Sunday 16 April 2017

----- || चलो कविता बनाएँ || -----

हाथोँ हाथ सूझै नहि घन अँधियारी रैन | 
अनहितु सीँउ भेद बढ़े सोइ रहे सबु सैन || १ || 

रतनधि धर जलधि जागै,जागै नदी पहार | 
एक पहराइत जगै नहि ,जागै सबु संसार || २ || 
क्रमश:

जनमानस के दास भए सेवा धर्म निभाउ | 
भाउ रहते भाउ रहे अभाउ रहत अभाउ || 
भावार्थ : - भारतीय लोकतंत्र में मत को दान की श्रेणी में रखते हुवे जनप्रतिनिधि को जनमानस का सेवक कहा गया है | जो कोई प्रतिनिधि के रूप में जनमानस की सेवा करने की इच्छा रखता है वह सेवाधर्म का पालन करते हुवे उसके दुःख से दुःखी व् सुख से सुखी रहे | जहाँ ४०% से अधिक जनमानस निर्धन रेखा के नीचे जीवन यापन करता हो वहां उस प्रतिनिधि को निर्द्धंद्ध सुख उपभोग की अनुमति नहीं होनी चाहिए, अन्यथा जो अभी ४०% है उसे  १०० % होने में देर नहीं लगेगी | 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-04-2017) को

    "चलो कविता बनाएँ" (चर्चा अंक-2620)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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