दिल को सियाहे-बख़्त किए उठते हो सुबहे रोज..,
मासूम- ओ - मज़लूम को फिर करते हो जबहे रोज..,
पीरानेपीर- ओ- मुर्शिद अरे कहते हो खुद को..,
जफासियारी के दस्तूर को देते हो जगहे रोज़.....
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एक जोर की आंधी चली..,
दो आंसुओं की बून्द गिरी..,
एक बून्द गंगा बनी..,
दूसरी भारत माँ बनी.....
मासूम- ओ - मज़लूम को फिर करते हो जबहे रोज..,
पीरानेपीर- ओ- मुर्शिद अरे कहते हो खुद को..,
जफासियारी के दस्तूर को देते हो जगहे रोज़.....
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एक जोर की आंधी चली..,
दो आंसुओं की बून्द गिरी..,
एक बून्द गंगा बनी..,
दूसरी भारत माँ बनी.....
आवश्यक सूचना :
ReplyDeleteसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html