Sunday 21 October 2012

----- ।। अहंकारी के सिर ।। -----


                                'अहम् वृहतम्' यह व्यक्ति नहीं उसका अहंकार 
                       बोलता है.....

                       

Friday 19 October 2012

----- ।। चले नेता नवाब बनने ।। -----

हमारे माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री, मंत्रीगण
सभी दल अध्यक्षों एवं दल सदस्यों आदि आदि को ना तो
हिंसा अच्छी लगाती है ना ही अहिंसा, ना तो इन्हें धरना
अच्छा लगता ना ही मरना न इन्हें अनशन भाता न ही
ध्वंसन ना तो इन्हें समाचार पत्रों के समाचार अच्छे लगते
न ही इन्हें दूरदर्शन के दृश्य समाचार..,

इन्हें किसी भी प्रकार का विरोध अच्छा  नहीं लगता
हाँ कुर्सी से चिपकना एवं उस पर पसरे  रहना  बहुंत
अच्छा लगता है, विदेशों में जन्म दिन मनाना तथा
रंगरलिया मनाना बहुंत  अच्छा  लगता  है, बड़े बड़े
देशों के  राष्ट्रपतियों  के  साथ  कोट शेरवानी धारण
कर  सेमीनार  करना बहुंत अच्छा लगता है इनकी
छींक  भी  हवाई  जहाज  की  हवा खाए  बिना एवं
विदेशी चिकत्सकों के हाथ लगे बिना ठीक ही नहीं
होती.., 


प्रतीक्षा है जनता का नरसिम्हा के अवतार स्वरूप
में अवतरित होने की जो इन लोकतांत्रिक  खम्बों
को उखाड़ कर इन हिरन्यकश्यपों का सर्वनाश कर
सके..,


जबकि वर्त्तमान में भारत का एक जनसामान्य
केवल मात्र आधारभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष
कर रहा है एक सामान्य व्यक्ति स्वयं का तो दूर    
अपने छोटे से बच्चे का जन्म दिवस मनाने हेतु
दस बारी सोचता है.....


भारतीय लोकतंत्र ऐसे कोषज के सदृश्य है जिसके
कोषा तंतुओं में 'राजतंत्र' लिपटा हुवा है.....  

Wednesday 17 October 2012

----- || साम, दाम, दंड, भेद ।। -----

            "जिस मंदिर-मस्जिद में काली माया के दान का संग्रहण हो,
         उस मंदिर-मस्जिद से भगवन कोसो दूर रहते हैं....."


            " कुकृत्यों पर अंकुश लगाने के दो प्रमुख उपाय है
               जनचेतना एवं भय.."


           " इस संसार में भांति-भांति के राष्ट्र हैं जहां भांति-भांति के लोग निवास करते हैं  
             व्यक्ति कोई भी हो उसे मृत्यु का भय अवश्य रहटा है कारण कि यह उसके
             संज्ञान में सैदेव यह बात रहती है कि उसके कर्मों का फल उसे मृत्यु के पश्चात 
             तो अवश्य है प्राप्त होगा, वास्तव में व्यक्ति मृत्यु से नहीं अपितु अपने कुकर्मों 
             से मिलने वाले दंड से भय ग्रस्त रहता है.."


          "  एक राष्ट्र की सुदृड़ दंड प्रणाली वहां के नागरिकों के अपराध पर अंकुश लगाती है 
             भ्रष्टाचार भी एक गंभीर अपराध है, इस पर अंकुश  तभी संभव है जब  सुदृढ़  दंड 
             प्रणाली हो एवं व्यापक जन चेतना हो....."  
  

          

Monday 15 October 2012

----- || न्याय का व्यवसाय ।। -----

भ्रष्टाचार रूपी वृक्ष का अदृश्य मूल न्यायालयों में रोपित है
शासन-प्रशासन इसका तना व शाखाएं हैं इसके तने को हिलाने
अथवा किसी शाखा को काटने भर से यह वृक्ष उखड़ने वाला नहीं है..,


यदि सर्वोच्च न्यायालय से लेकर उच्च व निम्न न्यायालयों के कंठ को
 पंजों में पकड़ कर कसा  जाए तो  शासन-प्रशासन के  भ्रष्टाचार  रूपी
 उदराधारित नाभि कुंड का अमृत स्वत: ही प्राप्त हो जाएगा..,


ऐसे बहुंत से लेखक हैं जिनकी आजीविका लेखनी पर ही आधारित है
तथापि ये लेखनी की शक्ति से अपरिचित हैं..,

बहुंत से संवेदनशील विषय ऐसे हैं जिनसे जनसामान्य की संवेदनाये सीधे
संयोजित हैं किन्तु ये लेख्ननियाँ इन विषयों पर लिखने हेतु सदैव भयग्रस्त रहती है..,


भ्रष्टाचारी धन्ना के लिए जहाँ न्यायालय में 'देखना' सरल है,
वहीँ सड़क पर खड़े निर्धन मतदाता के लिए न्यायालय में
'दिखाना' कठिन है, यहीं पर संविधान की प्रस्तावना छिन्न-भिन्न
हो जाती है.....

Saturday 13 October 2012

----- ।। शपथ के नाना पथ ।। -----

अग्नि को साक्षी मान कर वर पाणि ग्रहण करता है..,

न्यायालय में अपराधी-निर्पराधी, दोषी-निर्दोष,वादी-प्रतिवादी
स्वधर्म ग्रन्थ को साक्षी मान शपथ लेकर अपना पक्ष रखते हैं..,

मैं.....शपथ लेता हूँ....

शासन-प्रशासन के सेवक-प्रतिनिधि किसको साक्षी मान कर शपथ लेते हैं,
राष्ट्रपति को, प्रधानमन्त्री को, मुख्यमंत्री को, पक्ष-विपक्ष के दलाध्यक्षों को,
अथवा अग्नि,जल, वायु, आकाश, भूमि को.., ईश्वर की परिभाषा किसे कहेंगे ?

स्पष्ट नहीं है.....



Saturday 6 October 2012

----- ।। अभाव का भाव ।। -----

" एक छोर पर वह व्यक्ति है जिसका कंठ अभाव का भाव पूछ पूछ कर
  शुष्क हो गया .., दुसरे छोर पर वह व्यक्ति है जिसे अभाव अर्थान्वेषण
  हेतु शब्दकोष की आवश्यकता होगी..,


 "एक छोर पर वह व्यक्ति है जिसका जीवन भोजन, आच्छादन, उपचार
  जैसी आधारभूत व्यवस्था हेतु ही  संघर्ष  रत है.., दुसरे  छोर  पर वह
  व्यक्ति है जिसका जीवन भोग विलास की तृष्णा से परिपूर्ण विषय काम
  लोलुप हेतु प्रासंगिक रहते हुवे भोगवादी है..,


" वाही भोगवादी व्यक्ति अपनी विषय वासना के वशीभूत छल-छद्म स्वरूप
  में भोकस भिक्षुक का रूप धर अभाव ग्रस्त  व्यक्ति  के द्वार   पर  उसकी 
  एकमात्र शक्ति उसका  'मत' को छल कपट से हरण कर लेता है..,


" धिक्कार है ! ऐसे जीव ! ऐसा जीवन !! ऐसी जीवनी !!! एवं ऐसे दुश्चरित्र पर.....