कहीं और की पैदाइश कहीं और है बसेरा..,
किस बेशर्म जबाँ से कहते ये हिन्द को मेरा..,
मुल्कों को तक़सीम करना इनकी है फ़ितरत..,
जुल्मों जबह कर फिर करते है उसपे हुकूमत..,
इनसे सियह बख्त है मिरे माज़ी का हर सबेरा
किस बेशर्म जबाँ से कहते ये हिन्द को मेरा..,
मुल्कों को तक़सीम करना इनकी है फ़ितरत..,
जुल्मों जबह कर फिर करते है उसपे हुकूमत..,
इनसे सियह बख्त है मिरे माज़ी का हर सबेरा
किस बेशर्म जबाँ से कहते ये हिन्द को मेरा..,
महरूम हुवे क़लम से अपनी ही जबाँ से हम
बैठे है ये भी भूल के थे आए कहाँ से हम..,
जहाँ की ज़हीन क़ौम को जहालतोँ से यूं घेरा
महरूम हुवे क़लम से अपनी ही जबाँ से हम
बैठे है ये भी भूल के थे आए कहाँ से हम..,
जहाँ की ज़हीन क़ौम को जहालतोँ से यूं घेरा
किस बेशर्म जबाँ से कहते ये हिन्द को मेरा.....
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