धन संपत्ति छाँड़ सो तौ आनै रोग बियोग॥५||
लोभ लब्ध के वशीभूत जो लोग प्रवासी हो गए हैं वह धन सम्पति को वहीँ छोड़कर रोग वियोग साथ लेकर आते हैं
पुरजन परिजन छाँड़ निज गह द्वार ते दूर ।
देखु ए भोर के भूरे साँझी रहे बहूर ॥६II
पुर्जनों परिजनों को त्याग कर अपने गृह द्वार से दूर देखों इन प्रवासियों को ये भोर के भूले हैं जो सांझ को लौट रहे हैं |
साजन काचे आम ते सुनी परी अमराइ ।
सुस्वादु अचार एहि रितु घारै कैसे माइ॥७II
साजन अबके कच्चे आमों से अमराइयाँ सुनी पड़ गई हैं अब माताएं इस ऋतु में सुस्वादु अचार कैसे घारेंगी
सासक कह तस चालिते जन जन भए कल यंत्र।
सासन तंत्र परि भरुअर भया प्रसासन तंत्र ॥८II
जन जन कलयंत्र सदृश्य हो चले हैं शासक कहे वैसे संचालित होना होगा इस शासन तंत्र पर प्रशासन तंत्र भारी हो गया अर्थात भारत पर अधिकारी तंत्र राज गया है
बृहद संगत जौ होउते लघु कुटीर उद्योग ।
महबंध माहि दरसते, काम लगे सब लोग ॥९II
यदि वृहद् के साथ लघु कुटीर उद्योग होते तब कोरोनाकाल के महाबंद में सभी लोग काम में लगे हुवे दर्शते |
प्रति दिन पहिरत दरसते, नवल नवल परिधान ।
ऐतिक कापर कहुहु कहँ रखिते रे श्रीमान ॥१०II
प्रतिदिन जो नएनए परिधान धारण किए दिखाई देते हैं कहिए तो ये लब्धप्रतिष्ठित श्रीमान इतने वस्त्रों को रखते कहाँ है |
नेताजी अपराध के धरे सीस परि हाथ l
जब तब कियो धूर्तता प्रजा तंत्र कर साथ l१३l ....
नेता जी ने अपराध को प्रोत्साहित किया हुवा है वह जब तब प्रजातंत्र के साथ धूर्तता करते दिखाई देते हैं |
अपराध अपराधी का, देखे धर्म न जात l
चोरी हत्या लूट सो, करे हिंस उत्पात l१४l .....
अपराधी का अपराध धर्म जाति में भेद नहीं करता वह चोरी ह्त्या लूट के साथ बहुंत से हिंसक उत्पात करता है |
जहाँ बिरधपन श्रम करे,बालक गहे ग्यान |
जहाँ युवा त्याग करे, सो तो देस युवान II१५II
जहां वृद्धवयस श्रम करती हो जहाँ बाल्यपन ज्ञान ग्रहण करता हो जहाँ युवावस्था त्याग करती हो वह देश तरुण और महान होता है
धर्म जाति सो उपकरन जौ परिचय जतलाए |
एहि जनावत कवन तुम्ह अबरु कहँ ते आए II१६II
''धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट कर यह संसूचित करते हैं कि आप कौन हैं कहाँ से आए हैं |.....''
कंठ व्याल भाल शशि: शंभु शिव शंकराय l
नमामि शंभु वल्लभाय हरि ॐ नम: शिवाय II१७||
समझ बूझ कर बरतिये, तब लग है बरदान ।
अन्यथा मानव के लिए है अभिशाप विज्ञान ॥१८II
सोच विचार कर व्यवहार किया जाए तब तक विज्ञान वरदान हैं अन्यथा वह अभिषाप सिद्ध होगी
सत् कृत बहु श्रम पूरित अर्जित जो कर दान ।
जन मानस हे देस के,लो उसका संज्ञान ॥१९ II
हे भारत का जन मानस! तुम्हें सत्य कार्यों व अतिशय श्रम पूर्वक अर्जित किए कर स्वरूप राजस्व के दान का संज्ञान लेना चा
पराइ चाकरि ते भला, घर का छोटा काम l
जामे स्वामि पद गहे, लहे जगत में नाम l२०l
किसी दूसरे की नौकरी बजाने से घर का छोटा काम उत्तम होता है घर का काम हमें किसी के दास से इतर स्वामी के पद पर प्रतिष्ठित करता है और दुनिया में शाख यश कीर्ति का कारक बनता है
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