दृष्टीहीनं दीपं करतले जगदालोक्य न प्रतीतम् l
तस् उद्यम विहीनं कर धनं लाभान्वित न ज्ञानम् ll
अँधे करतल दीप दहे दरसे ना जग आभ।
बिनु उद्यम कर धन गहे लहे न ज्ञान कर लाभ ॥१||
:-- दृष्टीहीन को अपने करतल में प्रज्वलित दीपक से जगत का आलोक्य प्रतीत नही होता उसी प्रकार उद्यम हीन को भी अपने हस्तगत धन से ज्ञान का लाभ प्राप्त नही होता ।
अँधे करतल दीप धरे भए न भास कर भान।
बिनु श्रम बिनु उद्यम करे गहे न ज्ञान बिधान॥२||
:-- दृष्टीहीन को करतल आधरित दीपक से प्रकाश का आभास नहीं होता उसी प्रकार उद्यम स्वरूपी दृष्टी से हीन मनुष्य को भी ज्ञान का विधान प्राप्त नही होता....
कर= अवधि में का
कर = हाथ, किरण ,करना, शुल्क
खाओ पीयो पहिरियो लेउ जगत को भोग ।
सेष ना लवलेष रहे कहे जोग जग जोग॥३||
:-- विश्वस्य जनान् एकीकृत्य भारतस्य योगः एतत् सन्देशं ददाति यत् जीवनं लौकिकसुखानां आनन्दाय, तेषु एतावत् आनन्दाय च अभिप्रेतम् यत् भविष्यत्पुस्तकानां कृते किञ्चित् अपि न अवशिष्यते।
:-- विश्वजनों को योजित कर भारत का योगयह सन्देश दे रहा है कि जीवन भव भोगों का उपभोग करने के लिए है इतना उपभोग हो कि आगामी पीढ़ियों के लिए लेशमात्र भी कुछ शेष न रहे.....
नहि बीर सो सबद बान जोइ चलावै तीर |
रन आँगन में बोलता सोइ कहावै बीर ||४||
:-- युद्धं न वचनबाणप्रहारेन जितं भवति, केवलं रणक्षेत्रे वदन् एव शूरः
:-- शब्द बाण चलाने भर से लड़ाई जीती नहीं जाती जो समरांगण में बोलें वीर वही होता है
छाए सघन घन देवता गाए अस्तुति प्रसंस l
जय जय जय रघुबंस मनि,जय रबि कुल औतंस॥५||
: - - इंद्रदेव: सघनरूपेण आवृतः श्रीरामस्य स्तुतिं गायति ----रघुवंशस्य मणि रविकुलस्य पुरुषोत्तम जय ते....!!!
: - -इन्द्र देव सघन रूप में आच्छादित हो श्री राम की प्रशंसा स्तुति का गान कर रहें है - - हे रघुवंश के मणि स्वरुप हे रवि कुल के पुरुषोत्तम आपकी जय हो ... . . !!!
बिआ बिनसाए आपुना बोए रहे उद्योग |
बोए बिआ नभ देखिआ चढ़े जगत के लोग ||६||
: -- उद्योगानां विकासेन स्वस्य उर्वरभूमिं नष्टं कृतवन्तः पृथिव्याः जनाः अन्तरिक्षं गतानां बीजानां अंकुरणस्य परीक्षणं कुर्वन्ति...
: -- उद्योग उपजाकर अपनी उपजाऊ भूमि को विनष्ट किए पृथ्वी के लोगअंतरिक्ष में चढ़े बीजों के अंकुरण का परिक्षण कर रहे हैं....
दरस महि की सत्ता पर निर्बुध का अधिकार |
अधुनै पर उपहाँसेगा एक दिन होवनिहार ||७||
:--पृथिव्यां मूर्खतायाः अधिकारं लक्ष्यं कृत्वा एकस्मिन् दिने भविष्यस्य अस्तित्वस्य उपहासं करिष्यति.....
: -- पृथ्वी की सत्ता पर मूर्खता का अधिकार लक्षित कर एक समय भावी विद्यमान का उपहास करेगा
पृथिव्यां मूर्खतायाः अधिकारं लक्ष्यं कृत्वा एकस्मिन् दिने भविष्यस्य अस्तित्वस्य उपहासं करिष्यति....
दूषन गुन दोनउ बसे, सबद सिंधु के कोष।
कोई पावै मनि रतन,को निकसावै दोष ॥८||
:--शब्दाब्धिकोषे गुणदोषौ निवसतः;केचित् तस्मिन् बहुमूल्यानि रत्नानि प्राप्नुवन्ति,केचन तु दुष्टानि निष्कासयन्ति ।
:--शब्द सिन्धु के कोष में गुणदोष दोनों का वास होता है किन्तु कोई उसमें मणि रत्न प्राप्त कर लेता है तो कोई दोष निष्काषित करता है ।
दैदिप धरती गगन भए,दैदिप केत निकेत।
प्रबसे राम निज मंदिर,दैदिप भयो साकेत ।।९||
:-- पृथिवी आकाशं च प्रकाशितं जातम्, प्रत्येकं धाम उज्ज्वलं जातम्, श्रीरामः स्वस्य शुभं धामं प्रविष्टमात्रेण साकेत एव उज्ज्वलः अभवत्।
:-- अवनि अम्बर दैदीप्त हुवे केत निकेत दैदीप्य हुवे ज्यों ही भगवान श्री राम अपने मंगलायल में प्रविष्ट हुवे त्यों ही साकेत बह दैदीप्यमान हो उठा
खेत कमाया खेतिहर पाया मन बिसराम l
किसलय कन की कोँपलैँ जहँ तहँ बरसे राम॥१०||
:- - कृषि कार्य से निवृत होकर कृषक का मन मेंसंतोष व्याप्त है कारण कि स्थान स्थान पर उत्तम वर्षा होने से कणों की कोंपलें नव पल्लव को प्राप्त है . . . . .
खेत कमाना = कृषिकर्मखेतिहर...
को कह कही कहाइ बत,को कह सुनि सुनाइ ।
कहा सुनि को त्याज के, दरस लेव तहँ जाइ ॥११||
:- - जब कोई कहता है ये कही कहाई बातें है कोई कहता है ये सुनी सुनाई बातें हैं अर्थात इनमें सत्यता नहीं है इस कहा सुनि को त्याग कर सत्यता का प्रत्यक्ष परिक्षण उत्तम होता है.....
प्रियतम पिय की प्रीति सो काल कबित की रीत l
प्रेम भाव भगवन सोहि जोइ भक्ति के गीत ll१२||
:-- प्रियतम प्रिय के प्रति की प्रीति पर रचित काव्य रीति काल कहलाता है जब यही प्रेम भाव भगवान के प्रति हो तब वह गीतिका काव्य भक्ति काल कहलाता है.....
मधुरिम बोल बचन छनहि जुग के जोग जुगाए l
कटु कथन जुग जोग लगन देय पलक बिलगाए ll१३क||
:-- मुखात् उक्ताः मधुरवचनाः क्षणमात्रेण अनेकजन्मसंबन्धं स्थापयन्ति, यदा तु कटुशब्दाः क्षणमात्रेण अनेकजन्मसंबन्धं भङ्गयितुं समर्थाः भवन्ति
:-- मुख से कहे मधुर वचन क्षण में जन्म-जन्म के संयोग स्थापित कर देते हैं वहीं कड़वे वचन जन्म जन्म के संयोगों को क्षण में विभंजित करने में सक्षम होते हैं
काठ कठिन कोटिक कथन कोटि कटुक कड़ुवारि।
बोलत दोइ मधुर बचन पल में दे नेवारि ॥१४ख||
:--मुखात् उक्तौ मधुरौ शब्दौ तत्क्षणमेव कोटि-कोटि-कठोर-कटुतायाः कारणात् अत्यन्तं कटुतां, कटुतां च दूरीकर्तुं शक्नुवन्ति; तानि वचनानि "क्षमस्व मां..." इति।
:--मुख से कहे गए दो मधुर वचन कोटिशः कठिन कठोर कथन से उपजी अतिशय कटुता व कड़वाहट का एक पल निवारण कर देते हैं वह शब्द हैं " मुझे क्षमा कर दो... .. "
तहाँ प्रीति न बैठ सके जहां ऐंठ की पैंठ ।
जहाँ ऐंठ न पैंठ सके प्रीत जाइ तहँ बैठ ॥१५ग||
:-- यत्र अहङ्कारः वर्तते, तत्र प्रेम न वसति, यत्र अहङ्कारः न प्रविशति, तत्र प्रेम सर्वदा वसति...
:-- जहाँ अहंकार प्रविष्ट रहता है वहां प्रीति विराजित नही होती, जहाँ अहंकार का प्रवेश नहीं होता वहाँ प्रीति सदैव विराजमान रहती है... ..
दंश दंभ दल दरप कल लए भरोस अवसोष ।
ता पुनि प्रीति प्रेम भाव दूरावै दुइ कोस ॥१५घ||
:-- दम्भ-दंश-अभिमान-पूरितः शब्दसमूहः प्रत्ययं अवशोषयति; प्रेमस्य स्नेहस्य च भावः एतत् अविश्वासं अत्यन्तं दूरं करोति...
:-- दंभ,दंश दर्प भरे वचनों का दल प्रतीति का अवशोषण कर लेते हैं प्रीति प्रेम का भाव इस अविश्वास को सर्वथा दूर कर देता है... . .
भाषा संस्कृति से है भारत देस समृद्ध |
विचारों की संकुलता से पश्चिम है दारिद्र ||१६||
:-- भारतं भाषासंस्कृतेः दृष्ट्या समृद्धः देशः अस्ति, यदा तु पाश्चात्त्यदेशाः विचाराणां पूर्णतायाः दृष्ट्या अद्यापि दरिद्राः सन्ति।
:-- भाषा व् संस्कृति से भारत एक समृद्ध देश है विचारों की परिपूर्णता से पश्चिमी देश अभी दरिद्र है
बिआ बिनसाए आपुना बोए रहे उद्योग |
बोए बिआ नभ देखिआ चढ़े जगत के लोग ||१७क||
: - उद्योग उपजाकर अपनी उपजाऊभूमि को विनष्ट किए पृथ्वी के लोगअंतरिक्ष में चढ़े बीजों के अंकुरण का परिक्षण कर रहे हैं....
: -- उद्योगानां विकासेन स्वस्य उर्वरभूमिं नष्टं कृतवन्तः पृथिव्याः जनाः अन्तरिक्षं गतानां बीजानां अंकुरणस्य परीक्षणं कुर्वन्ति...
दरस महि की सत्ता पर,निर्बुध काअधिकार |
अधुनातन पर हाँसेगा एक दिन होवनिहार ||१७ख||
: -- पृथ्वी की सत्ता पर मूर्खता का अधिकार लक्षित कर एक समय भावी विद्यमान का उपहास करेगा.....
: -- पृथिव्यां मूर्खतायाः शक्तिं लक्ष्यं कृत्वा एकस्मिन् दिने भविष्यस्य वर्तमानस्य उपहासः भविष्यति...
दिपित दिपित दृक दिसा दस दैदीप दिवस मान ।
पूरबाहन बहुर चला चरन धरा मध्यान ॥१८||
:-- दिवसमान के दैदीप्य से दसों दिशाओं को दीप्तवान दर्शकर पूर्वाह्न ने निर्गमन किया और मध्यान का
पदार्पण हुआ... . .:-- दिनस्य तेजसा दशदिशाः सर्वान् प्रकाशयन् प्रभातोऽभवत्, मध्याह्नश्च आगतः ... ...
नील गगन स्याम भयो छाइ घटा घन घोर ।
भरम भरे समुझ न परे, ए साँझि अहै कि भोर॥१९||
: - - घनघोर घटा केआच्छादन से नील गगन श्याम वर्णं हो गया है यह संध्याकाल है अथवा प्रभातकाल, ये भ्रमवश ज्ञात नहीं होता....
: - - स्थूलमेघानां आच्छादनात् नीलगगनं कृष्णं जातम्। न ज्ञायते सन्ध्या उत प्रभात इति भ्रमात्.....
घर घर घुसपैठिये गए,भर पश्चिम बंगाल |
सासन हर को चाहिए लगाए,आपद काल ll२०||
:--पश्चिमबङ्गस्य प्रत्येकं गृहं घुसपैठिभिः पूरितम् अस्ति, सत्ताधारी दलेन तत्र आपत्कालः आरोपणीयः.....
No comments:
Post a Comment