर । 
धूरे धूरे आप, भगवन भरि धूरिहि धूर ॥ 
प्रभुवन निलयन  ताप,तू सीतल सीतल श्राम । 
भाव भगति मैं हो लगन, तँह तिनके का काम ॥ 

बाहिर घन अँजोर, अंतरतम घन अंधेर । 
बाहिर पलक पछोर, अंतर मह मल के ढेर ।। 
कुल नामावलि छोर, धारे निज सौ उपनाम । 
भाव भगति मैं हो लगन, तँह तिनके का काम ॥ 

पलक पछोर = जिसके धूल के महीन कणों को पलकों से झाड़ा जाए उसे पलक पछोड़ कहते हैं 

1 comment:

  1. बहुत सुंदर सार्थक दोहे... रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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