Thursday, 2 May 2019

----- ॥ हर्फ़े-शोशा 11॥ -----

दिल को सियाहे-बख़्त किए उठते हो सुबहे रोज..,
मासूम- ओ - मज़लूम को फिर करते हो जबहे रोज..,
पीरानेपीर- ओ- मुर्शिद  अरे कहते हो खुद को..,
जफासियारी के दस्तूर को देते हो जगहे रोज़.....
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एक जोर की आंधी चली..,
दो आंसुओं की बून्द गिरी..,
एक बून्द गंगा बनी..,
दूसरी भारत माँ बनी..... 

1 comment:

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