Monday, 16 June 2025

----- || दोहा- विंशी 14 ||-----

भरे दया के भाव से,देख घाव गंभीर l

दे रक्त प्राण दान दे,वही है रक्त वीर ll१ || 


घर घर होती बेटियाँ, पढ़ लिख कर गुणवान l

यह शिक्षा फलीभूत जब, रखे पिता का मान ll२|| 


समझ बूझ कर बरतिये, तब लग है बरदान ।
अन्यथा मानव के लिए है अभिशाप विज्ञान ॥३|| 

जिउते मिरतक होत बस,लगे पलक कुल दोए ।
कलजुग तोरे काल में, समुझे नाही कोए ॥४||

प्रसर पंथ पर चरण धर, उड़ा उतंग विमान । 
वियत गमन करतेआह! गिरा तरु पत्र समान ||५||   
प्रसर पंथ = रनवे

नियम की मर्यादा का, होता जब अवमान l 
युग में विध्वंश करता, निष्फल तब निर्माण ll६|| 

यह युग निर्माण का पर, मरती नीति नृशंस l 
बल से फिर होता क्यों, दुर्बल का विध्वंश ll७|| 

बरखा आती देख के,खिले खेत खलिहान । 
करषन करतल हल गहे,खिलखिल चले किसान॥८||   
कर्षन = खिंचना, जोतना

रचना होती आपनी, जब लग अपने पास l 
जोइ चढ़ चौहाट बिकी, सो तो सत्यानास ll९|| 

शब्द शब्द को देखता शब्द शब्द को लेख l 
शब्द नित रूप बदलता,शब्द शब्द को देख ll१०|| 

शब्द शब्द को देखता शब्द शब्द को लेख l 
शब्द शब्द को लेखता शब्द शब्द को देख ll११|| 

गली गली जोगी फिरे,चाहे जो रख लेय l 
जे सेवक ताहि के जो,मोल कहे सो देय ll१२||

राष्ट्र रक्ष के लक्ष्य का, विपक्ष प्रथम प्रतिरोध l 
होता पक्ष प्रत्यक्ष तथापि,करता नित्य विरोध ll१३|| 

परिरक्ष्य होकर वक्ष पर,सहते शत्रु का क्रोध l 
हम रण दक्ष फिर क्रोध का,क्यों न लें प्रतिशोध ll१४|| 

कवन मीत तटस्थ कवन रखत ताहि कर सूचि l 
समरांगन उद्यत करो ता पुनि सैन समूचि ll१५|| 
कौन से देश तटस्थ है और कौन मित्र हैं इसकी सूचि रखते हुवे तब फिर समर भूमि में समूची सेना को इस हेतु तैयार करनी चाहिए

साजे सैन्य साज संग रिपु सुनौ एहि संदेस l 
समरांगन माहि उद्यत हमरा भारत देस ll१६|| 

गली गली मदिरा बिक,चौंक चौक में मांस l 
गह गह जुबा बाल बिरध,भए व्यसन केदास ll1७|| 

गली गली मदिरा बिके,गौरस ढूंढ न पाए ll 
खूंटे बंध कसाई के, सांसत गौ तड़पाए ll१८|| 

सखि घन कै बरसे बिन रे,बूझे नाहि प्यास ।
आस नही दूजे की बस, एकै राम की आस ।।१९|| 

तापत धरति सूख भी,घोर जरावै घाम । 
निरखै नभपथ अब सबहि,कब बरसोगे राम ।।२०|| 











 

 





















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