Saturday, 20 April 2019

----- ॥ दोहा-द्वादश 19 ॥ -----,

बिटप बोवैं भारती करतब निसदिन काम | 
बहिरे बैस बिश्राम ते खावै वाके आम || १  || 
भावार्थ : - नित्यप्रतिदिन परिश्रम कर वृक्ष भारतीय लगाते आए  देश का राजस्व एकत्र करते रहे और दासकर्ता बहिर्देशी विश्राम पूर्वक उसके फल खाते आए उस राजस्व का लाभ प्राप्त करते आए हैं |    

हते बिनहि सब जिउ गहे जीवन के अधिकार | 
भरीपूरी भूइँ रहे  ए  भारतिअ संस्कार || २ || 
भावार्थ : - किसी जीव की हिंसा न हो सभी जीवों को प्राणों का अधिकार प्राप्त हो धरती धनधान्य से संपन्न रहे यह भारतीय संस्कार है |  |

बिटप बुआवै और सो बैठे खावै आम | 
फुरबारी केहि और की बास गहे इस्लाम || ३ || 
भावार्थ : -   इस्लाम का यह मत है कि पेड़ कोई और लगाए और वह सिंहासन पर बैठकर आम खाए |    राष्ट्र रूपी पुष्पवाटिका किसी और की हो और सुगंध वह ले राज वह करे | 

देस तनु  संसद मति तब होतब चेतसबान | 
बैसे तहँ सुचि मंत सों सुजन सुबुध सुजान || ४ || 
भावार्थ : - राष्ट्र रूपी शरीर की राजसंसद रूपी बुद्धि तब ज्ञानी व् विवेकशील होती है जब उसमें निर्दोष, निरपराधि, सद्कार्य करने वाले सज्जन, सद्चरिता, बुद्धिवंत व् विद्वान सदस्य के रूप में विराजित हों | 


चेतसबान बुद्धिहि सों सदाचरन उपजाए | 
जौ कर सद करमिन करे सद्पथ चरन चलाए || ५ || 
भावार्थ : - राजसंसद रूपी बुद्धि में विराजित निरपराध, सद्चरित्र, सुबुद्ध, सद्कर्मी विद्वानों की विवेकशीलता राष्ट्र रूपी देह में सदाचार को प्रादुर्भूत करती है यह सदाचार उसके  हस्त को कल्याणपरक कार्यों में प्रवृत्त कर चरणों को उन्नति व् उत्थान के मार्ग की ओर ले जाता है | 

देस तनु कइँ संसद मति होतब तब हत चेत | 
कुबुध कुचालि कुकर्मि तहँ बैसे जब एक सेत || ६ ||  
भावार्थ : - राष्ट्र रूपी शरीर  की बुद्धि  संसद तब विवेकहीन हो  जब उसमें कुबुद्धि दुराचारी  अहितकर  कर्म करने वाले एक साथ आ विराजित होते हैं | 

हत चेतस बुद्धिहि संग अनाचार  उपजाए | 
जौ कर दुष्कर्मिन करे चरन कुमारग दाए  || ७ || 
भावार्थ : -   ये कुबुद्धि, दुष्टात्मन , जगत निन्दित कार्य वाले,  भ्रष्टाचार,व्यभिचार दुराचार जैसी अनेक बुराइयों को जन्म देते हैं ये बुराइयां   राष्ट्र रूपी देह के हस्त को दुष्कर्मों में प्रवृत करती हैं और चरणों को उसकी अवनति उसका पतन करने वाले कुमार्ग की ओर ले जाती हैं | 

देस तनु संसद मति सम बैसे तहाँ पराए |
सो तो दासा होइ के खन खन होत नसाए || ८ ||
भावार्थ : - संसद रूपी बुद्धि में जब बहिर्देशी विराजित हो जाएं  तो वह राष्ट्र रूपी शरीर  उसका दास होते हुवे खंड खंड होकर विनष्ट हो जाता है | 

हिताहित का बुराभला अपुने कवन पराए | 
भारत चेतसहीन मति वाका भेद न पाए || ९ || 
भावार्थ : - क्या हित क्या अहित है बुरा क्या है भला क्या है कौन स्वदेशी है कौन बहिर्देशी है | हे भारत ! एक विवेकहीन बुद्धि में अंतर करने वाली इस दृष्टि का सर्वथा अभाव होता है | 

सीउँ बँधे भूखेत सों जासु देस निरमाए | 
अहंभाव कइँ राखना देसबाद कहलाए || १० || 
भावार्थ : -  एक निश्चित सीमाबद्ध प्रभुसत्तात्मक भूक्षेत्र एवं उसकी अस्मिता का संरक्षण  राष्ट्रवाद है जिससे किसी राष्ट्र का निर्माण हुवा हो | 

सीउँ बँधे भूखेत सों जासु देस निरमाए | 
अहंभाव छित छेदना अदेस बाद कहाए  || ११ || 
भावार्थ : - जिससे किसी राष्ट्र का निर्माण हुवा हो ऐसे  एक निश्चित सीमाबद्ध प्रभुसत्तात्मक भूक्षेत्र का विभेदन कर उसकी अस्मिता को निरंतर हानि पहुंचाना अराष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रविरोध है | 

देस हित कृत नेम नीति कुसल प्रबन्धन संग | 
रच्छा  ऐसी चाहिये रखै सकल राजंग || १२ || 
भावार्थ : - राष्ट्रभूमि एवं उसकी अस्मिता का संरक्षण ऐसा होना चाहिए जो राष्ट्र हेतु कल्याणकारी नियम व् नीतियों के सह एक कुशल जनसंचालन प्रबंधन से समस्त राज्याङ्गों (प्रभुत्व, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोष,बल व् सुहृदय ) की सुरक्षा करे | 


1 comment:

  1. a thought provoking post.

    with highest regards ,

    yours
    Kshetrapal Sharma, 22.04.19

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