Saturday 10 January 2015

----- ॥ ज्ञान -गंगा ॥ -----

" आत्महत्या यद्यपि एक अपराधिक कृत्य है तथापि वह  दंडनीय नहीं है ॥ यह एक समस्या है कार्य कारन व् निवारण ही इसका समाधान है "  


करतन कारन फल संग जग अपकीरिति होइ । 
बय भय सँग स्वनिर्यनै ,प्रान हनै निज कोइ ।२२३९ । 
भावार्थ : -- कोई व्यक्ति जब किसी कार्य कारण व् परिणाम द्वारा जग अपकीर्ति  के भय से अथवा परिस्थियों के वशीभूत आत्म निर्णायक होकर स्वयं को मृत्यु का दंड देता है उसे आत्महत्या कहते हैं । 
स्पष्टीकरण १ : -- आत्महत्या का नाटक एक दंडनीय कृत्य है 
स्पष्टीकरण २ : -- कार्य कारण यदि विधि द्वारा विहित उपबंधों में कोई अपराध है तब अभियुक्त उतने दंड का ही भागी होगा.....

यह विडंबना ही है कि भारत में एक किसान इस हेतु आत्महत्या करता है कि शासकों ने उसकी धरती अधिग्रहित  कर ली अपने कृत्य में असफल होने पर उसे ऐसे संत्रास के संग न्यायालय दंड भी देगी । 

दूसरा किसान  ऋण ग्रस्त होकर आत्महत्या करता है असफल होने पर उसे ऋण भी देना होगा और दंड भी भोगना पड़ेगा अर्थात शासक किसानों को सभी ओर से मारने पर उतारू है ..... 

4 comments:

  1. आत्महत्या एक मानसिक समस्या और स्थिति है जिसका उचित निवारण आवश्यक है.

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  2. सार्थक प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (12-01-2015) को "कुछ पल अपने" (चर्चा-1856) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. दोहे के आधार पर आत्महत्या को बखूबी समझाया गया है ..अच्छी प्रस्तुति ..

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