Tuesday 19 June 2012

----- || CHAAR VICHAAR || -----

TEUSDAY, JUNE 19, 2012                                                                         


" योग्यता का परिक्षण योग्य ही कर  सकता है....."
  


" भाषायी योग्यता व संज्ञानित ज्ञान की दिशाएँ
  वरीयता परिक्षण हेतु भिन्न है....."






TEUSDAY, JUNE 26, 2012                                                                          


" सच्चरित्र व्यक्तित्व की सुप्रशंसना, व्यक्ति की सर्वोत्तम निधि है....."


" पर परिदृष्टा के पथानुगमन से स्वयं का लक्ष्य लक्षित होता है,
   स्व लक्षित लक्ष्य से पर परिदृष्टा का पथ प्रशस्त होता है....."


TUE/WED, JULY 3/4, 2012                                                                           


" भारत की स्वतंत्रता के कर्णधार का तन एकल वसन था,
  स्वतन्त्र भारत के कर्णधारों का मन भी निर्वसन है....."


" एक वसन, एक वचन, एक मन में आह्वयन..,
  स्वतन्त्र भू ! स्वतन्त्र भाव !! स्वतन्त्र हो भाव भवन !!!


  रिक्त-रिक्त हविष्य है..,
  देह की है आहुति..,
  ह्रदय का है हवन..,
  स्वतन्त्र भू ! स्वतन्त्र भव !! स्वतन्त्र हो भाव भवन !!!


  निराहार नीर आहार में..,
  सत्य सह संहार में..,
  नरंधि नरमेध नमन..,
  स्वतन्त्र भू !स्वतन्त्र भव !! स्वतन्त्र हो भाव भवन !!!


  रक्त-रक्त का है रण..,
  आह !आह !! आभरण..,
  है शान्ति के ही शरण..,
  स्वतन्त्र भू ! स्वतन्त्र भाव !! स्वतन्त्र हो भाव भवन !!!

  सोम्य सैन्य संकेत है..,
  निकुंज निकट निकेत है..,
  विनत-विनत विनीत नयन..,
  स्वतन्त्र भू ! स्वतन्त्र भव !! स्वतन्त्र हो भाव भवन !!!


  विरतर वीर वीरता..,
  चौचरण चिर चीरता..,
  खड्ग रहित शसन शमन..,
  स्वतन्त्र भू ! स्वतन्त्र भव !! स्वतन्त्र हो भाव भवन !!!.....




" भोग विलास में संलिप्त, क्षेत्र विशेष के शीर्षस्थ व्यक्ति का स्थान;
  श्रम सौव्रत्य व सत्य सौश्रवस हेतु सदैव रिक्त व प्रज्ञप्तित होता है....."

Thursday 7 June 2012

----- || DAND KA MAAPDAND || -----

" भ्रष्टाचार स्वयंसिद्धापराध है जिस पर दण्डारोपन के परिमाण का प्रारूप इस
  प्रकार से हो की अपराधी न्यूनतम 6 माह व उच्चतम 7 वर्ष के सश्रम या
  साधारण कारावास सहित सदोष अर्जन के अधिग्रहण या 'जब्तीकरण' के
  सह अर्थदण्ड का भागीदार हो.."


   किन्तु  :--
" भ्रष्टाचरण स्वरूप आपराधिक सदोष अर्जन के परिमित ही दण्ड का मापदण्ड हो
  जहां अपराधी के ऐसे सदोष अर्जन का दुरुपयोग स्वयं अथवा अन्य द्वारा ऐसा
  कार्य जो किसी व्यक्ति या किन्ही व्यक्तियों की मृत्यु कारित करने के आशय से
  अथवा ऐसे कार्य का रुपान्तरण राष्ट्र में आतंक कारित करने के षड़यत्र स्वरूप
  यथास्थित ह्त्या या सामूहिक ह्त्या कारित करने का अभिसंधान हो वहां ऐसे
  अपराध के दण्ड का परिमाण वही हो जो ऐसे अपराध हेतु  दंडात्मक परिमेय
  का निर्धारण भा.दं.सं. में है....."



" धन की परिक्रमा पर्यंत व गति शिथिल होती है,
  ज्ञान की परिक्रमा अनंत व गति प्रतन्य होती है....."
                                                     -- सनद रहे