Thursday 20 May 2021

----- || दोहा -विंशी८ ||----,

हरिअर हरिअर भूमि कहुँ करिकै सत्यानास | 
काँकरी के बिकसे बन वाका नाउ विकास || १|| 

नारी तोरी तीनि गति चतुरथी कोउ नाए l
पति पुत अरु बंधु बाँधव सतजन दियो बताए ll२ ||
भावार्थ :- संत जनो ने नारी की तीन ही गति बतलाई है प्रथम पति,दुजी पुत्र व तिजी बंधु-बांधव इसके अतिरिक्त उसकी चौथी कोई गति नही है यदि उसे पति त्याग दे तो वह पुत्र के पास रहे पुत्र त्याग दे तब वह बंधु बांधवों के पास रहे यदि बंधु-बांधव भी उसका परित्याग कर दे फिर तो उसकी दुर्गति होनी निश्चित है l

घन अँधेरा नगरि माहि छाए रहा चहुँ ओर |
छूट रहै साहुकारा गहि गए सो तो चोर || ३||

दो बालक सों होइगा अलप सँख्यक समाज |
बहु सँख्यक सम्राजवाद करिगा हम पे राज || ४ ||

दो बालक सों होइअहु जग मह अलपक सँख्य |
सम्राज वादि राजेगा होतब पुनि बहु सँख्य || ५||

गउ मात की सुश्रुता सो होतब पुन्य अगाधु |
गउ गह करि है सदस जस गउ हत्या अपराधु || ६||

सिच्छा ते ग्यान बड़ा बड़ा दान ते ताज |
बड़ा दीन का देवना धनी जानि ले आज|| ७ ||

जुबक जानि कै आपुनो चलिया केस रँगाय |
बूढ़ी हड्डी बोलि चूँ गिरिआ ठोकर खाए || ८||

चाहिए जब जल बाँधना, देवें रे तब छाँड़ |
दोइ दिवस घन बरखते, जहँ तहँ आवै बाढ़ || ९ ||

पर गह को कह आपना झूठा करए बखान |
रे मानस मन मूरखा तेरा गह समसान || १० ||

गह गहिने गढ़न माहि लगा रहा धनवान |
छूटे प्रान त छोड़ सब पड़िआ जा समसान || ११ |

जगति जोति जागे जगनाथा | जयजय करि जागे जग साथा ||
जोए जुग कर सहुँ सीस नवाए | पुष्कल पुष्कल कमल उपजाए ||

बरखत बून्द बीच अह खिली गगन मह धूप |
सुबरन मय छटा संगत दरसै रूप अनूप || १२ ||

घन घन स्याम रूपधर,ऐसो बरसो राम |
जग कर जोए बोलि उठे, साँचा तोरा नाम || १३ ||

सज सिंगार कर बर्तिका आई जोंहि समीप |
प्रेम अगन में जर उठा जग उजयारत दीप || १४ ||

कटि तट घट मुख परि घुँघट काँधे लट बिथुराइ |
पनघट पनघट परि चलत बरखा रितु बहुराइ || १५ ||

बहुरि बहुरि बहुराइ के तापस रही बहूर |
बहुरि बहुरन को बरखा बिलखावत आतूर || १६ ||

आत्मनिर्भर होइ के पालें गह मह गाय |
दूध दधि घृत सोंहि साजन पावैं माखन छाए || १७ ||







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