NEET-NEET
Thursday, 28 April 2022
----- ॥ हर्फ़े-शोशा 15॥ -----,
Saturday, 22 May 2021
----- || दोहा -विंशी १० || ----,
खाटे मीठ स्वादु कौ तरसै सब परिबार |
बिरते तापस रितु बिनहि ढारे आम अचार || १ ||
एक बार परगट पुनि तुम हो जाओ भगवान |
नित भाँवरती धरति के साँसत में हैं प्रान || २||
बड़ी बड़ी मंडि ते भले छोटे छोटे हाट |
यामें ठाटे एकै को यामें सबके ठाट || ३ ||
बड़ी चाकरी ते भली घर का छोटो काम |
स्वामि पदवी देइ के भरपूरे धनधाम || ४||
लघुता मह प्रभुता बसी ए करत महबंद सिद्ध |
लघु कुटीर उद्यम सोंह होता देस समृद्ध || ५ ||
बृहद संग जो होउते लघु कुटीर उद्योग |
महबंद माहि दरसते काम लगे सब लोग || ६ ||
देस तोरा महबन्द कीन्हेसि ए सिद्ध |
लघु कुटीर उद्यम संग रहिता तू समृद्ध || ७ ||
जनता देवनि हार है नेता मंत्री गिद्ध |
अगजग केर महबंद ए कहबत करिता सिद्ध || ८
लाग्यो ऐसो देस म कोरोना को भूँड |
धंदो गयो चूल्हा म बिकण म आगा ढूँड || ९ ||
साजन आपद काल मह करें सबहि कर दान |
दारिद दानए सेवा श्रम धन दानए धनवान || १० ||
तमस काण्ड अतिव घना जीवन है उद्दीप |
सार गहे बिस्वास का जलए आस का दीप || ११ ||
दिन सबहि दुर्दिन भए रे काल राति सब रात |
घट घट भीतर प्रान जल पल पल रीसत जात || १२ ||
ठाढ़ भया अतिपात कौ जबहि प्रान प्रत्यर्थ ||
प्रान सोही होतब तब नहीं प्यारा अर्थ || १3 ||
----- || दोहा -विंशी९ || ----,
मानस तोरी करनि ते नाघत निज मरजाद |
चला बिनासत तव जगत सिंधु करत घननाद || १ ||
भावार्थ :-- हे मानव ! तेरे कृत्यों के कारण अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर समुद्र आज घोर गर्जना करता तेरे संसार को नष्ट-विनष्ट कर गया |
सधारन जन मरि मरि गए, भया रोग बिनु हेतु |
धरे रहे सबु राजपथधरे रहे सब सेतु || २ ||
जनता तोरे राज मह दुखड़ा सुनै न कोइ |
चिंटी के पग घुँघरु बजे रघुबर सुनते सोइ || ३ ||
देह करी कठपूतरी काल नचावै नाच |
नाचत नाचत थकि गिरे राम नाम भा साँच || ४ ||
धर्म कर्म बिसराइ के करिता चलिआ पाप |
किन्ही आपनी दुरगति अपुने हाथौं आप || ५ ||
हति हति तरपाइ के रे सरप बिछी सब खाए |
पाप परायन मानसा तिल तिल मरता जाए || ६ ||
दूषित देसाचार सों उपजे बिदेसि रोग |
तासु मरि मरि जात अहैं हम भारत के लोग || ७ ||
रे पापि मानस तोरा भरिआ अघ का घट्ट |
काल पास लए बिचरिआ प्रान जाए सो फट्ट || ८ ||
जिअ लेवे जिनावर कर खाए खीँच के खाल |
त्राहि त्राहि पुकारि करे दरसत अपुना काल || ९ ||
धरी रही धन सम्पदा धरा रहा धन धाम |
काल पास करि लै गया न आयउ कोउ काम || १० ||
काल चाक द्रुत गति गहा बीच कील करि मीच |
ताहि रौंदत बढ़ी रहा आयउ जो को नीच || ११ ||
त्राहि त्राहि पुकारि कहैं हम तौ अपुना दुख्ख |
सो जिउ निज दुःख कस कहैं जिनके नाहीं मुख्ख || १२ ||
बुद्धिबल सील मानसा बिसरा प्रकृति बाद |
ता संगत संसार मह उपजे रोग बिषाद || १३ ||
आपद काल सरूप में रोग नचावै नाच |
कुंडली मार साधन परि बैसे अर्थ पिसाच || १४ ||
तमस कांड ए मरनि का जीवन है उद्दीप |
सार लेय बिस्वास का जले आस कर दीप || १५ ||
दिसा दिसा मह देस की पसरा रोग बिषाद |
आपदा कौ औसर करि फलिता पूंजी वाद || १६ ||
देस आपदा काल मह होत जात है दीन |
पूँजी पति के सौंह भए सासक सक्ति बिहीन || १७ ||
अगनि गोल भाल धनुसर परसा परिघ परमानु |
सो आजुध बिरथा भयउ सम्मुख एकै बिषानु || १८ ||
माँगे हमरे देस जो भगवन का परमान |
बिनती तोसे रे जगत तिनको पराए जान || १९ ||
दुनिया जिउ जंतु ऊपर करिके अत्याचार |
राकस होते मानस हुँत ढुंडए रोगोपचार || २० ||
Thursday, 20 May 2021
----- || दोहा -विंशी८ ||----,
-----|| दोहा-विंशी 7 || -----
ढली शाम वो सुरमई,लगा बदन पे आग |
फिर रौशनी बखेरते लो जल उठे चराग़ || १ ||
चली बादे गुलबहार मुश्के बारो माँद |
सहन सहन मुस्करा के निकल रहा वो चाँद || २||
मर्ज़ की शक़्ल लिये फिर क़ातिल है मुस्तैद |
दरो बाम कफ़स किए फिर जिंदगी हुई क़ैद || ३ ||
कफ़स =पिंजड़ा
ये महले मुअज्ज़म औ ये आलिशा मकान |
नादाँ को मालुम नहीं दो दिन की है जान || ४ ||
सुन ऐ नादान तुझको है गर जान अज़ीज |
चेहरे को हिज़ाब दे रह अपनी दहलीज़ || ५ ||
इधर मर्ज़े नामुराद और उधर तूफ़ान |
ऐ नादा इन्सा तिरी मुश्किल में है जान || ६ ||
साहिलों पे बेख्याल दरिया करता मौज़ |
पीछे हमला बोलती तूफानों की फ़ौज || ७ ||
बादे वारफ्तार वो तूफ़ां बे मक़सूद |
सरो सब्ज़ दरख्तो दर हुवे नेस्तनाबूद || ८ ||
इक दिल इक जान इक सर और सौदे हज़ार |
न दुआ पे यकीन अब न दवा का एतबार || ९ ||
इक तो ये फाँका कशी उसपे ये बीमारि |
चार सूँ आह कू ब कू मुश्किल औ दुश्वारि || १० ||
देखि हमने जम्हुरियत तेरी रय्यत दारि |
शहर शहर हर रह गुज़र दहशत औ बीमारि || ११ ||
कहीँ मरीज़े ग़म कहीं, दरिया औ तूफ़ान |
कहीं गिरते जहाज़ पर, आफ़त में है जान || १२ ||
मरीज़े ग़म दरम्याँ आफ़त जदा जहान |
आह पोशे निग़ाह में और लबों पे जान || १३ ||
सब बाज़ार बंद हैं खुला काला बज़ार |
जमाख़ोर का ख़ूब याँ चलता क़ारोबार || १४ ||
साहिल साहिल किश्तियाँ किश्ति किश्ति बादबाँ |
दरिआ दरिआ नाख़ुदा लहरो लहर तूफाँ || १५ ||
है ये मुश्किल वक़्त पर नहीं हम फिक्र मंद |
दिल है होशो हिम्मती औ हौसले बुलंद || १६ ||
-----|| दोहा-विंशी ६ || -----
जोड़ जोड़ करि होड़ मह जोड़ा लाख करोड़ |
अंतकाल जब आ भया गया सबहि कछु छोड़ || १ ||
रोग संचारत चहुँ दिसि रोग सायिका नाहि |
करत गुहारि रोगारत जीवन साँसत माहि || २ ||
जिअ हनत ब्यापत महमारी | जन जन केरी करत संहारी ||
देस नगर कि बस्ती कि गांवाँ | गली गली पैसारत पावाँ ||
महमारी मह रूप धर करत सतत सँहार |
हाथ धो रहे प्रान ते जन जन बिनु उपचार || ३ ||
रोग केरे कारन कहुँ पुरबल करौ अवसान |
बहुरी कारज कीजिये तापुनि करौ निदान || ४ ||
रोगी औषध नाउ चढ़ सिंधु भई महमारि |
काल रूपी तरंग उठै जबतब बारम्बारि || ५ ||
असाध ब्याधि ब्यापति नाही कोउ निदान ||
बिनु औषध जन जन केर साँसत मह हैं प्रान || ६ ||
करोना बिषानु भरी के चलि चुनाउ करि नाउ |
काल नदी माझि अहई बहुतहि बेगि बहाउ || ७ ||
काल न दरसे रैन दिन काल न दरसे भोर |
काल न दरसे ठाउ को काल न दरसे ठोर || ८ ||
सम्बलपुरि गोठान मह मरत भूखि गौमात |
निरदय निगम ताहि सुखा तृनहहु हुँत तरसात || ९ ||
Thursday, 26 March 2020
-----|| GYAAN-GANGAA || -----,
===>'' उदर की अग्नि भोजन से शांत होती है धन से नहीं.....''