Thursday, 16 May 2019

----- ॥ हर्फ़े-शोशा 12 ॥ -----,

ऐ शबे-नीम ज़रा ख़्वाबों के कारिंदों से कहो..,
इन निग़ाहों को भी जऱ निग़ारी की जरुरत है.....
शबे-नीम = अर्धरात्रि
कारिंदों = सुनार
जऱ निग़ारी /= सोने का सुनहरा काम



बर्क़-ए-ताब-ओ-ऱगे-अब्र के क्या मानी है..,
ऐ निगाहे-नम तिरी ज़द क्यूँ पानी पानी है..... 
बर्क़-ए-ताब-ओ-ऱगे-अब्र = बिजली की चमक लिए बादलों की काली धारियां
मानी = अर्थ, आशय, मतलब
ज़द = पलक

क्या होता गर हम आसमानी परिंदे होते..,
बिला इल्म के मानिंद-ए-चरिन्दे होते..,
होते हम भी गर मसलहतों से ख़ाली..,
नीम सहाराओं के ज़ब्हे-कश दरिंदे होते.....
इल्म = ज्ञान, धर्म शास्त्र 
मस्लहत = विचार 
नीमसहरा = घनेजंगल 
जबहे-कश = हिंसक 

कभी रूहानी सी कभी सुहानी सी..,
जिंदगी इक मुश्ते-ख़ाके फ़ानी सी.., 
कभी नज़रों से बरसती बूंदों सी.., 
कभी बहते दरिया के पानी सी...... 
मुश्ते-ख़ाके फ़ानी =   क्षण में नष्ट होने वाली एक मुठ्ठी धूल 

शबे-गूँ-ओ-नीम स्याह फ़लक पे पुरनूर.., 
निकला है आज चाँद सुर्ख़े-रंग में डूब के..... 

मंजिल हो जाती है आसाँ जब कोई हम सफ़र हो 
ग़म ख़्वार अगर हो 
तारीके-शबे- स्याह में वो चराग़े-सहर हो 
क़दम-ब-क़दम उस रहे-ख़ुदा की हो रहबरी 
तरबियत से तर हो 
तफ़रक़ा-ए-अंदाज़ ताक़ पे रखा हो इक तरफ 
तफ़ावतें भी कुछ फासले पर हो 





3 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18 -05-2019) को "पिता की छाया" (चर्चा अंक- 3339) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

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  2. बहुत सुन्दर ।

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  3. वाह बहुत खूब ¡¡¡
    मेरी परीधी से बाहर है ऐसी पोस्ट पर टिप्पणी करना।
    सादल

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