मुल्के दुन्या ने इक नया तमाशा देखा
अतलसी लबास तन पे दस्त में कासा देखा..,
ग़रीबो-गुफ़्तार के दर माँगे ये सल्तनत
मजबूरी पे पड़ता जम्हूरियत का पासा देखा.. ?
शिकम सेर होकर वाँ खाए है इस कदर
जैसे की कभी बतीसा न बताशा देखा..,
लफ्ज़-दर-लफ्ज़ खुलते गए जब वादों के पुलिंदे
गुजरे वक़्त की नाकामियों का खुलासा देखा..,
दिखी उस तन के चेहरे पे फ़तह की जब उम्मीद
हँसती तब हर इक नज़र को रुआँसा देखा..,
लच्छेदार दार बातों में जब लचकी ज़रा कमर
मुफत में वजीरे आज़म का सनीमा देखा.....
अतलसी लबास तन पे दस्त में कासा देखा..,
ग़रीबो-गुफ़्तार के दर माँगे ये सल्तनत
मजबूरी पे पड़ता जम्हूरियत का पासा देखा.. ?
शिकम सेर होकर वाँ खाए है इस कदर
जैसे की कभी बतीसा न बताशा देखा..,
लफ्ज़-दर-लफ्ज़ खुलते गए जब वादों के पुलिंदे
गुजरे वक़्त की नाकामियों का खुलासा देखा..,
दिखी उस तन के चेहरे पे फ़तह की जब उम्मीद
हँसती तब हर इक नज़र को रुआँसा देखा..,
लच्छेदार दार बातों में जब लचकी ज़रा कमर
मुफत में वजीरे आज़म का सनीमा देखा.....
No comments:
Post a Comment