Thursday 20 May 2021

-----|| दोहा-विंशी 7 || -----

 ढली शाम वो सुरमई,लगा बदन पे आग | 

फिर रौशनी बखेरते लो जल उठे चराग़ || १ || 


चली बादे गुलबहार मुश्के बारो माँद | 

सहन सहन मुस्करा के निकल रहा वो चाँद || २|| 


मर्ज़ की शक़्ल लिये फिर क़ातिल है मुस्तैद | 

दरो बाम कफ़स किए फिर जिंदगी हुई क़ैद || ३ || 

कफ़स =पिंजड़ा 


ये महले मुअज्ज़म औ ये आलिशा मकान | 

नादाँ को मालुम नहीं दो दिन की है जान || ४ || 


सुन ऐ नादान तुझको है गर जान अज़ीज | 

चेहरे को हिज़ाब दे रह अपनी दहलीज़ || ५ || 


इधर मर्ज़े नामुराद और उधर तूफ़ान | 

ऐ नादा इन्सा तिरी मुश्किल में है जान || ६ || 


साहिलों पे बेख्याल दरिया करता मौज़ | 

पीछे हमला बोलती तूफानों की फ़ौज || ७ || 


बादे वारफ्तार वो तूफ़ां बे मक़सूद | 

सरो सब्ज़ दरख्तो दर हुवे नेस्तनाबूद || ८ || 


इक दिल इक जान इक सर और सौदे हज़ार | 

न दुआ पे यकीन अब न दवा का एतबार || ९ || 


इक तो ये फाँका कशी उसपे ये बीमारि | 

चार सूँ आह कू ब कू मुश्किल औ दुश्वारि || १० || 


देखि हमने जम्हुरियत तेरी रय्यत दारि | 

शहर शहर हर रह गुज़र दहशत औ बीमारि || ११ || 


कहीँ मरीज़े ग़म कहीं, दरिया औ तूफ़ान | 

कहीं गिरते जहाज़ पर, आफ़त में है जान || १२ || 


मरीज़े ग़म दरम्याँ आफ़त जदा जहान | 

आह पोशे निग़ाह में और लबों पे जान || १३ || 


सब बाज़ार बंद हैं खुला काला बज़ार | 

जमाख़ोर का ख़ूब याँ  चलता क़ारोबार || १४ || 


साहिल साहिल किश्तियाँ किश्ति किश्ति बादबाँ | 

दरिआ दरिआ नाख़ुदा लहरो लहर तूफाँ || १५ || 


है ये मुश्किल वक़्त पर नहीं हम फिक्र मंद | 

दिल है होशो हिम्मती औ हौसले बुलंद || १६ || 






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