" मिथ्या द्वारा यथार्थ के स्वांग का सार्वजनिक प्रदर्शन पाखण्ड वाद है...."
दूसरे शब्दों में आप जो नहीं हैं वह होने का प्रदर्शन करना पाखण्ड वाद है,
सत्ता केर स्वाद हुँत प्रसरा पाखण्ड वाद ।
नव नूतन नहि होइया धर्म केर उन्माद ॥
भावार्थ :-- धार्मिक उन्माद फैलाकर सत्ता प्राप्ति करना कोई नई बात नहीं है सत्ता के सुख भोग का परम माध्यम होने से पाखंड वाद अत्यधिक प्रचलित हुवा
पंच परिधान पहिर के चढिया ऊंच मचान ।
देस परधान बोलिया मैं दरिदर की संतान ॥
भावार्थ :--बहुमूल्य वस्त्र धारण कर ऊँचे मंच पर आसीन होकर एक दिन प्रधानमंत्री बोले मैं दरिद्र की सन्तान 'हूँ '। प्रधान मंत्री होकर ये दलिदर हैं नहीं होंगे तो दरिद्र रेखा के नीचे आ जाएंगे
प्रधान मंत्री बनकर भी इन नेताओं का दलिदर दूर नहीं हुवा तो ये बताएं फिर और कैसे होगा । धनवान होकर
दलिदरी का पाखण्ड करना, सत्ता प्राप्त कर उसका अधिकाधिक सुख भोग करना नेहरू-गांधी के विचारों की धारा है ।
ऐसी विचार धारा के कारण ही यह देश खण्ड-खण्ड होता चला गया । तीस चालीस वर्षों में अमेरिका के वासी अंतरिक्ष वासी बन गए किन्तु सत्तर वर्षों में भी भारत के वासियों के सम्मुख से आदि नहीं हटा....
दूसरे शब्दों में आप जो नहीं हैं वह होने का प्रदर्शन करना पाखण्ड वाद है,
सत्ता केर स्वाद हुँत प्रसरा पाखण्ड वाद ।
नव नूतन नहि होइया धर्म केर उन्माद ॥
भावार्थ :-- धार्मिक उन्माद फैलाकर सत्ता प्राप्ति करना कोई नई बात नहीं है सत्ता के सुख भोग का परम माध्यम होने से पाखंड वाद अत्यधिक प्रचलित हुवा
पंच परिधान पहिर के चढिया ऊंच मचान ।
देस परधान बोलिया मैं दरिदर की संतान ॥
भावार्थ :--बहुमूल्य वस्त्र धारण कर ऊँचे मंच पर आसीन होकर एक दिन प्रधानमंत्री बोले मैं दरिद्र की सन्तान 'हूँ '। प्रधान मंत्री होकर ये दलिदर हैं नहीं होंगे तो दरिद्र रेखा के नीचे आ जाएंगे
प्रधान मंत्री बनकर भी इन नेताओं का दलिदर दूर नहीं हुवा तो ये बताएं फिर और कैसे होगा । धनवान होकर
दलिदरी का पाखण्ड करना, सत्ता प्राप्त कर उसका अधिकाधिक सुख भोग करना नेहरू-गांधी के विचारों की धारा है ।
ऐसी विचार धारा के कारण ही यह देश खण्ड-खण्ड होता चला गया । तीस चालीस वर्षों में अमेरिका के वासी अंतरिक्ष वासी बन गए किन्तु सत्तर वर्षों में भी भारत के वासियों के सम्मुख से आदि नहीं हटा....
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