उरियो रे सेंदुरी ऐ री रंग धूरि,
पलहिं उत्पलव नील नलिन नव जिमि जलहिं दीप लव रूरि ।
ललित भाल दए तिलक लाल तव तिमि सोहहि छबि अति भूरि ॥
हनत पनव गहन कहत प्रिया ते अजहूँ पिय दरस न दूरि ।
करिअ बिभावर नगर उजागर सजि बेदि भवन भर पूरि ॥
तरहि पटतर परिहि अम्बारी मनियरी झालरी झूरि ।
बंदनिवार बाँधेउ द्वार धरि चौंकिहि चौंक अपूरि ॥
आगत जान बरु सुमुखि सुनयनि गावहि सुभगान मधूरि ।
सगुन भरि थार करिहि आरती करि मंगलाचार बहूरि ॥
चली मंजु गति प्रिया पियहि पहि अरु छूटहि कुसुम अँजूरि ।
जलज माल जय कलित कंठ दय नत सीस चरन रज पूरि ॥
पलहिं उत्पलव नील नलिन नव जिमि जलहिं दीप लव रूरि ।
ललित भाल दए तिलक लाल तव तिमि सोहहि छबि अति भूरि ॥
हनत पनव गहन कहत प्रिया ते अजहूँ पिय दरस न दूरि ।
करिअ बिभावर नगर उजागर सजि बेदि भवन भर पूरि ॥
तरहि पटतर परिहि अम्बारी मनियरी झालरी झूरि ।
बंदनिवार बाँधेउ द्वार धरि चौंकिहि चौंक अपूरि ॥
आगत जान बरु सुमुखि सुनयनि गावहि सुभगान मधूरि ।
सगुन भरि थार करिहि आरती करि मंगलाचार बहूरि ॥
चली मंजु गति प्रिया पियहि पहि अरु छूटहि कुसुम अँजूरि ।
जलज माल जय कलित कंठ दय नत सीस चरन रज पूरि ॥
----- ॥ सेंदुरी रंग -धूरि ॥ -----
ReplyDeleteदोंनों ही पद अत्यंत उत्कृष्ट हें .
आप धन्य हैं .
रंग पर्व की सादर शुभकामनाएं .
क्षेत्रपाल शर्मा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-03-2017) को
ReplyDelete"आओजम कर खेलें होली" (चर्चा अंक-2604)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक