Thursday 12 June 2014

----- ॥ जल ही जीवन है ॥ ----

भारत एक जन एवं जीवसंख्या बाहुल्य देश है, जल ही जीवन है और इस जीवन पर सभी निवासियों का अधिकार है ।  नदियां पेय जल की प्रमुख स्त्रोत हैं । अधुनातन इसकी अनुपलब्धता को दृष्टिपात कर पर्यावरण की रक्षा करते हुवे पारिस्थितिक- तंत्र  का चिंतन कर जल- संरक्षण हेतु एक कठोर नियम का उपबंध करना  परम आवश्यक हो गया है..,

>> नदियां जीवन दायिनी स्वरूप में सभी धर्म एवं वर्गों की आदरणीया रही हैं..,

>> एक ग्राम  में केवल श्याम के लिए  नियन उपबंधित नहीं किया जाना चाहिए, अपितु यह  समस्त ग्रामीणों हेतु होना चाहिए उसी प्रकार केवल माँ गंगा जी के लिए ही नियम उपबंधित नहीं होकर नदियों पर किया गया नियम उपबंध व्यापक अर्थ उत्पन्न  करता है..,

>> सर्वप्रथम उद्यम एवं उपक्रमों के उत्सर्जित मल-मूत्र को  प्रतिबंधित करना चाहिए  यह प्रमुख प्रदूषण-स्त्रोत है उद्यमों एवं उपक्रमों को  अवशिष्ट का  पुनर्चक्रीकरण कर उसमें निहित जल का पुनरोपयोग हेतु परमार्श देना चाहिए जो वाष्पीकरण विधि से संभव है..,

>> इसके अतिरिक्त अन्य प्रदूषण-स्त्रोतों को समाज के  लोगों द्वारा जनजागरण अभियानद्वारा उसकी  रोकथाम करनी चाहिए,

>> शासन को चाहिए कि वह नदियों के प्रदुषण को दंडनीय अपराध घोषित कर उस पर कठोर दंड के सह अर्थदंड का प्रावधान करे 

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-06-2014) को "थोड़ी तो रौनक़ आए" (चर्चा मंच-1642) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    ReplyDelete
  2. ..बहुत सुंदर लिखा है .

    ReplyDelete