Sunday 30 September 2012

----- || भोग भोग भोगवान ।। -----

जिस राष्ट्र का न्याय क्रयशील हो उस राष्ट्र पर अन्य राष्ट्रों की
कुदृष्टि बनी रहती है.....


न्यायाधीश की निष्ठा पूर्वक यथेष्ट न्याय  की  व्यवस्था  से
एक भ्रष्ट राष्ट्र स्वत: ही सुखद परिवर्तन की ओर अग्रसर होगा.....


मेरे, केंद्र एवं प्रदेश शासन में एक दो कार्य लंबित है किन्तु
घूस की मांग पूर्ति के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं हो रहा.....


निर्वाचन आयोग कृपया यह सूचना देने का कष्ट करे
कि मैं किसे मत दान करूँ केंद्र में पक्ष है तो प्रदेश में
विपक्ष.....??


Friday 28 September 2012

----- ।। भोग भोग भोगवान ।। -----

एक लोकतंत्र में जहां लोकसेवक की जाति व धर्म होता है,
वहीँ राजनेताओं की जाति व धर्म केवल राजनीति होती है.....


लोकतंत्र के जनप्रतिनिधि की विलासपूर्ण जीवन शैली उस
लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है वहां, जहां की वह मतों
के 'दान' से संचालित होता हो.....


'मत' कोई कन्या नहीं है जसके दान हेतु किसी कृष्ण
मोहन अथवा राम या चाँद-सूरज या राजा महाराजा
की  आवश्यकता  हो  यह  प्रत्येक भारतीय नागरिक
चल  संपत्ति  के  तुल्य  है जिसके  दान की सार्थकता
स्व कल्याण हेतु ही है.....


भारतीय संविधान के अनुसार मतदान  प्रत्येक भारतीय
नागरिक का अधिकार है न की कर्त्तव्य,यह मतदाता की
स्वेक्षा पर निर्भर है की वह इसका  दान करे अथवा नहीं
मत के दान हेतु किसी भी व्यक्ति पर न तो दबाव बनाया
जा  सकता  है  एवं न ही दबाव पूर्वक अनुरोध ही किया
जा सकता.....


शास्त्रानुसार : --
" अपात्रे दीयते दानं दातारं नरकं नयेत् ।।"

अर्थात अपात्र को दिया हुवा दान दानी को नरक में ले
जाता है.....


Tuesday 25 September 2012

----- ।। अशोक वाटिका ।। -----

जनसाधारण एक ऐसा अर्थकर वटवृक्ष है जिसे  शासन उपजाऊ
व उत्कृष्ट उर्वरा से यदि पोषित करे तो यह एक  फलदार वृक्ष में
परिवर्तित हो सकता है किन्तु वर्त्तमान सन्दर्भ में  उक्त उर्वरा में
भ्रष्टाचार के कृमि किलबिला रहे हैं तथा भ्रष्टाचारीयों के दुर्गन्ध
से सड़ान्ध भी उत्पन्न हो गई है.....


धर्मरहित मनुष्य वह निरंकुश शक्ति है जिसके  द्वारा  श्रष्टि  का
काल तक संभव है.....


व्यक्तकृत लक्ष्मा, वाक्, गणित, तंत्र आदि के व्यक्तिकरण से पूर्व
विषय विशेष का गहन अध्ययन उत्कृष्ट ज्ञान का सृजन करता है.....


प्रत्येक आविष्कार मानव कल्याण हेतु सतत् साधना, ज्ञान एवं
लगन का परिणाम है जिसका दुरुपयोग  दुष्कृत्य  की  श्रेणी है.....


Monday 17 September 2012

----- ।। विश्व की वास्विकता ।। -----

वर्तमान में  हम दैनंदिन  अर्थगत वैश्विक मंदी  से जूझ  रहे हैं,
भारत का लोकतंत्र  उसकी  वास्तविकता को परिभाषित  नहीं
करता, अन्य राष्ट्रों के जनसामान्य को भी अपने जन संचालन
तंत्र  एवं उसके  संवैधानिक स्वरूप का आकलन  एवं समुचित
समीक्षा की सतत आवश्यकता है.....



Sunday 16 September 2012

----- ।। सुसंस्कृतम् ।। -----

विकृत संस्कृति का वैचारिक परिवर्तन धन-बल से नहीं अपितु
ज्ञान एवं बुद्धि से संभव है.....