Monday, 14 July 2025

----- ॥ दोहा-पद 37॥ -----,

 अधुनै भारत बंसि का जातिअ धर्म समाज | 

अर्थाधारित होइ रहा तीनि बरग में भ्राज ||  

: -- विद्यमान भारत वंशियों का जातिक व धार्मिक समाज आर्थिक आधार पर त्रयवर्ग  स्वरूप में सुशोभित हो रहा है | 

मध्यम ऊँच अबराबर तीन बरन तिन जान | 

सुखद दंपति जीवन ते मध्यम अति सुखवान ||

: - उन्हें उत्तम मध्यम व् अन्य यह तीन वर्ण में संज्ञानना चाहिए इनमें मध्यम वर्ग सुखद दाम्पत्य जीवन सूत्र को धारण सर्वाधिक सुखी व् प्रसन्न है 


सुखद दम्पति सामाजिक जीवन का आधार | 

ऊँचे अबर दुख पाँवहि ता सुख को परिहार || 

:-- वस्तुत: सुखद दाम्पत्य का जीवन सूत्र किसी समाज का आधार स्वरूप है आर्थिक रूप से उत्तम व् अन्य वर्ग इस सुख का परित्याग कर दुःख को प्राप्त हो रहे हैं.....  

सुखद दम्पति जीवन को ऊँचे बिरथा मान | 

भोग उपभोग भूरिसह कह भव भूति प्रधान || 

:-- सुखद दाम्पत्य जीवन को व्यर्थ मानकर आर्थिक रूप से संपन्न उच्च वर्ग द्वारा कहा जाता कि संसार के भोगों के  अधिकाधिक उपभोग में जीवन की सार्थकता है 

जीवन में धन सम्पदा सुख कर मान अधान |

तासहुँ इर्षा करत सो  बरन आन सुखवान || 

: -- जीवन में धनसम्पति को सुख का आधार मानकर यह जब तब  उन अन्यान्य वर्गों के सुखमय जीवन से इर्षा करता है 

दुपहिया भी मध्यम वर्ग के जीवन का आनंद स्वरूप हैकिन्तु यह वर्ग इस सुख से अनभिज्ञ है मध्यम वर्गीय जीवन के इस आनंद से प्राय: लब्धप्रतिष्ठित वर्ग कुढ़ता व् इर्षा करता दर्शित होता है 

मध्यम वर्ग के इस आनंददायी दृश्य को दर्शाती यह रचना है जो "जादू भरी तेरी आँखें"भजन की लय पर राग दरबार पर आधारित है.....


फुर फुर करतीँ रे चली दुपहिआ...
(सखि)लागहि पिय को भली दुपहिआ.....

कास पकड़ जब उनके गाछे l लाए हिया हम बैंठे पाछे ll 
गाल फुलाए मुख लेय मोड़े l सौतनिया सी जली दुपहिआ ll

जोइ पिया भैं कृष्ण कन्हया ।हम राधे बनि गहि गल बहियाँ ॥
करत बतइँया चित चौँरएँ तो । गोपियन सी मचली दुपहिआ ॥

रूसत ठाढ़े जब मन आवै । मनवावै बन बन बिगरावै l 
छुई मुई हम सोही ऐसी l नही दुबरी पतली दुपहिआ ॥

एक दिन पिय सों ए पूछ बुझाए। किन्ह कारन तुम ओहि पतियाए ll
हम को पता ए ऐसी तो नाए । है मिसरिन की डली दुपहिया ॥

भइँ गौरँगनी बलि बलि हारी । सो कलि हारी मन करि कारी।
न जाने सखि कवन भवनन मैँ । तिन्ह संग रँग रँगरली दुपहिआ ॥

फिर एक दिन

निरखो ए नव नवली दुपहिया... 
हमने ली चमकिली दुपहिआ.....

है ये सौतनिआ की जाई।ओहि केहि सों गई पराई ॥
हँसि कह पिय हमरे ललन की ।और लली कीअली दुपहिआ॥





तुमको पल महि छिन लए दौड़े l तिनका तोड़े छन नहि छोड़े ll 
कहो तो पिया है का काची l कचनारन की कली दुपहिआ ll








 

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