Saturday, 12 July 2025

----- || दोहा -विंशी १७ || ----

अधिकाधिक संचाए धन तैसे बिरथा जाए l  
जैसे मधुकर कोष कृत माधुर दूजा पाए ll१|| 
 :-- अधिकाधिक संचित धन उसी प्रकार व्यर्थ जाता है जिस प्रकार मधुकर द्वारा कोष कृत माधुर्य अन्यान्य प्राप्त करता है..... 

अधुनातन जुबा संगति औगुन का भंडार l 
ता भंडारा भोगये सद्गुन भोज बिसार ll२||  
:--आधुनिक युवाओं की संगति अवगुणों का भंडार है सत्गुण के भोज का तिरष्कार कर ये अवगुणों के भंडारे का ही भोग करते हैं..... 

चालीस पंच पचासिए भए गदहे पच्चीस l 
जोय गदहे पच्चीसे ताकि नही बत्तीस ll३||  
:-- चालीस पांच पचास के भी गधे पच्चीसे अर्थात 16से पच्चीस की अवस्था के बुद्धि हीन व प्रज्ञारहित वाले हो गए हैं जो गधे पच्चीस हैं उनके तो अभी बत्तीसी ही नहीं उगी है..... 

छेना छाछी छहो रस, छन छिन छिन कै खाएँ l 
मुख सौंह एकहु बार परि, निकसत नाहि न गाए ll४||  
:-- छेना छाछ जैसे दुग्ध जनित छहों रसों को यह क्षण में छिन छिन कर पा लेते हैं किंतु इनकी जनिति गौ माता का नाम तक इनके मुख से नहीं निकलता..... 

छेना छाछ माखन घिउ चाहे सबही पाए l 
ताकी जनिती गौ मात चाहिब कोई नाए ll५||  
:-- छेना छाछी माखन घिव तो सभी को चाहिए किंतु उसे व्युत्पन्न करने वाली गौमाता किसी को नहीं चाहिए.....

सुभाउतस नियत सरूप,तुअ कृतु करतब कारि । 
अकरमन ते करम परम, सुनहु गाँडीउ धारि ॥६||  
:-- हे गांडीव धारी अर्जुन सुनो ! तुम स्वभावतस् नियत स्वरूप कर्त्तव्य कर्म करो क्योंकि अकर्मण्य से कर्मण्य श्रेष्ठ होता है..... 

पाञ्चजन्यधारि कहत होतब सिद्धहु नाह । 
कृत कारज अकारज ते तव बिगरह निरबाह ॥७|| 
 :--पाञ्चजन्य धारी श्री कृष्ण कहते हैं कर्तव्य कर्म न करने से तुम्हारी शरीर यात्रा भी सिद्ध नहीं होगी..... 

धनु धुरंधर धर्म राज धीरज धर्म धुरीन l 
तेऊ काल कबलित भए जाके तात ए तीन ll८|| 
 :-- धनुर्धुरंधर अर्जुन धर्मराज युधिष्ठिर व धैर्य धर्म के धुरी को धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण जिनके पितृ पुरुष थे उन्हें भी काल कवलित हुवे फिर साधारण का तो कहना ही क्या है..... 

लोभ लाभ अरु परिलबध लाखे ऊंच न नीच l 
लाखी गहे गौमल ते गहे कमल कर कीच ll९||  
:-- लोभ लाभ और परिलब्धियाँ ऊँच- नीच का विचार नहीं करते, ये गौमय जैसे उच्च स्थान से लक्ष्मी तो कीचड़ जैसे निम्न स्थान से कमल प्राप्त कर लेते हैं । 

गरल रिपु कि बाल बयस कि अपावनी अस्थान l 
सदगुन सद्गुरु सदधर्म सुरसरि सरिस समान ll१०||  
:-- विष हो कि शत्रु हो या बाल्यवय हो अथवा कोई अपावन स्थान ही क्यों न हो, सद्गुरु,सद्वचन या उत्तम नियम व न्याय गंगा के सदृश्य सभी स्थानों पर समान महत्वता धारण करते हैं 
सद्‌धर्म= उत्तम नियम व न्याय 

भावाभावा भलाभल दुख सुख भोगाभोग l 
ते सरिस सब काल जिन्ह, धीमन कहाए जोग ll११||  
:-- वह व्यक्ति प्रज्ञावान कहलाने के योग्य है जिसे भोग-अभोग, भाव-अभाव, भल-अनभल,sुख-दुःख जैसे कारक सभी काल में तुल्य प्रतीत होते हों.....

देख ऊँची उड़ान, आशा के पतंगों की |
ये मन में ले ठान, तपेदिक हार मानेगा || 
सही हो खान पान, सही जीवन चर्या हो|
ये मन में ले ठान,तपेदिक हार मानेगा ll१२|| 


माणिक मुक्ता रतन जड़ि स्वर्णमई द्वारि l
पचि कोरि कुसुम अहिबेलि,बँधेउ बँदनबारि ll१३|| 
:--मुक्तामणियों जैसे रत्नों से जड़ित भगवान की हिरण्यमई द्वार है जिसपर पच्चीकारी किए हुए पुष्प एवं पान की बेलों का बँदनवार बँधाहै ...

नेता मंत्री के संग लब्धनाम  के ठाट | 
चहुँपुर अँधेरिआ,चौपट भयो कपाट ||१४||  
:-- नेता मंत्रियों के साथ ख्यातिलब्धों के ठाट बाट देखते ही बनते हैं देश में नीति नियमों का अभावतस स्वेच्छाचारिता चरम पर है  सीमाएं द्वार हीन होकर चौपट हो गईं हैं यही लोकतंत्र है तो नहीं चाहिए ऐसा लोकतंत्र  

फिरत प्रधान देस देस बहुर देस तस आए | 
प्रात के भूरे पाँखिन जैसे साँझि बहुराए ||१५|| 
:-- दिनों का अवसान होते देख कर जन जन की दृष्टियां प्रतीक्षा में हैं कि अब यह दिन कब फिरेंगे, किन्तु विमान में बैठे फिर रहे देश के प्रधानमन्त्री लौटते ही नहीं| 

दरस होतअवसान दिग दरसे कब दिन फिरै |
बैसे फिरत बिमान देस प्रधान फिरै नहीं ||१६|| 
: -- नित्य नई नवल भोर हो कर दिवसों का अवसान हो रहा है अर्थात समय व्यतित होता जा रहा है किन्तु देश के प्रधान मंत्री विमान में ही बैठे है वह लौट नहीं रहे |

दरसत धुँधरा दरसनी दरसन को दे दोष | 
दरसत धुँधरा दरसनी दरसन का का दोष ||१६|| 
दरसनी = दर्पण, दर्शक 
दरसन = दृश्य 
: -- कहीं दर्पण धुंधला दर्शित हो रहा है दृश्यों को दोष दिया जा रहा है कहीं दर्शक को ही धुंधला दर्श रहा है दृश्यों को दोष दिया जा रहा है....  
गीता में उपदेश यह देय रहे भगवान | 
जीवन ज्ञानोपासना करतब कर्म प्रधान ||१७|| 
: -- श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण वह उपदेश कर रहे हैं कि जीवन की यात्रा त्रिकांड की प्रधानता पर आधारित है ज्ञान कर्म उपासना, ज्ञान व् उपासना में कर्म तिरोहित न हों | 

बेध बितनु अनु परमानु बैसा जग करि ढेरि | 
चहे सब तब चाहे जब बाज उठे रन भेरि ||१८|| 
:-- विश्व देहविहीन भेद्य आयुधों अणुओं परमाणुओं के पुंज पर पदासित है जब इच्छा हो तब विश्व युद्ध का आह्वान   किया जाए विश्वजनों की भी मनोवांछा है.....  

अजहुँ जगद परम पद पर बिरधा बय आसीन | 
आगे जग का होएगा सो तो काल आधीन ||१९||  
:-- वर्तमान में विश्व के सर्वोच्च पदों पर वृद्धावस्था आसीन है जो धैर्य धर्म की अपनी धुरियां धारण किए हुवे हैं आगे इस विश्व का क्या होगा यह समय निश्चित करेगा.....   

पारावार पदा पयित बैसे जहाँ जुबान | 
दरसे तहँ संसार में होत घोर घमसान ||२०|| 
पारावार = इस छोर से उस छोर तक 
पदापयित =  पदों को प्राप्त 
:--  विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक सर्वोच्च पदों को प्राप्त किए जहाँ युवावस्था आसीन है वहां युद्ध सघन  स्वरूप में संकुलित है.....  
 
सेय लख लख नेय अलख मूरख देय अजान | 
परमाणु परमेय निरख परख लेय परिमान ||२१||  
सेय=सैयद,इमाम 
:--  एक छोर में अपनी नींव को अलक्षित करके धर्म के नाम पर लाखों लाख का नेतृत्व स्वरूप मूर्खता अज़ान दे रही है वह परिणाम से अनभिज्ञ परमाणु के परिमाण का निरीक्षण कर उसके मान की परीक्षा लेने को आतुर है | 

ध्वंस गति निरमान की सिरजन की साकार | 
 जुग जुगत जिग्यास जगे जगत लेय आकार ||२२|| 
: -- निर्माण की अंतिम परिणिति विध्वंश है साकार सृजन का अंतिम परिणाम है युग युक्तियों की जिज्ञासाएं जब जागृत होती है तब यह संसार आकार लेता है.....  

सारांश = यह युग सृजन का है निर्माण का नहीं 

Saturday, 5 July 2025

----- || दोहा- विंशी १६ ||-----

चालक दल उद्घोषिआ उड़ते बियत बिमान।

छन में यह गिर जाएगा .. . . . . . . . . . ॥

:-- नभ में उड्डयन करते विमान के चालक दल ने उद्घोषणा की. . . . केवलदो दंड पश्चात यह विमान गिर जाएगा..... जब मृत्यु निकट हो तब उन दो दंडो (मिनट) में क्या करना चाहिए.....?


साँस सेष दस पाँच बस आए काल जूँ अंत। 
करिअब चाहिए कहा तब कहो बुद्धि सुधिवंत ||  
:-- दस पाँच साँस शेष हों अंतकाल निकट हो तब हे प्रबुद्ध जनों !उस शेष समय में क्या करना चाहिए.....

श्राप मिला परीक्षित को, दे संतन को संताप l
हे राजन मरि जाएँगे, सप्त दिवस में आप ॥

:--संतो को संतापित करने के कारण एक बार अभिमन्यु पुत्र राजा परीक्षित को श्राप मिला,हे राजन ! अब से ठीक सात दिवस पश्चात तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी | 

राज सुपुत कहुँ सौप पुनि दिए सिँहासन त्याज ।
करन कहा चाहिए सोच चलत चले अधिराज ॥

:--राजा परीक्षित ने तत्क्षण सिंहासन त्याग दिया,अपने सुपुत्रो को राज पाट सौंप कर यह विचार करते चल पड़े अब इन सात दिनों मुझे क्या करना चाहिए ।

डग भरते मग कहिअ एक मिलआ सुबुध सुजान l
सुनहु राजन मरनि निकट नहि कछु तुमहि भयान ll

:--डग भरते हुए मार्ग में उनकी एक सुबुद्ध सुविज्ञ से भेंट हुई उसने कहा सुनो राजन ! मृत्यु निकट है तथापि तुम भयभीत नहीं हो ?
जीवन दिवस साति है मम मरनि अजहुँ दूर l
छन भँगुराहि तव जिउना सोच करौ आतूर ॥

:--राजा परीक्षित ने उत्तर दिया ! हे महामंत ! जीवन के सात दिवस शेष है मेरी मृत्यु अभी दूर है मैं तो सात दिवस तक जीवित रहूंगा, भयभीत तुम्हें होना चाहिए क्यों कि जीवन क्षण भंगुर है यह तुम्हे शीघ्रता पूर्वक विचार करना चाहिए क्या जाने कि अगला  क्षण तुम्हारी मृत्यु लेकर आए | 

आगे नहीं पता...श्रीमद् भगवद्पुराण यही है... जिन्हे जानना है वो सुन लें...

सुन लें...क्योंकि आज नही तो कल हमारी मृत्यु भी सप्ताह के इन्ही सात दिनों मे होने वाली है.....

चालक दल उद्घोषिआ उड़ते बियत बिमान ।
छन में यह गिर जाएगा,सुमिर लिजौ भगवान ॥
नभ में उड्डयन करते विमान के चालक दल ने उद्घोषणा की. . . . केवलदो दंड पश्चात यह विमान गिर जाएगा..... जब मृत्यु निकट हो अपने अपने भगवान्त का स्मरण कर लो.....  उन दो दंडो (मिनट) में क्या करना चाहिए ...अपने अपने इष्ट देव अपने अपने भगवान का नाम स्मरण करना चाहिए.....



जुवपन धन रूप पद अति, होत जाहि के पास l
साजन जो बिबेक नही, दए दुख बिनहि प्रयास ll ---- भगवान श्री कृष्ण

:--युवापन,धन,रूप एवं उच्च पद ये चार अतिसय हों तो हे सज्जनों ! इन द्रव्यों का विवेक विहीन व्यवहार बिना प्रयास किए दुख की प्राप्ति का कारण बनता है ।

तुलसी दास जी कहते है... "बिनु सत्संग बिबेक न होई । राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥"

अंत जदु बंसिज भएउ बिबेक बिहीन 


विवेक विहिनता ने अंत में यदुवंश का विनाश कर दिया... 











Tuesday, 1 July 2025

----- || दोहा- विंशी १५||-----

पद पद मैं परबत नदी बट बट मैं बन राए l
यह संपत्ति जगपति की सोच समझ बरताएं ll१II 
चरण चरण पर ये पर्वत नदियां मार्ग मार्ग पर यह वनस्थली में स्थित वृक्षसमूह ये सभी संपत्ति जगत के कारण भूत परमेश्वर की है अतएव मनुष्य को इनका विचार पूर्वक व्यवहार करना चाहिए


खोद खन नद परबत बन, लाएँ आगि दिए बाल l 
वाका मोल चुकाएगा,आज नहीं तो काल ll२II 
ये पर्वत नदी खनिजों की खानों को उत्खात इन्हें आग में झोंक कर मानव धड़ल्ले से अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति कर रहा है इसके स्वामित्व से अनभिज्ञ मनुष्य का आज नहीं तो कल अवश्य ही उसका मूल्य चुकाएगा

पथ पथ मैं परबत नदी बट बट मैं बन राए l
पद पद येह भव सम्पति जगपति दिए बिरचाए ll३II             
पथ पथ पर यह पर्वत नदी मार्ग मार्ग पर वनस्थली में यह वृक्षसमूह चरण चरण पर यह समूची सम्पति जगत के कारण भूत परमेश्वर द्वारा सृजित की हुई है 

जगत जनों के जगत में पाप पुण्य दो रंग | 
पतित पावनि पुण्य प्रदा पाप नाशिनी गंग II४II  
 
घर घर होती बेटियाँ,पढ़ लिख कर गुणवान l 
यह शिक्षा फलीभूत जब, रखे पिता का मान ll५|| 

भरे दया के भाव से,देख घाव गंभीर l 
दे रक्त प्राण दान दे,वही है रक्त वीर ll६|| 

प्रसर पंथ पर चरण धर,उड़ा उतंग विमान । 
वियत गमन करतेआह! गिरा तरु पत्र समान II७||  
प्रसर पंथ = रनवे

जिउते मिरतक होत बस,लगे पलक कुल दोए ।
कलजुग तोरे काल में,समुझे नाही कोए ॥८|| 
जीवित से मृतक होते केवल दो ही क्षण लगते हैं हे कलयुग ! तेरे काल की गति का बोध किसी को नहीं है 

आदर्श चरित्र राम का,यह गीता का उपदेश l
अखिल विश्व को दे रहा सद पथ का संदेश ll९|| 
भगवान श्री राम का चरित्र व भगवद्गीता का उपदेश समूचे विश्व के लिए आदर्श स्वरूप सत्य पंथ का संदेश देते हैं... वस्तुत: भगवान श्री राम का चरित्र आदर्श स्वरूप है सम्पूर्ण रामायण नहीं और श्रीमद्भगवद्गीता आदर्श स्वरूप हैं भगवान श्रीकृष्ण नहीं.....

सहस षोडश सताष्टिका बहु पाणिनि के जाए l
हैं एतनिक फिर केहि कर ऐतिक जन कलिसाए ll१०|| 
16108 पत्नियों वाले भगवान के एवं बहुपत्नीक वाले कुल के हम वंशजों की इतनी संख्या पर आपत्ति है तब फिर पत्नीविहीन संस्कृति केअनुगामी ईसाई धर्मावलंबियों की संख्या विश्व में इतनी अधिक क्यों है

अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखाई देता है?... हलवे के जैसा... और हम सनातनी?... उसके घृत जैसा... ये अंतरिक्ष गए उन चतुर चौकड़ियों को दिखाई...

नैनन्ह को जान दरस पलक पाँख सम लेख l
मनस गति कर चढ़े नभस रहे जगत को देख ll११|| 
नेत्रों को यान के सदृश्य व पलकों को पंखों के समान मानकर मन की गति से अंतरिक्ष चढ़के जगत का अवलोकन करते हैं.....

जन जन भोजन रूप है जगत भूमि एक थाल l 
घृत स्वरूप हम भारती अन्यानोदन दाल ll१२|| 
अन्यान्य= और दूसरे, ओदन=चावल,दालिका के जैसे
अंतरिक्ष से विश्व भूमि यह पृथ्वी एक थाल केऔर लोग भोजन के सदृश्य दिखाई दे रहे हैं और दूसरे चावल और दालिका से और हम भारतीय घृत, शाक, अचार, इत्यादि के जैसे दिखाई देते हैं 

पारसी बौद्ध और सिक्ख शाक सब्जी के जैसे, जैनी अचार के जैसे दिखाई दे रहा है जो दुग्ध उत्पाद व कंद मूल से रहित केवल बीज फल के भरोसे क्षार व खटास लिए थाल के किसी कोने में पड़ा है

विश्व में धर्म निरपेक्षों की भी कुछ संख्या है जो थाल में रोटी जैसे है खा लो तो ठीक नहीं खाओ तो ठीक.....

विश्व की भोज्य थाल में आधे पर तो चावल सदृश्य ईसाई धर्म के अनुयायि प्रसरे हुवे हैं और ये दाल सदृश्य इस्लाम..... दो दो कटोरियों में भर कर छलक रहा है न घृत को रहने देते न शाक सब्जियों को.....

दूषन गुन दोनउ बसे सबद सिंधु के कोष ।
कोई पावै मनि रतन को निकसावै दोष ॥१३|| 
:--शब्द सिन्धु के कोष में गुण-दोष दोनों का वास होता है किन्तु कोई उसमें माणि मणि रत्न प्राप्त कर लाता है तो कोई दोष निष्काषित करता है ।

गहन गहनहिअबगाहिआ सबद सिंधु के कोस | 
कोई पावै मोतिआ को निकसावै दोस ||१४|| 
:--शब्द सिन्धु के कोष में गुण - दोष दोनों का वास होता है किन्तु कोई उसमें मोती जैसे रत्न प्राप्त कर लाता है तो कोई दोष निष्काषित करता है ।
जुवपन धन रूप पद अति, होत जाहि के पास l
साजन जो बिबेक नही,दए दुख बिनहि प्रयास ll१५|| 
---- भगवान श्री कृष्ण 
:--युवापन,धन,रूप एवं उच्च पद ये चार अतिसय हों तो हे सज्जनों ! इन द्रव्यों का विवेक विहीन व्यवहार बिना प्रयास किए दुख की प्राप्ति का कारण बनता है....

भोजन न कोइ पाए सकै, सुचित होत संडास | 
साजन सुचिता बसे तहँ, जहँ पबिता का बास ||१६|| 
:-- संडास कितना भी स्वच्छ हो वहां कोई भोजन नहीं कर सकता सज्जनों ! स्वच्छता वहां वसवासित होती है जहाँ पवित्रता का निवास होता है 

पबिताई बसै तहँ जहँ गौकुल करै निबास | 
सुचिता निबासै तहँ जहँ पबिताई का बास ||१७|| 
:--गौशाला कितनी भी अस्वच्छ क्यों न हो वहां भोजन किया जा सकता है जहाँ गौवंश निवास करता है वहां पवित्रता का वास होता है सज्जनों! जहाँ पवित्रता का निवास होता है स्वच्छता भी वहीँ वसवासित होती है 

कोई भोजनालय कितना भी स्वच्छ क्यों न हो यदि उसकी पवित्रता पर किसी को शंका है तो वह अस्वच्छ है ऐसे भोजनालय संचालित करनेवाले दंड के पात्र होते हैं

बिता परब न भाए जेत भावै परब नवान | 
चंद्रोदय सोह न बिहान जेतक दिनावसान ||१८|| ----महर्षि वाल्मीकि 
:--जिस प्रकार चन्द्रमाका उदय जितना सांयकाल में सुशोभित होता है उतना प्रातकाल में नहीं, उसी प्रकार बिता उत्सव उतना रुचिकर प्रतीत नहीं होता जितना की कोई भावी उत्सव 

पडोसी काण्ड भी अब एक बिता उत्सव हो चला है 


होत दिबसावसान नित नव नवल बिहान रे | 
बैसे बियत बिमान देस प्रधान फिरै नहीं ||१९|| 
: --  नित्य नई नवल भोर हो कर  दिवसों का अवसान हो रहा है अर्थात समय व्यतित होता जा रहा है किन्तु देश के प्रधान मंत्री विमान में ही बैठे है वह लौट नहीं रहे | 

दरस होतअवसान दिग दरसे कब दिन फिरै | 
बैसे फिरत बिमान देस प्रधान फिरै नहीं ||२०|| 
:-- दिनों का अवसान होते देख कर जन जन की दृष्टियां प्रतीक्षा में हैं कि अब यह दिन कब फिरेंगे, किन्तु विमान में बैठे फिर रहे देश के प्रधानमन्त्री लौटते ही नहीं 



Saturday, 28 June 2025

----- ॥ टिप्पणी 23॥ -----,

स्कायलैब:

स्काईलैब से बाल्यपन का एक क्षण स्मरण हो आता है उस समय घरों में आँगन सहित कहींकहीं बड़ीबड़ी छतें हुवा करती थी हमारी भीथी जहाँ हम सभी बच्चे पतंगे उड़ाया करते थे छत खुलीखुली होने के कारण पास पड़ोस के बच्चे भी एकत्र होकर धमाचौकड़ी करते मेरी कोई पांच छह:वर्ष कीअवस्था थी |एकदिन आकाशवाणी से समाचार प्रसारित हुवा की अमेरिका की एकअंतरिक्ष प्रयोगशाला विफल हो गई है जो पृथ्वी पर कहीं भी गिर सकती है एतएव भारत के सभी नागरिकों से अनुरोध है किवह अपने घर से बाहर न निकले | यह सन्देश नगरों महानगरों सहित गांव गाँव में आग के जैसे फैल गया | इस समाचार के पश्चात सड़के सुन सपाट हो गई थीं अब पतंगे उड़ानी थी तो उड़ानी थी उस दिन भी हम बच्चे पहुँच गए छत में पतंगे और मांझा लेकर, फिर क्या था बड़ों से ऐसी फटकार पड़ी और कुटाई हुई जो अब तक स्मरण है फिर एक सन्देश आया की  स्कायलैब को समुद्र में सुरक्षित गिरा दिया गया है स्कायलैब अमेरिका का प्रथम अंतरिक्ष स्टेशन था जो अंतत: विफल सिद्ध हो गया  

Friday, 27 June 2025

----- ॥ टिप्पणी 22॥ -----,

 >> हम भारतीयों को स्वाधीनता का झुनझुना पकड़ाया गया है जिसे हम प्रत्येक पंद्रह अगस्त में बजा कर फुले नहीं समाते, वस्तुत:भारत कभी स्वतंत्र हुवा ही नहीं इस पर अब भी इस्लाम का अघोषित राज है

>> मां खादी की चादर दे दे तो हम भी गांधी बन जाएं, किंतु रहने के लिए बिड़ला का भवन कहां से लाएं?
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>>आयकर अधिनियम के आधार पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर मंडल (सीबीडीटी) के एक वर्तमान दिशानिर्देश में किसी विवाहिता के पास 500 ग्राम तक स्वर्ण आभूषण की सीमा निर्धारित की गई जिसके स्त्रोत का प्रमाण आयकर विभाग को नहीं देना होता इससे अधिक स्वर्णाभूषण होने पर इसके स्त्रोत का प्रमाण देना होता है | 

>>आपातकाल में किसी परिवार के पास ऐसे स्वर्णाभूषण की मात्रा केवल 50ग्राम निर्धारित की गई और घर घर में छापे मार मार कर गृहिणियों को पुरखों द्वारा प्राप्त हुवे स्वर्णाभूषणों को लूट लिया गया था

>> लोग तब कहने लगे वो सोमनाथ मंदिर तो एक था जिसको मुसलमानों ने लुटा था अब तो सोमनाथ मंदिर से ये घर घर हैं जिन्हें फिर से लूटा जा रहा है सत्ताधारियों को कांग्रेस से पूछना चाहिए उस समय आयकर के छापे से जो धन एकत्र हुआ वह गया कहां

>> हमारी पीढ़ियों ने भारत विभाजन और आपातकाल दोनों को भुगता है.....
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>> ये एक नारा प्रचलित हुआ था: जहां बलिदान हुवे मुखर्जी वो काश्मीर हमारा है जो काश्मीर हमारा है वो सारे का सारा है.....
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>> नक्सलवाद की व्युत्पत्ति आतंकवाद के उद्देश्यों से सर्वथा भिन्न कतिपय क्षेत्र जीविकों हेतु उनके क्षेत्र व वन्य भूमि की आधिग्रहीता के विरुद्ध हुई थी,यह वाद एक सामाजिक सिद्धांत पर आधारित प्रकृति की रक्षा के विध्वंशकारी मार्ग का अनुगामी होकर सत्ता की उन दमनकारी नीतियों के विरुद्ध था जो कतिपय धनाढ्य वऔद्योगिकवर्ग की उच्चाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु थी | विध्वंशक विचारधाराओं के प्रभाव से कालांतर में यह वाद हिंसा जनित विकारों से युक्त होकर अपने उद्देश्यों से विभ्रमित हो गया भ्रम की इस स्थिति ने उसे भयोत्पादक तत्वों के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया.....
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शांति वस्तुत: युद्ध का पूरोवर्ती उपाय है युद्ध पश्चात पराजेता हेतु केवल एक विकल्प जो शेष रहता है वह है......आत्मसमर्पण.....
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मृत्यु निकट दर्शते ही इस्लाम को मानवतावाद स्मरण होने लगता है.....
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बारातियों के जैसे आवभगत हो रही है काश्मीर के मुसलमानों की..... जागो भारत की संतानों....
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देशों को लोगों को इस्लामिक बनाकर उसे मरने के छोड़ दो यह इस्लाम की प्रवृत्ति रही है.....
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>> क्रुद्धहृष्टभीतार्तुलुब्धबालस्थविरमूढमत्तोन्मत्तवाक्यान्यनृतान्यपातकानि | ( मात्रा एक शब्द में कितना कुछ व्याख्यान करती है संस्कृत भाषा ) ----- ॥ गौतमधर्मसूत्र ५ /२ ॥ -----
भावार्थ :दान तभी करना यथेष्ट हैजब उसका अधिकार प्राप्त हो :भावावेश में, भयभीत होकर,रुग्णावस्था में, अल्पावस्था में, मदोन्मत्त अवस्था में, विक्षिप्त,अर्ध विक्षिप्त अथवा अमूढ़ अवस्था में दान देनानिषेध है|

>> दान देने का अधिकारी कौन हो जो अपना पालन पोषण करने में आपही सक्षम हो । एवं जो मात-पिता पालक अभिभावक अथवा अन्य द्वारा देने हेतु अनुमति दी गई हो ॥

>> भारतीय संविधान के वयस्कता अधिनियम के अनुसार जो अवयस्क है किन्तु अपना पालन-पोषण करने में सक्षम है वह अपने पालक/अभिभावक की अनुमति से ही दान करना चाहिए ।

>> अब प्रश्न है कि जो वयस्क हैं किन्तु अपना पालन-पोषण करने में असमर्थ हैं क्या उन्हें दान करना चाहिए ? (जब दान शब्द ही सम्मिलित हो उसका तात्पर्य है कोई भी दान )

>> क्या इन्हें संज्ञान है कि धन कैसे अर्जित किया जाता है ?क्या उन्हें आटे दाल का भाव ज्ञात है ? यक्ष प्रश्न है कि क्या मतदान करने की न्यूनतम आयु 18 वर्ष उचित है?
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शाकाहार बनो शाकाहार से घर मे मित व्ययता का वास होगा
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जहां संतोष होता है वहां जगत सारे धनकोष होते हैं
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जय जमुना नामक योजना से जमुना की स्वच्छता पर भी सत्ताधारियों को ध्यान देना चाहिए
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हम सौ नेता ऊपर भेजते हैं उसमें दस ही पहुंचते हैं उन दस में कोई एक ही राष्ट्र का चिंतन करता दर्शित होता है
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>> आरक्षण न होता तो भारत के शैक्षणिक संस्थान सर्वोच्च स्थानों को प्राप्त होते . . ...
>>भारतीय शैक्षणिक संस्थानों को वैश्विक श्रेष्ठता प्राप्त करने में सबसे बड़ा बाधक आरक्षण है.....
>> हमारे नेता विदेश में जाकर तो बड़ी बड़ी बाते करते है फिर भारत लौटते ही वे जाँत पाँत वाले रुढ़ीवादी आरक्षण का झंडा उठाए फिरते हैंI
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हमारे देश में बहुंत से बच्चे व युवा दिव्यांका सहित मानसिक रोगी भी है जिनका आधार तक नहीं बना है ये मानसिक रोगी आधार प्राप्त करने की जटिल प्रक्रिया का अनुशरण नहीं कर पाते तब इनकी गणना कैसे होगी?
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सभी धर्मों का आदर करना धर्मनिरपेक्ष या सेक्युलर हैं सभी धर्मों को अधिकार देना धर्मनिरपेक्ष नहीं है 
धर्मनिरपेक्ष शब्द का दुरुपयोग कर सत्ताधारी सत्ता साधने हेतु भारत में प्रादुर्भूत धर्म के अवलम्बियों की उपेक्षा कर अन्यान्य धर्मावलम्बियों को अधिकार देते चले गए जिसका परिणाम यह हुवा की भारत देश न बनकर धर्मशाला बन गया
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अहिंसा का पाखंड कर स्वतंत्रता के नाम पर सत्ता का संग्राम किया था इस पाखंडी गांधी ने | ये देश जो कभी अहिंसा वाद के लिए विश्व का सिरमौर हुवा करता था यहाँ हिंसा का ऐसा तांडव देखकर देखकर तो हिंसावादी देश भी लज्जित हो रहे होंगे | जिस देश को विश्व में गौशाला सुन्दर वन , तपोभूमि कहा जाता था, आज उसे इन सत्ता के लालची पिशाचों ने कसाई घर बना के रख दिया | क्या भारत को रक्त रक्त करने के लिए ये तथाकथित महात्मा भूखे मरे थे ? क्या इन निरीह प्राणियों पर क्रूरता करने के लिए गोलमेज सम्मलेन में नंगे गए थे ?कोई पूछने वाला है इन सत्ताधारियों से अरे ! जो निर्ममता अंगरेजों को राज ने दिखाई यदि वही निर्ममता दिखानी थी तो फिर स्वतंत्रता के नाम पर इतने लोगों की बली क्यूँ ली | और ये आजके शासक ! हिन्दू धर्म को नष्ट-भ्रष्ट कर संसार में उसकी अपकीर्ति करने वाले भगवाधारी हिंसक कसाई हैं ये | सत्ता हथियानी थी तो भगवा धारण कर लिया |
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>> हम मोह माया में पड़े कलयुग के अति भौतिकवादी जीव हैं, एतएव हमारा ज्ञान यत्किंचित हैं, पुराने ऋषि मुनि संत जन योगी तपस्वी थे उनके अधिकतम वचन/विचार सत्य व् कल्याणपरक ही होते हैं.....
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 संतों ने कहा है कि : - नहीं मृत्यु के पश्चात ही सही इस चर्मधारी जीव ने प्रभु की वंदना की जिससे यह उत्तम गति को प्राप्त होगा | शहनाई वादन में चर्म को मुख से स्पर्श किया जाता है इस हेतु यह भगवद्भजन में निषेध है.....
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सितार सैहतार से व्युत्पन्न हुवा शब्दयुग्म है, सैह एक फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ है 'तीन' सितार का अर्थ है तीन तार | वीणा को रूपांतरित कर इस वाद्य यन्त्र का आविष्कार अमीर खुशरो ने किया था वीणा में चार तार होते हैं | मृदंग को काटकर तबले का आविष्कार भी अमीर खुशरो ने ही किया था.....
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>>की रक्षा - पीढियों की चिन्ता .....यदि आज आपने हसदेवकी रक्षा नहीं की तो भावी पीढि अपने पितृदेवों  पूजेंगी नही अपितु पानी पी पी कर कोसेंगी और हम ही उनके पितृदेव होंगें 
>>हसदेव जैसे अरण्यों के विनाश पर मत एठिए ये ऐठ हमारी और हमारी आने वाली पीढीयो को पर्यावरण असंतुलन केगर्त मे ले जाएगी
>> शासन अपनी प्राथमिकता निश्चित करे की आवश्यक क्या है जल जंगल जीव जन जीवन या कोयला
बन बिटप हसदेव केर, कटत होत रे ढेर । 
जतनहु हो लरिका कतहु, होइ जाइ ना देर ।।

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विकास की दौड का अन्तिम परिणाम विनाश.......
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यह कांग्रेस का एक ऐतिहासिक षडयंत्र था जिसमें उसने आर्यों के भारत आने का इतिहास लिखा एवं उसे पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया गया जिससे हिंदुओं में फूट डले और वह राज कर सके
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विद्यमान भारत एक पथभ्रष्ट होते युवण्यों का राष्ट्र है.....
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यह कांग्रेस का एक ऐतिहासिक षडयंत्र था जिसमें उसने आर्यों के भारत आने का इतिहास लिखा एवं उसे पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया गया जिससे हिंदुओं में फूट डले और वह राज कर सके.....
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