Thursday, 4 April 2019

----- ॥ हर्फ़े-शोशा 10॥ -----

लबों को सी लीजिए जबाँ न खोलिए
ये गुलामे-हिन्द है याँ कुछ न बोलिए..,

गैरों की याँ हकूमत औ मुल्के-खुदाई
मालिकान की किस्मत में कासा गदाई..,

ख़ातिर में सज़ा जो इक पल ग़ुरबत को रो लिए ..,

वो शम्म केआज़ादी की थी जिसको आरजू
जिस सल्तनत को फूँकने जली थी कू-ब-कू..,

सजी है वही सल्तनत बुझी उस शम्म को लिए.....
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ज़र्रा ज़र्रा से कहे सुन मेरे हमराज |
इन हौसलों के पँख भी होते गर परवाज़ ||

जहाँ में रौशन होके हम चश्मेबद्दूर |
चाँद तारे बनके हम आसमान का नूर 

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