Saturday, 28 June 2025

----- ॥ टिप्पणी 23॥ -----,

स्कायलैब:

स्काईलैब से बाल्यपन का एक क्षण स्मरण हो आता है उस समय घरों में आँगन सहित कहींकहीं बड़ीबड़ी छतें हुवा करती थी हमारी भीथी जहाँ हम सभी बच्चे पतंगे उड़ाया करते थे छत खुलीखुली होने के कारण पास पड़ोस के बच्चे भी एकत्र होकर धमाचौकड़ी करते मेरी कोई पांच छह:वर्ष कीअवस्था थी |एकदिन आकाशवाणी से समाचार प्रसारित हुवा की अमेरिका की एकअंतरिक्ष प्रयोगशाला विफल हो गई है जो पृथ्वी पर कहीं भी गिर सकती है एतएव भारत के सभी नागरिकों से अनुरोध है किवह अपने घर से बाहर न निकले | यह सन्देश नगरों महानगरों सहित गांव गाँव में आग के जैसे फैल गया | इस समाचार के पश्चात सड़के सुन सपाट हो गई थीं अब पतंगे उड़ानी थी तो उड़ानी थी उस दिन भी हम बच्चे पहुँच गए छत में पतंगे और मांझा लेकर, फिर क्या था बड़ों से ऐसी फटकार पड़ी और कुटाई हुई जो अब तक स्मरण है फिर एक सन्देश आया की  स्कायलैब को समुद्र में सुरक्षित गिरा दिया गया है स्कायलैब अमेरिका का प्रथम अंतरिक्ष स्टेशन था जो अंतत: विफल सिद्ध हो गया  

Friday, 27 June 2025

----- ॥ टिप्पणी 22॥ -----,

 >> हम भारतीयों को स्वाधीनता का झुनझुना पकड़ाया गया है जिसे हम प्रत्येक पंद्रह अगस्त में बजा कर फुले नहीं समाते, वस्तुत:भारत कभी स्वतंत्र हुवा ही नहीं इस पर अब भी इस्लाम का अघोषित राज है

>> मां खादी की चादर दे दे तो हम भी गांधी बन जाएं, किंतु रहने के लिए बिड़ला का भवन कहां से लाएं?
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>>आयकर अधिनियम के आधार पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर मंडल (सीबीडीटी) के एक वर्तमान दिशानिर्देश में किसी विवाहिता के पास 500 ग्राम तक स्वर्ण आभूषण की सीमा निर्धारित की गई जिसके स्त्रोत का प्रमाण आयकर विभाग को नहीं देना होता इससे अधिक स्वर्णाभूषण होने पर इसके स्त्रोत का प्रमाण देना होता है | 

>>आपातकाल में किसी परिवार के पास ऐसे स्वर्णाभूषण की मात्रा केवल 50ग्राम निर्धारित की गई और घर घर में छापे मार मार कर गृहिणियों को पुरखों द्वारा प्राप्त हुवे स्वर्णाभूषणों को लूट लिया गया था

>> लोग तब कहने लगे वो सोमनाथ मंदिर तो एक था जिसको मुसलमानों ने लुटा था अब तो सोमनाथ मंदिर से ये घर घर हैं जिन्हें फिर से लूटा जा रहा है सत्ताधारियों को कांग्रेस से पूछना चाहिए उस समय आयकर के छापे से जो धन एकत्र हुआ वह गया कहां

>> हमारी पीढ़ियों ने भारत विभाजन और आपातकाल दोनों को भुगता है.....
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>> ये एक नारा प्रचलित हुआ था: जहां बलिदान हुवे मुखर्जी वो काश्मीर हमारा है जो काश्मीर हमारा है वो सारे का सारा है.....
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>> नक्सलवाद की व्युत्पत्ति आतंकवाद के उद्देश्यों से सर्वथा भिन्न कतिपय क्षेत्र जीविकों हेतु उनके क्षेत्र व वन्य भूमि की आधिग्रहीता के विरुद्ध हुई थी,यह वाद एक सामाजिक सिद्धांत पर आधारित प्रकृति की रक्षा के विध्वंशकारी मार्ग का अनुगामी होकर सत्ता की उन दमनकारी नीतियों के विरुद्ध था जो कतिपय धनाढ्य वऔद्योगिकवर्ग की उच्चाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु थी | विध्वंशक विचारधाराओं के प्रभाव से कालांतर में यह वाद हिंसा जनित विकारों से युक्त होकर अपने उद्देश्यों से विभ्रमित हो गया भ्रम की इस स्थिति ने उसे भयोत्पादक तत्वों के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया.....
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शांति वस्तुत: युद्ध का पूरोवर्ती उपाय है युद्ध पश्चात पराजेता हेतु केवल एक विकल्प जो शेष रहता है वह है......आत्मसमर्पण.....
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मृत्यु निकट दर्शते ही इस्लाम को मानवतावाद स्मरण होने लगता है.....
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बारातियों के जैसे आवभगत हो रही है काश्मीर के मुसलमानों की..... जागो भारत की संतानों....
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देशों को लोगों को इस्लामिक बनाकर उसे मरने के छोड़ दो यह इस्लाम की प्रवृत्ति रही है.....
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>> क्रुद्धहृष्टभीतार्तुलुब्धबालस्थविरमूढमत्तोन्मत्तवाक्यान्यनृतान्यपातकानि | ( मात्रा एक शब्द में कितना कुछ व्याख्यान करती है संस्कृत भाषा ) ----- ॥ गौतमधर्मसूत्र ५ /२ ॥ -----
भावार्थ :दान तभी करना यथेष्ट हैजब उसका अधिकार प्राप्त हो :भावावेश में, भयभीत होकर,रुग्णावस्था में, अल्पावस्था में, मदोन्मत्त अवस्था में, विक्षिप्त,अर्ध विक्षिप्त अथवा अमूढ़ अवस्था में दान देनानिषेध है|

>> दान देने का अधिकारी कौन हो जो अपना पालन पोषण करने में आपही सक्षम हो । एवं जो मात-पिता पालक अभिभावक अथवा अन्य द्वारा देने हेतु अनुमति दी गई हो ॥

>> भारतीय संविधान के वयस्कता अधिनियम के अनुसार जो अवयस्क है किन्तु अपना पालन-पोषण करने में सक्षम है वह अपने पालक/अभिभावक की अनुमति से ही दान करना चाहिए ।

>> अब प्रश्न है कि जो वयस्क हैं किन्तु अपना पालन-पोषण करने में असमर्थ हैं क्या उन्हें दान करना चाहिए ? (जब दान शब्द ही सम्मिलित हो उसका तात्पर्य है कोई भी दान )

>> क्या इन्हें संज्ञान है कि धन कैसे अर्जित किया जाता है ?क्या उन्हें आटे दाल का भाव ज्ञात है ? यक्ष प्रश्न है कि क्या मतदान करने की न्यूनतम आयु 18 वर्ष उचित है?
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शाकाहार बनो शाकाहार से घर मे मित व्ययता का वास होगा
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जहां संतोष होता है वहां जगत सारे धनकोष होते हैं
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जय जमुना नामक योजना से जमुना की स्वच्छता पर भी सत्ताधारियों को ध्यान देना चाहिए
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हम सौ नेता ऊपर भेजते हैं उसमें दस ही पहुंचते हैं उन दस में कोई एक ही राष्ट्र का चिंतन करता दर्शित होता है
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>> आरक्षण न होता तो भारत के शैक्षणिक संस्थान सर्वोच्च स्थानों को प्राप्त होते . . ...
>>भारतीय शैक्षणिक संस्थानों को वैश्विक श्रेष्ठता प्राप्त करने में सबसे बड़ा बाधक आरक्षण है.....
>> हमारे नेता विदेश में जाकर तो बड़ी बड़ी बाते करते है फिर भारत लौटते ही वे जाँत पाँत वाले रुढ़ीवादी आरक्षण का झंडा उठाए फिरते हैंI
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हमारे देश में बहुंत से बच्चे व युवा दिव्यांका सहित मानसिक रोगी भी है जिनका आधार तक नहीं बना है ये मानसिक रोगी आधार प्राप्त करने की जटिल प्रक्रिया का अनुशरण नहीं कर पाते तब इनकी गणना कैसे होगी?
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सभी धर्मों का आदर करना धर्मनिरपेक्ष या सेक्युलर हैं सभी धर्मों को अधिकार देना धर्मनिरपेक्ष नहीं है 
धर्मनिरपेक्ष शब्द का दुरुपयोग कर सत्ताधारी सत्ता साधने हेतु भारत में प्रादुर्भूत धर्म के अवलम्बियों की उपेक्षा कर अन्यान्य धर्मावलम्बियों को अधिकार देते चले गए जिसका परिणाम यह हुवा की भारत देश न बनकर धर्मशाला बन गया
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अहिंसा का पाखंड कर स्वतंत्रता के नाम पर सत्ता का संग्राम किया था इस पाखंडी गांधी ने | ये देश जो कभी अहिंसा वाद के लिए विश्व का सिरमौर हुवा करता था यहाँ हिंसा का ऐसा तांडव देखकर देखकर तो हिंसावादी देश भी लज्जित हो रहे होंगे | जिस देश को विश्व में गौशाला सुन्दर वन , तपोभूमि कहा जाता था, आज उसे इन सत्ता के लालची पिशाचों ने कसाई घर बना के रख दिया | क्या भारत को रक्त रक्त करने के लिए ये तथाकथित महात्मा भूखे मरे थे ? क्या इन निरीह प्राणियों पर क्रूरता करने के लिए गोलमेज सम्मलेन में नंगे गए थे ?कोई पूछने वाला है इन सत्ताधारियों से अरे ! जो निर्ममता अंगरेजों को राज ने दिखाई यदि वही निर्ममता दिखानी थी तो फिर स्वतंत्रता के नाम पर इतने लोगों की बली क्यूँ ली | और ये आजके शासक ! हिन्दू धर्म को नष्ट-भ्रष्ट कर संसार में उसकी अपकीर्ति करने वाले भगवाधारी हिंसक कसाई हैं ये | सत्ता हथियानी थी तो भगवा धारण कर लिया |
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>> हम मोह माया में पड़े कलयुग के अति भौतिकवादी जीव हैं, एतएव हमारा ज्ञान यत्किंचित हैं, पुराने ऋषि मुनि संत जन योगी तपस्वी थे उनके अधिकतम वचन/विचार सत्य व् कल्याणपरक ही होते हैं.....
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 संतों ने कहा है कि : - नहीं मृत्यु के पश्चात ही सही इस चर्मधारी जीव ने प्रभु की वंदना की जिससे यह उत्तम गति को प्राप्त होगा | शहनाई वादन में चर्म को मुख से स्पर्श किया जाता है इस हेतु यह भगवद्भजन में निषेध है.....
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सितार सैहतार से व्युत्पन्न हुवा शब्दयुग्म है, सैह एक फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ है 'तीन' सितार का अर्थ है तीन तार | वीणा को रूपांतरित कर इस वाद्य यन्त्र का आविष्कार अमीर खुशरो ने किया था वीणा में चार तार होते हैं | मृदंग को काटकर तबले का आविष्कार भी अमीर खुशरो ने ही किया था.....
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>>की रक्षा - पीढियों की चिन्ता .....यदि आज आपने हसदेवकी रक्षा नहीं की तो भावी पीढि अपने पितृदेवों  पूजेंगी नही अपितु पानी पी पी कर कोसेंगी और हम ही उनके पितृदेव होंगें 
>>हसदेव जैसे अरण्यों के विनाश पर मत एठिए ये ऐठ हमारी और हमारी आने वाली पीढीयो को पर्यावरण असंतुलन केगर्त मे ले जाएगी
>> शासन अपनी प्राथमिकता निश्चित करे की आवश्यक क्या है जल जंगल जीव जन जीवन या कोयला
बन बिटप हसदेव केर, कटत होत रे ढेर । 
जतनहु हो लरिका कतहु, होइ जाइ ना देर ।।

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विकास की दौड का अन्तिम परिणाम विनाश.......
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यह कांग्रेस का एक ऐतिहासिक षडयंत्र था जिसमें उसने आर्यों के भारत आने का इतिहास लिखा एवं उसे पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया गया जिससे हिंदुओं में फूट डले और वह राज कर सके
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विद्यमान भारत एक पथभ्रष्ट होते युवण्यों का राष्ट्र है.....
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यह कांग्रेस का एक ऐतिहासिक षडयंत्र था जिसमें उसने आर्यों के भारत आने का इतिहास लिखा एवं उसे पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया गया जिससे हिंदुओं में फूट डले और वह राज कर सके.....
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Thursday, 26 June 2025

----- || दोहा- विंशी 15 ||-----

जोग विचार भगवन को जाहि लगावै भोग l 
सातिक भोजन ताहि सब कहत पुकारे लोग l१l
योग्यता का विचार कर जो भोज्य पदार्थ ईश्वर को भोग स्वरूप अर्पित किया जाता है वह भोजन सात्विक प्रकृति का होता है ऐसा भक्त लोग कहते हैं

माया मछुआरिन भइ भए भव बंधन जाल l
आन मीन सम जौ फसे ग्रसे तिनन्ही काल l२l यह संसार एक बंधन जाल जिसमें माया ही मछुवारिन है जो भी इस माया के रूपी जाल में मत्स्य बनकर इसमें आ फंसता है वह काल बनकर उसे ग्रस लेती है
कहो गुरुबर कवन अहै, गहेउ जोइ ग्यान l जाके अन्तर करुन है,  गुरु बर ताही मान l३l कहिए तो गुरुवर कौन हैं जिसने ग्रहण किया हो जिसका अंतस करुन हो उसे गुरु वर मानना चाहिए
बेद पुरान निगमागम मुनिवर किन्ह प्रबंधु l कल जुग माहि होत जात द्विज जन द्विज बंधु l४|
वेदों पुराणों निगमागमो प्रबंध श्रेष्ठ मुनियों ने किया है किन्तु खेद है कि कलयुग में वही ब्राम्हण मुनि जन कर्महीन द्विज होते जा रहे हैं

लोभ लाह केर बस भय परबासिहि जौ लोग । 
धन संपत्ति छाँड़ सो तौ आनै रोग बियोग॥५|| 
लोभ लब्ध के वशीभूत जो लोग प्रवासी हो गए हैं वह धन सम्पति को वहीँ छोड़कर रोग वियोग साथ लेकर आते हैं 

पुरजन परिजन छाँड़ निज गह द्वार ते दूर । 
देखु ए भोर के भूरे साँझी रहे बहूर ॥६II 
पुर्जनों परिजनों को त्याग कर अपने गृह द्वार से दूर देखों इन प्रवासियों को ये भोर के भूले हैं जो सांझ को लौट रहे हैं | 

साजन काचे आम ते सुनी परी अमराइ । 
सुस्वादु अचार एहि रितु घारै कैसे माइ॥७II  
साजन अबके कच्चे आमों से अमराइयाँ सुनी पड़ गई हैं अब माताएं इस ऋतु में सुस्वादु अचार कैसे घारेंगी 

सासक कह तस चालिते जन जन भए कल यंत्र। 
सासन तंत्र परि भरुअर भया प्रसासन तंत्र ॥८II  
जन जन कलयंत्र  सदृश्य हो चले हैं शासक कहे वैसे संचालित होना होगा इस शासन तंत्र पर प्रशासन तंत्र भारी हो गया अर्थात भारत पर अधिकारी तंत्र राज गया है 

बृहद संगत जौ होउते लघु कुटीर उद्योग । 
महबंध माहि दरसते, काम लगे सब लोग ॥९II  
यदि वृहद् के साथ लघु कुटीर उद्योग होते तब कोरोनाकाल के महाबंद में सभी लोग काम में लगे हुवे दर्शते | 

प्रति दिन पहिरत दरसते, नवल नवल परिधान । 
ऐतिक कापर कहुहु कहँ रखिते रे श्रीमान ॥१०II 
प्रतिदिन जो नएनए परिधान धारण किए दिखाई देते हैं कहिए तो ये लब्धप्रतिष्ठित श्रीमान इतने वस्त्रों को रखते कहाँ है |  

गुरुवर हेरन मैं चला,हेर न मिलया कोए l
मैं पापि अधम मो सोह, बड़ा जगत को होए ll११II
मेरा ह्रदय श्रेष्ठ गुरु का अन्वेषण करने चला किन्तु कोई नहीं मिला मेरा ह्रदय अतिशय पापी है एतएव मुझसे बड़ा गुरु जगत में कोई न होगा  

सस्त्र चलए तौ कदाचित हते न एकहु सांस l 
बुद्धिमत कर बुद्धि चलत सरबस होत बिनास ll१२II  
विदुर नीति : शस्त्र चलने से कदाचित एक सांस भी न आहत हो किंतु बुद्धिमान की बुद्धि चलती है तो सर्वत्र विनाश होता है

नेताजी अपराध के धरे सीस परि हाथ l 

जब तब कियो धूर्तता प्रजा तंत्र कर साथ l१३l ....

नेता जी ने अपराध को प्रोत्साहित किया हुवा है वह जब तब प्रजातंत्र के साथ धूर्तता करते दिखाई देते हैं | 


अपराध अपराधी का, देखे धर्म न जात l 
चोरी हत्या लूट सो, करे हिंस उत्पात l१४l .....
अपराधी का अपराध धर्म जाति में भेद नहीं करता वह चोरी ह्त्या लूट के साथ बहुंत से हिंसक उत्पात करता है | 

जहाँ बिरधपन श्रम करे,बालक गहे ग्यान | 
जहाँ युवा त्याग करे, सो तो देस युवान II१५II 
जहां वृद्धवयस श्रम करती हो जहाँ बाल्यपन ज्ञान ग्रहण करता हो जहाँ युवावस्था त्याग करती हो वह देश तरुण और महान होता है

धर्म जाति सो उपकरन जौ परिचय जतलाए | 
एहि जनावत कवन तुम्ह अबरु कहँ ते आए II१६II 
''धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट कर यह संसूचित करते हैं कि आप कौन हैं कहाँ से आए हैं |.....''

कंठ व्याल भाल शशि: शंभु शिव शंकराय l 
नमामि शंभु वल्लभाय हरि ॐ नम: शिवाय II१७|| 

समझ बूझ कर बरतिये, तब लग है बरदान ।
अन्यथा मानव के लिए है अभिशाप विज्ञान ॥१८II 
सोच विचार कर व्यवहार किया जाए तब तक विज्ञान वरदान हैं अन्यथा वह अभिषाप सिद्ध होगी 
 
सत् कृत बहु श्रम पूरित अर्जित जो कर दान । 
जन मानस हे देस के,लो उसका संज्ञान ॥१९ II 
हे भारत का जन मानस! तुम्हें सत्य कार्यों व अतिशय श्रम पूर्वक अर्जित किए कर स्वरूप राजस्व के दान का संज्ञान लेना चा

पराइ चाकरि ते भला, घर का छोटा काम l 
जामे स्वामि पद गहे, लहे जगत में नाम l२०l
किसी दूसरे की नौकरी बजाने से घर का छोटा काम उत्तम होता है घर का काम हमें किसी के दास से इतर स्वामी के पद पर प्रतिष्ठित करता है और दुनिया में शाख यश कीर्ति का कारक बनता है




Monday, 16 June 2025

----- || दोहा- विंशी 14 ||-----

भरे दया के भाव से,देख घाव गंभीर l

दे रक्त प्राण दान दे,वही है रक्त वीर ll१ || 


घर घर होती बेटियाँ, पढ़ लिख कर गुणवान l

यह शिक्षा फलीभूत जब, रखे पिता का मान ll२|| 


समझ बूझ कर बरतिये, तब लग है बरदान ।
अन्यथा मानव के लिए है अभिशाप विज्ञान ॥३|| 

जिउते मिरतक होत बस,लगे पलक कुल दोए ।
कलजुग तोरे काल में, समुझे नाही कोए ॥४||

प्रसर पंथ पर चरण धर, उड़ा उतंग विमान । 
वियत गमन करतेआह! गिरा तरु पत्र समान ||५||   
प्रसर पंथ = रनवे

नियम की मर्यादा का, होता जब अवमान l 
युग में विध्वंश करता, निष्फल तब निर्माण ll६|| 

यह युग निर्माण का पर, मरती नीति नृशंस l 
बल से फिर होता क्यों, दुर्बल का विध्वंश ll७|| 

बरखा आती देख के,खिले खेत खलिहान । 
करषन करतल हल गहे,खिलखिल चले किसान॥८||   
कर्षन = खिंचना, जोतना

रचना होती आपनी, जब लग अपने पास l 
जोइ चढ़ चौहाट बिकी, सो तो सत्यानास ll९|| 

शब्द शब्द को देखता शब्द शब्द को लेख l 
शब्द नित रूप बदलता,शब्द शब्द को देख ll१०|| 

शब्द शब्द को देखता शब्द शब्द को लेख l 
शब्द शब्द को लेखता शब्द शब्द को देख ll११|| 

गली गली जोगी फिरे,चाहे जो रख लेय l 
जे सेवक ताहि के जो,मोल कहे सो देय ll१२||

राष्ट्र रक्ष के लक्ष्य का, विपक्ष प्रथम प्रतिरोध l 
होता पक्ष प्रत्यक्ष तथापि,करता नित्य विरोध ll१३|| 

परिरक्ष्य होकर वक्ष पर,सहते शत्रु का क्रोध l 
हम रण दक्ष फिर क्रोध का,क्यों न लें प्रतिशोध ll१४|| 

कवन मीत तटस्थ कवन रखत ताहि कर सूचि l 
समरांगन उद्यत करो ता पुनि सैन समूचि ll१५|| 
कौन से देश तटस्थ है और कौन मित्र हैं इसकी सूचि रखते हुवे तब फिर समर भूमि में समूची सेना को इस हेतु तैयार करनी चाहिए

साजे सैन्य साज संग रिपु सुनौ एहि संदेस l 
समरांगन माहि उद्यत हमरा भारत देस ll१६|| 

गली गली मदिरा बिक,चौंक चौक में मांस l 
गह गह जुबा बाल बिरध,भए व्यसन केदास ll1७|| 

गली गली मदिरा बिके,गौरस ढूंढ न पाए ll 
खूंटे बंध कसाई के, सांसत गौ तड़पाए ll१८|| 

सखि घन कै बरसे बिन रे,बूझे नाहि प्यास ।
आस नही दूजे की बस, एकै राम की आस ।।१९|| 

तापत धरति सूख भी,घोर जरावै घाम । 
निरखै नभपथ अब सबहि,कब बरसोगे राम ।।२०|| 











 

 





















Sunday, 8 June 2025

----- || दोहा- विंशी १२ ||-----

 सिंहासन राम बिराजे,साजै राज द्वारि |

देव मुनिहि सन भगत जन,करत चरन जोहार ||१ ||   


मानिक मुकुता रतन मनि, सुबरन मई द्वार | 

पचि कोरि कुसुम अहिबेलि बँधेउ बँदनिवार ||२|| 


सुलभ भई भगवत कथा, सरल भयो हरि नाम l

भजत भगत जन भव तरत,करत जगत कै काम ||३||


सुन्दर जाकी बानि अति, सुन्दर जाका भेष l 
धन्य धन्य सो भगत जन, धन्य धन्य सो देस ll४|| 

राम नाम सुख आयतन राम नाम सुख धाम l
जय जय नयन अभिराम जय, राम राम सिय राम ll5|| 

पूजन वंदन आरती करत राम गुण गान l
जोड कर सब लोग कहे जय जय कृपानिधान ll६|| 

फेर बारी बारे जी जसुदा बारहिबार l  
प्रगसे भगवन प्रेम बस, सरबस दय नौछार ll७|| 

धरम करम माहि आडंबर करतब दरसै लोग
अजहुँ धुरीन कर सौमुह बिसइ ए सोचन जोग ll८II

एकाक दिसि प्रवाह लेय धर्मादा दरसात l खेती तबहि उपजए जब चहुँ दिसि घन बरसात ll९ II

वर्तमान में धर्मादा एकल दिशिक प्रवाहित होता दर्शित हो में रहा प्रतीत हो रहा है कृतफल स्वरूपी उपज तभी उत्पन्न होती है जब वर्षा या धर्मादा चारों दिशाओं में वर्षता है

चींटी कै पग घुंघरु बजे सुनत रामजी सोए l 
करत कृपा सहाय होत भगत होए जौ कोए ll१०II  

निर्मम के रे करतली दाया मत का हीर |  
सो तो कसाई कर कस दावै जी को पीर II११ II 
भावार्थ : -निर्मम निर्दयी के करतल में अपने मत का हीरा रख दिया देखो जिसको तुमने मत देकर सिहांसन का सुख दिया  वह कैसे कसाइयों के हाथों जीवों को कष्ट दे रहा है 

जी तो सबके भीत है सबके भीतर प्रान | 
मार सबहि कहुँ पीर दए गहे सबकी देह समान II१२II 
भावार्थ : - जी तो सबके भीतर है प्राण भी सबके भीतर होते हैं | चोट तो सबको पीड़ा देती है लाल रक्त धारण किए देह तो सबकी एक समान होती है पशु को इसलिए पीड़ा दें क्योंकि भगवान ने उसे वाणी नहीं दी वह तुम्हे कुछ कह नहीं सकता |

सत्तासीत स्वारथी करता षड़यंत्र है | 
राजा का सा भेस भर कहे देस स्वतन्त्र है II१३II 

राग वृन्द गह कंठ सह भासै जौ निज भास् | 
सरगम लय संगत होत सुर के करत बिकास II१४II  
भावार्थ :- राग वृन्द ग्रहण किया कंठ के सह निजभाषा में वार्ता करने से सरगम लय की संगत होते हुवे स्वर का विकास करती है |

साँझी प्रभात रात दिन तात मात सों भ्रात l 
पुलकित गात नवात सिस दरसत जन मग जात॥१५|| 
:- परम पिता श्री राम माता जानकि के साथ भ्राता लक्ष्मण सांध्य प्रभात दिवस रात सभी काल में मार्ग पर चले जा रहे है भक्त जन पुलकित देह से सिरोनत हो उनके दर्शन का लाभ प्राप्त कर रहे हैं . . . . .

गीता में उपदेस यह देय रहे भगवान l 
जीवन ज्ञानोपासना करतब कर्म प्रधान ll१६|| 
:-- श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण यह उपदेश दे रहे हैं कि जीवनयात्रा ज्ञान उपासना कर्तव्य योग्य कर्म इन त्रयकाण्डों की प्रधानता से युक्त रहे.....
 



मुनि देउ नारद ग्यान बिसारद गयउ सनकादिक पही l
पुनि ग्यान जागा सहित बिरागा जब ल्याए कथा गंग गही ll

कथा माझ जब भगति बिराजी l बैसत हरिदय अतिसय साजी ll
सुपुत ग्यान संग बैरागा l सुनत कर तारि धुनि पुनि जागा ll
लमनी घन घन दाड़ लए घन घन कारी मूँछ l 
जो रमें न हरि भजन में तन्हकी जाति पूछ ll

पाहन का सार जल है भू का सार ग्यान l
देव का सार देव हैं,जगत सार भगवान ll

बेद पुरान निगमागम मुनिवर किन्ह प्रबंधुl 
कल जुग माहि होत जात द्विज जन द्विजबंधु ll

पद पद मैं परबत नदी बट बट मैं बन राए l
यह संपत्ति जगपति की सोच समझ बरताएं ll





----II राग ललित II---- ललित लाल लव तिलक भाल तल लसत लावनि लोचनम् I

गहगहत गांठ परि गाँठि,चलत पंथ परि पंथ l कहहु बंधु ए निबरे कस,पठत ग्रंथ परि ग्रंथ ll

नित नव पीढ़ि सो जनमत साधन अस भरमात l जस अति द्रुत गति संगत कलजुग बिरता जात ll अर्थ: नित नव पीढ़ी संग उत्पन्न होते ( अकादस पीढ़ि के संगणक आ गए किन्तु संताने अभी दूसरी तीसरी पीढ़ी की जन्म ली हैं)साधन ऐसा भ्रमित कर रहे है जैसे ये कलयुग सामान्य गति से अन्यथा शीघ्रता पूर्वक व्यतित हो रहा है

दिन बिरता भाअँधेरा करत दीप कर बात l
कहत संत सज्जन, तासु अँधियारा नहि जात ll
संत सज्जन कहते हैं दिवसावसान पश्चात्य अँधेरा हो गया अब केवल दीपक की वार्ता करने मात्र से अँधेरा दूर नहीं होता अर्थात अँधेरा तो दीपक जलाने से दूर होगा केवल वार्ता भर से नहीं

सस्य श्यामल धरा मह,पाहन दे उपजाए l 
बीपिन कियो सब काँकरी,सब कानन बिनसाए ll .... .

होउते जोअधिकाधिक लघु कुटीर उद्योग | 
घर घर माहि दरसते  काम लगे सब लोग || 
वृहद उद्योगों की अपेक्षा यदिलघु उद्योग अधिकाधिक होते तो घर घर में लोग काम से लगे होते हैं वृहद् उद्योग उतना काम नहीं देता जितना लघु उद्योग देते हैं यदि देते तोआजीविका विहीन लोगों का वर्ग खड़ा नहीं होता