Wednesday 24 April 2019

----- ॥ दोहा-द्वादश २० ॥ -----

भेस भाषा देस जनित धर्माचार बिचार | 
देस भूमि सहुँ अहंता गहे अर्थ बिस्तार || १ || 
भावार्थ : - राष्ट्र विशेष में प्रचलित भूषा, भाषा, आचार-विचार,आहार-विहार, परम्पराएं लोक रीतियां सभ्यता संस्कृति, राष्ट्रभूमि मूलनिवासी सहित किसी राष्ट्र की अस्मिता व्यापक अर्थ ग्रहण किए हुवे है |

अधिबासि होत जबहि तहँ पराए करें निबास | 
हेतु अहंता आपुनी करत देस कइँ हास || २ | 
भावार्थ : -  जब कोई बहिर्देशी अथवा कोई बहिर्देशी समुदाय किसी राष्ट्र विशेष में स्थायी रूप से निवास करने लगता है तब वह अपनी अस्मिता हेतु उक्त राष्ट्र की अस्मिता को क्षीण करने में संलग्न रहता है | 

बुद्धि में जब कुकर्मि सन बैसे कुबुध कुजान | 
रोपहि बिचारु सोइ जौ करिहि आप कल्यान || ३ || 
भावार्थ ; - बुद्धि देश की हो अथवा देश की जनमानस की जब उसमें कुबुद्धि, जगत निन्दित कार्य वाले, दुष्टात्मन विराजित हो जाएं तब फिर वह देश-समाज में राष्ट्र व् विश्व कल्याण के अन्यथा उन विचारों का अधिरोपण करते हैं जो स्वयं का कल्याण करे | 


कुबिचार सन देस चरन पतन पंथ पेखाए | 
ता सहुँ सहित समाज सो नितप्रति बिनसत जाए || ४ || 
भावार्थ : - स्वहित हेतु की विचार धारा राष्ट्र के चरण को पतोन्मुखी मार्ग का निर्देशन करते हैं इस निर्देश से राष्ट्र  समाज सहित प्रतिक्षण विनष्ट होता चला जाता है | 

देस देह संसद बुद्धि हृदय ग्रन्थ बिधान | 
सो निर्मोहि होए जबहि बैसे तहाँ बिरान || ५ || 
भावार्थ : -  राष्ट्र यदि देह है तो राजसंसद उसकी बुद्धि है विधान ग्रन्थ उसका ह्रदय है | जब ह्रदय में उसका दासकर्ता बहिर्देशी ही बस जाए तो वह उस राष्ट्र का विरोधी कहलाता है | 

बसत बसत परबासिआ होत देस अधिबासि | 
अधिकृति हेतु आपनपो लागसि कहन निबासि || ६ || 
भावार्थ : - किसी राष्ट्र में वासित प्रवासी पीडियों से निवास करते करते जब स्थायी हो जाता है, तब वह अपनी अधिकारिता हेतु स्वयं को वहां का निवासी कहने लगता है | 

हेतु अहंता आपुनी हेतु आपुना  राज | 
हेतु प्रभुत सो आपुने करत ताहि निज || ७ | 
भावार्थ : - यह अधिकारिता प्राप्त होते ही फिर वह अपनी अस्मिता ( देशधर्म,आहारविहार,आचारविचार वेशभूषा, भाषा ), अपना शासन,अपने राष्ट्र, प्रधानमन्त्री/अमात्य, दुर्ग/संसद अपना सैन्यबल अपना राजकोष अपने मित्रदेश अपनी सम्प्रभुता हेतु उक्त राष्ट्र अथवा राष्ट्र के किसी प्रादेशिक खंड को अपना दास बना लेता है | 

बहिर्देसि कि बहिर बरग बरते नेम बिश्राम | 
होत देस सहुँ आपुने  संविधान सो बाम || ८ || 
भावार्थ : - बहिर्देशी अथवा बाहिरि समुदाय हेतु नियमों में शैथिल्यता का व्यवहार करने वाला संविधान अपने ही राष्ट्र का विरोधी होता है |

रचै देस बिधान जोइ बहिरबरग कहुँ पोष | 
निज काय कृषकाय करत सकल रकत अवसोष || ९ || 
भावार्थ : - जो बहिर्वर्ग का पोषण करता हो ऐसे संविधान की रचना करने वाला राष्ट्र अपने मूलगत समुदाय के रक्त का अवशोषण कर उसे दुर्बल करता है | 

संबिधान पुनि सोइ जो रहे देस अनुकूल | 
बहिर देसिअ बहिरे करत राखे अपने मूल || १० || 
भावार्थ : - संविधान फिर वही संविधान है जो राष्ट्र के विरुद्ध न होकर उसके अनुकूल रहे, वह बहिर्देशीय अथवा बहिर्देशीय समुदाय का बहिष्करण करते हुवे अपनी मौलिकता की रक्षा करे | 

देसवाद बिरोधि होत लाँघै नित मरजाद | 
अधिबासित अनुहारिते सामराज कर बाद || ११  || 
भावार्थ : - अधिवासित प्रवासी राष्ट्रवाद के विरोधी होते हैं और साम्राज्य वाद का अनुशरण करते हुवे निवासित राष्ट्र की मर्यादाओं का नित्य उल्लंघन करने में प्रवृत रहते हैं | 

जहाँ नेम निबंध नहीं नहीं नीति नहि दंड | 
तहँ बिनसावत जात सो देस होत खन खंड || १२ || 
भावार्थ : - एक राष्ट्र को अन्य द्वारा अधिकार में लेकर उसे अपने हितों के लिए उपयोग करने वाला सिद्धांत ही साम्राज्य वाद है जहाँ ऐसे साम्राज्य वादियों प्रतिरोध हेतु नीति, नियमों, निबंधों सहित दंड का अभाव हो वहां वह राष्ट्र खंड-खंड होकर विनष्ट होता चला जाता है | 





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