दुन्या इक बाज़ारे-शौक़ है..,
ख़्वाहिशें-दराज़ हैं ख़रीदार उसकी.....
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कहतें हैं जो सब रह दीन-धर्म सब मेरे..,
उस क़ाफ़िले-क़दम का तमाशा भी देखिए.....
रह= राह,पंथ
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कहतें हैं जो सब रह दीन-धर्म सब मेरे..,
उस क़ाफ़िले-क़दम का तमाशा भी देखिए.....
रह= राह,पंथ
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उन दोनों की फ़ितरत एक जैसी थी..,
ये ऐसा था तो वो वैसी थी..,
पूछते हैं ग़ालिब अब दोनों कैसे हैं..,
बढ़िया ! ये ऐसा है न वो वैसी है.....
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ऐ हुकूमतों होश करो के फिर क़लम के दीवाने..,
अहले वतन की दीवानगी दिल में ले चले.....
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निकला फिर शान से सुबह आफ़ताब..,
सितारों की फ़ौज का सिपह आफ़ताब..,
हरिक स्याहपोश सतह को देके शह ..,
करता हुवा तिरगी पै फ़तह आफ़ताब.....
सिपह = सिपाही
स्याहपोश सफ़हे = धरती के ऊपर की बुराइयाँ
शह = ललकार
तारीक़ी = अंधकार
समंदर से उठते वो घटाओं के साए..,
निगाहों में क़तरे बन के समाएँ.....
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शोला-ओ-सुर्ख़रू आतश फ़शाँ है आफ़ताब..,
सरे-बरहन नातवाँ ज़ोर जवाँ है आफ़ताब..,
हाय कोई रगे-अब्र शमशीरे-बर्क़ लिए कहे..,
अच्छा ये बात है बताओ कहाँ है आफ़ताब.....
शोला-ओ-सुर्ख़रू आतश फ़शाँ = ज्वलामुखी के अंगारों सा लाल हुवा
सरे-बरहन = बिना छत्र का सिर
नातवाँ = निर्बल
ज़ोर जवाँ = वीर बलवान
रगे-अब्र = बादलों की धारी (बादलों की सेना )
शमशीरे-बर्क़ = बिजली की तलवार
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फिर झूमते मेरी छत की मुँडेर से निकला चाँद..,
लोग बोले आज तो बड़ी देर से निकला चाँद.....
उन दोनों की फ़ितरत एक जैसी थी..,
ये ऐसा था तो वो वैसी थी..,
पूछते हैं ग़ालिब अब दोनों कैसे हैं..,
बढ़िया ! ये ऐसा है न वो वैसी है.....
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ऐ हुकूमतों होश करो के फिर क़लम के दीवाने..,
अहले वतन की दीवानगी दिल में ले चले.....
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निकला फिर शान से सुबह आफ़ताब..,
सितारों की फ़ौज का सिपह आफ़ताब..,
हरिक स्याहपोश सतह को देके शह ..,
करता हुवा तिरगी पै फ़तह आफ़ताब.....
सिपह = सिपाही
स्याहपोश सफ़हे = धरती के ऊपर की बुराइयाँ
शह = ललकार
तारीक़ी = अंधकार
समंदर से उठते वो घटाओं के साए..,
निगाहों में क़तरे बन के समाएँ.....
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शोला-ओ-सुर्ख़रू आतश फ़शाँ है आफ़ताब..,
सरे-बरहन नातवाँ ज़ोर जवाँ है आफ़ताब..,
हाय कोई रगे-अब्र शमशीरे-बर्क़ लिए कहे..,
अच्छा ये बात है बताओ कहाँ है आफ़ताब.....
शोला-ओ-सुर्ख़रू आतश फ़शाँ = ज्वलामुखी के अंगारों सा लाल हुवा
सरे-बरहन = बिना छत्र का सिर
नातवाँ = निर्बल
ज़ोर जवाँ = वीर बलवान
रगे-अब्र = बादलों की धारी (बादलों की सेना )
शमशीरे-बर्क़ = बिजली की तलवार
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फिर झूमते मेरी छत की मुँडेर से निकला चाँद..,
लोग बोले आज तो बड़ी देर से निकला चाँद.....
most respectful regards
ReplyDeleteKshetrapal Sharma
वाह,बहुत ख़ूब
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