Monday, 21 July 2025

----- ॥ दोहा-पद॥ -----,

 जो लिख दोइ बात कहें सो सब संत कहाए ।

करना है हम आपको जेतक जो करि जाए ॥१|| 

:- ये लिखी कही दो बातें सभी संतों की वाणी हैं हम और आप जितना जो हो सके उन्हें उतना करके अपने जीवन को कृतार्थ कर सकते...

को संत को बात कहे, कहे संत बत कोइ ।
कही बात हम कर सकै,जासों जेतक होइ ॥२|| 
:-- किसी संत ने कोई बात कही तो किसी संत ने कोई संतों के कहे इन सद्वचन का अधिकाधिक अनुशरण करके हम अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं.....

जलम् अन्नम् सुभाषितम्, जो गहे नहिं प्रवाह ।
धरे ढके तिन राखिये, रहे करम के नाह ॥३|| 
:-- अक्षरों की तलवार जब शब्दों की धार धारण करती है तब वह अपने वारों और प्रहारों से जिसे चाहे उसे घाट उतारने में सक्षम होती है.....
:-- यदा अक्षरखड्गः शब्दानां धारं वहति तदा सः स्वस्य आक्रमणैः प्रहारैः च कस्यचित् वधं कर्तुं समर्थः भवति...

पहिले आपा जोग फिर,निज गह देस समाज । 
कही सुनि लिखा पढ़ी न त, होतब सबहि ब्याज॥४|| 
व्याज=छल, धोखा
:-- संत जनों का कहना है:सर्वप्रथम स्वयं का सुधार करके तत्पश्चात निज गृह को सुधारें तो देश समाज में स्वमेव सुधार होगा...

आखर की तलबारि जब धरे सबद की धारि । 
जो वारि प्रहारि सो जिन चाहे घाट उतारि॥५|| 
:-- अक्षरों की तलवार जब शब्दों की धार धारण करती है तब वह अपने वारों और प्रहारों से जिसे चाहे उसे घाट उतारने में सक्षम होती है.....

बड़े कपोले थाप दिए, छोटे दिए अपकारि।
साधौ जाए उपदेसिए, दूर दिरिस के द्वारि।।५|| 
:-- बड़ों के सम्मुख उपदेश कहो तो गालों पर थपकी देकर कहते अच्छा हमको उपदेश? तुम्हारे कान पकड़ कर हम ही लाते थे! छोटे इनकी अवहेलना कर देते हैं बेचारे सद्वचन भी क्या करें वह दूरदर्शन को कह देते हैं.....

जंगल ताके बाप का, जो हो सत्ताधीस ।
न मेरा न आपका यह, लोक तंत्र की रीस॥६|| 
:-- जंगल उसके बाप का है जो सत्ताधीश हैं.....जंगल मेरा न आपका.....वस्तुत:यह एक लोकतंत्र विरोधी विचार है.....- वनं तस्य पितुः यः शासकः अस्ति.....











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